स्वच्छता सम्बन्धी निमायक ढाँचा कानूनों और विभिन्न राष्ट्र तथा राज्यस्तरीय नीतियों और कार्यक्रमों से बनता है जो कि कानूनन बाध्यकारी नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता का अधिकार महत्वपूर्ण है। इन्ही सवालों को लेकर केन्द्र में रखकर जल एवं स्वच्छता का अधिकार” पर पटना के होटल विंडसर के सभागार में वाटरएड, फोरम फॉर पॉलिशी डॉयलॉग ऑन वाटर कन्फीलिक्ट इन इण्डिया, साकी वाटर एवं मेघ पाईन अभियान और ‘हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल’ की ओर से आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन का केन्द्र बिन्दु स्वच्छता का अधिकार रहा। महात्मा गाँधी ने कहा था- ''भगवान के प्रेम के बाद महत्व की दृष्टि से दूसरा स्थान स्वच्छता के प्रेम का ही है। जिस तरह हमारा मन मलिन हो तो हम भगवान का प्रेम सम्पादित नहीं कर सकते, उसी तरह हमारा शरीर मनिल हो तो भी हम उसका आर्शीवाद नहीं पा सकते। शहर अस्वच्छ हो तो शरीर स्वच्छ रहना असम्भव है।'' बावजूद इसके भारत की जनसंख्या के एक बहुत बड़े प्रतिशत के पास सुरक्षित स्वच्छता की पहुँच नहीं हो पाई है। जहाँ तक कानूनी तन्त्र का सवाल है भारत में स्वच्छता पर कोई विशेष कानून नहीं है।
स्वच्छता सम्बन्धी निमायक ढाँचा कानूनों और विभिन्न राष्ट्र तथा राज्यस्तरीय नीतियों और कार्यक्रमों से बनता है जो कि कानूनन बाध्यकारी नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता का अधिकार महत्वपूर्ण है। इन्ही सवालों को लेकर केन्द्र में रखकर जल एवं स्वच्छता का अधिकार” पर पटना के होटल विंडसर के सभागार में वाटरएड, 'फोरम फॉर पॉलिसी डॉयलॉग ऑन वाटर कन्फीलिक्ट इन इण्डिया', साकी वाटर एवं मेघ पाईन अभियान और ‘हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल’ की ओर से आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन का केन्द्र बिन्दु स्वच्छता का अधिकार रहा।
कार्यशाला के प्रथम सत्र की अध्यक्षता वाटसन के प्रभाकर सिन्हा ने की। इस सत्र में भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता के अधिकार पर चर्चा करते हुए वाटर एड इण्डिया की ममता दास ने कहा कि स्वच्छता का सवाल सम्मान, जीविका, सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ा है। इस सन्दर्भ मेें सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। स्वच्छता को लेकर देश में कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता मिशन और स्वच्छ भारत अभियान चलने के बावजूद देश में पौने चार करोड़ शौचालय गायब हैं। यह स्थिति बनाने से पहले या बनाने के बाद की है। ठोस तथा तरल कचरों का निष्पादन कैसे हो, यह सवाल है। इसके अतिरिक्त महिलाओं से भी जुड़ा सवाल है। उनकी मानसिकता और व्यवहार बदलना है। स्वच्छता का सवाल परिवेश से जुड़ा है और यह सबके लिए सुलभ होना चाहिये।
स्वच्छता का सवाल उनके लिये भी है जो सर पर मैला ढोते हैं। ऐसे लोगों की संख्या देश में तकरीबन तीन लाख है। संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार के सन्दर्भ में सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की बात करता है। उन्होंने कहा कि यदि अधिकार की बात करते हैं तो राज्य माध्यम होगा। स्वच्छता को नहीं अपनाने के कारण देश में हर रोज एक हजार बच्चों की मौत डायरिया से होती हैं। 30 फीसदी लड़कियाँ स्कूल छोड़ देती है।
इसी सत्र में बाढ़ के दृष्टिकोण से स्वच्छता के अधिकार के सन्दर्भ में वाटर एक्शन के विनय कुमार स्वच्छता, शौचालय, बाढ़ और समाज के सरोकारों की चर्चा करते हुए कहा स्वच्छता अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है। उन्होंने सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों को विस्तार से रेखांकित किया।
विनोद कुमार ने कहा कि स्वच्छता के प्रति समाज में समझदारी पैदा करने की आवश्यकता है। वहीं रामजी ने सवाल उठाते हुए कहा कि कैसी स्वच्छता? उन्होंने भूगर्भ जल की स्वच्छता का मामला रखते हुए कुसहा तटबन्ध टूटने के पहले और बाद की स्थिति का जिक्र किया। घोघरडीहा स्वराज विकास संघ के रमेश भाई ने कहा कि सबसे अहम् सवाल यह है कि स्वच्छता के सन्दर्भ में सिविल सोसाइटी की क्या भूमिका हो, यह तय होना चाहिए।
अधिकांश लोग अधिकार को दान समझते हैं। इस सत्र में लाजवन्ती झा, खगड़िया के प्रेम भाई, देवनारायण यादव, सुनील, शम्भू ने विचार रखे।
अध्यक्षीय उद्गार व्यक्त करते हुए प्रभाकर सिन्हा ने कहा कि स्वच्छता का सवाल सिर्फ शौचालय निर्माण से नहीं बल्कि व्यवहार परिवर्तन से है। उन्होंने कहा कि यह सही है सरकार की जवावदेही है। राज्य के 8400 पंचायतों के लिये कार्यक्रम तय किए गए हैं। स्वच्छता का सवाल हमारे नजरिए पर निर्भर करता है।
मन्दिर की स्वच्छता की बात हम क्यों नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि प्राथमिकताएँ निर्धारित की जानी चाहिए, साथ ही समाज को भी संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। जहाँ तक बेहतर तकनीक का सवाल है तो तकनिक इस कदर विकसित करना चाहिए वह सरकार के कार्यक्रमों में भी शामिल हो।
दूसरे सत्र में पर्यावरण विधि शोध संस्था (ईएलआरएस) सुजीथ कोनन ने स्वच्छता के अधिकार के कानूनी और संवैधानिक पहलूओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने मुम्बई उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के सार्वजनिक शौचालय को रेलवे बन्द कर दिया था तो कोर्ट ने कहा था कि इसे बन्द नहीं कर सकते हैं। जाहिर है यह फैसलामानवाधिकार को लेकर था। स्वच्छता का सवाल स्वास्थ्य, मानव सम्मान, पर्यावरण, जल तथा भूमि आदि से जुड़ा है। उन्होंने संविधान की धारा 14, 17, 21, 42 और 47 का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान में समानता, छुआछुत के खिलाफ, जीने का अधिकार की बात कही है। यह इन सन्दर्भ का खुलासा करती है। पैसा समस्या नहीं है, सवाल जिम्मेदारी का है। वहीं वाटर एड की ममता दास ने स्वच्छता के सामूदायिक मुहिम के सन्दर्भ की व्याख्या की और कहा कि गर्वनेंस को जवाबदेह बनाना है। इस सत्र में हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के सिराज केसर, सन्तोष द्विवेदी ने भी अपने विचार रखे।
बिहार स्टेट वाटर एण्ड सेनिटेशन के राज्य समन्वयक संजय कुमार सिन्हा ने बिहार में शौचालय निर्माण और उनके व्यवहार की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। उन्होंने सामाजिक बदलाव के लिए सामुदायिक सहभागिता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर पर स्वच्छता को व्यापक समुदाय से जोड़ना पूरी तरह सम्भव नहीं हुआ। इसकी वजह यह रही कि शौचालय निर्माण जैसे विषय को ही अहमियत दी गई। लोगों के व्यवहार में बदलाव को लेकर प्रयास नहीं हुआ। उन्होंने बिहार में सामख्या, लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग और जीविका के जरिए नए पैटर्न पर चल रहे कार्य की चर्चा की। वहीं अश्रय कौल ने जम्मू कश्मीर के सन्दर्भ में कहा वहाँ 50 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है। 80 फीसदी स्कूलोेंं में शौचालय नहीं है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में वह पीछे हैै। ऊँचे हिस्से में अमीर तबके के लोग रहते हैं, जबकि निचले तबके में गरीब लोग और बाहर से आए मजदूर रहते हैं। यहाँ 58 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ शौचालय निर्माण समाधान नहीं है, बल्कि कचरा निष्पादन भी जरूरी है। बाढ़ के समय की जो तस्वीर उभरी, उससे यह पता चला कि यहां ड्रेनेज मास्टर प्लान तक नहीं है।
कार्यशाला में कार्ययोजना पर भी विचार विमर्श किया गया। तय कार्ययोजना के तहत पानी की गुणवत्ता से वाक़िफ़ कराने, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिये श्वेतपत्र जारी करने, स्वच्छता को लेकर जागरूकता अभियान चलाने, ड्रेनेज मास्टर प्लान की दिशा में काम करने, जल संरक्षण तथा जलस्रोतों के अधिसूचित करने, चिन्हित करने और संरक्षित करने के सन्दर्भ में कार्य को अभियान के रूप में अंजाम देने का संकल्प लिया गया। कार्यशाला का संचालन मेघ पाईन अभियान के एकलव्य प्रसाद ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन फोरम फॉर पॉलिसी डॉयलॉग ऑन वाटर कन्फीलिक्ट इन इण्डिया की सरिता भगत ने किया।
कार्यशाला में पुणे से आए सोसाइटी फॉर प्रमोटिंग पार्टिसिटेव इको सिस्टम मैनेजमेंट (सोप्पेकॉम) के के.जे. राय, साकी वाटर के कार्तिक, हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल की मीनाक्षी अरोरा, निर्भय कृष्णा, हेतल, राजेन्द्र झा, चन्द्रशेखर, सतीश कुमार सिंह, मुंगेर के तुषार के साथ ही बिहार और देश के विभिन्न हिस्सों जुटे जल तथा स्वच्छता पर काम करने वाले संघर्षशील योद्धाओं ने हिस्सा लिया।
स्वच्छता सम्बन्धी निमायक ढाँचा कानूनों और विभिन्न राष्ट्र तथा राज्यस्तरीय नीतियों और कार्यक्रमों से बनता है जो कि कानूनन बाध्यकारी नहीं है। इस परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता का अधिकार महत्वपूर्ण है। इन्ही सवालों को लेकर केन्द्र में रखकर जल एवं स्वच्छता का अधिकार” पर पटना के होटल विंडसर के सभागार में वाटरएड, 'फोरम फॉर पॉलिसी डॉयलॉग ऑन वाटर कन्फीलिक्ट इन इण्डिया', साकी वाटर एवं मेघ पाईन अभियान और ‘हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल’ की ओर से आयोजित कार्यशाला के दूसरे दिन का केन्द्र बिन्दु स्वच्छता का अधिकार रहा।
कार्यशाला के प्रथम सत्र की अध्यक्षता वाटसन के प्रभाकर सिन्हा ने की। इस सत्र में भारतीय परिप्रेक्ष्य में स्वच्छता के अधिकार पर चर्चा करते हुए वाटर एड इण्डिया की ममता दास ने कहा कि स्वच्छता का सवाल सम्मान, जीविका, सुरक्षा, स्वास्थ्य और शिक्षा से जुड़ा है। इस सन्दर्भ मेें सर्वोच्च न्यायालय ने समय-समय पर दिशा निर्देश भी जारी किए हैं। स्वच्छता को लेकर देश में कई तरह के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि स्वच्छता मिशन और स्वच्छ भारत अभियान चलने के बावजूद देश में पौने चार करोड़ शौचालय गायब हैं। यह स्थिति बनाने से पहले या बनाने के बाद की है। ठोस तथा तरल कचरों का निष्पादन कैसे हो, यह सवाल है। इसके अतिरिक्त महिलाओं से भी जुड़ा सवाल है। उनकी मानसिकता और व्यवहार बदलना है। स्वच्छता का सवाल परिवेश से जुड़ा है और यह सबके लिए सुलभ होना चाहिये।
स्वच्छता का सवाल उनके लिये भी है जो सर पर मैला ढोते हैं। ऐसे लोगों की संख्या देश में तकरीबन तीन लाख है। संयुक्त राष्ट्र संघ मानवाधिकार के सन्दर्भ में सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता की बात करता है। उन्होंने कहा कि यदि अधिकार की बात करते हैं तो राज्य माध्यम होगा। स्वच्छता को नहीं अपनाने के कारण देश में हर रोज एक हजार बच्चों की मौत डायरिया से होती हैं। 30 फीसदी लड़कियाँ स्कूल छोड़ देती है।
इसी सत्र में बाढ़ के दृष्टिकोण से स्वच्छता के अधिकार के सन्दर्भ में वाटर एक्शन के विनय कुमार स्वच्छता, शौचालय, बाढ़ और समाज के सरोकारों की चर्चा करते हुए कहा स्वच्छता अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करता है। उन्होंने सरकारी कार्यक्रमों और नीतियों को विस्तार से रेखांकित किया।
विनोद कुमार ने कहा कि स्वच्छता के प्रति समाज में समझदारी पैदा करने की आवश्यकता है। वहीं रामजी ने सवाल उठाते हुए कहा कि कैसी स्वच्छता? उन्होंने भूगर्भ जल की स्वच्छता का मामला रखते हुए कुसहा तटबन्ध टूटने के पहले और बाद की स्थिति का जिक्र किया। घोघरडीहा स्वराज विकास संघ के रमेश भाई ने कहा कि सबसे अहम् सवाल यह है कि स्वच्छता के सन्दर्भ में सिविल सोसाइटी की क्या भूमिका हो, यह तय होना चाहिए।
अधिकांश लोग अधिकार को दान समझते हैं। इस सत्र में लाजवन्ती झा, खगड़िया के प्रेम भाई, देवनारायण यादव, सुनील, शम्भू ने विचार रखे।
अध्यक्षीय उद्गार व्यक्त करते हुए प्रभाकर सिन्हा ने कहा कि स्वच्छता का सवाल सिर्फ शौचालय निर्माण से नहीं बल्कि व्यवहार परिवर्तन से है। उन्होंने कहा कि यह सही है सरकार की जवावदेही है। राज्य के 8400 पंचायतों के लिये कार्यक्रम तय किए गए हैं। स्वच्छता का सवाल हमारे नजरिए पर निर्भर करता है।
मन्दिर की स्वच्छता की बात हम क्यों नहीं करते हैं। उन्होंने कहा कि प्राथमिकताएँ निर्धारित की जानी चाहिए, साथ ही समाज को भी संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। जहाँ तक बेहतर तकनीक का सवाल है तो तकनिक इस कदर विकसित करना चाहिए वह सरकार के कार्यक्रमों में भी शामिल हो।
दूसरे सत्र में पर्यावरण विधि शोध संस्था (ईएलआरएस) सुजीथ कोनन ने स्वच्छता के अधिकार के कानूनी और संवैधानिक पहलूओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने मुम्बई उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि छत्रपति शिवाजी टर्मिनल के सार्वजनिक शौचालय को रेलवे बन्द कर दिया था तो कोर्ट ने कहा था कि इसे बन्द नहीं कर सकते हैं। जाहिर है यह फैसलामानवाधिकार को लेकर था। स्वच्छता का सवाल स्वास्थ्य, मानव सम्मान, पर्यावरण, जल तथा भूमि आदि से जुड़ा है। उन्होंने संविधान की धारा 14, 17, 21, 42 और 47 का उल्लेख करते हुए कहा कि संविधान में समानता, छुआछुत के खिलाफ, जीने का अधिकार की बात कही है। यह इन सन्दर्भ का खुलासा करती है। पैसा समस्या नहीं है, सवाल जिम्मेदारी का है। वहीं वाटर एड की ममता दास ने स्वच्छता के सामूदायिक मुहिम के सन्दर्भ की व्याख्या की और कहा कि गर्वनेंस को जवाबदेह बनाना है। इस सत्र में हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल के सिराज केसर, सन्तोष द्विवेदी ने भी अपने विचार रखे।
बिहार स्टेट वाटर एण्ड सेनिटेशन के राज्य समन्वयक संजय कुमार सिन्हा ने बिहार में शौचालय निर्माण और उनके व्यवहार की वर्तमान स्थिति की चर्चा की। उन्होंने सामाजिक बदलाव के लिए सामुदायिक सहभागिता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पंचायत स्तर पर स्वच्छता को व्यापक समुदाय से जोड़ना पूरी तरह सम्भव नहीं हुआ। इसकी वजह यह रही कि शौचालय निर्माण जैसे विषय को ही अहमियत दी गई। लोगों के व्यवहार में बदलाव को लेकर प्रयास नहीं हुआ। उन्होंने बिहार में सामख्या, लोक स्वास्थ्य अभियन्त्रण विभाग और जीविका के जरिए नए पैटर्न पर चल रहे कार्य की चर्चा की। वहीं अश्रय कौल ने जम्मू कश्मीर के सन्दर्भ में कहा वहाँ 50 फीसदी घरों में शौचालय नहीं है। 80 फीसदी स्कूलोेंं में शौचालय नहीं है। देश के अन्य राज्यों की तुलना में वह पीछे हैै। ऊँचे हिस्से में अमीर तबके के लोग रहते हैं, जबकि निचले तबके में गरीब लोग और बाहर से आए मजदूर रहते हैं। यहाँ 58 फीसदी लोग खुले में शौच करते हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ शौचालय निर्माण समाधान नहीं है, बल्कि कचरा निष्पादन भी जरूरी है। बाढ़ के समय की जो तस्वीर उभरी, उससे यह पता चला कि यहां ड्रेनेज मास्टर प्लान तक नहीं है।
कार्यशाला में कार्ययोजना पर भी विचार विमर्श किया गया। तय कार्ययोजना के तहत पानी की गुणवत्ता से वाक़िफ़ कराने, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिये श्वेतपत्र जारी करने, स्वच्छता को लेकर जागरूकता अभियान चलाने, ड्रेनेज मास्टर प्लान की दिशा में काम करने, जल संरक्षण तथा जलस्रोतों के अधिसूचित करने, चिन्हित करने और संरक्षित करने के सन्दर्भ में कार्य को अभियान के रूप में अंजाम देने का संकल्प लिया गया। कार्यशाला का संचालन मेघ पाईन अभियान के एकलव्य प्रसाद ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन फोरम फॉर पॉलिसी डॉयलॉग ऑन वाटर कन्फीलिक्ट इन इण्डिया की सरिता भगत ने किया।
कार्यशाला में पुणे से आए सोसाइटी फॉर प्रमोटिंग पार्टिसिटेव इको सिस्टम मैनेजमेंट (सोप्पेकॉम) के के.जे. राय, साकी वाटर के कार्तिक, हिन्दी इण्डिया वाटर पोर्टल की मीनाक्षी अरोरा, निर्भय कृष्णा, हेतल, राजेन्द्र झा, चन्द्रशेखर, सतीश कुमार सिंह, मुंगेर के तुषार के साथ ही बिहार और देश के विभिन्न हिस्सों जुटे जल तथा स्वच्छता पर काम करने वाले संघर्षशील योद्धाओं ने हिस्सा लिया।