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भारत ज्ञान विज्ञान समिति
लोग चलकर, दौड़कर, उछल-कूदकर, रेंगकर, तैरकर या पहियों को घुमाकर आगे जाते हैं। वे चाहे जो भी करें, उनका शरीर लगभग हमेशा जमीन को छूता रहता है। कोई आदमी कूदकर हवा में उड़ता है, यह केवल कुछ क्षणों के लिए होता है और फिर वह दोबारा जमीन पर आ जाता है।
यह बात सभी जीव-जंतुओं पर लागू नहीं होती। चिड़िया, चमगादड़ और कीड़े- सभी उड़ सकते हैं। उनके पंख हवा को धक्का देते हैं। जब वे उड़ते हैं, हवा उन्हें उसी तरह ऊपर उठाए रहती है, जैसे जमीन हमें उठाए रहती हैं।
उड़ने में कितनी आजादी दिखती है। तुम्हें चट्टानों और पहाड़ियों पर चढ़ना नहीं पड़ता या नदियों के जरिए तैरना नहीं पड़ता या कीचड़ में पांव धंसाने पड़ते। तुम बस साफ हवा में, जिस दिशा में चाहो बढ़ सकते हो। मुझे पक्का विश्वास है कि ऐसे मौके जरूर रहे होंगे जब तुमने चाहा होगा कि काश, तुम भी अपनी बाहें हिलाकर चिड़िया की तरह उड़ान भर सकते।
प्राचीन समय में लोगों की भी ऐसी चाह थी कि उड़ सकें और उन्होंने ऐसी कथाएं बनाई जिनमें उड़ना संभव था। उन्होंने ऐसी कालीनों की कल्पना की जो सिर्फ एक जादुई शब्द के बोलने पर उड़ सकती थीं। उन्होंने पंखों वाले घोड़ों की कहानियां कहीं जो अपने सवारों को हवा के जरिए तेजी से ले जा सकते थे।
सबसे प्रसिद्ध पुरानी कहानी लगभग 2500 साल पहले प्राचीन यूनानियों ने बनाई। उन्होंने एक चतुर आविष्कारक डेडॉलस और उसके बेटे इकारस की कथा बनाई जो क्रेट के पास एक द्वीप पर कैद थे। डेडॉलस के पास कोई नाव नहीं थी, तो उस द्वीप से निकलने के लिए उसने अपने और अपने बेटे के लिए पंख बनाए। उसने लकड़ी का एक हल्का ढांचा बनाया, उसे मोम से पोता और मोम में चिड़ियों के पर चिपका दिए। इन पंखों को ऊपर-नीचे हिलाने से वह हवा में उठकर उड़ सकता था। वह और इकारस एक साथ उड़ निकले। डेडॉलस करीब 805 किलोमीटर दूर उड़कर सिसली पहुंचा, परन्तु इकारस उड़ने का मजा लेने के लिए, बहुत ऊंचा उड़ता गया। सूर्य के ज्यादा पास पहुंचने पर गर्मी से मोम पिघलने लगा। उसके पंखों पर चिपके पर ढीले होकर गिरते गए और इकारस नीचे गिरकर मर गया।
यह कहानी बिना शक एक असम्भव घटना है। केवल पंख लगाकर कोई उड़ सकता, चाहे उन पर चिड़ियों के पर भी क्यों न चिपके हों। जो चीज महत्वपूर्ण है वह है मांसपेशियां, जो इन पंखों को इतनी ताकत से ऊपर नीचे फड़फड़ा सकें, ताकि शरीर हवा में उठ सके। जितना ज्यादा भारी कोई शरीर होगा, उतनी ही ज्यादा ताकत इन मांसपेशियों में होनी चाहिए ताकि वह उड़ सके। जिस तरह की मांसपेशियां प्राणियों में होती हैं, ज्यादा से ज्यादा भारी उड़ने वाला प्राणी लगभग 22 किलो का हो सकता है।
कोई भी इंसान पंख हिलाने के लिए अपनी मांसपेशियों का इस्तेमाल करके उड़ नहीं सकता। किसी घोड़े के लिए तो यह करना और भी कठिन है।
पर शायद कोई व्यक्ति किसी प्रकार के रथ से कई सारे पक्षी बांधकर उड़ सके? हर चिड़िया अपने खुद के वजन के अलावा बहुत ही थोड़ा-सा वजन उठा पाएगी। 1630 में फ्रांसिस गॉडविन नाम के अंग्रेज लेखक ने एक कहानी लिखी ‘मैन इन द मून’ । उसने एक खोजी के बारे में बताया जिसने एक रथ में बहुत-सी बड़ी बत्तखें बांध दी थीं। ये बत्तखें हवा में उड़ी। उन बत्तखों ने रथ और उसमें बैठे आदमी को हवा में उड़ाकर चंद्रमा तक पहुंचा दिया। असल में कभी किसी ने भी रथ के साथ बहुत-सी चिड़ियों को बांधकर नहीं देखा है।
गॉडविन के उस पुस्तक लिखने के 150 साल बाद, इंसानों को जमीन से ऊपर उठने का एक तरीका आ ही गया। वह न जादू था और न अपने बाजू हिलाकर उठने का था। वह हवा में तैरने का था।
एक फ्रांसीसी, जोस्फे मोन्टगोल्फिर और उसके छोटे भाई, एटिएन ने ध्यान दिया कि जब आग से धुआं निकलता है तो अपने साथ हल्की चीजों को ऊपर उठा देता है। ऐसा प्रतीत हुआ कि गर्म हवा ठंडी हवा से ज्यादा हल्की (यानी कम घनत्व वाली) होती है। इसका अर्थ है कि गर्म हवा ठंडी में से ऊपर की ओर उठेगी, जैसे एक लकड़ी का टुकड़ा पानी में ऊपर की ओर उठता है।
5 जून 1783 को फ्रांस के अपने शहर अनोने में उन भाइयों ने एक बड़े-से कपड़े के थैले को गर्म हवा से भरा। गर्म हवा ऊपर उठी और उसने अपने साथ उस थैले को गर्म हवा से भरा। गर्म हवा ऊपर उठी और उसने अपने साथ उस थैले को भी उठा लिया और 10 मिनट में 2.4 किलोमीटर तक वह हवा में तैरता रहा। तब तक गर्म हवा ठंडी हो गई थी और वह पहला गुब्बारा जमीन पर उतर गया।
नवम्बर में इन भाइयों ने पेरिस में एक गर्म हवा के गुब्बारे का प्रदर्शन किया। तीन लाख लोगों की भीड़ ने इस गुब्बारे को उठते हुए देखा। इस बार यह 9.6 किलोमीटर तक तैरता रहा।
उसी समय एक बहुत हल्की गैस-हाइड्रोजन-खोजी जा चुकी थी। यह गर्म हवा से भी बहुत कम घनत्व की होती है। जैक्स चार्ल्स नाम के एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने सुझाया कि गुब्बारों में हाइड्रोजन भरी जाए। यह किया गया और हाइड्रोजन से भरे गुब्बारों ने टोकरियां हवा में उठा दीं जिनमें लोग भी बैठे थे। वर्ष 1800 की सदी के शुरू में बहुत लोग गुब्बारों में घूमने गए। पहली बार लोग हवा में कई किलोमीटर तक उठ सके।
गुब्बारे केवल हवा की दिशा के साथ-साथ बह सकते हैं। लेकिन मानो तुम उस टोकरी के साथ किसी प्रकार का इंजन लगा दो जो एक प्रोपेलर (घूमने वाला पंखा जो हवा को पीछे फेंकता है) को चलाता हो। तेजी से घूमता यह पंखा गुब्बारे को हवा में किसी भी दिशा में ले जा सकता है, जिस प्रकार एक जहाज में लगा पंखा उसे पानी के जरिए आगे ले जाता है। ऐसा प्रोपेलर लगा गुब्बारा एक डिरिजिबिल कहलाता है, यानी ऐसा गुब्बारा जिसे दिशा दी जा सके।
पहला डिरिजिबिल एक जर्मन, काउंट फर्डिनेंड वॉन जेपेलिन, ने बनाया। उसने गुब्बारे को एक लम्बे सिगार या कुल्फी की शक्ल के खोल में रखा जो हल्की धातु एल्युमिनियम से बना था, ताकि वह हवा को आसानी से काट सके। जुलाई 1900 को पहला डिंरिजिबिल हवा के जरिए चल सका । अब लोग अपनी पसंद की किसी भी दिशा में उड़ सकते थे।
40 साल तक डिरिजिबिल ज्यादा बड़े और बेहतर बनाए जाते रहे, परन्तु उनमें भरी हाइड्रोजन गैस खतरनाक थी। हाइड्रोजन ज्वलनशील होती है और विस्फोट कर सकती है। उसकी जगह एक अन्य हल्की गैस, हीलियम, इस्तेमाल की जा सकती है। यह हाइड्रोजन जितना अच्छा तो नहीं उठाती पर यह कभी भी आग नहीं पकड़ती। तब भी डिरिजिबिल तेजी से नहीं चलते थे और मजबूत नहीं थे। वे तूफानों में आसानी से टूट जाते थे।
बेशक, कुछ चीजें हवा में तब भी उड़ती हैं जब वे हवा में तैरने के लिए बहुत घनी होती हैं। पतंग हवा से ज्यादा घनी होती है, पर इसलिए तैरती है, क्योंकि यह हवा के सामने एक बड़े क्षेत्रफल वाली सतह पेश करती है। वह हल्के से झोंके को भी पकड़कर उसके द्वारा उठाई जाती है। मान लो, अगर एक पतंग को इतना बड़ा बनाया जाए कि वह एक आदमी को उठा सके?
बहुत हल्की लकड़ी से नाव जैसी चीजें बनाई गई और लकड़ी के चपटे टुकड़े जैसे पंख उनसे लगाए गए, ताकि वे ज्यादा हवा को घेर सकें। ऐसे ग्लाइडर इतने बड़े बनाए जा सकते थे कि वे एक आदमी को उठा सकें। अगर वे हवा में काफी ऊंचाई से छोड़े जाते, तो वे काफी देर हवा में टिक सकते थे, हवा के झोकों और ऊपर उठने वाली हवा की धाराओं पर तैरते हुए। वर्ष 1890 तक ग्लाइडरों का प्रयोग बहुत लोकप्रिय हो चुका था।
शुरुआती ग्लाइडर, गुब्बारों की तरह, केवल उसी दिशा में जा सकते थे जहां उन्हें हवा ले जाती थी। क्या एक ग्लाइडर में भी एक इंजन लग सकता था जो एक पंखे को घुमाता, जैसा कि वॉन जेपेलिन ने गुब्बारे पर लगाया था?
डेटन, ओहायो राज्य में दो अमरीकी साइकिल निर्माताओं, ऑरविल राइट और उसके भाई विल्बर ने तय किया कि वे ऐसा करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने ऐसे ग्लाइडर बनाए जो हवा का पूरा फायदा ले सकें और जिनमें ऐसी मोटर की बिजली से चलने वाले इंजन हों जो ज्यादा से ज्यादा हल्के हों।
17 दिसम्बर 1903 को अमरीका के नार्थ कैरोलिना राज्य में किटी हॉक नामक स्थान पर एक मोटर चालित ग्लाइडर ने ऑरविल राइट को हवा के जरिए यात्रा करवाई। यह पहला हवाई जहाज था। यह हवा में कुल एक मिनट तक ही ठहरा और इसने केवल 260 मीटर तक यात्रा की, परन्तु इसने यह दिखाया कि ऐसा करना संभव है।
हवाई जहाज ज्यादा बड़े और बेहतर इंजनों के साथ बनाए जाने लगे ताकि वे ज्यादा तेजी से उड़ सकें। हवाई जहाज जितना तेज उड़ेगा, उतना ही ज्यादा हवा उसके पंखों को उठाएगी और वह उतना ही ज्यादा भारी भी हो सकेगा। वर्ष 1908 में ऑरविल राइट हवा में एक घंटे तक रुका। वर्ष 1909 में एक जहाज को इंग्लिश चैनल के पार उड़ाया गया। पहले विश्वयुद्ध में हवाई जहाज आपस में भिड़ने लगे। 1927 में अमरीकी उड़ानकर्ता चार्ल्स ए, लिंडबर्ग अटलांटिक महासागर के पार न्यूयार्क से पेरिस तक उड़ा। उसे 33 घंटे लगे। आज हवाई जहाज इतने बड़े हो चुके हैं कि वे सैकड़ों लोगों को ले जा सकते हैं। कुछ वायुयान 1600 किलोमीटर प्रति घंटा या इससे ज्यादा गति से उड़ सकते हैं और अटलांटिक महासागर को 3 घंटे में पार कर सकते हैं।
वायुयानों ने आज डिरिजिबिल को पूरी तरह हटा दिया है। परन्तु साधारण गुब्बारे आज भी पृथ्वी की सतह से बहुत ऊपर की हवा के अध्ययन के लिए इस्तेमाल होते हैं। हल्के पतले प्लास्टिक के गुब्बारे पृथ्वी की सतह से 50 किलोमीटर ऊपर तक उठ सकते हैं।
यह बात सभी जीव-जंतुओं पर लागू नहीं होती। चिड़िया, चमगादड़ और कीड़े- सभी उड़ सकते हैं। उनके पंख हवा को धक्का देते हैं। जब वे उड़ते हैं, हवा उन्हें उसी तरह ऊपर उठाए रहती है, जैसे जमीन हमें उठाए रहती हैं।
उड़ने में कितनी आजादी दिखती है। तुम्हें चट्टानों और पहाड़ियों पर चढ़ना नहीं पड़ता या नदियों के जरिए तैरना नहीं पड़ता या कीचड़ में पांव धंसाने पड़ते। तुम बस साफ हवा में, जिस दिशा में चाहो बढ़ सकते हो। मुझे पक्का विश्वास है कि ऐसे मौके जरूर रहे होंगे जब तुमने चाहा होगा कि काश, तुम भी अपनी बाहें हिलाकर चिड़िया की तरह उड़ान भर सकते।
प्राचीन समय में लोगों की भी ऐसी चाह थी कि उड़ सकें और उन्होंने ऐसी कथाएं बनाई जिनमें उड़ना संभव था। उन्होंने ऐसी कालीनों की कल्पना की जो सिर्फ एक जादुई शब्द के बोलने पर उड़ सकती थीं। उन्होंने पंखों वाले घोड़ों की कहानियां कहीं जो अपने सवारों को हवा के जरिए तेजी से ले जा सकते थे।
सबसे प्रसिद्ध पुरानी कहानी लगभग 2500 साल पहले प्राचीन यूनानियों ने बनाई। उन्होंने एक चतुर आविष्कारक डेडॉलस और उसके बेटे इकारस की कथा बनाई जो क्रेट के पास एक द्वीप पर कैद थे। डेडॉलस के पास कोई नाव नहीं थी, तो उस द्वीप से निकलने के लिए उसने अपने और अपने बेटे के लिए पंख बनाए। उसने लकड़ी का एक हल्का ढांचा बनाया, उसे मोम से पोता और मोम में चिड़ियों के पर चिपका दिए। इन पंखों को ऊपर-नीचे हिलाने से वह हवा में उठकर उड़ सकता था। वह और इकारस एक साथ उड़ निकले। डेडॉलस करीब 805 किलोमीटर दूर उड़कर सिसली पहुंचा, परन्तु इकारस उड़ने का मजा लेने के लिए, बहुत ऊंचा उड़ता गया। सूर्य के ज्यादा पास पहुंचने पर गर्मी से मोम पिघलने लगा। उसके पंखों पर चिपके पर ढीले होकर गिरते गए और इकारस नीचे गिरकर मर गया।
यह कहानी बिना शक एक असम्भव घटना है। केवल पंख लगाकर कोई उड़ सकता, चाहे उन पर चिड़ियों के पर भी क्यों न चिपके हों। जो चीज महत्वपूर्ण है वह है मांसपेशियां, जो इन पंखों को इतनी ताकत से ऊपर नीचे फड़फड़ा सकें, ताकि शरीर हवा में उठ सके। जितना ज्यादा भारी कोई शरीर होगा, उतनी ही ज्यादा ताकत इन मांसपेशियों में होनी चाहिए ताकि वह उड़ सके। जिस तरह की मांसपेशियां प्राणियों में होती हैं, ज्यादा से ज्यादा भारी उड़ने वाला प्राणी लगभग 22 किलो का हो सकता है।
कोई भी इंसान पंख हिलाने के लिए अपनी मांसपेशियों का इस्तेमाल करके उड़ नहीं सकता। किसी घोड़े के लिए तो यह करना और भी कठिन है।
पर शायद कोई व्यक्ति किसी प्रकार के रथ से कई सारे पक्षी बांधकर उड़ सके? हर चिड़िया अपने खुद के वजन के अलावा बहुत ही थोड़ा-सा वजन उठा पाएगी। 1630 में फ्रांसिस गॉडविन नाम के अंग्रेज लेखक ने एक कहानी लिखी ‘मैन इन द मून’ । उसने एक खोजी के बारे में बताया जिसने एक रथ में बहुत-सी बड़ी बत्तखें बांध दी थीं। ये बत्तखें हवा में उड़ी। उन बत्तखों ने रथ और उसमें बैठे आदमी को हवा में उड़ाकर चंद्रमा तक पहुंचा दिया। असल में कभी किसी ने भी रथ के साथ बहुत-सी चिड़ियों को बांधकर नहीं देखा है।
गॉडविन के उस पुस्तक लिखने के 150 साल बाद, इंसानों को जमीन से ऊपर उठने का एक तरीका आ ही गया। वह न जादू था और न अपने बाजू हिलाकर उठने का था। वह हवा में तैरने का था।
एक फ्रांसीसी, जोस्फे मोन्टगोल्फिर और उसके छोटे भाई, एटिएन ने ध्यान दिया कि जब आग से धुआं निकलता है तो अपने साथ हल्की चीजों को ऊपर उठा देता है। ऐसा प्रतीत हुआ कि गर्म हवा ठंडी हवा से ज्यादा हल्की (यानी कम घनत्व वाली) होती है। इसका अर्थ है कि गर्म हवा ठंडी में से ऊपर की ओर उठेगी, जैसे एक लकड़ी का टुकड़ा पानी में ऊपर की ओर उठता है।
5 जून 1783 को फ्रांस के अपने शहर अनोने में उन भाइयों ने एक बड़े-से कपड़े के थैले को गर्म हवा से भरा। गर्म हवा ऊपर उठी और उसने अपने साथ उस थैले को गर्म हवा से भरा। गर्म हवा ऊपर उठी और उसने अपने साथ उस थैले को भी उठा लिया और 10 मिनट में 2.4 किलोमीटर तक वह हवा में तैरता रहा। तब तक गर्म हवा ठंडी हो गई थी और वह पहला गुब्बारा जमीन पर उतर गया।
नवम्बर में इन भाइयों ने पेरिस में एक गर्म हवा के गुब्बारे का प्रदर्शन किया। तीन लाख लोगों की भीड़ ने इस गुब्बारे को उठते हुए देखा। इस बार यह 9.6 किलोमीटर तक तैरता रहा।
उसी समय एक बहुत हल्की गैस-हाइड्रोजन-खोजी जा चुकी थी। यह गर्म हवा से भी बहुत कम घनत्व की होती है। जैक्स चार्ल्स नाम के एक फ्रांसीसी वैज्ञानिक ने सुझाया कि गुब्बारों में हाइड्रोजन भरी जाए। यह किया गया और हाइड्रोजन से भरे गुब्बारों ने टोकरियां हवा में उठा दीं जिनमें लोग भी बैठे थे। वर्ष 1800 की सदी के शुरू में बहुत लोग गुब्बारों में घूमने गए। पहली बार लोग हवा में कई किलोमीटर तक उठ सके।
गुब्बारे केवल हवा की दिशा के साथ-साथ बह सकते हैं। लेकिन मानो तुम उस टोकरी के साथ किसी प्रकार का इंजन लगा दो जो एक प्रोपेलर (घूमने वाला पंखा जो हवा को पीछे फेंकता है) को चलाता हो। तेजी से घूमता यह पंखा गुब्बारे को हवा में किसी भी दिशा में ले जा सकता है, जिस प्रकार एक जहाज में लगा पंखा उसे पानी के जरिए आगे ले जाता है। ऐसा प्रोपेलर लगा गुब्बारा एक डिरिजिबिल कहलाता है, यानी ऐसा गुब्बारा जिसे दिशा दी जा सके।
पहला डिरिजिबिल एक जर्मन, काउंट फर्डिनेंड वॉन जेपेलिन, ने बनाया। उसने गुब्बारे को एक लम्बे सिगार या कुल्फी की शक्ल के खोल में रखा जो हल्की धातु एल्युमिनियम से बना था, ताकि वह हवा को आसानी से काट सके। जुलाई 1900 को पहला डिंरिजिबिल हवा के जरिए चल सका । अब लोग अपनी पसंद की किसी भी दिशा में उड़ सकते थे।
40 साल तक डिरिजिबिल ज्यादा बड़े और बेहतर बनाए जाते रहे, परन्तु उनमें भरी हाइड्रोजन गैस खतरनाक थी। हाइड्रोजन ज्वलनशील होती है और विस्फोट कर सकती है। उसकी जगह एक अन्य हल्की गैस, हीलियम, इस्तेमाल की जा सकती है। यह हाइड्रोजन जितना अच्छा तो नहीं उठाती पर यह कभी भी आग नहीं पकड़ती। तब भी डिरिजिबिल तेजी से नहीं चलते थे और मजबूत नहीं थे। वे तूफानों में आसानी से टूट जाते थे।
बेशक, कुछ चीजें हवा में तब भी उड़ती हैं जब वे हवा में तैरने के लिए बहुत घनी होती हैं। पतंग हवा से ज्यादा घनी होती है, पर इसलिए तैरती है, क्योंकि यह हवा के सामने एक बड़े क्षेत्रफल वाली सतह पेश करती है। वह हल्के से झोंके को भी पकड़कर उसके द्वारा उठाई जाती है। मान लो, अगर एक पतंग को इतना बड़ा बनाया जाए कि वह एक आदमी को उठा सके?
बहुत हल्की लकड़ी से नाव जैसी चीजें बनाई गई और लकड़ी के चपटे टुकड़े जैसे पंख उनसे लगाए गए, ताकि वे ज्यादा हवा को घेर सकें। ऐसे ग्लाइडर इतने बड़े बनाए जा सकते थे कि वे एक आदमी को उठा सकें। अगर वे हवा में काफी ऊंचाई से छोड़े जाते, तो वे काफी देर हवा में टिक सकते थे, हवा के झोकों और ऊपर उठने वाली हवा की धाराओं पर तैरते हुए। वर्ष 1890 तक ग्लाइडरों का प्रयोग बहुत लोकप्रिय हो चुका था।
शुरुआती ग्लाइडर, गुब्बारों की तरह, केवल उसी दिशा में जा सकते थे जहां उन्हें हवा ले जाती थी। क्या एक ग्लाइडर में भी एक इंजन लग सकता था जो एक पंखे को घुमाता, जैसा कि वॉन जेपेलिन ने गुब्बारे पर लगाया था?
डेटन, ओहायो राज्य में दो अमरीकी साइकिल निर्माताओं, ऑरविल राइट और उसके भाई विल्बर ने तय किया कि वे ऐसा करने की कोशिश करेंगे। उन्होंने ऐसे ग्लाइडर बनाए जो हवा का पूरा फायदा ले सकें और जिनमें ऐसी मोटर की बिजली से चलने वाले इंजन हों जो ज्यादा से ज्यादा हल्के हों।
पहला हवाई जहाज
17 दिसम्बर 1903 को अमरीका के नार्थ कैरोलिना राज्य में किटी हॉक नामक स्थान पर एक मोटर चालित ग्लाइडर ने ऑरविल राइट को हवा के जरिए यात्रा करवाई। यह पहला हवाई जहाज था। यह हवा में कुल एक मिनट तक ही ठहरा और इसने केवल 260 मीटर तक यात्रा की, परन्तु इसने यह दिखाया कि ऐसा करना संभव है।
हवाई जहाज ज्यादा बड़े और बेहतर इंजनों के साथ बनाए जाने लगे ताकि वे ज्यादा तेजी से उड़ सकें। हवाई जहाज जितना तेज उड़ेगा, उतना ही ज्यादा हवा उसके पंखों को उठाएगी और वह उतना ही ज्यादा भारी भी हो सकेगा। वर्ष 1908 में ऑरविल राइट हवा में एक घंटे तक रुका। वर्ष 1909 में एक जहाज को इंग्लिश चैनल के पार उड़ाया गया। पहले विश्वयुद्ध में हवाई जहाज आपस में भिड़ने लगे। 1927 में अमरीकी उड़ानकर्ता चार्ल्स ए, लिंडबर्ग अटलांटिक महासागर के पार न्यूयार्क से पेरिस तक उड़ा। उसे 33 घंटे लगे। आज हवाई जहाज इतने बड़े हो चुके हैं कि वे सैकड़ों लोगों को ले जा सकते हैं। कुछ वायुयान 1600 किलोमीटर प्रति घंटा या इससे ज्यादा गति से उड़ सकते हैं और अटलांटिक महासागर को 3 घंटे में पार कर सकते हैं।
वायुयानों ने आज डिरिजिबिल को पूरी तरह हटा दिया है। परन्तु साधारण गुब्बारे आज भी पृथ्वी की सतह से बहुत ऊपर की हवा के अध्ययन के लिए इस्तेमाल होते हैं। हल्के पतले प्लास्टिक के गुब्बारे पृथ्वी की सतह से 50 किलोमीटर ऊपर तक उठ सकते हैं।