इलाका चाहे गंगा-यमुना के दोआब का दावा करने वाला पश्चिमी व ब्रज क्षेत्र हो या छोटी-छोटी नदियों के कारण समृद्ध रहा पूर्वी उत्तर प्रदेश। बुंदेलखण्ड के झांसी, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट से लेकर फर्रुखाबाद, हरदोई और पीलीभीत तक। और तो और गोरखपुर की तराई में भी पानी पर चर्चा होने लगी है। परिदृश्य पर निगाह डालें, तो उत्तर प्रदेश में नित नये इलाके भूजल की कमी के नये शिकार बन रहे हैं। कुओं में झांकने पर दिखने वाली परछाइयां गायब हो रही हैं। चार नंबर की मशीन वाले हैंडपंप बहुत कम ही दिखाई पड़ते हैं। ट्यूबवेल के पंखे उतार कर नीचे किए जा रहे हैं। समर्सिबल के गहरे बोर दस्तक दे चुके हैं। यह सब तब हो रहा है, जब उत्तर प्रदेश में भूजल का भरा-पूरा विभाग है। कार्यक्रम है। बजट है। खर्च है। भूजल पर 10 जून का सालाना उत्सव है। कागज देखिए तो आंकड़े, आदेश और योजनाओं की कोई कमी नहीं। बतौर नमूना भूजल प्रबंधन संबंधी उ.प्र. के चुनिंदा शासकीय निर्देशों पर निगाह डालें कि ये कितने अच्छे हैं। ये निर्देश ही अगर हकीकत में तब्दील हो जायें, तो सच मानिए कि जेठ में पानी की गुहार की बजाय फुहारें नसीब हो।
चारागाह, चकरोड, पहाड़, पठार व जल संरचनाओं की भूमि को किसी भी अन्य उपयोग हेतु प्रस्तावित करने पर रोक
सार्वजनिक उपयोग की उक्त भूमि का भू उपयोग बदलने की इजाजत नहीं हैं। किंतु उत्तर प्रदेश में ऐसी जमीनों के अन्य उपयोग हेतु पट्टे का काम ग्राम प्रधान, लेखपाल से लेकर तहसीलदार तक की सहमति से थोक में हुए हैं। इसीलिए ज्यादातर इलाकों में चकबंदी में अब ऐसे उपयोग के लिए जमीनें बची ही नहीं हैं।
अन्य उपयोग हेतु पूर्व में किए गये पट्टे-अधिग्रहण रद्द करना, निर्माण ध्वस्त करना तथा संरचना को मूल स्वरूप में लाना प्रशासन की जिम्मेदारी।
ऐसी सार्वजनिक भूमि की सुरक्षा के लिए प्रशासन किसी जन शिकायत का इंतजार करे बगैर खुद पहल करे। ऐसा न करने पर संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई का प्रावधान है। किंतु इन पर कार्रवाई की राज्य स्तरीय व्यापक पहल,आदेश आने के 11 वर्ष बाद भी नहीं हुई है।
प्राकृतिक जल संरचनाओं में केवल वर्षा जल के सतही बहाव व प्रदूषण रहित प्राकृतिक ड्रेनेज के मिलने की व्यवस्था हो।
किसी भी हालत में प्रदूषित जल ताल-तलैया, झील आदि प्राकृतिक जल संरचनाओं में न मिलने पाये; इसकी व्यवस्था हो। व्यवस्था करने का यह आदेश संबंधित विभाग के लिए है। क्या विभाग के पास ऐसी व्यवस्था के लिए किए गये प्रयासों का कोई आंकड़ा है?
जलाशय निर्माण से पूर्व कैचमेंट एरिया का चिन्हीकरण तथा व्यावहारिकता आकलन अनिवार्य।
यह अपने आप में जरूरी काम है। किंतु क्या कैचमेंट एरिया में अवरोध के रूम में खड़े अवरोधों हटाये बगैर व्यावहारिकता संभव नहीं है। क्या विभाग ने व्यावहारिकता सुनिश्चित करने के लिए कहीं उपाय किए हैं?
वर्षा पूर्व जून के प्रथम सप्ताह तक चेकडैम से गाद-कचरा का निस्तारण अनिवार्य।
मुझे नहीं मालूम यह कार्य हकीकत में प्रदेश स्तर पर व्यापक स्तर हर साल किया जाता हो।
प्रत्येक जिलाधीश संबंधित अधिकारी, ग्राम प्रधान तथा लाभार्थियों के एक-एक प्रतिनिधि की सदस्यता से तकनीकी समन्वय समिति का गठन कर जल हेतु दीर्घकालीन एकीकृत योजना निर्माण व क्रियान्वयन सुनिश्चित करें।
कितनी ग्रामसभाओं में यह समितियां काम कर रही हैं? यदि ऐसी समितियां काम कर रही होती, तो मनरेगा के तहत् बने तालाबों के डिजाइन और जगह के चुनाव में जो बड़े पैमाने पर खामी दिखाई दे रही है, वह न होती।
300-500 मी. की छत, स्टोरेज टैंक, रिचार्जवेल की सफाई हेतु वित्तीय प्रावधान।
प्रावधान है, लेकिन जिस कर्मचारी या अधिकारी के पास इस सफाई का दायित्व है, क्या उसे इसकी जानकारी है? जिन्हें जानकारी है, क्या वे वाकई सफाई करते हैं? आपके गांव-कस्बे में ऐसी सरकारी छत व ढांचे होंगे। पता कीजिए ये पैसा कहां जा रहा है, तो सच्चाई सामने आ जायेगी।
300 वर्ग मी. व अधिक क्षेत्रफल की प्रत्येक नये-पुराने शासकीय इमारत में तय समय सीमा के भीतर रूफ टॅाप हार्वेस्टिंग अनिवार्य।
क्या भूजल विभाग यह दावा कर सकता है कि प्रदेश की 50 फीसदी भी ऐसी इमारतों में इस आदेश की पालन करा ली गई है?
100 से अधिक 200 वर्ग मी.से कम क्षेत्रफल के भवनों में सामूहिक रिचार्ज, 200 वर्ग मी से अधिक तथा 300 वर्ग मी.से कम क्षेत्रफल वाले भवनों में सामूहिक हो या एकल, किंतु रिचार्ज व्यवस्था आवश्यक।
यह सिर्फ आदेश है। इसकी पालन निर्माण हेतु पास कराने के लिए दिए गये नक्शे में ही होती है। शहरी बाशिंदे आज तक समझने को तैयार नहीं है कि यह आदेश हमारे लिए पेयजल की मात्रा व गुणवत्ता दोनों सुनिश्चित करने में बड़ा मददगार हो सकता है।
निर्माण योजना बनाने से पूर्व भूगर्भीय/जलीय सर्वेक्षण जरूरी।
कौन करता है?
20 एकड. से कम क्षेत्रफल की औद्योगिक योजना में जलाश्य अथवा इसके हरित क्षेत्र में रिचार्ज वेल/ टैंक निर्माण अनिवार्य। 20 एकड़ से अधिक में कम से कम पांच फीसदी जमीन पर जल पुनर्भरण इकाई जरूरी। न्यूनतम क्षेत्रफल- एक एकड़। गहराई- छह मीटर।
यह आदेश भी आज तक अभियान नहीं बन सका।
1000 वर्ग मी. से अधिक के प्रत्येक भवन, ग्रुप हाउसिंग, शैक्षिक-व्यावसायिक-औद्योगिक परिसर तथा जलधारा पर बनाये गये चेकडैम में जल पुनर्भरण मापने के लिए पीजोमीटर की स्थापना अनिवार्य।
कितने परिसरों या चैकडैम में ऐसा है?
प्रत्येक 10 जून को ब्लॅाक स्तर तक भूजल दिवस मना कर जन भागीदारी सुनिश्चित करने का आदेश।
इसकी औपचारिक पालन हर साल जरूर होती है।
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