कराहल, श्योपुर। आजादी के 65 साल बाद भी सेसईपुरा पंचायत के किशनपुरा आदिवासी कालोनी के 52 सहरिया आदिवासी परिवार के 196 महिला-पुरुष व बच्चों को स्वच्छ पेयजल के अधिकार से वंचित हैं और इसके अभाव के कारण कई सारे दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
एकता परिषद की ग्राम इकाई किशनपुरा में आयोजित मासिक बैठक के दौरान आदिवासियों ने पीने के पानी की समस्या के दर्द को जलाधिकार अभियान मध्य प्रदेश के प्रतिनिधियों के सामने जाहिर करते हुए बताया कि गांव के 7 हैंडपंपों में से 6 हैंडपंप खराब पड़े हुए हैं। इसमें तीन हैंडपंपों में मामूली खराबी है जिसको दूर किया जा सकता हैं। किंतु जिस हैंडपंप से पानी आ रहा है वह खारा होने के कारण न तो पीने के लिए उपयोग किया जाता है और न ही नहाने अथवा कपड़ा धोने के लिए।
मठ्ठू आदिवासी ने बताया कि हैंडपंप के पानी से कपड़ा धोने पर कपड़े में अकड़न आ जाती है और नहाने पर पूरे शरीर में सफेद-सफेद चिपचिपाहट पैदा हो जाती है। इसलिए सभी ग्रामीण पुरुष नहाने के लिए 10 से 5 दिन के अंतराल पर कुनो नदी पर जाते हैं।
परिवार के सदस्यों को पीने के लिए पानी लाने के लिए महिलाओं को 1 किमी पैदल चलकर सेसईपुरा जाना पड़ता है। यदि रात में पानी की कमी पड़ गई तो पुरुष सदस्य पानी लाने के लिए जाते हैं। गांव की महिलाएं और बालिकाएं नहाने के लिए गांव से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित निजी कुएं पर जाती हैं।
किशोरवय बालिकाओं ने बताया कि गांव में पानी न होने के कारण उनको खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है और खुले में स्नान करना पड़ता है। कुएं पर खुले में स्नान करना उनकी मजबूरी बन गई है, जो उनको अच्छा नहीं लगता क्योंकि आने-जाने पर मनचले बुरी नजर से देखते हैं। रमेश आदिवासी ने कहा कि कई बार प्रशासन को बताया गया किंतु कोई कार्यवाही नहीं की गई।
सहरिया नाती बाई ने बताया कि बीते वर्ष जब वह पानी लेने के लिए शाम को सेसईपुरा जा रही थी तभी उसके पीछे-पीछे चार वर्ष की पुत्री अनारकली निकल गई और उसको मालूम भी नहीं चला। अनारकली रास्ता भटक कर तीन किलोमीटर दूर दूसरे गावं पहुंच गई। इधर जब नाती बाई ने अपनी लड़की को खोजा तो नहीं मिली, उसका रो-रो कर बुरा हाल हो गया पूरे गांव के लोग अनहोनी से डर गए थे, रात को एक ग्रामीण ने आकर बताया कि एक लड़की अधवाड़ा में रोते हुए जा रही थी तब जाकर ग्रामीण अधवाड़ा पहुंचेे जहां पर अनारकली मिल गई।
पानी की दिक्क्तों के कारण गावं के महिला-पुरुष बच्चे कई-कई दिनों तक स्नान नहीं करते हैं जिसके कारण उनकी त्वचा पर फोड़े फुंसी, खुजली जैसी बीमारियां जन्म ले रही हैं। जलाधिकार पर काम कर रहे गौतम जी ने कहा कि पांच वर्ष पहले किशनपुरा के स्कूल के पास के हैंडपंप के पानी में आर्सेनिक पाए जाने के कारण बंद कर दिया गया था। ज्ञात हो कि आर्सेनिक बहुत ही खतरनाक रासायनिक तत्व है जिसके प्रयोग से त्वचा कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा होता है।
स्वच्छ सुरक्षित और शुद्ध पीने का पानी जीवन जीने के अधिकार के लिए जरूरी है और इस अधिकार का उल्लेख संविधान में किया गया है। यदि पीने के लिए पानी नहीं होगा तो जीवन जीने का अधिकार पर प्रभाव पड़ेगा। लगातार ग्रामीणों के द्वारा आवेदन करने के बाद भी उनको पीने के लिए सुरक्षित और शुद्ध पानी उपलब्ध न करा पाना प्रशासन और शासन की विफलता को उजागर करती है।
एकता परिषद की ग्राम इकाई किशनपुरा में आयोजित मासिक बैठक के दौरान आदिवासियों ने पीने के पानी की समस्या के दर्द को जलाधिकार अभियान मध्य प्रदेश के प्रतिनिधियों के सामने जाहिर करते हुए बताया कि गांव के 7 हैंडपंपों में से 6 हैंडपंप खराब पड़े हुए हैं। इसमें तीन हैंडपंपों में मामूली खराबी है जिसको दूर किया जा सकता हैं। किंतु जिस हैंडपंप से पानी आ रहा है वह खारा होने के कारण न तो पीने के लिए उपयोग किया जाता है और न ही नहाने अथवा कपड़ा धोने के लिए।
मठ्ठू आदिवासी ने बताया कि हैंडपंप के पानी से कपड़ा धोने पर कपड़े में अकड़न आ जाती है और नहाने पर पूरे शरीर में सफेद-सफेद चिपचिपाहट पैदा हो जाती है। इसलिए सभी ग्रामीण पुरुष नहाने के लिए 10 से 5 दिन के अंतराल पर कुनो नदी पर जाते हैं।
परिवार के सदस्यों को पीने के लिए पानी लाने के लिए महिलाओं को 1 किमी पैदल चलकर सेसईपुरा जाना पड़ता है। यदि रात में पानी की कमी पड़ गई तो पुरुष सदस्य पानी लाने के लिए जाते हैं। गांव की महिलाएं और बालिकाएं नहाने के लिए गांव से आधा किलोमीटर की दूरी पर स्थित निजी कुएं पर जाती हैं।
किशोरवय बालिकाओं ने बताया कि गांव में पानी न होने के कारण उनको खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है और खुले में स्नान करना पड़ता है। कुएं पर खुले में स्नान करना उनकी मजबूरी बन गई है, जो उनको अच्छा नहीं लगता क्योंकि आने-जाने पर मनचले बुरी नजर से देखते हैं। रमेश आदिवासी ने कहा कि कई बार प्रशासन को बताया गया किंतु कोई कार्यवाही नहीं की गई।
सहरिया नाती बाई ने बताया कि बीते वर्ष जब वह पानी लेने के लिए शाम को सेसईपुरा जा रही थी तभी उसके पीछे-पीछे चार वर्ष की पुत्री अनारकली निकल गई और उसको मालूम भी नहीं चला। अनारकली रास्ता भटक कर तीन किलोमीटर दूर दूसरे गावं पहुंच गई। इधर जब नाती बाई ने अपनी लड़की को खोजा तो नहीं मिली, उसका रो-रो कर बुरा हाल हो गया पूरे गांव के लोग अनहोनी से डर गए थे, रात को एक ग्रामीण ने आकर बताया कि एक लड़की अधवाड़ा में रोते हुए जा रही थी तब जाकर ग्रामीण अधवाड़ा पहुंचेे जहां पर अनारकली मिल गई।
पानी की दिक्क्तों के कारण गावं के महिला-पुरुष बच्चे कई-कई दिनों तक स्नान नहीं करते हैं जिसके कारण उनकी त्वचा पर फोड़े फुंसी, खुजली जैसी बीमारियां जन्म ले रही हैं। जलाधिकार पर काम कर रहे गौतम जी ने कहा कि पांच वर्ष पहले किशनपुरा के स्कूल के पास के हैंडपंप के पानी में आर्सेनिक पाए जाने के कारण बंद कर दिया गया था। ज्ञात हो कि आर्सेनिक बहुत ही खतरनाक रासायनिक तत्व है जिसके प्रयोग से त्वचा कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा होता है।
स्वच्छ सुरक्षित और शुद्ध पीने का पानी जीवन जीने के अधिकार के लिए जरूरी है और इस अधिकार का उल्लेख संविधान में किया गया है। यदि पीने के लिए पानी नहीं होगा तो जीवन जीने का अधिकार पर प्रभाव पड़ेगा। लगातार ग्रामीणों के द्वारा आवेदन करने के बाद भी उनको पीने के लिए सुरक्षित और शुद्ध पानी उपलब्ध न करा पाना प्रशासन और शासन की विफलता को उजागर करती है।