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नेशनल दुनिया, 11 अप्रैल 2015
नई दिल्ली। दुनिया में सबसे ज्यादा प्रदूषित नदी है यमुना। भारत में नदियों को न केवल पानी के लिहाज से सिर्फ प्राकृतिक स्रोत माना जाता है, अपितु इन नदियों की देवी रूप में पूजा भी होती है। नदियाँ पवित्रता का भी प्रतीक हैं।
इस बात की जानकारी होने के बावजूद यमुना में प्रदूषण का स्तर और बढ़ता ही जा रहा है। यमुना में बढ़ते प्रदूषण के लिये सीवरेज ड्रेन्स, एसटीपी की कमी, भूमि अपरदन, प्लास्टिक गार्बेज आदि जिम्मेदार हैं। इस बात को लेकर अभी तक चलाया गया अभियान विफल रहा है।
एक दौर में यमुना का पानी नीला होता था लेकिन अब यह दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है। दिल्ली का 58 प्रतिशत गन्दा पानी व कचरा इसी नदी में पहुँचता है। जबकि 70 प्रतिशत पानी की आपूर्ति यमुना से ही लोगों को हो रही है। सीएजी ने भी अपने रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली की 32 एसटीपी में 15 एसटीपी ही अपनी क्षमताओं के अनुरूप काम कर रही हैं। बाकी का स्तर निर्धारित क्षमता से बहुत कम है। सीवेज के अनुपात में एसटीपी की कमी की वजह से यमुना में प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में सभी तरह के प्रयासों के बावजूद यमुना का प्रदूषित क्षेत्र पहले से बढ़ ही गया है।
हरियाणा के पानीपत एरिया में 100 किलोमीटर के करीब प्रदूषित क्षेत्र बढ़ गया है। जबकि पिछले दो दशकों के दौरान 6,500 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। सीपीसीबी की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषित यमुना का दायरा अब 500 किलोमीटर से बढ़कर 600 किलोमीटर का हो गया है।
आंकड़ों की मानें तो यमुना को मैली करने में दिल्ली का सबसे अहम योगदान है। यह तब है जब दिल्ली में यमुना की कुल लम्बाई का सबसे कम हिस्सा है। लेकिन यमुना में जाने वाली कुल गन्दगी की 70 फीसदी गन्दगी दिल्ली वाले ही देते हैं। यही स्थिति रही तो आने वाले दस वर्षों में यमुना नदी को गन्दे नाले में तब्दील होने का खतरा बढ़ जाएगा।
1. यमुना सफाई अभियान पर केन्द्र कर चुका है 6,500 करोड़ रुपये खर्च
2. दिल्ली का 58 प्रतिशत गन्दा पानी व कचरा गिरता है नदी में
3. ओखला, निजामुद्दीन व कालिंदी कुंज सबसे ज्यादा प्रदूषित प्वाइंट
4. दिल्ली के 22 किलोमीटर क्षेत्र में 70 फीसदी गन्दगी मिलती है यमुना में
5. यमुनोत्री से ताजेवाला तक के 172 क्षेत्र में ही साफ है यमुना
6. 500 से बढ़कर 600 किलोमीटर हो गया यमुना का प्रदूषित क्षेत्र
यमुना को स्वच्छ बनाना है तो आगामी तीन वर्षों के दौरान इसके लिये चार हजार करोड़ रुपये और चाहिये। दिल्ली विकास प्राधिकरण इस बाबत एक विस्तृत एक्शन प्लान पहले ही एनजीटी को सौंप चुकी है। फिलहाल यह एक्शन प्लान केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय के पास विचाराधीन है।
डीडीए ने एक्शन प्लान सीवेज मास्टर प्लान 2013 को संशोधित कर तैयार किया था। संशोधित प्लान के अनुसार यमुना में सीवेज का पानी गिरने से पहले उसे इन्टरसेप्ट किया जायेगा। इसके लिये एक अलग से सीवेज लाइन डालने की जरूरत पड़ेगी। इसके अन्तर्गत सीवेज वाटर को स्टॉर्म वाटर ड्रेन में नहीं होने दिया जायेगा। इस प्लान पर काम करने में आगामी तीन वर्षों में चार हजार रुपये का खर्च आयेगा। इस प्लान के अन्तर्गत दिल्ली के 201 प्राकृतिक नालों को भी फिर से पुनर्जीवित करने की योजना है।
इस बाबत डीडीए जनसम्पर्क सलाहकार नीमो धर ने बताया कि प्लान तैयार करने के बाद इसे एनजीटी को भेजी गयी थी।
1. पुराने सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट के पानी को 30 बीओडी तक लाना।
2. नये सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट ऐसे हों जो पानी को दस बीओडी तक ला सकें।
3. डीएसआईडीसी और दिल्ली प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड इस बात को सुनिश्चित करें कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला पानी बिना ट्रीटमेन्ट के यमुना तक न पहुँचे।
दिल्ली की तीन चौथाई आबादी की प्यास बुझाने वाली यमुना की हालत नाजुक है। वजीराबाद से आगे निकलते ही यमुना नाले में तब्दील हो जाती है। दिल्ली आधे से अधिक गन्दा पानी यमुना में बिना ट्रीट किये विभिन्न नालों के माध्यम से पहुँचाता है।
दिल्ली में यमुना पल्ला के पास से प्रवेश करती है। करीब 25 किलोमीटर का स्ट्रेच पार करने के बाद वजीराबाद पहुँचती है। दिल्ली जल बोर्ड सप्लाई के लिये यहीं से 840 एमजीडी पानी उठा लेता है। क्योंकि वजीराबाद के बाद यमुना नाले जैसी दिखाई देने लगती है। यहीं से गन्दगी डाले जाने की शुरुआत भी हो जाती है। एक के बाद एक 18 नालों से यमुना में प्रदूषित पानी जाता है। इनमें से आधे से ज्यादा पानी बिना ट्रीटमेन्ट के यमुना में गिरता है। सीपीसीबी द्वारा 2014 के सुप्रीम कोर्ट को जारी रिपोर्ट में भी यमुना की बदहाली में कोई सुधार नहीं होना बताया गया है। प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि जलचर खत्म हो चुके हैं। ओखला बैराज के पास पानी में कुछ छोटी-छोटी मछलियाँ पायी जाती हैं, लेकिन वे साफ पानी की मछलियाँ नहीं होती और खाने के काम नहीं में नहीं आ सकती।
ओखला बैराज के पास बीओडी लेवल भी सबसे ज्यादा खराब है। इसके बाद निजामुद्दीन और कालिंदी कुंज के पास सबसे ज्यादा नाजुक स्थिति है। सीपीसीबी के मुताबिक निजामुद्दीन पुल के नीचे यमुना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। आंकड़ों के लिहाज से यमुना का फ्लड एरिया यानी बाढ़ जनित क्षेत्र करीब दो से तीन किलोमीटर तक है।
यमुना सात राज्यों से होकर बहती है। इसकी कुल लम्बाई के 1,376 किलोमीटर है। उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में करीब 21 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 1.6 प्रतिशत, हरियाणा में 6.1 प्रतिशत, राजस्थान में 29.8 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत और दिल्ली में करीब 2 प्रतिशत, हिस्सा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार यमुना यमुनोत्री से ताजेवाला तक 172 किलोमीटर तक साफ है। ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक इसकी लम्बाई के 224 किलोमीटर क्षेत्र में दिल्ली के मुकाबले पानी काफी साफ है।
यमुना का दिल्ली में सबसे कम करीब 48 किलोमीटर हिस्सा है। इनमें सबसे ज्यादा गन्दगी 22 किलोमीटर के हिस्से में दिल्ली से गिरने वाले 18 बड़े नालों से होती है। दिल्ली की 45 प्रतिशत आबादी का कचरा बिना ट्रीटमेन्ट के सीधे यमुना में इन नालों से पहुँचता है। इनमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी नजफगढ़ ड्रेन की होती है।
सीपीसीबी आंकड़ों की बात करें तो नजफगढ़ नाले से 61 प्रतिशत, शाहदरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से 6 प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुँचता है। कुल बीओडी का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। ऐसा बड़े नालों में गिरने वाले छोटे नालों पर इन्टरसेप्टर न होने की वजह से होता है। एक अन्य अनुमान के मुताबिक राजधानी का करीब 400 करोड़ लीटर पानी यमुना में गिरता है। इनमें से 60 प्रतिशत पानी यमुना में बिना ट्रीटमेन्ट के दिल्ली में पहुँचता है। दिल्ली जल बोर्ड के 17 सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट की क्षमता 2,460 एमएलडी (246 करोड़ लीटर) गन्दे पानी का ट्रीटमेन्ट तक पहुँच पाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अधिकारियों के अनुसार दिल्ली जल बोर्ड ने जो प्लाण्ट ट्रीटमेन्ट के लिये लगाये हैं। उनमें से कुछ की क्षमता पानी को 30 बीओडी तक लाने की है।
1. 1993 में की गई थी यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत
2. दो दशक से ज्यादा समय में 1500 करोड़ से ज्यादा खर्च।
3. यमुना एक्शन प्लान के तहत 2,000 में होना था काम खत्म।
4. लेकिन प्लान के हिसाब से अभी तक यमुना साफ नहीं हुई।
5. 2004 में यमुना एक्शन प्लान टू की शुरुआत की।
6. 450 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुये इस प्रोजेक्ट पर।
7. 700 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये जा चुके हैं सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट पर।
इस बात की जानकारी होने के बावजूद यमुना में प्रदूषण का स्तर और बढ़ता ही जा रहा है। यमुना में बढ़ते प्रदूषण के लिये सीवरेज ड्रेन्स, एसटीपी की कमी, भूमि अपरदन, प्लास्टिक गार्बेज आदि जिम्मेदार हैं। इस बात को लेकर अभी तक चलाया गया अभियान विफल रहा है।
एक दौर में यमुना का पानी नीला होता था लेकिन अब यह दुनिया की सबसे ज्यादा प्रदूषित नदियों में से एक है। दिल्ली का 58 प्रतिशत गन्दा पानी व कचरा इसी नदी में पहुँचता है। जबकि 70 प्रतिशत पानी की आपूर्ति यमुना से ही लोगों को हो रही है। सीएजी ने भी अपने रिपोर्ट में बताया कि दिल्ली की 32 एसटीपी में 15 एसटीपी ही अपनी क्षमताओं के अनुरूप काम कर रही हैं। बाकी का स्तर निर्धारित क्षमता से बहुत कम है। सीवेज के अनुपात में एसटीपी की कमी की वजह से यमुना में प्रदूषण का स्तर बढ़ता ही जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में सभी तरह के प्रयासों के बावजूद यमुना का प्रदूषित क्षेत्र पहले से बढ़ ही गया है।
हरियाणा के पानीपत एरिया में 100 किलोमीटर के करीब प्रदूषित क्षेत्र बढ़ गया है। जबकि पिछले दो दशकों के दौरान 6,500 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। सीपीसीबी की नवीनतम रिपोर्ट में कहा गया है कि प्रदूषित यमुना का दायरा अब 500 किलोमीटर से बढ़कर 600 किलोमीटर का हो गया है।
आंकड़ों की मानें तो यमुना को मैली करने में दिल्ली का सबसे अहम योगदान है। यह तब है जब दिल्ली में यमुना की कुल लम्बाई का सबसे कम हिस्सा है। लेकिन यमुना में जाने वाली कुल गन्दगी की 70 फीसदी गन्दगी दिल्ली वाले ही देते हैं। यही स्थिति रही तो आने वाले दस वर्षों में यमुना नदी को गन्दे नाले में तब्दील होने का खतरा बढ़ जाएगा।
1. यमुना सफाई अभियान पर केन्द्र कर चुका है 6,500 करोड़ रुपये खर्च
2. दिल्ली का 58 प्रतिशत गन्दा पानी व कचरा गिरता है नदी में
3. ओखला, निजामुद्दीन व कालिंदी कुंज सबसे ज्यादा प्रदूषित प्वाइंट
4. दिल्ली के 22 किलोमीटर क्षेत्र में 70 फीसदी गन्दगी मिलती है यमुना में
5. यमुनोत्री से ताजेवाला तक के 172 क्षेत्र में ही साफ है यमुना
6. 500 से बढ़कर 600 किलोमीटर हो गया यमुना का प्रदूषित क्षेत्र
यमुना की सफाई के लिए और चाहिए चार हजार करोड़ रुपये
यमुना को स्वच्छ बनाना है तो आगामी तीन वर्षों के दौरान इसके लिये चार हजार करोड़ रुपये और चाहिये। दिल्ली विकास प्राधिकरण इस बाबत एक विस्तृत एक्शन प्लान पहले ही एनजीटी को सौंप चुकी है। फिलहाल यह एक्शन प्लान केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय के पास विचाराधीन है।
डीडीए ने एक्शन प्लान सीवेज मास्टर प्लान 2013 को संशोधित कर तैयार किया था। संशोधित प्लान के अनुसार यमुना में सीवेज का पानी गिरने से पहले उसे इन्टरसेप्ट किया जायेगा। इसके लिये एक अलग से सीवेज लाइन डालने की जरूरत पड़ेगी। इसके अन्तर्गत सीवेज वाटर को स्टॉर्म वाटर ड्रेन में नहीं होने दिया जायेगा। इस प्लान पर काम करने में आगामी तीन वर्षों में चार हजार रुपये का खर्च आयेगा। इस प्लान के अन्तर्गत दिल्ली के 201 प्राकृतिक नालों को भी फिर से पुनर्जीवित करने की योजना है।
इस बाबत डीडीए जनसम्पर्क सलाहकार नीमो धर ने बताया कि प्लान तैयार करने के बाद इसे एनजीटी को भेजी गयी थी।
प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड का सुझाव
1. पुराने सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट के पानी को 30 बीओडी तक लाना।
2. नये सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट ऐसे हों जो पानी को दस बीओडी तक ला सकें।
3. डीएसआईडीसी और दिल्ली प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड इस बात को सुनिश्चित करें कि औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला पानी बिना ट्रीटमेन्ट के यमुना तक न पहुँचे।
वजीराबाद से आगे जहरीली हो गई है नदी
दिल्ली की तीन चौथाई आबादी की प्यास बुझाने वाली यमुना की हालत नाजुक है। वजीराबाद से आगे निकलते ही यमुना नाले में तब्दील हो जाती है। दिल्ली आधे से अधिक गन्दा पानी यमुना में बिना ट्रीट किये विभिन्न नालों के माध्यम से पहुँचाता है।
दिल्ली में यमुना पल्ला के पास से प्रवेश करती है। करीब 25 किलोमीटर का स्ट्रेच पार करने के बाद वजीराबाद पहुँचती है। दिल्ली जल बोर्ड सप्लाई के लिये यहीं से 840 एमजीडी पानी उठा लेता है। क्योंकि वजीराबाद के बाद यमुना नाले जैसी दिखाई देने लगती है। यहीं से गन्दगी डाले जाने की शुरुआत भी हो जाती है। एक के बाद एक 18 नालों से यमुना में प्रदूषित पानी जाता है। इनमें से आधे से ज्यादा पानी बिना ट्रीटमेन्ट के यमुना में गिरता है। सीपीसीबी द्वारा 2014 के सुप्रीम कोर्ट को जारी रिपोर्ट में भी यमुना की बदहाली में कोई सुधार नहीं होना बताया गया है। प्रदूषण का स्तर इतना ज्यादा है कि जलचर खत्म हो चुके हैं। ओखला बैराज के पास पानी में कुछ छोटी-छोटी मछलियाँ पायी जाती हैं, लेकिन वे साफ पानी की मछलियाँ नहीं होती और खाने के काम नहीं में नहीं आ सकती।
ओखला बैराज के पास बीओडी लेवल भी सबसे ज्यादा खराब है। इसके बाद निजामुद्दीन और कालिंदी कुंज के पास सबसे ज्यादा नाजुक स्थिति है। सीपीसीबी के मुताबिक निजामुद्दीन पुल के नीचे यमुना का पानी सबसे ज्यादा प्रदूषित है। आंकड़ों के लिहाज से यमुना का फ्लड एरिया यानी बाढ़ जनित क्षेत्र करीब दो से तीन किलोमीटर तक है।
यह है यमुना नदी की जमीनी तस्वीर
यमुना सात राज्यों से होकर बहती है। इसकी कुल लम्बाई के 1,376 किलोमीटर है। उत्तराखण्ड और उत्तर प्रदेश में करीब 21 प्रतिशत, हिमाचल प्रदेश में 1.6 प्रतिशत, हरियाणा में 6.1 प्रतिशत, राजस्थान में 29.8 प्रतिशत, मध्य प्रदेश में 40 प्रतिशत और दिल्ली में करीब 2 प्रतिशत, हिस्सा है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के अनुसार यमुना यमुनोत्री से ताजेवाला तक 172 किलोमीटर तक साफ है। ताजेवाला से वजीराबाद बैराज तक इसकी लम्बाई के 224 किलोमीटर क्षेत्र में दिल्ली के मुकाबले पानी काफी साफ है।
बदसूरत तस्वीर के लिये जिम्मेदार हैं 18 नाले
यमुना का दिल्ली में सबसे कम करीब 48 किलोमीटर हिस्सा है। इनमें सबसे ज्यादा गन्दगी 22 किलोमीटर के हिस्से में दिल्ली से गिरने वाले 18 बड़े नालों से होती है। दिल्ली की 45 प्रतिशत आबादी का कचरा बिना ट्रीटमेन्ट के सीधे यमुना में इन नालों से पहुँचता है। इनमें सबसे बड़ी हिस्सेदारी नजफगढ़ ड्रेन की होती है।
सीपीसीबी आंकड़ों की बात करें तो नजफगढ़ नाले से 61 प्रतिशत, शाहदरा नाले से 17 प्रतिशत, दिल्ली गेट नाले से 6 प्रतिशत, बारापूला से 2.2 प्रतिशत और तुगलकाबाद नाले से 2.2 प्रतिशत प्रदूषित पानी यमुना में पहुँचता है। कुल बीओडी का 91 प्रतिशत इन्हीं नालों से यमुना को मिलता है। ऐसा बड़े नालों में गिरने वाले छोटे नालों पर इन्टरसेप्टर न होने की वजह से होता है। एक अन्य अनुमान के मुताबिक राजधानी का करीब 400 करोड़ लीटर पानी यमुना में गिरता है। इनमें से 60 प्रतिशत पानी यमुना में बिना ट्रीटमेन्ट के दिल्ली में पहुँचता है। दिल्ली जल बोर्ड के 17 सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट की क्षमता 2,460 एमएलडी (246 करोड़ लीटर) गन्दे पानी का ट्रीटमेन्ट तक पहुँच पाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अधिकारियों के अनुसार दिल्ली जल बोर्ड ने जो प्लाण्ट ट्रीटमेन्ट के लिये लगाये हैं। उनमें से कुछ की क्षमता पानी को 30 बीओडी तक लाने की है।
स्वच्छ यमुना के लिए सरकार के प्रयास
1. 1993 में की गई थी यमुना एक्शन प्लान की शुरुआत
2. दो दशक से ज्यादा समय में 1500 करोड़ से ज्यादा खर्च।
3. यमुना एक्शन प्लान के तहत 2,000 में होना था काम खत्म।
4. लेकिन प्लान के हिसाब से अभी तक यमुना साफ नहीं हुई।
5. 2004 में यमुना एक्शन प्लान टू की शुरुआत की।
6. 450 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च हुये इस प्रोजेक्ट पर।
7. 700 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किये जा चुके हैं सीवेज ट्रीटमेन्ट प्लाण्ट पर।
कौन से नाले से गिरता है कितना गन्दा पानी
नजफगढ़ नाला | 2,064 एमएलडी |
मैगजिन रोड नाला | 12 एमएलडी |
स्वीपर कॉलोनी नाला | 4 एमएलडी |
खैबर पास नाला | 4 एमएलडी |
मैटकॉल्फ हाउस नाला | 6 एमएलडी |
आईएसबीटी नाला | 45 एमएलडी |
टांगा स्टैंड नाला | 5 एमएलडी |
कैलाश नगर नाला | 8 एमएलडी |
सिविल लाइन नाला | 40 एमएलडी |
दिल्ली गेट पावर हाउस नाला | 68 एमएलडी |
नाला नम्बर 14 | 08 एमएलडी |
बारापूला नाला | 86 एमएलडी |
महारानी बाग नाला | 33 एमएलडी |
अबू फजल नाला | 26 एमएलडी |
जैतपुर नाला | 19 एमएलडी |
तुगलकाबाद नाला | 90 एमएलडी |
शाहदरा नाला | 638 एमएलडी |