आने वाले दिनों में जिला व राज्य मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन तथा अनशन व भूख हड़ताल किया जाएगा। गाँधीवादी तरीके से अपना हक लेने के लिए जो भी बन पड़ेगा, समिति उसे करेगी। छोटी गंडकी नदी बचाओ अभियान समिति सरकार से माँग की है कि इस समस्या को दूर कर बारह हजार दलित-मुस्लिम परिवारों की आवाज सुनी जाए ताकि वे भी सम्मान की जिन्दगी जीते हुए समाज के अन्य तबकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें। इस मौके समिति की अध्यक्ष समीना खातून व अन्य ग्रामीण उपस्थित थे।
पटनाः भारत सरकार द्वारा नेपाल के साथ पनबिजली के लिए किए गए समझौते का दंश झेल रहे सीवान जिला के अन्तर्गत बड़हरिया प्रखंड के पचराठा गाँव के आस-पास के करीब बारह हजार दलित व मुस्लिम परिवार बर्बादी के कगार पर खड़े हैं। समझौते के तहत पानी के साथ आ रहा गाद इन सबों की जान का ग्राहक बन गया है। ये बातें छोटी गंडकी (गंडेरी) नदी बचाओ अभियान के मुख्य संरक्षक व सामाजिक कार्यकर्ता संजीव श्रीवास्तव ने कही। बिहार इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के सभागार में बुधवार को आयोजित संवाददाता सम्मेलन में संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि गोपालगंज से मांझा होते हुए आने वाली नहर चांचोपाली के पास पानी गिराती है। जिसका पानी व गाद यहाँ से गुजरने वाली गंडेरी नदी में गिरता है। गाद के कारण गंडेरी (छोटी गंडकी) नदी का पानी निकलना लगभग 20 साल से बंद हो गया है। जिससे 22 गाँवों की करीब 50,000 एकड़ जमीन जलमग्न है। खेती हो नहीं पा रही और इन परिवारों के समक्ष खेती के अलावा जिविकोपार्जन का कोई जरिया नहीं है। बारिश के दिनों में इन लोगों का घर-द्वार भी डूब जाता है। घर की बच्चियों - महिलाओं को छह महीने गाँव छोड़ रिश्तेदारों के घर भेजना मजबूरी हो जाती है। गांव में घर की रखवाली के लिए कोई एक बुजुर्ग रह जाते हैं।संजीव ने कहा कि वर्षों से सरकार का ध्यान इस समस्या की ओर आकृष्ट कराया जा रहा है। लेकिन ना तो किसी जनप्रतिनिधि ने या किसी अफसर ने इन परिवारों की सुध लेना जरूरी समझा। उन्होंने बताया कि बीते 31 मार्च को जल संसाधन विभाग के प्रधान सचिव को ज्ञापन दिया, जिसके बाद उनके निर्देश पर सहायक अभियन्ता द्वारा नदी के बँद हिस्से का निरीक्षण किया गया। पुनः 01अप्रैल और 05 अप्रैल को कार्यकारी अभियन्ता ने जाँच पड़ताल किया और उसके बाद बँद हिस्से की सफाई के लिए विभाग के पटना स्थित मुख्यालय को प्राक्कलन बनाकर भेजा। लेकिन आज तक उस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। उन्होंने बताया कि प्रभावित इलाके के लोगों के सहयोग से समस्या पर आधारित एक डाक्यूमेंट्री बनाई गई और उसे सम्बन्धित विभाग के मन्त्री व अधिकारियों को भेजा गया। सचिवालय स्थित मुख्यालय व जिला कार्यालय से कई बार सम्पर्क किया गया लेकिन आशवासन के अलावा कुछ हाथ नहीं लगा। मानसून सिर पर है और इस बार फिर डूबना तय है।
अभियान के मुख्य संरक्षक संजीव श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार की कुम्भकर्णी नींद तोड़ने को अब समिति ने संघर्ष का रास्ता अख्तियार करने का निर्णय लिया है। आने वाले दिनों में जिला व राज्य मुख्यालय में धरना-प्रदर्शन तथा अनशन व भूख हड़ताल किया जाएगा। गाँधीवादी तरीके से अपना हक लेने के लिए जो भी बन पड़ेगा, समिति उसे करेगी। छोटी गंडकी नदी बचाओ अभियान समिति सरकार से माँग की है कि इस समस्या को दूर कर बारह हजार दलित-मुस्लिम परिवारों की आवाज सुनी जाए ताकि वे भी सम्मान की जिन्दगी जीते हुए समाज के अन्य तबकों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सकें। इस मौके समिति की अध्यक्ष समीना खातून व अन्य ग्रामीण उपस्थित थे।