मध्यप्रदेश के मिनी मुम्बई कहे जाने वाले इंदौर शहर के बीचोबीच से बहने वाली और आगे जाकर उज्जैन की क्षिप्रा नदी में मिलने वाली कान्ह नदी एक बार फिर बहुत बुरी तरह से प्रदूषित हो चुकी है। नदी की जगह अब इसमें सिर्फ़ लाल और काले पानी के डोबरे नज़र आते हैं। बड़ी बात यह है कि कुछ महीनों पहले तक इसे अहमदाबाद की साबरमती की तर्ज़ पर विकसित करने के ख़ूब सरकारी दावे किए गए थे। सिंहस्थ में भी इसके प्रदूषण से उज्जैन में क्षिप्रा नदी को बचाने के लिए 75 करोड़ रूपए खर्च किए गए थे।
इंदौर से थोड़ा आगे निकलते ही सांवेर में कान्ह नदी ज़हर की नदी नज़र आने लगती है। यहाँ नदी के पानी का रंग गाढ़ा लाल और काला पड़ चुका है। इसे देखकर कोई भी इसके पानी के ज़हरीला होने की बात सहजता से कह सकता है। पहले से ही प्रदूषित नदी में सांवेर के आसपास की कुछ फेक्टरियों से रसायनयुक्त पानी भी नदी में बहाया जाता है। इस कारण से यहाँ प्रदूषण की तादात काफ़ी बढ़ जाती है। स्थानीय ग्रामीण बताते हैं कि इस साल मार्च-अप्रैल में लॉक डाउन के दौरान कान्ह नदी का पानी काफ़ी हद तक साफ़-सुथरा हो गया था। औद्योगिक और परिवहन गतिविधियाँ महीनों बंद रहने से कान्ह नदी का स्वरूप निर्मल हो गया था। बरसों से जो नदी बारहों मास बेहद प्रदूषित रहती थी, वह उन दिनों स्वयमेव ही साफ़ हो गई थी। तब नदी का तल और मछलियों को भी आसानी से देखा जा सकता था। लेकिन लॉक डाउन के बाद औद्योगिक गतिविधियाँ शुरू होते ही फिर वही हालात हो गए हैं और अब तो बेहद चिंताजनक स्थिति हो चुकी है ।
सांवेर में कान्ह नदी के पुल से गुजरते जयदीप कानूनगो और प्रवीणराव जाधव ने बताया कि इस पानी से जिन खेतों में सिंचाई की गई, उनकी मिट्टी लाल पड़ गई है और फसल भी ख़राब होने लगी है। अब इसके पानी में मछलियाँ नज़र नहीं आती। मछलियाँ तेज़ी से मरने लगी है। गत वर्ष भी इन्हीं दिनों में कान्ह नदी का जहरीला पानी कटकिया नदी में पहुँचने से हजारों मछलियाँ मर गई थी। नदी को स्वच्छ बनाने के जो थोड़े बहुत प्रयास शासन-प्रशासन की ओर से किए भी जा रहे हैं, वे ज्यादातर इंदौर नगर की सीमा तक ही दिखाई देते हैं। इंदौर नगर निगम सीमा से बाहर होते ही कबीरखेड़ी से लेकर उज्जैन के त्रिवेणी संगम तक कान्ह नदी की कैसी दुर्दशा है यह तौर पर देखी जा सकती है।
इन दिनों सांवेर में आकर नदी में सबसे ज्यादा जहर घुल रहा है। सांवेर से पूर्व की ओर बायपास पुल के पास नदी का पानी न तो लाल है न काला है लेकिन सांवेर में और उसके बाद नदी का पानी बेहद गहरा लाल-काला नजर आ रहा है। इससे साफ़ है कि सांवेर के आसपास ही नदी में जहर घोला जा रहा है। लोग बताते हैं कि बायपास पर कान्ह नदी के पुल के समीप एक बड़ा टिन शेड बना हुआ है। जानकारी के मुताबिक आधी रात के बाद अँधेरे का फायदा उठाकर बाहर से संदिग्ध टेंकर आते हैं और टिन शेड में पार्क कर दिए जाते हैं। फिर लोगों की नजर बचाते हुए रात में ही टेंकर को पाईप के सहारे नदी में खाली कर टेंकर रवाना हो जाते हैं। लोगों का तो ये भी कहना है कि खतरनाक रासायनिक द्रव लेकर आने वाले ये टेंकर अन्य जिलों तक से आ रहे हैं। इस टिन शेड पर शक की सुई इसलिए भी अटक रही है कि इसके आगे से ही नदी का पानी प्रदूषित या लाल काला होकर आ रहा है ।
बीते साल सांवेर में कटकिया पुल के पास हजारों मछलियों के मरने की घटना के बाद इस क्षेत्र के किसान और आम लोग चिंतित भी नज़र आए थे और उन्होंने प्रशासन को भी इसकी शिकायत की थी। सांवेर क्षेत्र के सैकड़ों किसान इसके दूषित पानी का उपयोग अपनी फसल में सिंचाई के लिए करते आए हैं। इंदौर के सीमावर्ती गाँव जाख्या भांग्या से लेकर त्रिवेणी उज्जैन तक के दर्जनों गाँवों के किसान कान्ह के पानी का उपयोग करते रहे हैं लेकिन बीते कुछ सालों से पानी में इंदौर के कारखानों के अवशिष्टों का इतना खतरनाक रासायनिक प्रदूषण फ़ैल रहा है कि इस पानी की सिंचाई से फसलें नष्ट हो जाती हैं। भूमिगत जल में भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। यहाँ तक कि कान्ह के आसपास के दस किमी के दायरे के नलकूपों का पानी भी दूषित हो चुका है।
यह उस नदी की हालत है जिसे लेकर कुछ महीनों पहले बड़े–बड़े दावे किए गए थे कि इंदौर शहर के बीचोबीच से बहने वाली खान नदी को अहमदाबाद में साबरमती की तर्ज पर साफ़–सुथरा बनाकर इसके किनारों को सुंदर और विकसित किया जाएगा, लेकिन अब तक करीब 300 करोड़ रूपये से भी ज़्यादा खर्च करने के बाद भी इसे गंदले नाले से नदी भी नहीं बनाया जा सका है।
मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण मंडल की रिपोर्ट में यह बात भी सामने आई है कि सहायक नदी होने से कान्ह के प्रदूषित होने का असर उज्जैन में बहने वाली क्षिप्रा नदी की तासीर पर भी पड़ रहा है। इस नदी के साथ बह कर आने वाली गंदगी की वजह से उज्जैन में स्नान के लिए प्रसिद्ध रामघाट, गऊ घाट, त्रिवेणी और सिद्धघाट में नदी का पानी बहुत गंदा हो गया है। मंडल की वाटर क्वालिटी इंडेक्स के मुताबिक इसके दूषित पानी के असर से उज्जैन के क्षिप्रा नदी रामघाट पर बायोकेमिक ऑक्सीजन डिमांड बीओडी 10, त्रिवेणीघाट पर 6 तथा सिद्धघाट पर 12 मिग्रा प्रति लीटर हो चुकी है। चार साल पहले सिंहस्थ के दौरान इन घाटों पर साफ़–स्वच्छ पानी में करोड़ों श्रद्धालुओं ने स्नान किया था, लेकिन अब उन्हीं घाटों पर दूषित पानी बह रहा है। यह नदी उज्जैन से पहले क्षिप्रा नदी में मिलती है। अप्रैल 2016 में क्षिप्रा के किनारे सिंहस्थ के दौरान प्रशासन ने 75 करोड़ लागत से कान्ह नदी को उज्जैन के पहले से लेकर उज्जैन के बाहर तक नदी के लिए वैकल्पिक रास्ता पाइपलाइन के जरिये बनाया था। क्षिप्रा की सहायक नदी होने के बाद भी यह इतनी बुरी तरह प्रदूषित हो चुकी है कि इसका पानी जहरीला हो गया है। इसके पानी के उपयोग पर भी पूरी तरह से पाबंदी है। कई गंदे नालों का पानी और कुछ उद्योगों का हानिकारक अपशिष्ट रसायन मिलने से इस नदी की यह हालत हुई है।
दरअसल इस नदी के गंदले नाले में तब्दील होने का सिलसिला इंदौर से ही शुरू हो जाता है। कभी यह नदी इंदौर के प्राकृतिक सौन्दर्य वैभव के लिए पहचानी जाती थी। यहाँ तक कि इस रियासत के राजा–महाराजाओं का अंतिम संस्कार भी इसी नदी के तट पर किया जाता रहा। यहाँ आज भी इसके किनारे पर इंदौर रियासत के राजाओं की सुंदर स्थापत्य में समाधि की छतरियां देखी जा सकती है। ये छतरियां आज भी इस नदी के वैभव की कहानी सुनाती खड़ी है पर बीते कुछ सालों में इस नदी के अस्तित्व पर ही गहरा संकट खड़ा हो गया है। पूरे शहर की गंदगी से लबरेज गंदे नालों का रूख इस नदी की ओर कर दिया गया। लोगों ने इसे गंदगी और पुराने मकानों के मलबों से पाटना शुरू कर दिया। धीरे–धीरे यह नदी कब गंदले नाले में तब्दील हो गई, किसी को पता ही नहीं चला।
इसके लगातार गंदी होते जाने और इससे आसपास के लोगों की सेहत को होने वाले नुकसान को लेकर इंदौर शहर के पर्यावरणविद किशोर कोडवानी ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में एक जनहित याचिका दायर की थी। कुछ महीनों पहले ट्रिब्यूनल ने इसे साफ़ रखने और इसके आसपास हुए अतिक्रमण हटाने के निर्देश इंदौर नगर निगम को दिए थे। ट्रिब्यूनल में सुनवाई के दौरान माना कि समय–समय पर ट्रिब्यूनल के निर्देशों का पालन नहीं हुआ है। बाद में ट्रिब्यूनल के सख्त निर्देश पर नगर निगम ने भी अमल शुरू किया। अतिक्रमण हटाया गया और अन्य कामों के साथ कबीटखेडी में 122 एमएलडी क्षमता वाला ट्रीटमेंट प्लांट भी शुरू किया गया। भानगढ़ पुल के पास हर दिन 180 एमएलडी पानी को उपचारित किया जा रहा है। औद्योगिक क्षेत्र के अपशिष्ट से दूषित पानी की सफाई के लिए एफ़्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट भी अब बनकर तैयार है। हालाँकि इसे सिंहस्थ से पहले शुरू किया जाना था लेकिन तब अधूरा होने से इसे अब शुरू किया जा रहा है। लेकिन बड़ी बात यह है कि अब तक प्रदूषण फ़ैलाने वाली कम्पनियों के खिलाफ सरकारी स्तर पर कोई कड़ी कार्यवाही नहीं हो सकी है।
खान नदी इंदौर के पास रालामंडल की पहाड़ियों से निकलती है और 11 किमी का सफ़र तय करते हुए इंदौर के कृष्णपुरा पुल के पास शहर के बीचोबीच पंहुचती है। यहाँ एक और नदी सरस्वती से इसका मिलन होता है। सरस्वती नदी भी इंदौर से करीब 35 किमी दूर माचल गाँव के जंगलों से निकलती हुई यहाँ पंहुचती है। इन दोनोंनदियों के केचमेंट क्षेत्र में ही बिलावली, पिपल्याहाना, पीपल्या
बड़ा सवाल यह है कि आख़िरकार कान्ह नदी के अच्छे दिन कब लौटेंगे। कब वह निर्मल और प्रवाहमान हो सकेगी। महज कुछ कारखानों के कारण इलाके का पूरा नदी तन्त्र गडबडा गया है। क्या इन पर कभी कोई कार्रवाई हो सकेगी।