शेरनी:पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण पर ध्यान आकर्षित करने का प्रयास

Submitted by Shivendra on Thu, 07/22/2021 - 17:36
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इंडिया हिंदी वाटर पोर्टल

अगर विकास के साथ जीना है तो पर्यावरण को बचा नहीं सकते और अगर पर्यावरण को बचाने जाओ तो विकास बेचारा उदास हो जाता है।’ ये संवाद फिल्म ‘शेरनी’ की पूरी कहानी एक लाइन में बयां कर देता है।

हाथी मेरे साथी’। उसके एक गाने की लाइन है, ‘जब जानवर कोई इंसान को मारे, कहते हैं दुनिया में वहशी उसे सारे, एक जानवर की जान आज इंसान ने ली है, चुप क्यों हैं संसार…!’ संसार की इसी चुप्पी पर निर्देशक अमित मसुरकर का दिल रोया है फिल्म ‘शेरनी’ बनकर

जन, जंगल और जिंदगी के बीच झूलती अमित की ये नई फिल्म उस फिल्मकार की विकसित होती शैली की एक और बानगी है जिसकी पिछली फिल्म ‘न्यूटन’भी इन तीन मुद्दों की भूलभुलैया का रास्ता तलाश रही थीफ़िल्म का एक बड़ा हिस्सा जंगल और इंसान के रिश्ते को दोहराता दिखता है

ये दिखाता है कि मध्य प्रदेश का वन विभाग जंगल में बसे लोगों को कैसे रोजी रोटी में मदद कर रहा है। कैसे जंगल में बसे लोगों को जंगल का दोस्त बनाकर जंगलों और इंसानों दोनों को बचाया जा सकता है। और, ये भी कि कैसे जंगल विभाग के अफसर अपने वरिष्ठों को खुश करने के लिए अपने ही पेशे से गद्दारी करते रहते हैं।

पर्यावरण और जंगली जीवो पर आमतौर पर बेहद कम फिल्में बनती है लेकिन जब भी ऐसी फिल्में बनती है तो निर्देशक की मंशा बिल्कुल साफ होती है कि की वो फ़िल्म कमाई के लिए नही संदेश के लिए बना रहे है ये फ़िल्म जानवरों और पर्यावरण से  प्यार का  एक बहुत बड़ा संदेश देता है