उत्तराखंडः पहाड़ के लोगों की पहल से संग्रहित होगा लाखों लीटर वर्षाजल

Submitted by Shivendra on Thu, 07/16/2020 - 16:17

स्थानीय युवाओं और बच्चों के साथ किमाणा गांव में खंतियां बनाते हुए।

कोरोनाकाल के दौरान हुए लाॅकडाउन में हम सभी जब अपने घरों में आराम फरमा रहे थे और कोरोना के जाने तथा लाॅकडाउन खुलने का इंतजार कर रहे थे, उस दौरान पहाड़ के युवा जल संरक्षण की मुहिम में लगे हुए थे। हम शहरों/मैदानों में पानी की किल्लत होने पर सरकार और प्रशासन को कोस रहे थे, लेकिन उत्तरखंड के रुद्रप्रयाग जिले के ऊखीमठ ब्लाॅक के किमाणा गांव के युवाओं ने जल संरक्षण पर ध्यान केंद्रित किया, ताकि भविष्य में पानी की किल्लत न हो। इसके लिए पर्यावरण प्रेमी डाॅ. कैलाश पुष्पान के नेतृत्व में चाल-खाल, खंतियों और रिचार्ज पिट का निर्माण किया गया। इससे बारिश में हजारों लीटर पानी का संग्रहण हो सकेगा।

पहाड़ की भौगोलिक परिस्थितियां ही ऐसी हैं कि बरसात, स्प्रिंग्स और नदियों का पानी पहाड़ पर ठहरता ही नहीं है। पानी ढलानों के साथ बहता हुआ मैदानों की तरफ रुख करता है। इसलिए पहाड़ों पर जगह-जगह चाल-खाल और खंतियों का निर्माण करवाया जाता है। विभिन्न स्थानों पर चैकडैम बनाए जाते हैं। स्प्रिंग्स/नौले/धारे के पास पानी के ठहराव की व्यवस्था की जाती है, लेकिन समय के साथ-साथ जल संरक्षण के इन पारंपरिक तरीकों पर लोगों ने ध्यान देना कम कर दिया था। इसलिए पहाड़ों पर जल संकट खड़ा होने लगा है। लेकिन उत्तराखंड के ऊखीमठ में डाॅ. कैलाश पुष्पान के नेतृत्व में स्थानीय युवा चालखाल और खंतियों का निर्माण कर रहे हैं। तो वहीं अल्मोड़ा के ग्राम थामण में महिलाओं द्वारा गए बनाए गए चालखाल और खंतियां पानी से लबालब भर गए हैं। 

डाॅ. कैलाश पुष्पान ने इंडिया वाटर पोर्टल (हिंदी) को बताया कि जल संरक्षण के लिए किमाणा गांव में 50 नाली खाली भूमि पर 40 चालखाल और खंतियों का निर्माण किया गया है। इसके अलावा 150 रिचार्ज पिट बनाए गए हैं। हर खंति ढाई मीटर लंबी और 30 सेमी. चौड़ी व गहरी है। हर खंति 1000 से 1500 लीटर वर्षाजल संग्रहण करने में सक्षम है। भूमि में नमी बनाए रखने और मृदाअपरदन को रोकने के लिए स्थानीय स्तर पर उपलब्ध चौड़ी पत्ती वाले पौधों का रोपण किया जा रहा है। ऐसा करने से पहाड़ी स्रोतों को जल उपलब्ध होता रहेगा और पहाड़ में जल संकट नहीं गहराएगा।

बच्चों को पौधा रोपण की सही तकनीक सिखाते हुए।

जल संरक्षण का ये कार्य केवल चालखाल और खंतियों के निर्माण तक ही सीमित नहीं है। इनके निर्माण और पौधारोपण के समय बच्चों को साथ ले जाया जाता है। रिजार्च पिटों और पौधारोपण व जल संरक्षण की बारीकियों को सिखाया जाता है। इससे जल संरक्षण की दिशा में पहाड़ के भविष्य को संवारने की तैयारी भी की जा रही है। इस कार्य में क्षेत्रीय युवक आयुश, अमन, अतुल, आकाश, सौरभ, राहुल, रोहित आदि अपना भरसक योगदान दे रहे हैं।

डाॅ. कैलाश पुष्पान ने बताया कि बांज, कचनार, भीमल और आंवल सहित अन्य पौधों का रोपण किया गया है। पौधा रोपण और जल संरक्षण की दिशा में ये कदम उठाकर न केवल पहाड़ हरे-भरे रहेंगे और इंसानों को पानी मिलेगा, बल्कि जंगली जानवरों को भी पानी मिलेगा। जानवरों के लिए पानी की उपलब्धता के चलते मानव और वन्यजीव संघर्ष में भी कमी आएगी।

स्थानीय गावंवासियों का कहना है कि गर्मियों के दौरान गांव व जंगलों में पानी के स्रोत सूख जाते हैं। जिस कारण पानी की दिक्कत होता है। जल संकट के निदान के निदान के लिए उन्हें डाॅ. पुष्पान द्वारा जानकारी दी गई है। डाॅ. पुष्पान ने बताया कि पानी हर व्यक्ति की जरूरत है और हर व्यक्ति रोजाना इसका उपयोग भी करता है। इसलिए पानी के संरक्षण का जिम्मा भी इंसानों पर ही है। एक तरह से जल संरक्षण प्रकृति के प्रति हमारा कर्तव्य है, जिसका निर्वहन करना बेहद जरूरी है।  ऐसा ही कार्य उत्तराखंड के ही द्वाराहाट ब्लाॅक के ग्राम ईडासेरा-थामण गांव के भीमलाथान मंदिर के पास पहाड़ियों पर भी विभिन्न स्थानों पर किया गया था। यहां स्थानीय महिलाओं और युवाओं ने सैंकड़ों चाल-खाल और खंतियों का निर्माण किया था। जो बरसात के बाद अब पानी से लबालब भरे हैं। 

स्थानीय महिला रेनू देवीने इंडिया वाटर पोर्टल (हिंदी) को बताया कि  जंगलों में पेड़ों की कमी हो रही है। लोग पेड़ों को काट रहे हैं। पहाड़ों से पानी बहकर नीचे जा रहा है। पहाड़ों पर पानी नहीं रुक रहा है। इससे नौलों के स्रोत सूखने लगे हैं। जिस कारण हम चौड़ी  पत्ती वाले पौधों को रोपण कर रहे हैं और चालखाल व खंतियों का निर्माण किया था। ग्रामीण थामण निवासी ललिता देवी ने बताया कि नौले धारे पहाड़ की संस्कृति का अभिन्न अंग हैं। पेड़ों से ही पहाड़ों पर पानी है। इसलिए चौड़ी पत्ती वाले पौधों को रोपण कर, अपने बच्चों की तरह उनकी देखभाल कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हर नागरिक को जल संकरण के लिए आगे आने की जरूरत है।

थामण गांव में पानी से भरी चालखाल व खंतियां।

विदित हो कि उत्तराखंड सहित हिमालयी रीजन जल संकट से जूझ रहा है। 50 प्रतिशत से ज्यादा हिमालयी जलस्रोत सूख चुके हैं। नदियों में पानी कम होता जा रहा है। नीति आयोग तक जल संकट की चेतावनी दे चुका है। नीति आयोग ने ही उत्तराखंड के संदर्भ में कहा था कि ‘‘उत्तराखंड के अल्मोड़ा में 83 प्रतिशत नौले सूखे चुक हैं।’’ नैनीताल और मसूरी भी इस समय जल संकट का सामना कर रहे हैं। बागेश्वर और पिथौरागढ़ में नदियां सूखने लगी हैं। इससे जल की कमी के कारण खेती पर तो असर पड़ ही रहा है, साथ ही ये पलायन को बढ़ा रहा है, लेकिन मैदानी इलाकों में भी लोगों को राहत मिलने की संभावना कम है, क्योंकि मैदानों को पानी पहाड़ से ही मिलता है और पहाड़ इस वक्त सूख रहे हैं। ऐसी विकट परिस्थितियों में पहाड़ों पर जल संकट के प्रति इन महिलाओं और युवाओं का योगदान लोगों के लिए प्रेरणा और जल संरक्षण की दिशा में पहाड़ के भविष्य का निर्धारण है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)