उत्तराखंड़ का 71 प्रतिशत यानी 38 हजार वर्ग किलोमीटर भूभाग वनों से आच्छादित है, जहां वन्यजीवों और वन संपदा के संरक्षण के लिए केदारनाथ वन्यजीव प्रभा, राजाजी टाइगर रिजर्व, जिम काॅर्बेट नेशनल पार्क, नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान आदि रिजर्व वन क्षेत्र हैं, जिनकी वन एवं पर्यावरण मंत्रालय व वन विभाग द्वारा नियमित रूप से निगरानी की जाती है। नियमित रूप से निगरानी का ही नतीजा है कि प्रदेश में हाथियों की संख्या में 2015 के 779 हाथियों की अपेक्षा बढ़कर वर्तमान में 18 सौ से अधिक हो गई है। तो वहीं बारहसिंगा, सांभर, नील गाय आदि वन्यजीवों की संख्या में भी काफी वृद्धि हुई है, लेकिन इंसानों की बढ़ती आबादी के कारण जंगल लगातार सिकुड़ते जा रहे हैं। घटते जंगलों के कारण वन्यजीवों के लिए जंगल पर्याप्त नहीं पड़ रहे हैं और न ही जंगल में जानवरों की बढ़ती संख्या में अनुरूप भोजन की पर्याप्त उपलब्धता है। नतीजन, वन्यजीव आबादी वाले इलाकों का रुख कर रहे हैं। जिससे वन्यजीवों के संरक्षण पर सकंट गहरा गया है। तो वहीं अधिकांश बंदर जंगल छोड़कर आबादी की तरफ आ गए हैं और जनता के लिए मुसीबत बने हुए हैं। भोजन न मिलने के कारण कई बंदर आक्रामक भी हो गए हैं और लोगों को काटकर घायल कर रहे हैं। वन्यजीवों को भोजन उपलब्ध कराकर जनता को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए उत्तराखंड वन विभाग ने 1 करोड़ 59 लाख फलदार पौधों का रोपण करने का निर्णय लिया है, जो प्रदेश के सभी 13 जनपदों में लगाए जाएंगे और ये पौधारोपण केवल वन्यजीवों के लिए ही नहीं, बल्कि जंगल की आग को रोकने के लिए भी लाभकारी सिद्ध हो सकता है।
उत्तराखंड में गर्मी हर साल आफत बनकर आती है। गर्मी के कारण हर साल उत्तराखंड में हजारों हेक्टेयर में वन संपदा जलकर राख हो जाती है। इस वर्ष 2 हजार हेक्टेयर वन क्षेत्र जलकर राख हो गया है। दरअसल उत्तरखंड में अधिकांश वनक्षेत्र में चीड़ के पेड़ हैं और चीड़ का पीरूल जंगल की आग का मुख्य कारण है। जंगल की इस आग को रोकने के लिए वन विभाग द्वारा लंबे से प्रयास होते नहीं दिख रहे थे, लेकिन इस बार वन विभाग ने भले ही वन्यजीवों को भोजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्य में 16 हजार 483 हेक्टेयर में 1 करोड़ 59 लाख पौधों का रोपण करने का निर्णय लिया है, जिनमें से गढ़वाल मंडल में 9677.17 हेक्टेयर जंगल में 92.85 लाख और कुमाऊं मंडल में 6805.88 हेक्टेयर में 66.48 लाख पौधे लगाए जाएंगे। वन विभाग का दावा है कि पौधारोपण के लिए पौधालयों में विभिन्न प्रजातियों के 206.14 लाख पौधे तैयार हैं। जिनमें से उत्तरकाशी में 6.90 लाख, चमोली में 19.59 लाख, टिहरी में 26.55 लाख, देहरादून में 10.94 लाख, पौड़ी में 23.96 लाख, रुद्रप्रयाग में 2.44 लाख, हरिद्वार में 2.45 लाख, नैनीताल में 12.69 लाख, ऊधमसिंह नगर में 6.99 लाख, अल्मोड़ा में 10.66 लाख, बागेश्वर में 10.53 लाख, पिथौरागढ़ में 18.49 लाख और चंपावत में 7.09 लाख पौधों का रोपण किया जाएगा। इतने वृहद स्तर पर पौधारोपण करने के पीछे वन विभाग की मंशा कहीं न कहीं मिश्रित वन बनाकर वनों की आग को नियंत्रित करने की भी है। प्रमुख मुख्य वन संरक्षक जयराज के मुताबिक जंगलों में फलदार पौधे लगाने के पीछे मंश यही है कि वहां वन्यजीवों के लिए भोजन की उपलब्धता बनी रहे। वन मुख्यालयों के सभी वन संरक्षकों और डीएफओं को भी रोपित पौधों की देखभाल के लिए निर्देशित कर दिया गया है।
TAGS |
plantation in uttarakhand, benefits of plantation, plantation agriculture in hindi,tree plantation project, importance of plantation,plantation meaning in hindi, planting trees essay, tree plantation project, tree plantation in english, tree plantation drawing,tree plantation in hindi, importance of tree plantation, deforestation in english, deforestation effects, deforestation in india, deforestation essay, deforestation causes, deforestation introduction, 10 causes of deforestation, deforestation wikipedia,plantation wikipedia. |