40 बरस से चरम पर पहुँच रहा महानदी विवाद

Submitted by RuralWater on Sun, 09/04/2016 - 16:15

1. महानदी के कछार को लेकर ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के बीच करीब चार दशकों से विवाद चल रहा है।
2. केन्द्र इस प्रकरण में कई बार हस्तक्षेप कर चुका है। 28 अप्रैल, 1983 को दोनों राज्यों के बीच समझौता भी हो चुका है।
3. तब अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री दिवंगत अर्जुन सिंह और ओड़िशा के तत्कालीन मुख्यमंत्री दिवंगत जेबी पटनायक ने हस्ताक्षर भी किये थे।


महानदीमहानदीमहानदी के पानी को लेकर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के बीच करीब चार दशकों से चल रही लड़ाई अब और गहराने लगी है। बीते दिनों दोनों राज्यों के सांसद, विधायक और आला अधिकारी कई बार इस मुद्दे पर आमने-सामने आ चुके हैं। छत्तीसगढ़ सरकार की प्रस्तावित जलाशय परियोजना का मुद्दा 25 जुलाई को संसद में भी गूँजा।

बीजू जनता दल के सांसद भर्तृहरि महताब द्वारा लाये गए ध्यानाकर्षण प्रस्ताव में महानदी पर बनाई जा रही परियोजनाओं पर रोक लगाने का दबाव बनाया गया। इसके बाद सदन में दोनों राज्यों के सांसद आपस में उलझ गए। रायपुर के सांसद रमेश बैस और राजनांदगाँव सांसद अभिषेक सिंह ने ओड़िशा के हितों को नुकसान पहुँचाए जाने के आरोपों को निराधार बताया।

करीब एक घंटे चली चर्चा के बाद लोकसभा में केन्द्रीय जल संसाधन विकास मंत्री उमा भारती ने दोनों राज्यों के बीच जल बँटवारे को लेकर उपजे विवाद का समाधान जल्द निकालने का आश्वासन दिया।

केन्द्रीय जल संसाधन विकास मंत्रालय ने केन्द्रीय जल आयोग की मध्यस्थता में 29 जुलाई को दोनों राज्यों के आला अधिकारियों की एक बैठक भी बुलाई। बैठक में इस बात पर भी सहमति बनी कि दोनों राज्य अपने अधिकार क्षेत्र में महानदी पर निर्मित सभी परियोजनाओं सहित अन्य जानकारियाँ एक दूसरे से साझा करेंगे। मगर इन सबके बावजूद यह नहीं कहा जा सकता कि यह विवाद जल्द सुलझेगा।

छत्तीसगढ़ पहुँचे ओड़िशा के विधायक


जिस दिन यह पूरा मामला संसद में उठा ठीक उसी दिन यानी 25 जुलाई को ओड़िशा विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नरसिंह मिश्रा और छह कांग्रेस विधायक बाँध विशेषज्ञों और अधिकारियों के साथ छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में पहुँच गए।

उनके दौरे के खिलाफ पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने काले झंडे दिखाए। इस दौरान पार्टी के कई कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया। वहीं ओड़िशा से आई टीम ने केलो, साराडीह बाँध और कलमा बैराज का निरक्षण करने के बाद छत्तीसगढ़ के जल संसाधन विभाग के अधिकारियों से तकनीकी जानकारी माँगी।

इस प्रकरण में दोनों राज्यों के नेताओं के अपने-अपने तर्क और दावे हैं। ओड़िशा विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष नरसिंह मिश्रा का कहना है,'छत्तीसगढ़ सरकार को जनता की चिन्ता नहीं है। ऐसा यहाँ के बाँध और बैराज को देखकर लग रहा है। यहाँ छह बैराज उद्योगों की राशि से बनाए जा रहे हैं। इससे फायदा उद्योगों को मिलने वाला है।'

वहीं, रायपुर से सांसद रमेश बैस मानते हैं, 'महानदी का 86 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र छत्तीसगढ़ में होने के बावजूद वह केवल 20 प्रतिशत पानी का उपयोग कर पा रहा है। दो परियोजनाओं को छोड़कर शेष सभी परियोजनाएँ लघु स्तर की है, जिसकी जानकारी ओड़िशा को देना जरूरी नहीं।'

राजनांदगाँव के सांसद अभिषेक सिंह ने बातचीत से समाधान निकालने के लिये नदी घाटी संगठन बनाने की माँग की है। दूसरी तरफ इस प्रकरण को लेकर छत्तीसगढ़ कांग्रेस ने प्रदेश में नई जल-नीति बनाने की माँग की है।

नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के वरिष्ठ विधायक टीएस सिंहदेव ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि जल संसाधनों के उपयोग की प्राथमिकताएँ तय कर पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य बन गया है। उन्होंने सवाल किया कि सरकार यह कैसे तय कर रही है कि लोगों को पेयजल, सिंचाई, निस्तार और व्यावसायिक जरुरतों के किस अनुपात और कितनी दर पर कितना पानी दिया जाये?

रमन-पटनायक के बीच जुबानी जंग


दूसरी तरफ, मुयख्मंत्री डॉ. रमन सिंह ने पूरे विवाद को महज राजनीति से प्रेरित बताते हुए इसे खारिज कर दिया है। उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ इस मामले में पीछे हटने वाला नहीं है। उन्होंने कहा, 'अन्तरराज्यीय नदियों के पानी का बँटवारा संवेदनशील मामला है, इसका राजनीतिक फायदे के लिये उपयोग नहीं करना चाहिए। सभी बैराज परियोजनाओं को मिलाने पर भी केवल 3,100 हेक्टेयर में सिंचाई सम्भव है। यह सभी लघु सिंचाई परियोजनाएँ हैं। इसके लिये केन्द्रीय जल आयोग से अनुमति अनिवार्य नहीं है।'

रमन के इस बयान पर ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के तीखी प्रतिक्रया दी है। पटनायक ने सीधे कह दिया, 'ओड़िशा के 4 करोड़ लोगों के लिये महानदी जीवनरेखा की तरह है। अन्तिम साँस तक राज्य के हित के लिये सरकार लड़ाई लड़ेगी। छत्तीसगढ़ के चलते महानदी में जल संकट पैदा हो गया है। हम किसी भी हालत में महानदी को सूखने नहीं देंगे।'

वहीं, छत्तीसगढ़ जल संसाधन विभाग के मंत्री बृजमोहन अग्रवाल ने तो महानदी प्रकरण में ओड़िशा को ही जिम्मेदार ठहरा दिया।

उनका कहना है, 'महानदी में अधिकतर पानी बरसात में आता है। दो वर्षों के दौरान सूखे की स्थिति के बावजूद हीराकुण्ड बाँध में 80 प्रतिशत जलभराव था। सामान्य स्थिति में जलग्रहण क्षमता का तीन गुना पानी हीराकुण्ड बाँध से बहकर समुद्र में चला जाता है, पानी की इस बर्बादी को ओड़िशा पहले रोके।'

ओड़िशा की आपत्ति की वजहें


ओड़िशा से बीजद सांसद दिलीप तिर्की के मुताबिक छत्तीसगढ़ की परियोजना के कारण ओड़िशा में महानदी के जल में एक-तिहाई की कमी आई है। ओड़िशा के 15 जिलों की दो-तिहाई आबादी महानदी के जल पर निर्भर है। उन्होंने आरोप लगाया कि छत्तीसगढ़ सरकार ने महानदी पर कोई भी योजना बनाने से पहले ओड़िशा से सम्पर्क नहीं किया। ऐसा करके छत्तीसगढ़ ने दोनों राज्यों के बीच 1983 में हुई सन्धि का उल्लंघन किया है।

ओड़िशा में सतकोशिया बाघ अभयारण्य के समीप बहती महानदीबीजद सांसद भर्तृहरि महताब के अनुसार, ‘छत्तीसगढ़ सरकार छोटी-छोटी परियोजनाओं के नाम पर महानदी पर सात बैराज बनाएगी और यदि ऐसा हुआ तो ओड़िशा के लिये घातक साबित होगा। उनका दावा है कि गैर-मानसून समय में महानदी से ओड़िशा को मिलने वाला पानी नगण्य हो जाएगा और हीराकुंड परियोजना पर ताला लग जाएगा।’

छत्तीसगढ़ का कहना है


छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जारी बयान में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ अन्तरराज्यीय नदियों के पानी के उपयोग के लिये निर्धारित सभी प्रावधानों का सम्मान करता है। छत्तीसगढ़ महानदी के पानी का सीमित उपयोग कर रहा है। उन्होंने कहा कि ओड़िशा और छत्तीसगढ़ दोनों पड़ोसी राज्य हैं और दोनों के हित साझा हैं। एक बार जब विस्तृत जानकारी दोनों राज्यों के समक्ष आ जाएगी तो सभी प्रकार की भ्रान्तियाँ दूर करने में मदद मिलेगी। छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 प्रतिशत हिस्से का पानी महानदी में जाता है।

छत्तीसगढ़ ने संयुक्त नियंत्रण बोर्ड बनाने पर सहमति दे दी है। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव विवेक ढांड ने इस पर सहमति दे दी है, जबकि ओडिशा के सीएस एपी पाढ़ी ने राज्य सरकार से चर्चा के बाद ही राय देने की बात कही है।

दोनों ही राज्यों की जीवनदायनी


महानदी छत्तीसगढ़ और ओड़िशा की सबसे बड़ी नदी है। इसका उद्गम छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित सिहावा नामक पर्वत श्रेणी से हुआ है। महानदी का प्रवाह दक्षिण से उत्तर की ओर है। बंगाल की खाड़ी में गिरने तक नदी की कुल लम्बाई 855 किलोमीटर है। 55 प्रतिशत छत्तीसगढ़ का पानी महानदी में जाता है, जबकि हीराकुंड बाँध का 86 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र छत्तीसगढ़ में है। हीराकुण्ड बाँध की उपयोगी जल भराव क्षमता 5.4 बिलियन घन मीटर है।

पोलावरम पर भी घमासान


उधर, आन्ध्र-प्रदेश के पश्चिम गोदावरी जिले में निर्माणाधीन पोलावरम जलविद्युत परियोजना को लेकर भी छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओड़िशा में घमासान मचा हुआ है। विशेषज्ञों के मुताबिक विवाद इसलिये बढ़ गया है कि परियोजना से सर्वाधिक लाभ आन्ध्र-प्रदेश और तेलंगाना को होगा। दूसरी तरफ, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा के हिस्सों में तबाही होगी। इसे लेकर ओड़िशा और छत्तीसगढ़ के राज्यों में विरोध की आवाजें तेज हो रही हैं। बताया जाता है कि पोलावरम परियोजना से छत्तीसगढ़ को नाम मात्र का पानी मिलेगा, जबकि बिजली पर उसका कोई हिस्सा नहीं होगा।

हालांकि अब तक इस परियोजना का 80 प्रतिशत कार्यपूर्ण हो गया है और केन्द्र सरकार ने इसे राष्ट्रीय परियोजना घोषित कर दिया है। इसलिये परियोजना को लेकर सभी राज्य सरकारों पर दबाव बढ़ गया है। सबसे बुरी स्थिति छत्तीसगढ़ की बताई जा रही है, जहाँ पोलावरम से होने वाले नुकसान का आकलन तक राज्य सरकार नहीं कर पा रही है।

कार्य के प्रारम्भ में इस परियोजना की लागत 884 करोड़ रुपए थी, जो अब बढ़कर 5 हजार करोड़ रुपए से भी अधिक हो चुकी है। इस परियोजना में 3 लाख वर्ग किलोमीटर में बाँध का जलग्रहण क्षेत्र प्रस्तावित है। इसके चलते छत्तीसगढ़ के लगभग 2 दर्जन गाँव पूरी तरह डूब जाएँगे।