रीवा जिले की जीवन रेखा कही जाने वाली बिछिया नदी बहुत बुरे दौर से गुजर रही है। आधी नदी के सूख जाने से लोगों ने उसे खेत बना डाला है जबकि बचे खुचे हिस्से पर जलकुम्भी ने कब्जा कर रखा है।
विन्ध्य और कैमूर पहाड़ियों की गोद में बसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा है बिछिया नदी। शहर को बीच से बिल्कुल किसी बिच्छू की तरह काटती। लेकिन देश की अधिकांश छोटी बड़ी नदियों की तरह बिछिया की हालत भी खराब है। निजी-सरकारी तमाम प्रयासों के बावजूद बिछिया नदी धीरे-धीरे एक निश्चित मौत की ओर बढ़ रही है।
देश के तमाम अन्य इलाकों की तरह रीवा में भी अप्रैल की शुरुआत में ही जलस्रोतों पर धारा 144 लगा दी गई। यानी किसी भी सार्वजनिक जलस्रोत पर चार से अधिक लोग एक साथ खड़े नहीं होंगे। जिला प्रशासन का कहना है कि सब कुछ सामान्य रहा तो यह आदेश 30 जून को हटा लिया जाएगा। सामान्य से उनका तात्पर्य यकीनन सामान्य बारिश से ही होगा।
रीवा शहर में बिछिया नदी की स्थिति बहुत निराश करने वाली है। शहर के नालों का पानी तमाम जगह से इकट्ठा होकर नदी में गिरता है। जल विज्ञानी वागीश रिपु कहते हैं कि बिछिया के पानी का अनुपचारित उपयोग बड़ी बीमारियों को न्यौता दे सकता है। तमाम कचरे, शहर के नालों और अन्य रासायनिक पदार्थों के इसमें मिलने की वजह से नदी के पानी में ऑक्सीजन का स्तर खतरनाक रूप से कम हो चुका है। यह नदी कई स्थानों पर जलीय जीवों के जिन्दा रहने के लायक भी नहीं है क्योंकि पानी में उनके साँस लेने के लिये भी ऑक्सीजन नहीं रह गई है।
वहीं रही सही कसर नदी में पनपे जलकुम्भी के जंगल ने पूरी कर दी है। अप्रैल के आखिरी दिनों की उस सुबह जब हम बिछिया घाट पर पहुँचे तो जन अभियान परिषद की टीम और स्थानीय रहवासी बिछिया मोहल्ले के रहने वाले नदी से जलकुम्भी को साफ करने के काम में मुस्तैदी से लगे हुए थे।
जन अभियान परिषद के सम्भागीय समन्वयक अमिताभ श्रीवास्तव भी वहाँ मौजूद थे। उन्होंने हमसे कहा, 'बिछिया रीवा शहर की पहचान है। इसी नदी के किनारे रीवा का प्रसिद्घ किला स्थित है। हम इसे यूँ ही मरने नहीं दे सकते।'
श्रीवास्तव ने बताया कि जलकुम्भी का एक पौधा औसतन 7 लीटर पानी की खपत करता है। यही इसकी हरियाली की वजह है। जन अभियान परिषद ने निर्मल बिछिया अभियान शुरू किया है। इसी सिलसिले में टीम ने कुछ दिन पहले बिछिया नदी के उद्गम स्थल खैरा कनकेसरा गाँव से रीवा शहर में स्थित लक्ष्मणबाग तक बिछिया नदी के किनारे-किनारे पदयात्रा का आयोजन किया था। यह दूरी तकरीबन 45 किलोमीटर है।
यह एक बेहतरीन विचार था। अमिताभ श्रीवास्तव से इस पदयात्रा की जानकारी मिलने के बाद स्वाभाविक रूप से नदी का उद्गम स्थल देखने और रीवा शहर तक पूरे मार्ग में उसकी स्थिति देखने की जिज्ञासा मन में उठी।
अगले दिन तड़के ही मैं निकल पड़ी रीवा जिले की मऊगंज तहसील में स्थित खैरा कनकेसरा गाँव के लिये जहाँ से बिछिया नदी निकलती है। गुढ़ की पहाड़ियों को पार करते हुए अत्यन्त दुरूह मार्ग से गुजरकर आखिरकार खैरा कनकेसरा पहुँचना हुआ। बिछिया कोई बड़ी नदी नहीं है इसलिये जाहिर है उसके उद्गम के बारे में जानकारी देने वाले लोग भी बहुत अधिक नहीं थे।
नदी का उद्गम
यह रोमांचक था। रीवा शहर की लाखों की आबादी को पीने का पानी देने वाली नदी का उद्गम एक छोटी सी झिर्री में था। वह नदी जो आगे बीहड़ नदी में मिलकर अपनी अगली यात्रा पर निकल जाती है, यहाँ बमुश्किल चार गुणा चार के एक छोटे से कुण्ड से निकल रही थी। जी हाँ, बिछिया खैरा कनकेसरा गाँव में एक छोटी सी झिर्री से निकलती है।
तकरीबन 10 फीट आगे आकर यह एक छोटे से ताल में बदल जाती है जो इन भीषण गर्मियों में सिमट कर एक छोटे गड्ढे के आकार में रह गया है। स्थानीय आदिवासी बच्चे हमें इस ताल में नहाते दिखे। वे प्लास्टिक की थैलियों में भरकर पानी अपने घरों को ले जा रहे थे। उनके घरों में बाल्टी नहीं है और गाँव के सवर्ण अपने हैण्डपम्प से पानी लेने से मना करते हैं।
खेत बन गई नदी
वक्त कम था और हमें बिछिया नदी के मार्ग का अनुसरण करना था। करीब एक किलोमीटर आगे आकर बिछिया एक ठीकठाक नाले के आकार में परिवर्तित हो गई थी जिस पर एक पुल भी बना हुआ था। यह बात अलग है कि पुल के नीचे पानी के बजाय सूखी मिट्टी भर थी। हमने आगे बढ़ने का निश्चय किया। लेकिन यह क्या जहाँ बिछिया नदी होनी चाहिए थी वहाँ तो खेत थे।
स्थानीय किसानों ने बताया कि चूँकि बरसात के अलावा किसी मौसम में नदी में पानी नहीं रहता है इसलिये नदी के तटवर्ती इलाकों के मालिक किसानों ने लालच के मारे नदी की तलहटी को ही खेत बना दिया। जहाँ पानी की फसल झूमनी चाहिए थी वहाँ कटे हुए गेंहू का भूसा रखा हुआ था और नदी की तलहटी में बसे उस खेत को अगली फसल के लिये तैयार किया जा रहा था।
लापता नदी
अगले 20 से 30 किलोमीटर तक हम केवल यह अन्दाजा ही लगाते रहे कि नदी शायद यहाँ से बहती होगी। स्थानीय लोग बता जरूर रहे थे लेकिन नदी की जगह पर खेत देखकर यह कह पाना बहुत मुश्किल था कि यहाँ कभी नदी बही होगी। बीच-बीच में बने चकबाँध और अन्य सरकारी ढाँचे जरूर यह चुगली कर रहे थे कि किसी वक्त इस इलाके में पानी का धारदार बहाव रहा होगा।
नदी के साथ चलते-चलते हम अब गुढ़ तहसील के मुख्यालय पहुँच गए। यहाँ पहली बार नदी में पानी का ऐसा स्तर नजर आया जिसे सही मायनों में पानी कहा जा सकता है। लोगों ने बताया कि नदी में यह पानी पहाड़ी झरनों से रिस-रिसकर आता है और सख्त गर्मियों में भी यहाँ पर पानी सूखता नहीं है। इसके बाद बिछिया से हमारी मुलाकात रीवा किले के पीछे लक्ष्मणबाग में ही हुई क्योंकि बीच का रास्ता कुछ ऐसा है जहाँ वाहन से जाना मुश्किल है।
लक्ष्मणबाग से आगे जहाँ तक नजर जाती है बिछिया नदी पूरी तरह जलकुम्भी में डूबी हुई है। यह देखना सुखद था कि जन अभियान परिषद के सदस्य और प्रशासन के अन्य विभागों के अलावा आम जनता भी पूरी जागरुकता के साथ नदी की सफाई के काम में लगी हुई है।
एक स्थानीय अखबार ने नदी की सफाई के लिये बकायदा श्रमदान की अपील जारी कर रखी है। इसके चलते नगर पुलिस कप्तान आकाश जिंदल समेत 150 से अधिक पुलिसकर्मी भी नदी की सफाई के लिये पहुँचे। अमिताभ श्रीवास्तव बताते हैं कि अप्रैल के आखिर तक बिछिया नदी से 40 ट्रॉली से अधिक कचरा बाहर किया जा चुका है। इसमें जलकुम्भी और अन्य तरह का कचरा शामिल है।
रीवा के साहित्यकार और स्थानीय भूगोल और इतिहास की अच्छी जानकारी रखने वाले डॉ. चंद्रिका प्रसाद द्विवेदी चंद्र कहते हैं, 'रीवा जिला जलस्रोतों के मामले में हमेशा सक्षम रहा है लेकिन अब आधुनिकता के साथ आई प्रकृति के प्रति अवमानना की भावना ने मनुष्य के समक्ष नए किस्म की चुनौतियाँ खड़ी करनी शुरू कर दी हैं। लोगों के पास पैसा है और वे बोतलबन्द पानी खरीद ले रहे हैं लेकिन वे यह नहीं सोचते हैं कि पानी फैक्टरी में नहीं बनाया जा सकता है। अगर हम अपनी नदियों और जलस्रोतों को यूँ ही ठिकाने लगाते रहे तो बहुत बड़ी मुश्किल खड़ी हो जाएगी।'
चंद्र जी का कहना एकदम सही है। जैसा कि हमने ऊपर देखा, रीवा जिले में सार्वजनिक जलस्रोतों पर धारा 144 लगा दी गई है। अब जरा एक और बात पर गौर कीजिए, रीवा जिले से छोटी बड़ी छह नदियाँ निकलती हैं या गुजरती हैं। इनके नाम हैं बिछिया, बीहड़, ओड्डा, महाना, तमस और गोरमा।
इतना ही नहीं इन नदियों पर बने जलप्रपातों को भी बहुत अधिक ख्याति हासिल है। चचाई जल प्रपात पर विद्या निवास मिश्र का लिखा ललित निबन्ध रुपहला धुआँ भला किसे याद नहीं होगा। चचाई जल प्रपात बीहड़ नदी पर स्थित है। हालांकि बाणसागर बाँध बन जाने के बाद से चचाई में पानी न के बराबर ही रह गया है। इसके अलावा ओड्डा नदी पर बहुती जल प्रपात, महाना नदी पर क्योंटी जल प्रपात, तमस नदी पर पूर्वा जल प्रपात और गोरमा नदी पर बेलउहीं प्रपात स्थित हैं।
रीव के जल संसाधनों पर गहन शोध कार्य करने वाले मुकेश येंगल कहते हैं, 'प्रकृति हमें सब कुछ निशुल्क देती है। हम उसे बदले में कुछ देते नहीं हैं लेकिन वह जो देती है उसे सहेजने की जिम्मेदारी तो हमारी बनती है। अगर हम यह भी नहीं कर पाये तो हालात ऐसे ही हो जाते हैं।'
यकीनन जिस शहर की जीवनरेखा कही जाने वाली नदी आधे रास्ते में गायब होकर खेत बन गई हो और जिसकी छह नदियों में से अधिकांश गायब हो रही हों। उसके भविष्य को लेकर आशान्वित हुआ भी जाये तो कैसे?
अगर हमने अतीत और वर्तमान का ख्याल नहीं रखा तो भविष्य भयावह होगा। दागिस्तान के मशहूर कवि रसूल हमजातोव की बात याद आती है, 'अगर हम अतीत पर गोलियाँ बरसाएँगे तो भविष्य हम पर तोप से गोलाबारी करेगा।'