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विकास संवाद द्वारा प्रकाशित 'पानी' किताब
पानी के लिए विश्व युद्ध होगा, कुछ समय पहले तक इस भविष्यवाणी का मखौल उड़ाया जाता था। आज आस-पास की घटनाएँ देखकर डर लगता है, भविष्यवाणी सच होने को है। देश तो बाद में लड़ेंगे, पहले प्रदेश टकराएँगे और उसके पहले हम।
मुंबई में हुई एक घटना मन उचाट कर गई। हुआ यूँ कि मुंबई के कुछ संभ्रांत (?) परिवारों ने एक महिला को चोरी करते रंगे हाथों पकड़ लिया। फिर जैसा कि खुद ही न्याय कर सजा देने का चलन चल पड़ा है, लोगों ने पहले उसे पीटा फिर मुँह काला कर कॉलोनी में घुमाया। सजा देने का उद्देश्य यह होता कि उसके डर से व्यक्ति अपराध न करे।उम्मीद की जानी चाहिए वह महिला भी भविष्य में चोरी नहीं करेगी।
इस उम्मीद के पहले यह तो जान लीजिए कि उस महिला का दोष क्या था? पानी का संकट भोग रही मुंबई की वह महिला धनाढ्यों की कॉलोनी में से एक बाल्टी पानी चुरा रही थी। एक बाल्टी पानी की सजा-पहले पिटाई फिर मुँह काला।
‘पानीदार’ लोग जरा यह तो सोचते कि जिस महिला को प्यास बुझाने के लिए पानी चुराना पड़ा, वह अपने मुँह की कालिख धोने के लिए पानी कहां से लाएगी? और समाज के लिए उसके भीतर जो कालिख जमेगी उसे कौन-सा पानी साफ कर पाएगा?
जितना पानी उसने चुराया उससे ज्यादा तो शरीर साफ करने में बह जाएगा। फिर उस 65 करोड़ लीटर पानी का क्या जो रोजाना मुंबई की सड़कों पर व्यर्थ बह रहा है?
समय आने वाले कल की कहानी आज लिख रहा है। पानी के लिए विश्व युद्ध होगा, कुछ समय पहले तक इस भविष्यवाणी का मखौल उड़ाया जाता था। आज आस-पास की घटनाएँ देखकर डर लगता है, भविष्यवाणी सच होने को है। देश तो बाद में लड़ेंगे, पहले प्रदेश टकराएँगे और उसके पहले हम। रोटी-बेटी का नहीं पानी का संबंध मायने रखेगा और....
जब कोई मेजबान पूछ लेगा- पानी पिएँगे, तो बावरा मेहमान अपनी किस्मत पर गुमान करेगा... शायद दूध की नदियों की तरह हम याद करेंगे.. पहले चाय पानी का सहज आतिथ्य हुआ करता था।अभी भी मौका है पानी ही इस संकट से ऊबारेगा, इसे बचाइए।