नेशल स्नो एंड आइस डाटा सेंटर (कोलोराडो यूनिवर्सिटी) रिसर्च साइंटिस्ट मैथ्यू ड्रकेनमिलर का कहना है कि बड़ा सवाल यह है कि अलास्का में कार्बन प्रवाह के आंकड़े क्या आर्कटिक के दूसरे इलाकों से भी मेल खाते हैं। यदि ऐसा है तो यह संकेत है कि पूरे वातावारण तंत्र को प्रभावित करने में आर्कटिक की भूमिका ज्यादा अहम होती जा रही है।
न्यूयाॅर्क टाइम्स सर्विस। आर्कटिक क्षेत्र में इस पूरे साल तापमान रिकाॅर्ड ऊंचाई पर रहा है। इसके चलते गर्मियों में समुद्र में बर्फ कम बन रही है और इस इलाके में खाद्यान्न चक्र पर भी बुरा असर पड़ा है। ज्यादा चिंता की बात यह है कि समुद्र का जलस्तर बढ़ने का खतरा भी है। क्लाइमेट चेंज पर अध्ययन करने वाली संस्था नेशनल ओशनिक एंड एटमाॅस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन की रिपोर्ट में बताया गया है कि इस साल सितंबर में औसत तापमान वर्ष 1900 के बाद दूसरा सबसे ज्यादा रहा। वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले छह साल में आर्कटिक क्षेत्र में तापमान सबसे ज्यादा रहा है और यह कई मुश्किलों का कारण बन सकता है।
रिपोर्ट तैयार करने वाले डार्टमाउथ काॅलेज में इंजीनियरिंग के प्रोफेसर डोनाल्ड के. पेरोविच कहते हैं, कि हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का ध्यान आर्कटिक पर ज्यादा होता है क्योंकि पृथ्वी के दूसरे हिस्सों की तुलना में यह क्षेत्र दोगुना गर्म हो रहा है, जिसका असर समुद्र के साथ पृथ्वी पर भी पड़ता है।
दोगुना गर्म हो रहा आर्कटिक
आर्कटिक के रेक्जाविक में इस साल जुलाई का महीना इतिहास में सबसे ज्यादा गर्म रहा। इसी तरह, अलास्का के एंकरेज ने भी जून, जुलाई और अगस्त महीनों में सबसे ज्यादा तापमान के रिकाॅर्ड बनाए। नाॅर्वे के स्वालबार्ड में दिसंबर महीने में तापमान 10 डिग्री फैरेनहाइट था, जो 1981-2010 के दौरान औसत तापमान से 505 डिग्री सेल्सियस ज्यादा। साइंस एडवांसेज जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक कार्बन उत्सर्जन का स्तर ऊंचा बना रहा तो पतझड़ के मौसम में आर्कटिक के कुछ हिस्सों में औसत तापमान औसत से 23 डिग्री फैरेनहाइट तक ज्यादा हो सकता है।
चिंता इसलिए, बर्फ पिघली तो डूबेंगे समुद्र किनारे वाले शहर
ग्रीनलैंड में बर्फ की चादर समय से पहले ही 95 फीसदी तक पिघल गई है। इससे समुद्र के जलस्तर में इजाफा होने की आशंका है। नेचर पत्रिका में छपे अन्य शोध में बताया गया है कि ग्रीनलैंड में बर्फ की चादरें 1990 के दशक की तुलना में 7 गुना तेजी से पिघल रही हैं। अमेरिका के बेरिंग समुद्र क्षेत्र में जाड़ों में समुद्री बर्फ चिंताजनक रूप से कम रही। पहले 33 प्रतिशत तक पुरानी बर्फ होती थी, अब 1 प्रतिशत ही बची है। सदी के अंत तक समुद्र का जलस्तर तीन इंच बढ़ सकता है। किनारे वाले शहर डूब सकते हैं।
फसल चक्र भी बदल रहा
बढ़ते तापमान के कारण ठंड के मौसम में बर्फ बनने की प्रक्रिया भी देरी से शुरू होती है। इसका नतीजा है कि इन समुदायों के लोग साल के अधिकांश हिस्से अलग-थलग रहते हैं। वे समुद्र में उतरने के लिए नावों का सहारा नहीं ले सकते। समुद्र की बढ़ती गर्मी इलाके में फसल चक्र को भी बदल रही है।
70 से ज्यादा समुदायों का जीवन खतरे में
अलास्का के 70 से ज्यादा स्थानीय समुदाय प्रभावित हो रहे हैं। इनूपियट, सेंट्रल यूपिक, सेंट लौरेंस आइलैंड आदि में रहने वाले लोगों को ज्यादा खतरा है। आर्कटिक में बढ़ती गर्मी से उनके खाद्य संसाधनों में कमी आ रही है, जबकि यह उनके जीवन का आधा है।
आर्कटिक का असर पूरी दुनिया पर
समस्या यह है कि आर्कटिक में होने वाली घटनाएं दुनिया के बाकी हिस्सों को भी प्रभावित करती हैं। बर्फ की नहीं पिघलने वाली सिल्लियां अभी के मुकाबले दोगुने कार्बन डाइऑक्साइड जमा करती हैं, जो तापमान को दबाकर रखता है। लेकिन इन सिल्लियों के पिघलने से यह कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में मिल जाता है और वातावरण में बदलाव की प्रक्रिया को तेज करता है।
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