ताकि बचे एक-एक बूंद पानी

Submitted by Hindi on Tue, 01/04/2011 - 09:16
Source
रविवार डॉट कॉम, 01 जनवरी 2011


अमृतसर के 16 साल के मिथुन देश के दूसरे लाखों किशोरों जैसे ही हैं। लेकिन हैं अपनी तरह के। गरीबी और परेशानी में दिन गुजरे और अब भी वे उसी से दो-चार हो रहे हैं पर इन सबके बाद भी उनका काम ऐसा कि उनके जज्बे को सलाम करने का मन करता है।

किसी नल से अगर लगातार पानी टपकता रहे तो महीने में लगभग 760 लीटर पानी व्यर्थ बह जाता है, यह आंकड़ा अमृतसर के मिथुन के पास नहीं है लेकिन 16 साल के मिथुन को पता है कि पानी की हरेक बूंद को बचाया जाना जरुरी है।

मिथुन किसी एनजीओ से जुड़े हुये नहीं हैं, कोई ट्रस्ट भी उनकी मदद के लिये नहीं है। किसी ने अब तक इस काम में उनकी मदद भी नहीं की लेकिन यह मिथुन का हौसला है और थोड़ी-सी जिद्द भी कि पानी को कैसे भी, बचाना है।

वे बिना नागा हर शाम अपनी साईकिल से शहर के ऐसे इलाकों में निकल जाते हैं, जहां पानी की बर्बादी पर कोई ध्यान देने वाला नहीं होता। मिथुन आम तौर पर अपना रुख शहर के झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों की ओर करते हैं। वहां वो ऐसे नल टैप की तलाश करते हैं, जिनसे पानी टपक रहा हो या पानी रिस रहा हो या वह नल बिना टैप का हो। मिथुन ऐसे टैपों को बदलते हैं या दुरुस्त करते हैं।

 

पढ़ाई और काम


मिथुन का परिवार दस साल पहले पलायन कर अमृतसर में आ कर बसा। पिता चौकीदार हैं और मां घर में चुल्हा-चौका संभालती हैं। पढ़ाई-लिखाई में तेज़-तर्रार मिथुन ने आठवीं में 72 फीसदी अंक हासिल किये लेकिन पैसों की कमी के कारण पढ़ाई छूट गई।

घर में पैसों की ज़रुरत थी, इसलिये मिथुन ने भी काम करना शुरु किया। एक किताब की दुकान में सुबह दस बजे से शाम के आठ बजे तक काम करने के बदले मिथुन को एक हज़ार रुपये की पेशकश मिली। इसी बीच एक सज्जन ने अपने बच्चों को पढ़ाने का काम मिथुन को सौंपा और बदले में मिथुन को आठ सौ रुपये हर महीने मिलने लगे।

मिथुन ऐसे लोगों के लिये प्रेरणा के लायक हैं, जो लाखों-करोड़ों रुपये देशी-विदेशी धन पाते हैं लेकिन फिर भी उनका काम कहीं नज़र नहीं आता।

पैसे मिलने लगे तो मिथुन ने फिर से पढ़ाई शुरु की। अब मिथुन बारहवी में हैं और कम्प्यूटर चलाना भी उन्हें आता है।

इस बीच मिथुन को लगा कि समाज के लिये कुछ किया जाये, सो वे अपनी साईकिल और थोड़े से औजार के साथ बूंद-बूंद पानी बचाने की अपनी अनोखी पहल के लिये शहर के अलग-अलग इलाकों में निकलने लगे।

मिथुन के नल टैपों को दुरुस्त करने या उन्हें बदलने के इस अभियान से शहर का कितना पानी बचा है, इसका हिसाब होना अभी बचा हुआ है लेकिन इसके बदले आम तौर पर उन्हें उलाहना और गालियां ही मिलती हैं- “तुम पूरे समय यह क्या करते रहते हो?”

“यह तुम्हारी उम्र खेलने पढ़ने की है, यह सब क्या लगा रखा है।“
“बेवकूफ, गधे तेरे पास करने के लिए कुछ और नहीं है क्या?”


लेकिन मिथुन को लोगों के कहे की परवाह नहीं है। उनका सारा ध्यान फिलहाल तो पानी की एक-एक बूंद बचाने पर है।

मिथुन जैसे बच्चे जो बिना किसी स्वार्थ के परमार्थ में लगे हैं, उन लोगों के लिए प्रेरणा हो सकते हैं जो शिक्षा, भूख, बीमारी के नाम पर अपने एनजीओ के लिए करोड़ों रुपये का सरकारी-गैरसरकारी पैसा पाते हैं और जिनके काम कहीं नज़र नहीं आते।

 

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