वायु का काला जहर

Submitted by Hindi on Fri, 07/29/2016 - 16:21
Source
अनुसंधान (विज्ञान शोध पत्रिका), 2015


.मनुष्य के जीवन में स्थानीय वायु की गुणवत्ता का विशेष प्रभाव पड़ता है। मुख्यत: उसकी श्वसन प्रणाली पर दूषित वायु जब आपके शरीर के अंदर प्रवेश करती है तो वह शरीर पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की एक रिपोर्ट 2014 के अनुसार दुनिया के शहरों की वायु तीव्रगति से प्रदूषित हो रही है। भारत के शहर भी इस प्रदूषण से नहीं बचे हैं विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से 13 भारतीय शहर भी हैं। 9 देशों के 1100 शहरों पर किए गये इस अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि भारतीय शहर प्रदूषित हवा के चलते श्वसन संबंधी रोगों और श्वसन अंगों के कैंसर से ग्रसित हो रहे हैं 6 प्रदूषकों पीएम 2.5, पीएम 10 नाईट्रोजन ऑक्‍साइड, सल्फर डाई ऑक्‍साइड, ओजोन और कार्बन मोनो ऑक्‍साइड की स्थिति का आंकलन करने के लिये एक्यूआई को विकसित किया गया है सेंटर फॉर साइंस एण्ड एनवायरन्मेंट के अनुसार दो अन्य विषैले प्रदूषकों-सीसा और अमोनिया के स्तर के बारे में भी जानकारी रखना अति आवश्यक है।

सीएसई ने पाया कि बीती सर्दियों में 12 बार दिल्ली में धुँध छाने की घटना हुई है। यह एक बहुत खतरनाक स्थिति है। एक्यआई जारी करने के साथ भारत चुनिंदा वैश्विक देशों में जैसे अमेरिका, चीन, मैक्सिको, फ्रांस और हांगकांग की श्रेणी में शामिल हो गया है। उन देशों में धुँध के विषय अलर्ट तंत्र का क्रियान्वयन किया है तथा प्रदूषण स्तर गिराने के लिये आपात प्रबंध भी किये हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने हाल में नेशनल एनवायरन्मेंट एयर क्वालिटी स्टैंडर्ड (एनएक्यूएस) रिपोर्ट में 175 शहरों की वायु गुणवत्ता की निगरानी कर आँकड़े प्रस्तुत किए हैं। इसके अनुसार पीएम 10 स्तर 78 प्रतिशत यानी 137 शहरों में निर्धारित मानकों से अधिक पाया गया। इनके 53 प्रतिशत शहर अत्यधिक प्रदूषित पाये गये हैं। 7 प्रतिशत शहरों में यानी 13 शहरों में नाइट्रोजन डाईआक्साइड का स्तर अधिक है केवल सल्फर डाईआक्साइड का स्तर बेहतर स्थिति में है।

मुख्य प्रदूषक- ओजोन फेफड़ों के रोगी जैसे अस्थमा, क्रोनिक, ब्रोंकाइटिस और इंफी सीमा से पीड़ित लोगों के लिये यह हानिकारक है इसके कारण साँस लेने में समस्या उत्पन्न हो सकती है साँस गले में खराश, जलन, सीने में तनाव या लंबी साँस लेने पर सीने में दर्द भी महसूस हो सकता है, फेफड़ों की कार्य क्षमता घट जाती है। फेफड़ों के ऊतकों को नुकसान पहुँचता है।

पीएम 2.5, पीएम10 - ये ठोस और तरल बूँदों के मिश्रण होते हैं कुछ सूक्ष्म कण सीधे उत्सर्जित किये जाते हैं तो कुछ तमाम तरह के उत्सर्जनों के वातावरण में परस्पर क्रिया द्वारा अस्तित्व में आते हैं यह इंसान के स्वास्थ्य के लिये बहुत घातक होते हैं।

पीएम 2.5 - इन कणों के आकार का व्यास 2.5 माईक्रोमीटर या इससे भी बहुत कम होता है यह इतने अधिक छोटे होते हैं कि इन्हें केवल इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी से ही देखा जा सकता है। इन कणों के स्रोत मोटर वाहन, पॉवर प्लांट, लकड़ियों का जलना, जंगल की आग और कृषि उत्पादों का जलना है।

पीएम 10 - ऐसे सूक्ष्म कण जिनका व्यास 2.5 से 10 माइक्रोमीटर तक होता है इन कणों के स्रोत वाहनों से उड़ने वाली धूल निर्माण कार्य इत्यादि से निकलने वाली धूल है। 10 माइक्रोमीटर से कम सूक्ष्म कण से हृदय और फेफड़ों की बीमारी तथा मौत तक हो सकती है। ये मानव में फेफड़ों और रक्त प्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं इनसे हृदय संबंधी रोग, फेफड़ों का कैंसर, अस्थमा और श्वसन संबंधी संक्रमण का खतरा होता है। विश्व में प्रत्येक वर्ष लगभग 20 लाख होने वाली मौतों का कारण पीएम 10 पार्टीकल्स होते हैं। डब्लूएचओ के मानक के अनुसार वायु में पीएम 10 सूक्ष्म कणों की मौजूदगी 20 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर होनी चाहिए लेकिन कई शहरों में ये 300 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर हो चुकी है।

 

 

 

 

 

भारतीय शहरों में पीएम 10 की मात्रा (सालाना औसत माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर)

शहर

मात्रा

शहर

मात्रा

लुधियाना

251

जयपुर

112

कानपुर

209

वाराणसी

106

दिल्‍ली

198

पुणे

99

लखनऊ

186

नागपुर

98

इन्‍दौर

174

विजयवाड़ा

91

आगरा

165

राजकोट

89

फरीदाबाद

139

विशाखपत्‍तनम

87

जबलपुर

136

हैदराबाद

87

मुंबई

132

सूरत

81

धनबाद

132

नासिक

80

इलाहाबाद

128

बड़ौदरा

57

पटना

120

कोयम्‍बटूर

55

मेरठ

115

चेन्‍नई

48

मदुरै

41

अमृतसर

36

 

सल्फर डाईऑक्‍साइड - ये रंगहीन क्रियाशील गैस है ये सल्फर युक्त कोयले के जलने पर उत्पन्न होती है। ये अधिक मात्रा में औद्योगिक संयत्रों के पास मिलती है। इसके प्रमुख स्रोत ऊर्जा संयंत्र रिफाइनरीज औद्योगिक भट्ठियाँ हैं। ये साँस लेने में जलन पैदा करती हैं, अस्थमा पीड़ित व्यक्ति के लिये अधिक हानिकारक होती है।

कार्बन मोनो ऑक्‍साइड - ये रंग हीन, गंध हीन गैस है। ईंधन के पूर्ण रूप से न जलने पर ये उत्पन्न होती हैं। वाहनों से निकलने वाले धुएँ इस गैस से कुल उत्सर्जन में 75 प्रतिशत भागीदारी रखते हैं शहरों में ये भागीदारी 95 प्रतिशत हो जाती है। फेफड़ों के माध्यम से ये गैर परिसंचरण तंत्र में मिल जाती है, रक्त में ऑक्सीजन के वाहन तत्व हीमोग्लोबिन के साथ मिल जाती है। ये शरीर के अंगों के ऊतकों तक पहुँचने वाली ऑक्सीजन की मात्रा को बेहद कम कर देती है। इसके कारण व्यक्ति कार्डियोवैस्क्यूलर रोगों से पीड़ित हो जाता है ऐसे लोग इस घातक प्रदूषण की चपेट में आने पर सीने में दर्द महसूस करने लगते हैं।

राष्ट्रीय गुणवत्ता सूचकांक (एन. क्यू. आई.) - भारत- सूचकांक में वायु की शुद्धता का मुल्यांकन 0 से 500 अंक के दायरे में किया जाता है। उदाहरणार्थ- यदि वायु की गुणवत्ता 50 तक है तो यह शुद्ध वायु है, जितना इसके उपर आँकड़े होते जायेंगे, हवा की स्थिति खराब होती जायेगी। रंगों के आधार पर यह ज्ञात किया जा सकता है कि आपके शहर की वायु कितनी प्रदूषित है अगर रंग हरा है तो अच्छी है और स्वास्थ्य पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। परंतु लाल रंग है तो यह स्वस्थ व्यक्ति को भी बीमार कर देगी।

 

 

 

 

 

एन.क्‍यू.आई.

मतलब

रंग कोड

स्‍वास्‍थ्‍य पर असर

1-50

अच्‍छी

हरा

मामूली असर

51-100

संतोषजनक

हल्‍का हरा

संवेदनशील लोगों को साँस लेने में तकलीफ

101-200

मध्‍यम

पीला

फेफड़े, अस्‍थ्‍मा और दिल के मरीजों को साँस लेने में परेशानी

201-300

खराब

नारंगी

अधिकांश लोगों को साँस लेने में परेशानी

300-400

बहुत

लाल

अधिक समय तक ऐसे क्षेत्र में रहने से साँस की बीमारी

401-500

खतरनाक

गहरा लाल

स्‍वस्‍थ लोगों पर भी प्रभाव पड़ता है

 

6 प्रदूषकों पीएम 2.5, पीएम 10 नाईट्रोऑक्साइड, सल्फर डाईऑक्साइड, ओजोन और कार्बन डाईऑक्साइड के स्तर का आंकलन करने के लिये एयर क्वालिटी इन्डेक्स (एक्यूआई) को विकसित किया गया है। वायु प्रदूषण के बढ़ने का कारण भारत में सड़कों पर बढ़ते वाहनों की संख्या तेजी से एक बड़े वर्ग के रूप में उभरते मध्यम वर्ग के लिये वाहन रखना उनकी प्रतिष्ठा का प्रतीक बन चुका है। तेजी से विकास होने के कारण इस देश में उद्योग धन्धों से निकलने वाले धुएँ जानलेवा साबित हो रहे हैं खाना पकाने के लिये उपयोग की जा रही लकड़ी और कोयले से निकला हुआ धुआँ हवा को जहरीला बना रहा है। विकसित देश बनने को आकुल इस विकासशील देश को ऊर्जा की सर्वाधिक आवश्यकता है।

अत: इस ऊर्जा को पूरा करने के लिये अधिकांश बिजली-कोयला आधारित पॉवर संयत्रों से तैयार की जा रही है। तेज शहरीकरण और वहाँ बढ़ते वायु प्रदूषण ने लोगों का जीना दूभर कर दिया है। साँस रोगी जैसे कैसर, साँस रोगी के लिये ये प्रदूषक बड़ी चिंता का विषय है। अगर आम जनता वायू प्रदूषण के प्रति जागरूक हो गई और इसके दुष्प्रभावों की प्रवाह करने लगी तो निश्चय वे लोग जो अपनी साँसों पर पड़ रही संकट से बेहिचक सक्रिय भागीदारी निभाएंगे। प्रदूषित हवा क्षेत्र में थोड़े-थोड़े अंतराल पर यदि आपको लंबे समय तक रहना पड़े तो उसकी तुलना में ज्यादा गहरी साँस लेनी पड़ेगी तो ऐसे में अपनी मौजूदगी के घंटो में कम करके इससे बच सकते हैं। ऐसी स्थिति दूषित वायु क्षेत्र में घंटों कठिन मेहनत करनी पड़े जिसके चलते आपको गहरी साँसे लेनी पड़ रही हैं तो ऐसे में भी आपको अपनी गतिविधि को सीमित करते हुए वहाँ से निकलने में समझदारी दिखानी चाहिए।

शहरों में प्रदूषण नियंत्रण के लिये समयबद्ध कार्यवाही करने की आवश्यकता है ताकि लोगों का स्वच्छ वायु के साथ स्वास्थ्य पर पड़ने वाले इसके दुष्प्रभाव को कम किया जा सके। वायु प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिये आपात प्रबंधन किये जाने चाहिए। 2014 के एन्वायरन्मेंट परफॉरमेंस इंडेक्स में भारत का स्थान 178 देशों में 174वां स्थान है।

संदर्भ
1. सेंटर फॉर साइंस एनवायरन्मेंट (सीएसई) की रिपोर्ट 2014-15।
2. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वेबसाइट।
3. विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट 2014-15।
4. एनवायरन्मेंट परफॉरमेंस 2014-15।
 

सम्पर्क


डी. के. अवस्‍थी, एवं सरिता चौहान
एसोसिएट प्रोफेसर, रसायन विज्ञान विभाग, श्री जेएन पीजी कॉलेज, लखनऊ – 226001, यूपी, भारत, Dkawasthi5@gmail.com

प्राप्‍त तिथि- 14.05.2015, स्वीकृत तिथि- 26.07.2015