आज के समय में शिक्षा ने व्यापार का रूप ले लिया है। स्कूल से लेकर कोचिंग क्लास तक, अधिकांश लोगों का उद्देश्य लाभ कमाना है। जिस कारण देश में समय समय पर शिक्षा के माॅडल पर चर्चा होती रहती है, लेकिन कई लोग शिक्षण संस्थानों के वास्तविक रूप को आज भी बनाए हुए हैं और निस्वार्थ भाव से जरूरतमंदों को शिक्षा की मुख्यधारा से बिना किसी स्वार्थ के जोड़ रहे हैं। ऐसे ही व्यक्ति हैं, बिहार के समस्तीपुर जिला के रोसड़ा ब्लाॅक के ढरहा गांव के रहने वाले राजेश कुमार सुमन। वें 5 हजार से ज्यादा बच्चों को निशुल्क कोचिंग दे चुके हैं। फीस के बदले बच्चों के 18 पेड़ लगवाते हैं। साथ ही जल संरक्षण की दिशा में भी अहम योगदान दे रहे हैं। इंडिया वार्टर पोर्टल (हिंदी) से बात करते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘नदियों और पर्यावरण को बचाना रिवाज होना चाहिए। सही मायनों में पर्यावरण का संरक्षण तभी होगा, जब हम इसे अपनी जीवन और संस्कृति का हिस्सा बनाएंगे।’’
पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा व प्ररेणा राजेशकुमार सुमन को अपने पिता से मिली थी। वे हर साल जन्मदिवस के अवसर पर पौधा लगाते थे। अपने पिता को देखते हुए राजेशने 6 वर्ष की उम्र में पौधारोपण करना शुरु किया। हर साल जन्मदिवस पर वे परिवार के साथ पौधे लगाते थे। इस कार्य के प्रति समय समय पर उनके पिता उन्हें प्रेरित करते थे। उनके पिता कहते थे कि ‘‘मेरा बड़ा बेटा पौधा लगाएगा। क्योंकि ये बड़ा है, इसलिए पेड़ भी जल्दी बड़ा होगा।’’ इने बातों ने राजेश को काफी ज्यादा प्रेरित किया। शिक्षा पूरी करने के बाद रेलवे में उनकी नौकरी लग गई और राजस्थान में पोस्टिंग मिली, लेकिन अपने गांव में फैली गरीबी राजेश को बार-बार परेशान करती थी। गांव की मिट्टी से अगाध प्रेम के कारण उनके मन में हमेशा गांव की समस्याओं का ही विचार आता रहता था। वे गांव के बच्चों को शिक्षित करने के बारे में सोचते रहते थे। इससे एक अजीब बेचैनी उनके मन में घर कर गई, जिस कारण उनका मन गांव की माटी से दूर राजस्थान में नहीं लगा और उन्होंने एक साल में ही नौकरी छोड़ दी।
गांव की माटी की खुशबू उन्हें वापस खींच लाई। नौकरी छोड़ने के बाद साल वर्ष 2008 में उन्होंने बच्चों के उत्थान के उद्देश्य से बिनोद स्मृति स्टडी क्लब की शुरुआत की। बचपन में जब परिवार के आर्थिक हालात खराब थे, जब उनके मामा ने काफी मदद की थी, लेकिन कम उम्र में ही उनका देहांत हो गया था, इसलिए उन्हीं के नाम पर कोचिंग सेंटर का नाम रखा। कोचिंग सेंटर के माध्यम से वें दसवीं पास कर चुके बच्चों को सरकारी नौकरी की तैयारी करवाते हैं। कुछ समय तक कोचिंग सेंटर चलाने के बाद उन्हें सूझा कि क्यों न बच्चों के माध्यम से ही पर्यावरण संरक्षण की अलख जगाई जाए। इस उद्देश्य से उन्होंने कोचिंग सेंटर का नाम ‘‘ग्रीन पाठशाला बिनोद स्मृति स्टडी क्लब’’ रख दिया। राजेश कुमार सुमन कहते हैं कि ‘‘निजी कोचिंग सेंटर कोचिंग के नाम पर लाखों रुपये लेते हैं। हर किसी की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नहीं कि इतनी फीस दे सके। इसलिए सैंकड़ों बच्चे कोचिंग नहीं ले पाते। हम बच्चों को निशुल्क कोचिंग देते हैं। गुरुदक्षिणा या फीस के रूप में बच्चों से 18 पेड़ लगाने का संकल्प लेते हैं। 3 से 4 साल तक बच्चों को ही इन पेड़ों की देखभाल करनी होती है। इस पूरे काम का उद्देश्य ग्रीन कवर को बढ़ाना है।’’ वें बताते हैं कि ‘‘वे बिहार शिक्षा विभाग में शिक्षक हैं। स्कूल जाने से पहले और फिर शाम को कोचिंग देते हैं। किसी से आर्थिक सहायता नहीं ली जाती, बल्कि अपने वेतन का 60 प्रतिष हिस्सा इस कार्य में लगाया जाता है। जिन बच्चों को काॅपी-किताब सहित विभिन्न सामग्रियों की आवश्कता होती है, तो हम उसका भी बंदोबस्त निशुल्क करते हैं। मैं, रूबी कुमारी (पत्नी), सोनु कुमार, नितीश कुमार, सतीश कुमार, संतोष कुमार बच्चों को पढ़ाते हैं। अभी तक पांच हजार बच्चों को पढ़ा चुके हैं। जिनमें से 350 बच्चें विभिन्न विभागों में नौकरी कर रहे हैं। सफल होने पर बच्चों से मिठाई के रूप में पौधा ही लेते हैं।’’
राजेश का अभियान समस्तीपुर सहित दरभंगा, खगड़िया और बेगुसराय जिले में फैल चुका है। वें अभी तक करीब 95 हजार पेड़ लगवा चुके हैं। पौधोरोपण के माध्यम से वें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं का संदेश भी समाज को दे रहे हैं। इस क्रम में वे लोगों के घरों के बार जाकर बेटी के नाम पर एक फलदार पेड़ लगाते हैं। ताकि शादी के बाद जब बेटी ससुराल चली जाती है, तो इस पेड़ पर लगने वाला फल हमेशा के बेटी की याद दिलाता रहे। ऐसा करते हुए वें लोगों के घरों के बाहर करीब 10 हजार पेड़ लगा चुके हैं। इसके अलावा वें शादी समारोह, जन्म संस्कार से लेकर किसी भी प्रकार के कार्यक्रम में पेड़ ही उपहार के तौर पर देते हैं। 15 अगस्त और 26 जनवरी पर प्रसाद के रूप में बच्चों को पौधा देते है और तिरंगे के नाम पर पौध रोपण करने को कहा जाता है। वे ‘सेल्फी विद ट्री’ के नाम से अभियान चला रहे हैं, जिसमे पेड़ लागते वक्त लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से सेल्फी लेकर उसे सोशल मीडिया पर अपलोड करना होता है। उनकी इस मुहिम में लोग भी उनके साथ जुड़़ रहे हैं। गांव के कई लोग शादियों में सभी बारातियों को पौधा उपहार के रूप में देते हैं। शादी के निमंत्रण पत्रों पर भी लोग पेड़ बचाने के स्लोगन लिखवाते हैं जैसे ‘‘सांसे हो रही हैं कम, आओ पेड़ लगाए हम।’’ कई शादियों में राजेश बिन बुलाए ही चले जाते हैं, और दुल्हा-दुल्हन को पौधा उपहार देकर पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करते हैं।
पर्यावरण के प्रति उनके समर्पण को देखते हुए उन्हें ‘‘पौधा वाले गुरुजी’’ के नाम से जाना जाता है। बड़ी संख्या में पौधे लगाने से उन्होंने न केवल ग्रीन कवर को बढ़ाने में योगदान दिया, बल्कि जल संरक्षण के प्रति भी लोगों को जागरुक कर रहे हैं। वृक्ष लगाने का ऐसा प्रभाव हुआ कि जो चापाकल काफी समय से पानी नहीं दे रहे थे, उनमें पानी आने लगा है। इस कार्य के लिए उन्हें विभिन्न मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है। पर्यावरण संरक्षण के लिए विभिन्न राज्यों में जाते हैं और लोगों को जागरुक करते हैं। वास्तव में आज समाज को ऐसे ही लोगों की जरूरत है, जो पर्यावरण के साथ साथ शिक्षा के मूल उद्देश्य को बचाते हुए उसे भी पर्यावरण से जोड़ें।
(लेख राजेश कुमार सुमन के साथ हिमांशु भट्ट की बातचीत पर आधारित है)
हिमांशु भट्ट (8057170025)