महानदी के पानी का विवाद, रास्ता किधर है

Submitted by RuralWater on Tue, 09/20/2016 - 12:00

महानदीमहानदीछत्तीसगढ़ और उड़ीसा के बीच अब महानदी के पानी को लेकर तलवारें खींचती जा रही है। एक तरफ छत्तीसगढ़ का कहना है कि वह अपने बड़े हिस्से में से अब तक केवल 25 फीसदी पानी का ही इस्तेमाल कर रहा है तो दूसरी तरफ उड़ीसा का कहना है कि छत्तीसगढ़ में महानदी पर 13 छोटी-बड़ी परियोजनाएँ निर्माणाधीन हैं। इससे उनके राज्य को यथोचित मात्रा में पानी नहीं मिल सकेगा।

उधर सरकारी लापरवाही का नायाब नमूना सामने आया है कि इस विवाद में 33 साल पहले उच्च स्तरीय बैठक के दौरान दोनों पक्षों की ओर से संयुक्त नियंत्रण मण्डल के गठन पर सहमति बनी थी, वह इतने साल गुजर जाने के बाद भी आज तक नहीं बनी।

इससे साफ जाहिर होता है कि इतने बड़े विवादों को निपटाने में हमारा सरकारी तंत्र आखिर कहाँ तक लापरवाह है। यह हद है और यह भी कि जब देश में हिंसक आन्दोलन होने लगते हैं तभी हमारा तंत्र क्यों जागता है और उससे पहले कुम्भकरणीय नींद सोया रहता है।

क्या यह सवाल नहीं उठाना चाहिए कि आखिर क्यों अब तक इस विवाद को इस तरह उलझाए रखा गया और नियंत्रण मण्डल का गठन क्यों अब तक नहीं किया गया। यदि बरसों पहले यह मण्डल बन जाता तो शायद आज दोनों तरफ से जिस तरह भ्रम और आशंकाओं का कुहासा है, वह तो शायद साफ हो ही सकता था और यह भी कि इनमें से कुछ मुद्दों पर एकमत राय भी बन सकती थी। खैर, जिन्हें सरकारी तंत्र के कामकाज की जानकारी है, वे बेहतर जानते हैं कि वहाँ कैसे काम होता है।

खामियों को गिनाने से पहले यह जरूरी है कि पहले हम समझें कि महानदी विवाद असल में है क्या और फिर इसे सुलझाने के रास्ते क्या हो सकते हैं। महानदी छत्तीसगढ़ और उड़ीसा की सबसे बड़ी नदी है और अपने उद्गम सिहावा (रायपुर के पास धमतरी जिले के पहाड़ा क्षेत्र) से कुल जमा 855 किमी का रास्ता छत्तीसगढ़ और उसके बाद उड़ीसा से गुजरते हुए यह बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है। इस सफर का आधे से ज्यादा हिस्सा वह छत्तीसगढ़ में ही गुजारती है। कभी इस नदी का खास वैभव भी रहा है।

इसका धार्मिक दृष्टि से तो कई जगह महत्त्व है ही, बड़ी बात यह है कि एक इसका व्यापारिक महत्त्व भी हुआ करता था और यहाँ से कोलकाता तक इसके जलमार्ग से ही सामान लादकर लाया - ले जाया जाता था। जुलाई से फरवरी के महीनों में इसमें खासा पानी रहा करता था और कई वस्तुएँ इसी पानी के रास्ते देश के बाकी हिस्सों तक पहुँचती थी। इसका उल्लेख गिब्सन की यात्रा रिपोर्ट में मिलता है। इसी के बेसिन में हीरे मिलने की बात भी कही जाती रही है।

आज जहाँ हीराकुण्ड बाँध है, वहाँ कभी हीरे मिलते थे। यहाँ से कई बार हीरे जलमार्ग से रोम तक पहुँचाए गए हैं। चीनी यात्री व्हेनसांग के साहित्य में भी यहाँ हीरे मिलने की बात कही गई है। महानदी देश की पुरानी और प्रमुख नदी सभ्यता है। इसका नाम इसकी विशालता के कारण ही पड़ा था।

अब बात विवाद की तो इस नदी का पानी सदियों से या शायद जबसे यह नदी अस्तित्व में आई होगी, तब से ही यह छत्तीसगढ़ से उड़ीसा की ओर बहती रही है। नदियों के लिये किसी भूगोल की कभी कोई सीमारेखा नहीं होती। वह अपनी मस्ती में बहती है, बिना किसी राज्य या राष्ट्र की सीमा पहचाने। बहाना ही उसका ध्येय और कर्म है।

आजादी के बाद जब नेहरू देश का पुनर्निर्माण कर रहे थे तब पहली बार महानदी के पानी को रोकने के लिये उड़ीसा के सम्बलपुर के पास हीरे मिलने वाली जगह यानी हीराकुण्ड में बड़े बाँध की आधारशिला रखी गई।

फिलहाल छत्तीसगढ़ के कुल भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 55 फीसदी हिस्से का पानी महानदी में जाता है। महानदी और उसकी सहायक नदियों के कुल क्षेत्र का 53.90 फिसदी छत्तीसगढ़ में, 45.73 फिसदी उड़ीसा में और 0.35 फिसदी अन्य राज्यों में जाता है। हीराकुण्ड बाँध तक महानदी का जल ग्रहण क्षेत्र 82 हजार 432 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 71 हजार 4 24 वर्ग किलोमीटर छत्तीसगढ़ में है। यह इसके सम्पूर्ण जल ग्रहण क्षेत्र का 86 फिसदी है।

हीराकुण्ड बाँध में महानदी का औसत बहाव 40 हजार 773 एमसीएम है और इसमें छत्तीसगढ़ सबसे ज्यादा करीब 35 हजार 308 एमसीएम पानी का योगदान करता है जबकि वह अभी केवल 25 फीसदी पानी यानी सिर्फ 9000 एमसीएम पानी का ही इस्तेमाल कर रहा है।

दरअसल आज से करीब 33 साल पहले (तब अविभाजित) मध्य प्रदेश और उड़ीसा राज्य के बीच महानदी के जल बँटवारे को लेकर एक समझौता किया गया था। यह समझौता मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुआ था।

समझौते के मुताबिक मध्य प्रदेश और उड़ीसा दोनों ही राज्यों के बीच इस नदी के पानी के बँटवारे को लेकर जो मुद्दे सामने आये थे उनके लिये एक संयुक्त नियंत्रण मंडल का गठन का प्रस्ताव था। संयुक्त नियंत्रण मण्डल की जरूरत इसलिये पड़ी कि वह दोनों राज्यों से जुड़े ऐसे मुद्दों का समाधान करता, जिनमें विवाद की कोई गुंजाईश हो।

यह सर्वे अनुसन्धान और क्रियान्वयन के उद्देश्य से किया जाने वाला महत्त्वपूर्ण समझौता रहा लेकिन खेद की बात यह है कि तब से अब तक 33 साल गुजरने पर भी इस संयुक्त नियंत्रण मण्डल के गठन के प्रस्ताव पर कार्यवाही आगे नहीं बढ़ी। यहाँ तक की अब तक ऐसे किसी मण्डल का गठन तक नहीं किया गया।

अब उड़ीसा की कहना यह है कि राज्य के 15 जिलों की बड़ी आबादी के लिये यह नदी लाइफ लाइन की तरह है। लेकिन छत्तीसगढ़ की कुछ गलत नीतियों की वजह से महानदी सूखने की कगार पर आ चुकी है। खासतौर पर हीराकुण्ड बाँध, जिससे भुवनेश्वर और कटक को पीने का पानी दिया जाता है।

छत्तीसगढ़ सरकार अपने यहाँ सिंचाई और उद्योगों, पीने के पानी आदि प्रयोजन के लिये 13 बाँध परियोजनाएँ बना रही है। इससे उड़ीसा को मिलने वाले पानी में कमी आएगी। उड़ीसा का आरोप है कि छत्तीसगढ़ ने इन परियोजनाओं के लिये केन्द्र सरकार से यथोचित अनुमति भी नहीं ली है। यह 83 के समझौते के खिलाफ है।

इस पर 17 सितम्बर 2016 को केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ एक बैठक ली। इसमें उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने यह मुद्दा उठाते हुए माँग की कि छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन सभी बाँध परियोजनाओं पर तत्काल रोक लगाई जानी चाहिए। वे इससे नाराज हैं और उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि राज्य के हितों की अनदेखी नहीं होने देंगे। इससे यह मुद्दा एक बार फिर गरमा गया है।

इस बैठक में भी संयुक्त नियंत्रण मण्डल के गठन पर बात हुई लेकिन अभी भी बात बनी नहीं है। फिलहाल केन्द्रीय मंत्री उमा भारती ने सुझाव दिया है कि दोनों राज्य एक हफ्ते परियोजनाओं पर काम रोककर सकारात्मक माहौल में चर्चा करें। लेकिन इस पर भी अभी आम राय नहीं हो सकी है। वे कहती हैं कि जल राज्य का मुद्दा है, इसलिये हम सिर्फ सुझाव दे सकते हैं।

उधर छत्तीसगढ़ का कहना है कि ये सभी छोटी जल परियोजनाएँ हैं और इनका प्रभाव उड़ीसा में नदी के पानी पर नहीं पड़ेगा। छत्तीसगढ़ के मुख्य सचिव विवेक ढांड कहते हैं कि एक बार सारी जानकारियाँ विस्तार से सामने आ जाएँगी तो कई तरह की भ्रान्तियाँ भी दूर हो सकेगी फिलहाल भ्रम की स्थिति है। ज्यादातर जानकारी बैठक के दौरान ही उपलब्ध करा दी गई है। बाकी बची जानकारी भी 15 दिनों में उपलब्ध करा दी जाएगी।


दरअसल आज से करीब 33 साल पहले (तब अविभाजित) मध्य प्रदेश और उड़ीसा राज्य के बीच महानदी के जल बँटवारे को लेकर एक समझौता किया गया था। यह समझौता मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह और उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक के बीच 28 अप्रैल 1983 को हुआ था। समझौते के मुताबिक मध्य प्रदेश और उड़ीसा दोनों ही राज्यों के बीच इस नदी के पानी के बँटवारे को लेकर जो मुद्दे सामने आये थे उनके लिये एक संयुक्त नियंत्रण मंडल का गठन का प्रस्ताव था। संयुक्त नियंत्रण मण्डल की जरूरत इसलिये पड़ी कि वह दोनों राज्यों से जुड़े ऐसे मुद्दों का समाधान करता, जिनमें विवाद की कोई गुंजाईश हो। छत्तीसगढ़ अन्तरराज्जीय नदियों के पानी के उपयोग के लिये निर्धारित प्रावधानों के मुताबिक महानदी के पानी का सीमित उपयोग ही कर रहा है। हालांकि अभी भी छत्तीसगढ़ महानदी के केवल 25 फीसदी पानी का ही इस्तेमाल कर रहा है। महानदी के पानी में दोनों के हित साझा हैं और दोनों ही राज्यों को एक अच्छे पड़ोसी का धर्म निभाना चाहिए। हीराकुण्ड बाँध को बारिश के दिनों में तीन बार भरकर खाली किया जा सकता है, इसलिये चिन्ता की कोई बात नहीं है।

छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त सचिव डॉ. अमरजीत सिंह बताते हैं कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है। बड़े मुद्दों पर भी आपस में बैठ-मिलकर समस्याएँ हल की जा सकती हैं। जरूरी है कि एक संयुक्त नियंत्रण मण्डल बनाया जाये और उस पर काम किया जाये। यदि इस नियंत्रण मण्डल के जरिए दोनों राज्य कुछ आगे बढ़ सके तो महानदी के अधिकतम पानी का इस्तेमाल कर सकते हैं। फिलहाल तो दोनों राज्य बँटवारे के बाद भी करीब 98 फीसदी पानी समुद्र में ही जा रहा है। इसके लिये प्रतिद्वन्द्विता छोड़कर मिल-बैठकर बात करने की जरूरत है।

केन्द्रीय जल आयोग भी संयुक्त नियंत्रण मण्डल के पक्ष में हैं। आयोग की राय में दोनों प्रदेशों के अनुभवी लोगों और विषय विशेषज्ञ इंजीनियरों को शामिल कर महानदी के विवाद को सुलझाने की कोशिश की जाएगी। इसमें दोनों ओर से लोग अपनी बात रखेंगे और उसका अध्ययन किया जाएगा ताकि सही-सही जानकारी दोनों पक्षों को मिल सके।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह ने बताया कि महानदी विवाद को लेकर उड़ीसा की आशंकाएँ कुछ भ्रम की स्थितियों की वजह से बनी है जबकि यथार्थ में ऐसा नहीं है।

महानदी पर निर्माणाधीन जल परियोजनाएँ आज से नहीं बीते 10 सालों से काम कर रही है। यह सभी परियोजनाएँ केन्द्र सरकार के निर्धारित और तय मापदण्डों के अनुकूल ही है। इसके लिये छत्तीसगढ़ राज्य को किसी तरह से अलग कोई अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। इन परियोजनाओं के बावजूद महानदी में इतना पानी बचेगा कि हीराकुण्ड बाँध को पाँच से सात बार भरा जा सकेगा।

इन परियोजनाओं के पूरा होने से भी उड़ीसा का हित प्रभावित नहीं होगा। उड़ीसा को भी छत्तीसगढ़ में बन रहे बाँधों के 274 एमसीएम पानी की चिन्ता करने के बजाय अपने राज्य में बेकार हो रहे 5730 एमसीएम के उपयोग पर ध्यान देना चाहिए। महानदी के पानी को लेकर छत्तीसगढ़ 1983 के समझौते का सम्मान करता है और इस पर किसी तरह का विवाद अनावश्यक है।

केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती का कहना है कि केन्द्रीय जल आयोग के पास छत्तीसगढ़ की निर्माणाधीन परियोजनाओं का कोई भी मास्टर प्लान विचाराधीन नहीं है। छत्तीसगढ़ में निर्माणाधीन परियोजनाओं का निर्माण कार्य बीते 10 सालों से चल रहा है इसमें उड़ीसा को भी 3 महीने पहले जून तक किसी तरह की कोई आपत्ति नहीं थी इस पर विचार करने के लिये मंत्रालय को भी समय चाहिए फिलहाल उन्होंने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आग्रह किया है कि वह देश हित के साथ ही अपने पड़ोसी राज्य की आवश्यकता का भी ध्यान रखें।

उधर दोनों ही राज्यों में इसे लेकर राजनीति और विरोध होना शुरू हो गया है। छत्तीसगढ़ कांग्रेस का तो यहाँ तक आरोप है कि दोनों राज्य अपने यहाँ के पॉवर प्लांट मालिकों के हित के लिये काम कर रहे हैं, जबकि आगे से बात किसानों की हो रही है।कुल जमा नदी के पानी को लेकर एक और नदी अब विवादों में है।

अभी कावेरी विवाद का मुद्दा थमा भी नहीं है कि अब महानदी भी विवादों के घेरे में आती जा रही है। छत्तीसगढ़ को बने 16 साल हो गए पर अब तक उसकी अपनी कोई जलनीति भी नहीं है। महानदी विवाद की बात में जानकारों की मानें तो इसका बड़ा कारण सिर्फ राजनैतिक यश पाने का है। विवाद को राजनैतिक रंग नहीं देते हुए यदि बैठकर दोनों पक्ष कुछ बात करें तो शायद स्थिति सुधर सकती है लेकिन अभी तो ऐसी कोई सम्भावनाएँ भी नजर नहीं आ रही है। पर रास्ता उधर ही है।