यूरोप

Submitted by Hindi on Mon, 12/27/2010 - 15:34
यूरोप एक महाद्वीप है जो संसार के सात महाद्वीपों में विस्तार के विचार से छठा है किंतु भौतिक उपलब्धियों के विचार से यह अमरीका को छोड़कर अन्य सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। पश्चिमी यूरोप और उसके निकटवर्ती द्वीपसमूहों ने ही पश्चिमी सभ्यता के मूल तत्वों और अर्थ व्यवस्था निर्माण का विकसित किया है। उत्तरी और दक्षिणी अमरीका, आस्टेलिया तथा दक्षिणी ध्रुव के अन्वेषक साहसिक यात्री यूरोप से ही आए। उन्होंने एशिया और अफ्रीका की सीमांकन रेखाओं को वास्तविक रूप दिया एवं सभी महाद्वीपों की आंतरिक ज्ञानोपलब्धियों को और आगे बढ़ाया। उत्तरी और दक्षिणी अमरीका, आस्टेलिया तथा अफ्रीका के भूभागों में उपनिवेशों की स्थापना यूरोप द्वारा हुई जहाँ लाखों लोग यूरोप से जाकर बसे । 20 वीं शताब्दी के प्रथम अर्ध भाग में ही दो विश्वश्युद्धों के परिणाम यूरोप को भोगने पड़े हैं।

"यूरोप" नाम एशिया वासियों की देन है। यूरोप एशिया की उस दिशा में पड़ता है जिस दिशा में एशिया की केवल संध्या होती है । "इरेज" का अर्थ होता है संध्या, या सूर्यास्त। "इरेव" से यूरोप शब्द बन गया।

संसार के सबसे बड़े भूभाग का पश्चिमोत्तर भाग यूरोप कहलाता है, शेष भाग में एशिया और अफ्रीका दो महाद्वीप, ग्रेट ब्रिटेन जैसे हजारों समीपी द्वीपसमूह तथा आइसलैंड और स्विट्जबर्गेन के समान बहुत से दूरस्थ द्वीपसमूह हैं। यूरोप की दक्षिणी सीमा पर क्रम से भूमध्य सागर, काला सागर और काकेश पर्वत, उत्तर-पश्चिमी सीमा पर उत्तरी अटलांटिक महासाग़र, पूर्वी सीमा पर यूरैल पर्वत, यूरैल नदी तथा कैस्पियेन सागर हैं। इसका क्षेत्रफल 39,00,000 वर्ग मील है। दक्षिणी यूनान से उत्तरी नाँर्वे तक मुख्य भूमि का विस्तार 2,400 मील है। दक्षिण-पूर्वी पुर्तगाल से दक्षिणी यूरैल-पर्वत तक की दूरी 3,300 मील है।

भूमि स्वरूप -


यूरोप अपने छोटे से आकार में ही भूमि स्वरूपों की श्रृंखला सँजोए हुए है। ऐसे मैदान जो समुद्रतल से भी नीचे तथा बाँधों से सुरक्षित हैं से लेकर उच्च श्रृंगधारी पर्वत कि यूरोप में विद्यमान हैं। समय समय पर पर्वत की श्रेणियाँ उठीं, ज्यों ज्यों समय बीतता गया त्यों त्यों तोड़फोड करनेवाली प्राकृतिक शक्तियों द्वारा उन श्रेणियों की ऊँचाई घटती गई, यहाँ तक कि उन श्रेणियों का स्वरूप घिसे हुए चपटे ढूँढ की तरह रह गया। ऐसी ही एक श्रेणी कैलेडानिऐन पर्वतमाला थी जिसका अवशेष स्कैंडिनेविया और स्कॉटलैंड की उच्च भूमि के रूप में पाया जाता है। इन पर्वतों के शिखरतलों की सामान्य समतलता से पता चलता है कि उन शिखरों को लंबे समय तक टूट-फूट क्रिया का सामना करते हुए रहना पड़ा है। मैदान-प्राय के रूप में अवतरित होने के पश्चात् इसका उत्थान हुआ। इस उत्थान के बाद पुन: तीव्र क्षरण हुआ जिससे स्कैंडिनेविया की भूमि वृद्धावस्था एवं युवावस्था का विचित्र मिश्रण है।

द्वितीय पर्वतमाला के अवशेष ब्रिटैनी से कारपेथिऐंस के पश्चिमी सिरे तक छितराए हुए दिखाई पड़ते हैं। यह पर्वतमाला हरसीनियन के नाम से जानी जाती है। फ्रांस का मध्यवर्ती गिरिपिंड सबसे ऊँचा है जहाँ सेवेन 5,000 फुट तक ऊँचा है। कैलिडोनिऐन उच्च भूमि ऊसर के रूप में परिवर्तित है। इसके साथ ही दूसरी ओर हरसीनियन गिरिपिंड प्राय: जंगल से ढँके हैं और उनके शिखरों पर कृषि की जाती है। हरसीनियन गिरिपिंड यद्यपि सूनसान और अनुपजाऊ क्षेत्र में फैले हुए हैं तथापि अपनी ऊँचाई के कारण वे आश्चर्यजनक रूप में आबाद हैं।

ऐल्प्स पर्वत अपने से पुराने कैलिडोनिऐन और हरसीनियन अवशेषों से विपरीत है। हिमालय और एंडिज़ के साथ और सौंदर्य आकर्षण में श्रेणीबद्ध होते हुए ऐल्प्स यूरोप का सर्वोच्च पर्वत है। रचना के अनुसार ऐल्प्स की शाखाएँ नए मोड़दार पर्वत हैं। ऐल्प्स की चट्टानों की बनावट सर्वाधिक जटिल है।

कुछ क्षेत्रों में यूरोपीय पर्वत तीव्रता से समुद्रसतह के अंदर तक गए हैं, दूसरे क्षेत्रों में वे विस्तृत नीची भूमि से घिरे हैं। इनमें से वह यूरोपीय मैदान सर्वाधिक विचारणीय है जो पेनाइंस से यूरैल्स तक निचले देशों जैसे जर्मनी, पोलैंड और रूस के आर पार फैला हुआ है। यह मैदान तब तक धीरे धीरे चौड़ाई में बढ़ता गया है जब तक इसने उस संपूर्ण क्षेत्र पर जो श्वेत और काले सागर के बीच विस्तृत है, अधिकार नहीं कर लिया। हॉलैंड के सुद्रतल से भूमी नीचे धरातलों से लेकर बॉल्टिक पट्टियों के ऊबड़ खाबड़ टीलों से परिपूर्ण भूमि स्वरूप एक बार में देखे जा सकनेवाले दृश्यों तक धरातलीय उच्चावच विधि प्रकार के हैं। सामान्यत: उनकी एकरूपता ठीक उस प्रकार की है जैसी सीढ़ीदार मकान की छतों व घरों में पाई जाती है, जबकि वे अनेक विविधताओं को ढँके रहते हैं। मैदान के कुछ भाग अभी भी निर्माण अवस्था में ही हैं और कुछ बहुत पहले से ही निर्मितावस्था में हैं। बॉल्टिक शील्ड एवं रूसी समतल उच्चभूमि विस्तृत मैइरल हैं, बॉल्टिक शील्ड हिमाघात और पतिघातों द्वारा घिस गया है। उत्तरी यूरोपीय मैदान भी हिमनदन द्वारा प्रभावित हुए हैं। हॉलैंड मुख्यत: राइन का डेल्टा है और प्राय: कीचड़ के कणों द्वारा बना है। जहाँ पर्वत नीची भूमि के दक्षिणी किनारे टेढ़ी मेढ़ी कटान में अवरोधक है, वहाँ लोयस से ढँकी अनेक खाड़ियाँ हैं। ये खड़ियाँ उत्तम खेती करने योग्य हैं। लोंबार्डी का मैदान पहले समुद्र का ही एक भाग था, किंतु ऐड्रिऐटिक सागर की ओर पर यह मैदान ऐसा बढ़ता चला गया कि जो स्थान रोमन-काल में किनारे पर था वह अब किनारे से 20 मील दूर पड़ गया है। इसी प्रकार के भराव से हंगरी का बेसिन भी बना है, जो पहले एक झील के रूप में था। दक्षिणी स्पेन में भी इसी प्रकार नदियों द्वारा लाई गई मिट्टी से बने मैदान देखने को मिलते हैं। इस महाद्वीप के मानव भूगोल में यूरोप की नीची भूमियों का प्रत्यक्ष महत्व है क्योंकि यह उन मैदानों में से एक है जिसपर जनसंख्या का अधिकांश जीवन निर्भर है।

यूरोप की रचना के इतिहास में हिमयुग का प्रभाव सुदूर प्रदेशों तक है। 10 लाख वर्ष पहले स्कैंडिनेविया, रूस का अधिकाँश, उत्तरी जर्मनी की निचली भूमि और ब्रिटेन का वह भाग जो उत्तरी सागर को घेरे है, बर्फ से ढँका हुआ था। छोटी छोटी एवं अलग अलग हिमटोपियाँ ऐल्प्स एवं उत्तर-पश्चिमी ब्रिटेन पर केंद्रों से विकेंतद्रत हुई। हिमयुग के चिन्ह स्पष्टता से आज भी दृष्टिगोचर होते है।

समुद्रतट -


यूरोप का 20,000 मील लंबा समुद्रतट उपसागरों, खाड़ियों और नदियों के मुहानों का तट है। द्वीपों और प्रायद्वीपों के कारण ऐटलैंटिक महासागर, उत्तरी ध्रुव सागर और भूमध्यसागर में बैरेंट्स, कारा, बॉल्टिक, ऐड्रिऐटिक, उत्तरी सागर, टिरीनिऐन, इज़िऐन और काला सागर बन गए हैं।

नदियाँ एवं झीलें -


यूरोप की नदियों का उपयोग जल-विद्युत् बनाने, सिंचाई और यातायात के साधन के रूप में होता है। यूरोप की सबसे लंबी (2,290 मील) और वेगवती नदी वोल्गा है, जो रूस में प्रवाहित होती है। यूरोप की अन्य मुख्य नदियों में राइन, डेन्यूब, सीन, डोन, नीपर, विश्चुला, ओडर, एल्ब, और टेम्स हैं। यूरोप के खारे जल की सबसे बड़ी झील कैस्पिऐन सार है और मीठे जल की झील लडोगा है जिसका क्षेत्रुल 7,100 वर्ग मील है। ऐल्प्स पर्वत की जेनेवा, कॉन्सटैंस, कोमो आदि अन्य झीलें सुंदरता के लिये प्रसिद्ध हैं।

खनिज पदार्थ -


संसार का 25 प्रतिशत कोयला, 35 प्रतिशत लोहा और बौक्साइट (खनिज ऐल्यूमिनियम) का भंडार यूरोप महाद्वीप में हैं। परंतु इन खनिजों का वितरण संपूर्ण महाद्वीप में एक सा नहीं हैं। ग्रेट ब्रिटेन, फ्रांस, पश्चिमी जर्मनी, बेल्जियम, नीरदरलैंड्स, पोलैंड, और रूस-डोनेट्स बेसिन-कोयले के प्रमुख क्षेत्र हैं। स्पेन, इटली, नार्वे, स्वीडन, ग्रीस में कोयला लगभग नहीं के बराबर है। ग्रेट ब्रिटेन फ्राँस, पश्चिमी जर्मनी, स्वीडन और रूस प्रमुख लौह उत्पादक क्षेत्र हैं तथा हंगरी, यूगोस्लाविया, दक्षिणी फ्राँस और ग्रीस में बौक्साइट का विशाल भंडार है। अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिये यूरोप महाद्वीप में पेट्रोल पर्याप्त नहीं है। रूस का र्कैपिसेन सागर का क्षेत्र और रूमेनिया का पोएस्टी क्षेत्र पेट्रोल का प्रमुख भंडार है। ताँबा, जस्ता, सीसा, एवं पारा महाद्वीप के अन्य प्रमुख खनिज पदार्थ हैं।

वनस्पति और जीव जंतु -


यूरोप में लगभग सर्वत्र फल फूल के पौधे और वृक्ष पाए जाते हैं। वनों को साफ कर कृषि योग्य भूमि बना ली गई और शहर विकसित कर लिए गए हैं। स्पेनी मेसेटा तथा दक्षिणी रूस के क्षेत्रों में स्टेप्स की घास और मरूस्थलीय वनस्पति पाई जाती है। उत्तरी ध्रुव महासागर के तटीय प्रदेशों और पर्वत के उच्च शिख़रों पर ग्रीष्मकालीन ताप की न्यूनता से वनों की उत्पत्ति असंभव है। इन स्थानों पर, या तो वनस्पति का पूर्ण अभाव है, या टुंड्रा जैसी वनस्पति पाई जाती है।

यूरोप के उत्तरी हिम भागों में रेनडियर पाए जाते हैं तथा शीत प्रदेशीय समूर धारी पशुओं में लिंक्स), मार्टेन, एर्मिन और बिज्जू, पाए जाते हैं। ऐल्प्स पर्वत प्रदेश में अजमृग पाया जाता है। इनके अतिरिक्त भालू, बाइजेंट, ऊदबिलाव, बारहसिंगा, हिममूस, भेड़िया, सीवेट, लोमड़ी, ध्रुवीय बिल्ली, गिलहरी, खरगोश, छछूँदर, और साही महाद्वीप के प्रमुख जंतु हैं। पक्षियों में सारिका, चटक, स्नो बंटिंग, गौरैया, जंगली कबूतर, कैनेरी, बाज, चील, उल्लू, कौवा, तथा सारस और मछलियों में काड, हेक, पोलेक, फ्लाउंडर, सार्डिन, स्टर्जन, टुना और इनके अतिरिक्त नाना प्रकार के समुद्री जीव जंतु हैं।

जलवायु-


यूरोप की स्थिति मध्य अक्षशों के बीच तथा महासागर के पूर्वी किनारे पर है। इसकी समुद्री तटीय रेखा कटी-फटी है। यूरोप के जलवायु पर इसका गंभीर प्रभ्भाव है। उत्तरी ऐटलैंटिक महासागरीय गरम धारा पश्चिमोत्तर यूरोप के किनारों को गरम रखती है। तथा जाड़े की ऋतु में ताप को हिमांकबिंदु तक पहुँचने से दूर रखती है। आइस लैंड, ब्रिटिश द्वीप समूह, पश्चिमी नॉर्वे और फ्रांस पछुआ हवाओं के कारण कुछ गरम रहते हैं। लंदन का औसत ताप जनवरी में लगभग 3 डिग्री सें0 और जुलाई में लगभग 17 डिग्री सें0 रहता है। भूमध्य सागरीय प्रदेशों में जाड़े के दिनों में वर्षा होती और गरमी के दिनों में शुष्कता रहती है। मध्य यूरोप से पूर्ववर्ती भागों में ऐटलैंटिक महासागर का प्रभाव बहुत कम रहता है। जाड़े का मौसम मध्य यूरोप में लंबा होता है, ठंड अधिक पड़ती है जनवरी का औसत ताप - 10.5 डिग्री सें0 और जुलाई में 18 डिग्री सें0 रहता है। यूरोप के अधिकांश क्षेत्र 20-40 इंच के वर्षा के क्षेत्र में पड़ते हैं। अधिक वर्षा के क्षेत्र समुद्रतटीय क्षेत्र हैं। कैस्पिऐन सागर के समीपवर्ती रेगिस्तानी प्रदेशों में वार्षिक वर्षा का वितरण 10 इंच से कम ही रहता है।

निवासी -


जनसंख्या के घनत्व की द्दष्टि से यूरोप महाद्वीप संसार का सबसे घना महाद्वीप है। ग्रेट ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, बेल्जियम और नीदरदलैंड्स में औसत जनसंख्या का घनत्व 500 व्यक्ति प्रति वर्ग मील है। यहाँ के निवासी मुख्यत: नॉर्डिक, पूर्वी बॉल्टिक, ऐल्प्स प्रदेशीय, डिनारिक और भूमध्यसागरीय हैं। यूरोप में लगभग 60 प्रकार की भाषाएँ बोली जाती हैं जिनमें से अंग्रेजी, फ्रांसीसी, जर्मन, डच, डेनिश, रूसी, इतावली आदि प्रमुख हैं।

कृषि -


औद्योगीकरण के बावजूद यूरोप में कृषि का स्थान बहुत महत्वपूर्ण है। प्राचीन काल से ही यूरोप के निवासी कृषि से ही जीविकोपार्जन करते आए हैं। ऐसा अनुमान है कि गेहूँ और जौ 3,000 वर्ष ई0पू0 दक्षिण, पश्चिमी एशिया से यूरोप में लाए गए थे। राई उत्पादन विशेष महत्व रखता है। पूर्वोत्तर राइन क्षेत्र में इसका प्रमुख क्षेत्र है। अधिंकाश यूरोपवासी कृषि और पशुपालन से जीविकोपार्जन करते हैं। यहाँ के कृषकों के पास भूमि कम होती है परिणामस्वरूप गहरी खेती की जाती है। इस कारण उत्पादन क्षमता अधिक होती है। अंगूर, जैतून और रसवाले फलों का उत्पादन दक्षिणी यूरोप में विशेष रूप से होता है। फ्रांस में अंगूर का उत्पादन सबसे अधिक होता है। पश्चिमोत्तर यूरोप में लोग खाद्यान्नों के साथ साथ पशुपालन, फलों की खेती और तरकारी की खेती करते हैं। यूरोप की लगभग आधी जनसंख्या कृषि पर पूर्णतया जीवन यापन करती है। उत्पादन का अधिकांश यूरोप में ही समाप्त हो जाता है। साधारणतया यूरोप संपूर्ण विश्व का 4/5 भाग राई, आलू, चुकंदर, सन, जैतून का तेल एवं अंगूर पैदा करता है और यह भाग दूध, गेहूँ, जई और जौ पैदा करता है।

मत्स्य उद्योग -


मत्स्य-उद्योग-प्रधान देशों में रूस, नॉर्वे, ग्रेट ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, फ्रांस और आइसलैंड का प्रमुख स्थान है। उत्तरी सागर का क्षेत्र मत्स्य उद्योग में केवल महाद्वीप के किनारे तक ही सीमित रहता है। नॉर्वे और अन्य देश दक्षिण में ऐटलैंटिक महासागर तक मछली मारने का काम करते हैं।

भ्रमण उद्योग -


इस उद्योग से यूरोप के कई देशों को काफी आर्थिक लाभ होता है। दृष्य, जलवायु, संस्कृति और इतिहास की विभिन्नताएँ लोगों को आकर्षित करती हैं।

अन्य उद्योग -


यूरोप संसार का सबसे बड़ा औद्योगिक महाद्वीप और कला कौशल का प्रमुख क्षेत्र है। सूती और ऊनी कपड़ों के उद्योग में ग्रेट ब्रिटेन सबसे आगे है। फ्रांस की प्रसिद्ध शराबें संसार के कोने कोने में पी जाती हैं। पश्चिमी जर्मनी का रूर (ङद्वण्द्ध) क्षेत्र लौह इस्पात का प्रमुख केंद्र है। स्विट्सरलैंड की सुंदर धड़ियाँ सर्वप्रसिद्ध हैं। मशीनों के उत्पादन में रूस अग्रिम है। स्वीडन, बेल्जियम, नीदरलैंड्स, इटली और चेकोस्लोवाकिया अन्य उद्योग-प्रधान देश हैं। उत्तरी अमरीका की अपेक्षा यूरोप खनिज पदार्थो में निर्धन है, तथापि खनिज पदार्थो का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। यूरोप के औद्योगीकरण में इसके पूर्वविकास का महत्व है। इंग्लैड में औद्योगिक क्रांति 18वीं शताब्दी में प्रारंभ हुई।

20वीं शती के युद्धों के फलस्वरूप बहुत से औद्योगिक स्थानों के विदेशी बाजार बंद हो गए। इसी बीच संयुक्त राज्य अमरीका ने सामग्री के निर्यात में वृद्धि की और विश्व व्यापार में स्पर्धा की। उद्योग और व्यापार के पुनरूत्थान में संसार के अन्य कृषि प्रधान देशों में उद्योगीकरण की योजनाओं और परिणामों ने और पहुँचाई। उद्योग प्रधान पश्चिमी यूरोप और कृषि प्रधान पूर्वी यूरोप के राजनीतिक संघर्षों ने पुनरूत्थान में काफी बाधा डाली।

शक्ति के साधन -


यूरोप के अधिकांश देश शक्ति के क्षेत्र में अच्छी तरह संतुलित हैं। जिन देशों में कोयले की कमी है उन देशों में विद्युत् शक्ति से कमी पूरी की जाती है। यूरोप में जलविद्युत् शक्ति का प्रयोग किसी भी महाद्वीप के जल विद्युत् शक्ति के प्रयोग से विस्तृत रूप में होता है। इटली, रूस, नॉर्वे, स्वीडन और संसार के प्रमुख जलशक्तिवाले देश हैं। अणु शक्ति से चालित विद्युत् संस्थान रूस में 1954 ई0 तथा ग्रेट ब्रिटेन में 1956 ई0 में स्थापित हुआ।

आवागमन के साधन -


यूरोप महाद्वीप के अधिकांश पर्वतीय देशों में पर्वतों के कारण सड़कों और रेल की पटरियों का निर्माण और खर्चीला हो गया है। फिर भी यूरोप के अधिक देशों में सर्वोत्तम यातायात के साधन हैं। यूरोपीय वायुयानों का क्षेत्र संपूर्ण विश्व में फैला हुआ है। पूरे महाद्वीप में तेज चलनेवाली गाड़ियाँ हैं। ऐल्प्स पर्वत प्रदेश में विश्व की सबसे लंबे रेलमार्ग की सुरंग है। यूरोप में जर्मनी की सुंदर सड़कों से लेकर जलमार्गो, देहाती कच्ची सड़कों और गलियों तक के आवागमन के साधन उपलब्ध हैं। यूरोप में समुद्री यातायात का महत्वपूर्ण स्थान है। बड़ी बड़ी नावों, जहाजों द्वारा नदियों और नहरों से महाद्वीप के एक सिरे से दूसरे सिरे तक जाया जाता है। यूरोप में समाचार पत्रों की संख्या एवं खपत किसी दूसरे महाद्वीप से अधिक है। इसके अतिरिक्त रेडियो और टेलीविजन का प्रचलन भी बहुत व्यापक है।

पुस्तकालयों, कलाभवनों और अजायबघरों की द्दष्टि से यूरोप संसार में सर्वप्रथम स्थान रखता है। कला, साहत्य तथा वास्तु स्थापत्य कला के क्षेत्र में यूरोप का योगदान विज्ञान एवं उद्योग से कम नहीं रहा है। वहाँ के कलाकारों एवं संगीतज्ञों की प्रसिद्धि संपूर्ण विश्व में पाई जाती है। यूरोप के दार्शनिकों का प्रभाव के सभी देशों के सामाजिक और राजनीतिक विचारों पर है।

शांतिलाल कायस्थ