इंसानों को जीने के लिए हवा पहली जरूरत है। इसके बिना जीवन असंभव है, लेकिन आज मनुष्य ने अपने क्रियाकलापों से वायुमंडल को विषाक्त बना दिया है। इससे दिल्ली और एनसीआर सहित उत्तर भारत के कई नगरों में हवा इस हद तक प्रदूषित हो गई है कि लोगों द्वार सांस लेना मुश्किल हो गया है। इस वायु प्रदूषण का प्रभाव मानव वर्ग पर ही सीमित नहीं है, जीव-जंतु, पेड़-पौधे भी इसके शिकार हैं। इस प्रदूषण का मुख्य कारण बढ़ते उद्योग-धंधों के साथ-साथ मोटर गाड़ियों से निकलने वाला धुआं है।
दिवाली पर पटाखों का धुआं भी हवा को जहरीला बना रहा है। इसका एक कारण पंजाब, हरियाणा और उप्र के किसानों द्वारा अपने खेतों में धान के अवशेषों का जलाना भी है। इसके अलावा नगर निगमों द्वारा कूड़े का ढेर भी जलाया जाना है। उत्तर भारत में प्रदूषण बाकी भारत के मुकाबले तीन गुना अधिक जानलेवा है। इसके कारण गंगा के मैदानी इलाकों में रहने वाले लोगों की आयु सात साल तक कम हो गई है। यहां देश की 48 करोड़ से अधिक आबादी या भारत की करीब 40 फीसद जनसंख्या निवास करती है। एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआइ) के अनुसार भारत अगर राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (एनसीएपी) के लक्ष्यों को हासिल कर लेता है और मौजूदा प्रदूषण में 25 फीसद की कटौती कर लेता है तो भारतीयों का औसत जीवन करीब 1.3 साल बढ़ जाएगा।
मनुष्य के जीने के लिए हवा में ऑक्सीजन का होना बहुत जरूरी है। इसके बिना हम जी नहीं सकते। ऑक्सीजन हमें पेड़-पौधों और वृक्षों से मिलती है। इसलिए हर नागरिक का यह कर्तव्य है कि वायु प्रदूषण को रोकने के लिए वृक्ष लगाए और उनकी रक्षा भी करे। इसके साथ-साथ प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग-धंधों के खिलाफ आवाज उठाए। दीपावली पर अंधाधुंध पटाखों को दागने वाले के खिलाफ माहौल बनाए। वायु प्रदूषण के कारण इंसानों के साथ-साथ फसलें भी प्रभावित हो रही हैं। लहलहाते खेत सूख रहे हैं, पैदावार कम हो रही है, फल-सब्जियों के स्वाद में अंतर हो रहा है। वायुमंडल में व्याप्त धूल और धुएं के कारण पौधों को प्रकाश की वांछित मात्रा नहीं मिल पा रही है, जिससे उनका पूर्ण विकास नहीं हो पा रहा है।
प्रदूषण से पत्तियों पर धब्बे पड़ जा रहे हैं। इससे पत्तियां मुरझाने लग रही हैं और फूल खिलने से पहले ही गिरने लग रहे हैं। एक अध्ययन के अनुसार मिर्जापुर में सीमेंट कारखानों के निकटवर्ती क्षेत्रों में पौध नाटे, पत्तियां छोटीं, बालियां अविकसित तथा दाने अपुष्ट पाए गए हैं। बहुत से क्षेत्रों में आम की फसलें अत्यधिक प्रभावित हुई हैं। देश में हर आठ में से एक व्यक्ति की मौत वायु प्रदूषण के कारण हो रही है। वक्त आ गया है कि साफ हवा के लिए केंद्र और राज्य सरकारें मिलकर काम करें और कुछ कड़े कदम उठाए जाएं। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में हमें सांस लेने के लिए शुद्ध हवा का मिलना मुश्किल हो जाएगा और लोग बड़े पैमाने पर दमा, टीबी सहित कई तरह की गंभीर बीमारियों के शिकार होंगे।
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