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राष्ट्रीय सहारा (हस्तक्षेप), 8 अप्रैल 2017
उत्तर प्रदेश में जो कर्ज माफी की गई है, वह एक बड़ी स्टील कम्पनी-जिन्दल स्टील एंड पावर के पास फँसे हुए कर्ज से भी कम है। इस कम्पनी के पास 44,140 करोड़ रुपए का कर्ज फँसा हुआ है। भूषण स्टील पर भी 44,478 करोड़ रुपए का कर्ज है। ये दोनों कम्पनियाँ उन बड़ी स्टील कम्पनियों में शुमार हैं, जो 1.5 लाख करोड़ रुपए के ऋण माफी की माँग उठाए हुए हैं। किसानों के कर्ज के विपरीत कॉरपोरेट कर्ज के मामले किसी भी राज्य सरकार को नहीं कहा जा रहा कि उनकी कर्ज माफी को अपने संसाधनों से वहन करे।
दावे से नहीं कह सकता कि क्या उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस बात को महसूस करते हैं कि छोटे और सीमान्त किसानों के एक लाख रुपए तक के कर्ज माफ करने और इसी के साथ न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से 80 लाख टन गेहूँ की खरीदी सम्बन्धी उनके फैसलों से राज्य की कृषि का कायाकल्प हो जाएगा।ऐसे समय में जब किसान दिनोंदिन कर्ज के फन्दे में फँसते चले जा रहे हैं, 30,729 करोड़ रुपए के कर्जे को माफ किये जाने से यकीनन 88.68 लाख छोटे और सीमान्त किसानों का वित्तीय बोझ कम होगा। इसके साथ ही राज्य सरकार उन सात लाख किसानों को भी राहत देगी, जिनके पास एनपीए के रूप में बैंकों का 5,630 करोड़ रुपया फँसा हुआ है। ये वे किसान हैं, जिनकी सम्पत्ति नीलाम किये जाने के कगार पर थीं। अगर राज्य सरकार उनकी मदद को नहीं आती तो वे नीलाम हो जाते।
इन दोनों श्रेणियों को मिलाकर कुल 36,359 करोड़ रुपए का ऋण माफ किया गया है। सरकार के आँकड़ों के मुताबिक, इस फैसले से उत्तर प्रदेश के कुल 2.15 करोड़ छोटे और सीमान्त किसानों में से 95.68 किसान लाभान्वित होंगे। मैं मानता हूँ कि इस कर्ज माफी से वह चुनावी वादा अभी भी पूरा नहीं हुआ है, जिसमें छोटे और सीमान्त किसानों के सभी ऋणों को माफ करने की बात कही गई थी।
लेकिन इस कर्ज माफी में जो राजनीतिक साहस दिखता है उसका सराहना करना होगा, जिसके तहत बड़ी मात्रा में कर्जे, जिनमें राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिया गया ऋण भी शामिल है, को माफ किया गया है। इसलिये तो और भी ज्यादा कि यह फैसला ऐसे समय किया गया है, जब नीति-निर्माता किसान समुदाय को कर्ज माफी देने के पक्ष में कतई नहीं थे। भारतीय स्टेट बैंक की चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्य पहले ही कह चुकी थीं कि कृषि ऋणों की माफी से ‘ऋण अनुशासन’ टूटता है, जिससे किसान आदतन चूककर्ता बन जाते हैं।
उद्योग और किसान से हो समान बर्ताव
मेरा हमेशा से मानना है कि उद्योग और किसान, दोनों ही राष्ट्रीयकृत बैंकों को कर्ज चुकाने में चूक करते हैं, और उनके साथ एक सा बर्ताव किया जाना चाहिए। 2012 से 2015 के मध्य 1.14 लाख करोड़ रुपए का कॉरपोरेट एनपीए माफ कर दिया गया था। हैरत तो यह कि किसी भी राज्य सरकार को अपने राजस्व से इस बोझ को सहने के लिये नहीं कहा गया। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इण्डिया रेटिंग्स को लगता है कि बैंक अभी चार लाख करोड़ रुपए के एनपीए और माफ करने जा रहे है।
किसी भी राज्य सरकार को यह बोझ वहन करने को नहीं कहा जा रहा। इसलिये सवाल पूछा जाना चाहिए और मुझे उम्मीद है कि योगी इस सवाल को उठाएँगे कि उत्तर प्रदेश सरकार को ही अपने संसाधनों से कर्ज माफी का बोझ उठाने को क्यों कहा जा रहा है? राष्ट्रीयकृत बैंक इस बोझ को उसी तरह से क्यों नहीं उठा सकते जैसा कि उनने कॉरपोरेट के ऋण माफ करने के समय किया था?
बहरहाल, उत्तर प्रदेश में जो कर्ज माफी की गई है, वह एक बड़ी स्टील कम्पनी-जिन्दल स्टील एंड पावर के पास फँसे हुए कर्ज से भी कम है। इस कम्पनी के पास 44,140 करोड़ रुपए का कर्ज फँसा हुआ है। भूषण स्टील पर भी 44,478 करोड़ रुपए का कर्ज है। ये दोनों कम्पनियाँ उन बड़ी स्टील कम्पनियों में शुमार हैं, जो 1.5 लाख करोड़ रुपए के ऋण माफी की माँग उठाए हुए हैं। किसानों के कर्ज के विपरीत कॉरपोरेट कर्ज के मामले किसी भी राज्य सरकार को नहीं कहा जा रहा कि उनकी कर्ज माफी को अपने संसाधनों से वहन करे।
उत्तर प्रदेश सरकार ने साहस दिखाया है कि किसानों के कर्ज माफ कर दिये। अन्य राज्यों पर भी अब ऐसा ही दबाव बढ़ेगा। पंजाब में नवनिर्वाचित सरकार भी किसानों पर करीब 36,000 करोड़ रुपये के कर्ज को माफ करने की तैयारी में है। महाराष्ट्र सरकार किसानों की कर्ज माफी के लिये केन्द्र से 30,500 करोड़ रुपए की माँग करती रही है।
इसी प्रकार कर्नाटक, गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, हरियाणा, ओड़िशा और पूर्वोत्तर राज्यों से भी किसानों के कर्जे को माफ किये जाने के प्रयास आने वाले दिनों में देखने को मिल सकते हैं। बीते 21 वर्षों में देश में 3.18 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं और इनमें से करीब 70 प्रतिशत किसानों की आत्महत्या के पीछे कर्ज में दबा होना मुख्य कारण था। उत्तर प्रदेश में किसानों की कर्ज माफी खेल के नियम बदल देने वाली साबित होगी।
स्पष्ट खाका पेश किया योगी ने
कर्ज माफी के अलावा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने राज्य में खेती-किसानी की बेहतरी के लिये एक स्पष्ट खाका पेश किया है। मेरी समझ से 80 लाख टन गेहूँ की खरीद, जिसके लिये पाँच हजार खरीद केन्द्र स्थापित किये जा रहे हैं, का फैसला ही अपने आप में ऐसा है, जो कृषि के क्षेत्र में नए युग का सूत्रपात कर सकता है।
आज के दौर में समूचा नीति-निर्देशन कृषि उत्पाद विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियंत्रित मंडियों को भंग करने पर है और इस क्रम में न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित किये जाने के हालात को ही खारिज किये दे रहा है, जिससे किसानों में असन्तोष है। उत्तर प्रदेश में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य सुनिश्चित करके खेती-किसानी में नए सिरे जान फूँकी जा सकती है।
बीते वर्ष 2016-17 में तीस लाख टन गेहूँ खरीद के बरक्स मात्र 7.97 लाख टन खरीद ही हो पाने के मद्देनजर अब 80 लाख टन गेहूँ खरीद का लक्ष्य ही अपने आप में बेतहाशा मात्रा है। चूँकि किसानों की कम आमदनी उनमें बढ़ते असन्तोष का मुख्य कारण है, इसलिये उन्हें अपनी उपज के लिये अच्छे दाम और अच्छा बाजार सुनिश्चित हो तो उनका कायाकल्प ही हो जाएगा।
खरीद प्रणाली का विस्तार किया जाना भारतीय कृषि की काया पलट कर देने वाला है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के मुताबिक, देश में सात हजार से ज्यादा एपीएमसी विनियंत्रित मंडिया हैं। अगर हर गाँव के पाँच किमी के दायरे में बाजार मुहैया कराना है, तो भारत में 42 हजार मंडियों की दरकार है।
मंडियों का इतना विशाल तंत्र, यदि स्थापित किया जा सका, ही वह प्रक्रिया हो सकती है जिससे उपज की बिक्री सम्बन्धी चिन्ताओं से निजात मिल सकती है और इस प्रकार किसानों को सुरक्षा का भी अहसास हो सकेगा। यदि उत्तर प्रदेश की पहलकदमी सफल होती है, तो यह नए आयाम स्थापित कर देने वाली होगी। कृषि के लिये एक नया मॉडल तैयार करेगी।
अभी पंजाब, हरियाणा और कुछ हद तक मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और तमिलनाडु में ही मंडियों का एक मजबूत तंत्र है। यही कारण है कि हर साल पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान ट्रकों में अपनी उपज को लादकर पड़ोसी राज्य हरियाणा के सीमान्त जिलों में स्थित मंडियों तक ले जाते दिखते हैं। यह उदाहरण ही तस्वीर का रुख साफ कर देता है कि समर्थन मूल्य पर स्थानीय स्तर पर उत्तर प्रदेश के किसानों को अपनी उपज बेच पाने में दिक्कतें दरपेश हैं। आर्थिक रूप से आकर्षक खेती ही वह पहला उपाय है, जिससे शहरों की ओर गाँवों से पलायन को रोका जा सकता है। और यही योगी आदित्यनाथ ने कहा भी है-ग्रामीण इलाकों से पलायन रोकना है।