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योजना, जनवरी 2011
गन्ना शोध वैज्ञानिकों के मुताबिक नयी तकनीक ट्रैंच विधि से गन्ना बोने में 3 आँख के टुकड़े लम्बाई में डालने की जगह 2 आँख के टुकड़े नालियों में चौड़ाई में अगल-बगल डाले जाते हैं। इस विधि से बुवाई करने में गन्ने की पैदावार में 40 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी होती है।कुदरती मिठास के महाभण्डार गन्ने की खेती किसानों की खुशहाली व हमारे देश के विशाल चीनी उद्योग का मुख्य आधार है। औद्योगिक प्रगति के माध्यम से समृद्धि की यह मिठास हमारे जनजीवन में और अधिक गहराई तक उतर सके, इस मकसद से सरकार गन्ने की उन्नत खेती को प्रोत्साहित कर रही है। कृषकों के सक्रिय सहयोग के कारण पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जिले गन्ने की भरपूर पैदावार करने की स्थिति में आ गए हैं। इसमें शोधरत कृषि वैज्ञानिकों एवं गन्ना विकास विभाग के कर्मचारियों के साथ-साथ प्रगतिशील किसानों का योगदान भी अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वस्तुतः जहाँ चाह होती है वहाँ राह स्वयं निकल आती है, क्योंकि कर्मवीरों के लिए कुछ भी असम्भव नहीं होता है। वे बाधाओं के पर्वत को चीरकर नया रास्ता बनाते हैं। वे उस पर न केवल खुद चलते हैं, अपितु दूसरों को भी उस राह पर आगे बढ़ाकर मंजिल तक पहुँचाते हैं।
मेरठ जिले के लावड़ गाँव के किसान इरशाद अहमद ने अपनी चाहत के बल पर न केवल अपनी तकदीर बल्कि पूरे इलाके की तस्वीर बदल डाली। दूर-दूर से किसान उनके खेत देखने व उनसे खेती से फायदे के गुर सीखने आते हैं, क्योंकि अहमद चलता-फिरता स्कूल बन गए हैं। आसपास के लोग उन्हें व्यक्ति नहीं विचार कहते हैं। अपनी उपलब्धियों पर उन्हें तनिक भी घमण्ड नहीं है। आज उनके पास ट्रैक्टर व अन्य कई वाहन हैं। बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। फिर भी वह बेहद सहज व सरल हैं।
कहते हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता, लेकिन यह भी सच है कि एक अकेला दीपक अपने आसपास का अन्धेरा दूर कर देता है। साथ ही अपने जैसे दूसरे अनेक दीपकों की लौ को भी प्रज्ज्वलित कर देता है। इरशाद अहमद ने भी यही किया। उन्होंने कृषि की उन्नत तकनीक अपनाकर पेड़ी गन्ने से सर्वाधिक 1,600 क्विण्टल प्रति हेक्टेयर की रिकॉर्ड पैदावार लेने में कामयाबी हासिल की और यह साबित करके दिखा दिया कि कुछ भी मुश्किल नहीं है। उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग ने उन्हें प्रोत्साहित भी किया। अपनी मेहनत व सूझबूझ से उन्होंने वर्ष 2009 की राज्य गन्ना प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता। इसके लिए उन्हें 23 दिसम्बर, 2009 को सरदार बल्लभभाई कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ में आयोजित एक समारोह में उन्हें प्रशस्ति-पत्र, स्मृति चिह्न एवं दस हजार रुपए का चेक देकर सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया।
इरशाद अहमद ने वैज्ञानिक ढंग से गन्ने की खेती करके मिसाल पेश की है जो दूसरों को रास्ता दिखाने के लिए मिशाल बन गई है। उनकी सफलता दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत सिद्ध हो रही है। उपज बढ़ाने के लिए उन्होंने योजना बनाकर काम किया। अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराई। उसके बाद प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर जमीन में जिन तत्वों की कमी थी माइक्रोन्यूट्रिएण्ट मिश्रण डालकर उस कमी को पूरा किया। इसके बाद रासायनिक उर्वरकों के साथ पर्याप्त मात्रा में जैविक खादों का भी प्रयोग किया। उपयुक्त समय पर बुवाई की। परिणामस्वरूप उन्हें दुगनी से भी ज्यादा गन्ने की फसल प्राप्त हुई।
इरशाद अहमद का कहना है कि ‘‘आज सिर्फ अकेले की नहीं बल्कि सामूहिक तरक्की जरूरी है। इसके लिए नया नजरिया एवं दूसरों के अन्दर भी बेहतरी की ओर बढ़ने का जज्बा होना चाहिए।’’
वह कहते हैं कि ‘‘खेती के पुराने ढर्रे की जगह मैंने नये व बेहतर तरीके सीखे, उन्हें अपनाया और अपने आसपास जो मिले उन्हें भी बताया व सिखाया। ताकि दूसरी हरित क्रान्ति शीघ्र हो और हमारा देश खुशहाल हो सके तथा किसानों के कष्ट कम हों। नये काम को बेहतर तरीके से करने के लिए सबसे पहले उसकी सही व पूरी जानकारी जरूरी है। अतः मैं प्रशिक्षण लेने का कोई मौका नहीं चूकता, क्योंकि मेरा मानना है कि जो जितना ज्यादा जानकार है वह उतना ही आगे है।'
इरशाद अहमद की इस सोच को सलाम। उनके ख्यालात सचमचु काबिले-तारीफ हैं। आज हमारे समाज व देश को ऐसे ही लोगों की जरूरत है, क्योंकि सरकार तो सिर्फ मदद कर सकती है, रास्ता दिखा सकती है। अपने उत्थान के लिए पहल तो किसानों को स्वयं ही करनी होगी। अतः इरशाद अहमद जैसे किसानों की हौसला अफजाई जरूरी है।
इरशाद ने नयी तकनीक ट्रैंच विधि को अपनाया है। इस तरीके से गन्ना बोने में 3 आँख के टुकड़े लम्बाई में डालने की जगह 2 आँख के टुकड़े नालियों में चौड़ाई में अगल-बगल डाले जाते हैं। गन्ना शोध वैज्ञानिकों के मुताबिक ट्रैंच विधि से बुवाई करने में गन्ने की पैदावार में 40 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही इरशाद अहमद ने गन्ने की 2 नालियों के बीच में बची हुई 90 से.मी. की खाली जगह में गेन्दे के फूलों की खेती शुरू की है। गेन्दे की खुशबू से एक तो गन्ने की फसल में कीड़े लगने का ख़तरा घटेगा साथ में फूलों की बिक्री से आमदनी भी बढ़ेगी। उन्हें देखकर दूसरे किसान भी प्रेरणा लेने लगे हैं। इससे निश्चय ही खेतों में हरियाली व गाँवों में खुशहाली तेजी से बढ़ेगी।
(लेखक मेरठ उ.प्र. में क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी कार्यालय उप गन्ना आयुक्त के पद पर हैं)
मेरठ जिले के लावड़ गाँव के किसान इरशाद अहमद ने अपनी चाहत के बल पर न केवल अपनी तकदीर बल्कि पूरे इलाके की तस्वीर बदल डाली। दूर-दूर से किसान उनके खेत देखने व उनसे खेती से फायदे के गुर सीखने आते हैं, क्योंकि अहमद चलता-फिरता स्कूल बन गए हैं। आसपास के लोग उन्हें व्यक्ति नहीं विचार कहते हैं। अपनी उपलब्धियों पर उन्हें तनिक भी घमण्ड नहीं है। आज उनके पास ट्रैक्टर व अन्य कई वाहन हैं। बच्चे उच्च शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं। फिर भी वह बेहद सहज व सरल हैं।
कहते हैं कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता, लेकिन यह भी सच है कि एक अकेला दीपक अपने आसपास का अन्धेरा दूर कर देता है। साथ ही अपने जैसे दूसरे अनेक दीपकों की लौ को भी प्रज्ज्वलित कर देता है। इरशाद अहमद ने भी यही किया। उन्होंने कृषि की उन्नत तकनीक अपनाकर पेड़ी गन्ने से सर्वाधिक 1,600 क्विण्टल प्रति हेक्टेयर की रिकॉर्ड पैदावार लेने में कामयाबी हासिल की और यह साबित करके दिखा दिया कि कुछ भी मुश्किल नहीं है। उत्तर प्रदेश के गन्ना विकास विभाग ने उन्हें प्रोत्साहित भी किया। अपनी मेहनत व सूझबूझ से उन्होंने वर्ष 2009 की राज्य गन्ना प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार जीता। इसके लिए उन्हें 23 दिसम्बर, 2009 को सरदार बल्लभभाई कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मोदीपुरम, मेरठ में आयोजित एक समारोह में उन्हें प्रशस्ति-पत्र, स्मृति चिह्न एवं दस हजार रुपए का चेक देकर सार्वजनिक रूप से सम्मानित किया गया।
इरशाद अहमद ने वैज्ञानिक ढंग से गन्ने की खेती करके मिसाल पेश की है जो दूसरों को रास्ता दिखाने के लिए मिशाल बन गई है। उनकी सफलता दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत सिद्ध हो रही है। उपज बढ़ाने के लिए उन्होंने योजना बनाकर काम किया। अपने खेत की मिट्टी की जाँच कराई। उसके बाद प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर जमीन में जिन तत्वों की कमी थी माइक्रोन्यूट्रिएण्ट मिश्रण डालकर उस कमी को पूरा किया। इसके बाद रासायनिक उर्वरकों के साथ पर्याप्त मात्रा में जैविक खादों का भी प्रयोग किया। उपयुक्त समय पर बुवाई की। परिणामस्वरूप उन्हें दुगनी से भी ज्यादा गन्ने की फसल प्राप्त हुई।
इरशाद अहमद का कहना है कि ‘‘आज सिर्फ अकेले की नहीं बल्कि सामूहिक तरक्की जरूरी है। इसके लिए नया नजरिया एवं दूसरों के अन्दर भी बेहतरी की ओर बढ़ने का जज्बा होना चाहिए।’’
वह कहते हैं कि ‘‘खेती के पुराने ढर्रे की जगह मैंने नये व बेहतर तरीके सीखे, उन्हें अपनाया और अपने आसपास जो मिले उन्हें भी बताया व सिखाया। ताकि दूसरी हरित क्रान्ति शीघ्र हो और हमारा देश खुशहाल हो सके तथा किसानों के कष्ट कम हों। नये काम को बेहतर तरीके से करने के लिए सबसे पहले उसकी सही व पूरी जानकारी जरूरी है। अतः मैं प्रशिक्षण लेने का कोई मौका नहीं चूकता, क्योंकि मेरा मानना है कि जो जितना ज्यादा जानकार है वह उतना ही आगे है।'
इरशाद अहमद की इस सोच को सलाम। उनके ख्यालात सचमचु काबिले-तारीफ हैं। आज हमारे समाज व देश को ऐसे ही लोगों की जरूरत है, क्योंकि सरकार तो सिर्फ मदद कर सकती है, रास्ता दिखा सकती है। अपने उत्थान के लिए पहल तो किसानों को स्वयं ही करनी होगी। अतः इरशाद अहमद जैसे किसानों की हौसला अफजाई जरूरी है।
इरशाद ने नयी तकनीक ट्रैंच विधि को अपनाया है। इस तरीके से गन्ना बोने में 3 आँख के टुकड़े लम्बाई में डालने की जगह 2 आँख के टुकड़े नालियों में चौड़ाई में अगल-बगल डाले जाते हैं। गन्ना शोध वैज्ञानिकों के मुताबिक ट्रैंच विधि से बुवाई करने में गन्ने की पैदावार में 40 फीसदी तक की बढ़ोत्तरी होती है। साथ ही इरशाद अहमद ने गन्ने की 2 नालियों के बीच में बची हुई 90 से.मी. की खाली जगह में गेन्दे के फूलों की खेती शुरू की है। गेन्दे की खुशबू से एक तो गन्ने की फसल में कीड़े लगने का ख़तरा घटेगा साथ में फूलों की बिक्री से आमदनी भी बढ़ेगी। उन्हें देखकर दूसरे किसान भी प्रेरणा लेने लगे हैं। इससे निश्चय ही खेतों में हरियाली व गाँवों में खुशहाली तेजी से बढ़ेगी।
(लेखक मेरठ उ.प्र. में क्षेत्रीय प्रचार अधिकारी कार्यालय उप गन्ना आयुक्त के पद पर हैं)