वाताग्र (Front)

Submitted by Hindi on Tue, 02/02/2010 - 09:55
भूतल से ऊपर झुका हुआ कोई तल या सीमा रेखा जिसके सहारे दो विपरीत प्रकृति (तापमान) वाली वायु राशियां मिलती हैं। सामान्यतः जब शीतल तथा उष्ण तथा उष्ण वायु राशियां विपरीत दिशाओं से आकर मिलती हैं, उनके मध्य वाताग्र की उत्पत्ति होती है।

वाताग्र भूसतह के समानान्तर अथवा उसके ऊपर लम्बवत न होकर प्रायः कुछ झुका हुआ होता है। शीतल भारी वायु हल्की उष्ण वायु को वाताग्र के सहारे ऊपर कर देती है। वाताग्र दो विपरीत प्रकृति वाली राशियों के बीच प्रायः कुछ चौड़ाई में पाये जाते हैं जिसे वाताग्र प्रदेश कहते हैं।

वाताग्र मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं. 1. उष्ण वाताग्र (warm front), 2. शीत वाताग्र (cold front), 3. अधिधारित वाताग्र (occluded front), और 4. स्थायी वाताग्र (stationary front) ।

वाताग्र सामान्यतः निम्नदाब द्रोणी (trough of low pressure) से संबंधित होता है और उसके साथ मौसम में उल्लेखनीय परिवर्तन होता है।