बुंदेलखंड इलाके में काफी कम बारिश होती है और इसकी अवधि भी बस दो महीने की है। ऊपर से इसकी मिट्टी मोटी होती है तथा ग्रेनाइट आधार होने के कारण भूजल भंडारण स्थल ज्यादा बड़ा नहीं होता है। मोटी मिट्टी होने के कारण इसमें ज्यादा समय तक पानी नहीं ठहर पाता है। इसीलिए यह जरूरी है कि इसे निरंतर रूप से पानी मिलता रहे, जिससे ज्यादा से ज्यादा जल संग्रहण किया जा सके।
चंदेला के राजाओं ने यहां जल संग्रहण करने के लिए तालाब बनवाए। इनका सिंचाई के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं किया जाता था। दरअसल इस मकसद के लिए कुओं का उपयोग होता था।
यहां पानी को एक बड़े जलग्रहण में एकत्रित किया जाता है, जिसके लिए एक चुनिंदा क्षेत्र में बांध खड़ा किया जाता है, जो आमतौर पर दो जुड़े पहाड़ों के बीच होता है। ये तालाब आमतौर पर पूरे क्षेत्र में ऊपर से नीचे के क्रम में फैले होते हैं, जिससे एक तालाब का पानी दूसरे तालाब में पहुंचता रहता है- या तो सतह से होता हुआ पहुंचता है या फिर भूजल प्रवाह से।
इस प्रक्रिया में प्रत्येक जलग्रहण के चारों तरफ कुओं का पुनर्भरण होता रहता है और फिर इन कुओं से सिंचाई की जाती है। इससे तालाबों के ज्यादा पानी का उपयोग होता है और पानी सूखे की अवधि में भी उपलब्ध होता रहता है। इसमें जलधाराओं, प्राकृतिक नालों के पानी का भी उपयोग किया जाता है।
बंधा के दोनों कोनों पर आमतौर पर पेड़ लगाए जाते हैं। कुछेक तालाबों में मछली पालन और खेती का काम भी होता है।
गांव के लोग अपने पारंपरिक जल ढांचे को भूल गए और वे यहां की मिट्टी और पत्थर ले जाते हैं और अपने मक्सद के लिए इनका उपयोग करते हैं। खेती में पानी के अभाव के कारण भी ये इन बंधाओं को तोड़ते चले गए, जिससे उनके खेत में पानी पहुंचता रहे। उन्होंने इस जलग्रहण के और भी ज्यादा क्षेत्र को इसलिए सूखने दिया, जिससे इन्हें खेती के लिए अतिरिक्त जमीन प्राप्त हो सके।
खजुराहों की जल नेटवर्क व्यवस्था काफी व्यापक है। कुरार घाटी के इर्द-गिर्द अनेकों छोटे-छोटे तालाब बने हुए हैं। यहां सिंचाई के लिए कुओं तथा नहरों का उपयोग किया जाता था। चंदेला और बुंदेखण्ड के राजाओं द्वारा झांसी क्षेत्र में तालाब बनवाए गए थे, शायद खजुराहों में भी इन्हीं मिसालों का अनुसरण किया गया है।
यहां जलग्रहण क्षेत्र बनाने के लिए कटाव वाले स्थान पर यानी कुरार जाने वाले प्राकृतिक जलधारा के साथ-साथ एक बंधा बनवाया गया। इस क्षेत्र में अनेकों जल धाराओं और नहरों के परिणामस्वरूप यहां अनगिनत जलधाराएं बनीं। यही खजुराहो की जल नेटवर्क खूबी है।
यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां बड़े तटबंध बनाना संभव नहीं है। इसीलिए यहां जलग्रहण क्षेत्र के माध्यम से भूजल पुनर्भरण की एक वैकल्पिक पद्धति अपनाई गई। यहां ज्यादा समय तक पानी रोककर रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि खेती की ऊपरी मिट्टी की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं है, जो पानी को रोक सके। अत: ऐसी व्यवस्था में कम बारिश में भी ज्यादा पानी का संग्रहण होता है।
स्रोतःसुरजीत जलधारा स्कूल ऑफ प्लानिंग एण्ड आर्किटेक्चर, विकास मीनार के सामने, रिंग रोड,नई दिल्ली- 110002 फोन : 011 -3318353, 3319380 फैक्स : 011- 3318353 ई-मेल: root@spa.ernet.in
चंदेला के राजाओं ने यहां जल संग्रहण करने के लिए तालाब बनवाए। इनका सिंचाई के लिए कभी भी इस्तेमाल नहीं किया जाता था। दरअसल इस मकसद के लिए कुओं का उपयोग होता था।
यहां पानी को एक बड़े जलग्रहण में एकत्रित किया जाता है, जिसके लिए एक चुनिंदा क्षेत्र में बांध खड़ा किया जाता है, जो आमतौर पर दो जुड़े पहाड़ों के बीच होता है। ये तालाब आमतौर पर पूरे क्षेत्र में ऊपर से नीचे के क्रम में फैले होते हैं, जिससे एक तालाब का पानी दूसरे तालाब में पहुंचता रहता है- या तो सतह से होता हुआ पहुंचता है या फिर भूजल प्रवाह से।
इस प्रक्रिया में प्रत्येक जलग्रहण के चारों तरफ कुओं का पुनर्भरण होता रहता है और फिर इन कुओं से सिंचाई की जाती है। इससे तालाबों के ज्यादा पानी का उपयोग होता है और पानी सूखे की अवधि में भी उपलब्ध होता रहता है। इसमें जलधाराओं, प्राकृतिक नालों के पानी का भी उपयोग किया जाता है।
चंदेला बंधा का निर्माण
आमतौर पर बंधा को पत्थरों से बनाया जाता है और इसके बीचोंबीच के छिद्र में गीली मिट्टी भरी जाती है। इसका कोण काफी ढालू होता है। जल ग्रहण के हिसाब से बंधाओं को बनाया जाता हैं ।बंधा के दोनों कोनों पर आमतौर पर पेड़ लगाए जाते हैं। कुछेक तालाबों में मछली पालन और खेती का काम भी होता है।
वर्तमान चुनौती
अंग्रेजी हुकूमत के दौरान छोटे और बड़े तालाबों के बंधाओं को नहर बनाकर आगे खोला जाता था जिससे कई एकड़ खेती की जमीन में सिंचाई होती थी। और इस तरह अंग्रेजों को इस अतिरिक्त जमीन का लगान प्राप्त होता था। इच्छुक किसानों को तालाब के आसपास की जमीन लीज पर दी जाती थी। पिछले सौ साल से भी ज्यादा समय में ऐसे स्थल पर लगातार खेती करने से यहां गाद भरने की समस्या उत्पन्न हो गई।गांव के लोग अपने पारंपरिक जल ढांचे को भूल गए और वे यहां की मिट्टी और पत्थर ले जाते हैं और अपने मक्सद के लिए इनका उपयोग करते हैं। खेती में पानी के अभाव के कारण भी ये इन बंधाओं को तोड़ते चले गए, जिससे उनके खेत में पानी पहुंचता रहे। उन्होंने इस जलग्रहण के और भी ज्यादा क्षेत्र को इसलिए सूखने दिया, जिससे इन्हें खेती के लिए अतिरिक्त जमीन प्राप्त हो सके।
खजुराहों की जल नेटवर्क व्यवस्था काफी व्यापक है। कुरार घाटी के इर्द-गिर्द अनेकों छोटे-छोटे तालाब बने हुए हैं। यहां सिंचाई के लिए कुओं तथा नहरों का उपयोग किया जाता था। चंदेला और बुंदेखण्ड के राजाओं द्वारा झांसी क्षेत्र में तालाब बनवाए गए थे, शायद खजुराहों में भी इन्हीं मिसालों का अनुसरण किया गया है।
यहां जलग्रहण क्षेत्र बनाने के लिए कटाव वाले स्थान पर यानी कुरार जाने वाले प्राकृतिक जलधारा के साथ-साथ एक बंधा बनवाया गया। इस क्षेत्र में अनेकों जल धाराओं और नहरों के परिणामस्वरूप यहां अनगिनत जलधाराएं बनीं। यही खजुराहो की जल नेटवर्क खूबी है।
यहां की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि यहां बड़े तटबंध बनाना संभव नहीं है। इसीलिए यहां जलग्रहण क्षेत्र के माध्यम से भूजल पुनर्भरण की एक वैकल्पिक पद्धति अपनाई गई। यहां ज्यादा समय तक पानी रोककर रखना बेहद जरूरी है, क्योंकि खेती की ऊपरी मिट्टी की गुणवत्ता इतनी अच्छी नहीं है, जो पानी को रोक सके। अत: ऐसी व्यवस्था में कम बारिश में भी ज्यादा पानी का संग्रहण होता है।
स्रोतःसुरजीत जलधारा स्कूल ऑफ प्लानिंग एण्ड आर्किटेक्चर, विकास मीनार के सामने, रिंग रोड,नई दिल्ली- 110002 फोन : 011 -3318353, 3319380 फैक्स : 011- 3318353 ई-मेल: root@spa.ernet.in