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शुक्रवार, अप्रैल 2016
लातूर का जल संकट मौसमी नहीं है। स्थानीय लोगों की मानें तो बारिश के दिनों में भी लातूर शहर को हर 10वें दिन ही पानी की आपूर्ति हो पाती थी। दिवाली के आसपास पानी हर 20 दिन पर मिलने लगा जबकि दिसम्बर आते-आते महीने में एक बार। फिलहाल तो पानी वहाँ एक ऐसे दुर्लभ संसाधन का रूप ले चुका है जिसके लिये हत्या तक हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं। नगर निगम टैंकर के जरिए 200 लीटर पानी प्रति परिवार दस दिनों के लिये देता है। चाहे परिवार छोटा हो या बड़ा। घर के बाहर 200 लीटर का बैरल रखा होता है जिसमें टैंकर उतना ही पानी देता है। बारह अप्रैल दिन मंगलवार की सुबह। देश के अधिकांश शहर और कस्बे उनींदे से थे लेकिन लातूर की आँखों में नींद नहीं थी। बहुप्रतीक्षित मेहमान शहर पहुँचने वाला था। यह मेहमान था पानी जो सांगली से ट्रेन में भरकर जल संकट से जूझ रहे लातूर लाया जा रहा था। ट्रेन स्टेशन आई और वहाँ मौजूद लोगों की आँखें छलछला आईं। जैसे सालों का बिछड़ा कोई अपना आया हो। ट्रेन में 10 डिब्बे थे और इनमें से प्रत्येक में 50,000 लीटर पानी था। पानी की सुरक्षा के लिये बकायदा पुलिस के जवान तैनात थे।
मध्य रेलवे के प्रवक्ता नरेंद्र पाटिल के मुताबिक इस पानी को लातूर रेलवे स्टेशन के निकट एक कुएँ में जमा किया जा रहा है जहाँ से इसे जरूरत के मुताबिक शहर में भेजा जाएगा। लातूर में जल संकट की गम्भीरता का अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मार्च महीने में ही लातूर जिला प्रशासन ने पानी के स्रोतों के आसपास धारा 144 लागू कर दी थी। यानी जलस्रोतों के आसपास चार से अधिक लोगों का एकत्रित होना अवैध करार दे दिया गया था। टैंकर ही अब यहाँ पानी का इकलौता जरिया है।
टैंकर के आते ही लोग उसे घेर लेते हैं। लातूर में पानी के लिये अब जंगल का कानून चलता है। यानी जो जितना ताकतवर, उतना पानी उसका। हालात इतने बिगड़े कि धारा 144 लगानी पड़ी और पुलिस ने जलस्रोतों की हिफाजत करनी शुरू की।
राजनीति जिस तरह हमारी रगों में बह रही है, वैसे में इस घटना का राजनीति से बच पाना भी मुश्किल ही नजर आ रहा था। ट्रेन के लातूर पहुँचने के कुछ समय बाद ही भाजपा के कार्यकर्ता ट्रेन पर चढ़कर अपने नेताओं के पोस्टर लगाने लगे। पोस्टर के जरिए मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और रेलमंत्री सुरेश प्रभु का धन्यवाद दिया जा रहा था। कांग्रेस भला कैसे पीछे रहती तो स्टेशन पर रेलगाड़ी को रिसीव करने पहुँचे कांग्रेस के मेयर अख्तर शेख ने झट से कह डाला कि इसका श्रेय उन्हें जाता है।
लातूर का जल संकट मौसमी नहीं है। स्थानीय लोगों की मानें तो बारिश के दिनों में भी लातूर शहर को हर 10वें दिन ही पानी की आपूर्ति हो पाती थी। दिवाली के आसपास पानी हर 20 दिन पर मिलने लगा जबकि दिसम्बर आते-आते महीने में एक बार। फिलहाल तो पानी वहाँ एक ऐसे दुर्लभ संसाधन का रूप ले चुका है जिसके लिये हत्या तक हो जाये तो कोई आश्चर्य नहीं।
नगर निगम टैंकर के जरिए 200 लीटर पानी प्रति परिवार दस दिनों के लिये देता है। चाहे परिवार छोटा हो या बड़ा। घर के बाहर 200 लीटर का बैरल रखा होता है जिसमें टैंकर उतना ही पानी देता है। फिर टैंकर दोबारा कभी 12 तो कभी 15 दिनों के बाद आता है। स्थानीय लोगों के मुताबिक 5000 लीटर का जो टैंकर पहले 400 रुपए में मिल जाया करता था वह इन दिनों 1000 रुपए में भी नहीं मिल रहा है।
लातूर के जलसंकट पर शोध कर चुके अतुल देउलगांवकर ने एक साक्षात्कार में लातूर जल संकट की अहम वजहों का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि शहर में पानी की कमी की सबसे अहम वजह है 4 साल से बारिश का कम होना। लेकिन इसके पीछे अन्य कारण भी हैं।
लातूर शहर को मांजरा डैम से पानी मिलता रहा है। लेकिन 55 किमी दूर स्थित यह बाँध अब पूरी तरह सूख चुका है। इसके अलावा पाइप से होने वाली आपूर्ति में बहुत बड़े पैमाने पर लीकेज की समस्या देखने को मिली। इसका भी बुरा असर हुआ है। मांजरा से पानी लाने के लिये महानगरपालिका को 15 लाख रुपए प्रति महीना बिजली का बिल देना पड़ता था जो महानगरपालिका के लिये आसान नहीं था।
पानी की कमी को लेकर इन दिनों लातूर देशव्यापी चर्चा में भले बना हुआ है लेकिन हकीकत यह है कि समूचा मराठवाड़ा क्षेत्र और बल्कि पूरा महाराष्ट्र राज्य पिछले कई सालों से पानी का भीषण संकट झेल रहा है। परभणी जिले में भी प्रशासन ने पानी की चोरी रोकने के लिये सुरक्षा उपाय घोषित कर रखे हैं।
गर्मियों का अभी आगमन ही हुआ है और पूरा मराठवाड़ा प्यास से तड़प रहा है। इसमें दो राय नहीं कि आने वाले दिनों में हालत और खराब होंगे। यहाँ तक कि जिस सांगली जिले से पानी ट्रेन में लादकर लातूर पहुँचाया गया है वहाँ भी पानी की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। यही वजह है कि स्थानीय स्तर पर पानी लातूर भेजने का जमकर विरोध हुआ। नतीजन, जिस ट्रेन को 6 घंटे में सांगली से लातूर पहुँचना चाहिए था उसे 18 घंटे का वक्त लग गया।
महाराष्ट्र में कुल 2498 बाँध हैं जिनमें 15 फीसदी से भी कम पानी बचा है। इसमें भी मराठवाड़ा इलाके के बाँधों में बमुश्किल 5 फीसदी पानी ही बचा हुआ है। पूरी गर्मी इसी 5 फीसदी पानी की मदद से काटने की बात ने चिन्ता बढ़ा दी है। एक अनुमान के मुताबिक पानी की कमी के चलते पहले ही मराठवाड़ा से 1.5 लाख से अधिक लोग पलायन कर चुके हैं। शैक्षणिक संस्थान और कोचिंग सेंटर पूरी गर्मियों के लिये बन्द कर दिये गए हैं।
धार्मिक शहर नासिक का रामकुण्ड तालाब अब तक के ज्ञात इतिहास में पहली बार पूरी तरह सूख गया है। नासिक गजेटियर के मुताबिक सन 1877 में गोदावरी नदी के सूखने का रिकॉर्ड मौजूद है लेकिन उस वक्त भी कुण्ड का पानी समाप्त नहीं हुआ था। कभी पानी से लबालब भरे रहने वाले इस कुण्ड की तलहटी में बच्चों को क्रिकेट खेलते देखा जा सकता है। रामकुण्ड में कुम्भ के दौरान तथा उससे इतर भी बड़ी संख्या में लोग पवित्र स्नान करते हैं। स्थानीय पर्यावरण कार्यकर्ता कुण्ड की इस दुर्दशा के लिये उसकी तलहटी में सीमेंट लगने को उत्तरदायी ठहराते हैं।
उधर, आईपीएल मैचों में पानी के प्रयोग को लेकर भी जनता में भारी आक्रोश देखने को मिला। एक अनुमान के मुताबिक एक आईपीएल मैच के दौरान मैदान में 40 से 60 लाख लीटर तक पानी का प्रयोग किया जाता है। बाम्बे हाईकोर्ट के कहने पर आईपीएल के मैचों को नागपुर और पुणे से मोहाली तथा अन्य स्थानों पर ले जाये जाने की चर्चा चल रही है। इस बीच मुम्बई क्रिकेट एसोसिएशन ने कहा है कि वह सीवेज के पानी का उपचार करके उसे क्रिकेट स्टेडियम में इस्तेमाल करेगा जिससे नया पानी बर्बाद न हो।
इन तमाम निराश करने वाली खबरों के बीच एक अच्छी खबर मौसम विभाग से आई है। अनुमान जताया गया है कि इस साल मानसून सामान्य से बेहतर रहेगा। मराठवाड़ा में खासतौर पर बेहतर बारिश होने के अनुमान जताए गए हैं। पिछले कुछ पूर्वानुमानों को आधार बनाया जाये तो माना जा सकता है कि विभाग का अनुमान गलत नहीं होगा।