टिहरी। उत्तराखंड के टिहरी बांध बनने से सरकार को हर महीने करोड़ों रुपयों का मुनाफा हो रहा है, लेकिन इसके साथ एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि इलाके के लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। 44 गांव के लोग मौत के मुहाने पर खड़े हैं। विकास के नाम पर सड़कें बनाने का जो काम हो रहा है उससे लोगों और उनके पशुओं की जिंदगी हराम हो गई है। निर्माण काम के सरकारी ठेके जिन कंपनियों को दिए गए हैं वो अपना काम समय पर पूरा नहीं कर पा रही हैं।
इस भारी परेशानी के माहौल में कुछ लोग हैं जो डट कर लड़ रहे हैं अपने अधिकारों के लिए। सिटीजन जर्नलिस्ट प्रेम दत्त जुयाल की रिपोर्ट हैरान करने वाली है। प्रेम टिहरी के ही जलवाल गांव का रहने वाला है। प्रेम के मुताबिक टिहरी झील के 840 मीटर के दायरे में आने वाले गांवों को सरकार ने यहां से कहीं और बसा दिया। लेकिन झील से 1218 मीटर तक के कई गांव ऐसे हैं जो भूधसाव का शिकार हो रहे हैं। घर-खेत सब खत्म हो रहे हैं। लोग हमेशा एक डर के साए में रहते हैं।
यहां के मदननेगी और जलवाल गांव को पिछले साल भारी बारिश की वजह से झील में जल भराव होने से काफी नुकसान हुआ था। इस खतरे का अंदेशा 1990 में ही हो गया था, इसकी जानकारी प्रशासन को दी गई थी कि यहां के गांव वालों को कहीं और बसाया जाए और आने-जाने की समस्याओं का समाधान किया जाए।
सिटीजन जर्नलिस्ट प्रेम की कई अपील के बाद सरकार ने कई गाँवों का सर्वेक्षण किया। भू-वैज्ञानिकों के साथ-साथ रुड़की के वैज्ञानिकों और डिज़ास्टर मैनेजमेंट सेंटर की तरफ से भी से भू-परीक्षण कराया गया। वैज्ञानिकों की तीनों टीमों ने ये माना कि ये इलाका खतरे के निशान पर है। उन रिपोर्ट के आधार पर शासन ने डीम की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई और डीएम ने शासन को पुनर्वास के लिए सहमति पत्र शासन को भेज दिया। लेकिन उस पर शासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। इस बीच टिहरी बांध की 3 और 4 नंबर सुरंग को बंद कर दिया गया और झील में पानी भरना शुरू हो गया और गांव वालों को परेशानी होने लगी। जिसके प्रेम ने 2004 में नैनीताल हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की। कोर्ट ने भी ये माना कि ये इलाका खतरे के निशान पर है और इन्हें कहीं और बसाया जाना चाहिए।
लेकिन शासन ने अपनी झूठी दलीलें देकर कोर्ट के फैसले पर चुप्पी लगा दी। 2005 में टिहरी झील की जब आखिरी दो सुरंगों टी-1 और टी-2 को बंद कर दिया गया जिसकी वजह से पानी का स्तर बढ़कर 790 मीटर पर चला गया जिससे 950 मीटर तक भू-धसाव शुरू हो गया। जिसकी सूचना एक बार फिर प्रशासन को दी गई। अपर सचिव ने गांवों का मुआयना किया और चिंता जताई और साथ ही एक निरीक्षण कमेटी बनाई। लेकिन जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई। जिसके बाद फिर 2010 में भारी बारिश होने की वजह से झील में पानी का स्तर 832 मीटर तक आ गया। जिसकी वजह से कई गांव तबाह हो गए। कई लोग तो अपने गाँवों को छोड़कर अपने दूसरों के यहां रहने को मजबूर हो गए हैं।
इस तबाही को देखते हुए शासन ने एक बार फिर एक्सपर्ट कमेटी बनाई और नवंबर 2010 में जांच की गई। कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में 44 गाँवों को खतरे के निशान पर माना, लेकिन एक बार फिर उस रिपोर्ट को दरकिनार कर दिया गया। इस मामले को लेकर अधिकारी कितने गंभीर है ये जानने के लिए सिटिज़न जर्नलिस्ट की टीम ने पुर्नवास विभाग के अधिकारियों से बातचीत की। प्रेम को इस लड़ाई को लड़ते हुए 20 साल हो गए हैं। लेकिन वो हार नहीं माने हैं, उनका कहना है कि मेरी ये लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक सैकड़ों परिवारों को इंसाफ नहीं मिल जाता।
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आईबीएन-7, 13 जुलाई 2011