यदि सब कुछ ठीक-ठाक रहा तो अब देहरादून में भी कूड़े से ‘ईको एंजाइम’ बनाया जायेगा। जिसके लिये सरकारी स्तर पर तैयारी की जा चुकी है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत इस कार्यक्रम में खुद रूची ले रहे हैं। उन्होंने ट्रचिंग ग्राउण्ड जाकर इसकी रूप-रेखा देखी है और साथ ही कार्यदायी संस्था व कर्मचारियों को निर्देश दिये कि ईको एंजाइम बनाने में कोई कोताही नहीं होनी चाहिए। कहा कि कूड़े-कचरे में तमाम ऐसे कण होते हैं जिस कारण तापमान में 20 डिग्री की बढ़ोत्तरी होती है। ईको एंजाइम के जरिये इस पर अंकुश लग सकता है।
ज्ञात हो दुनियाँ के 187 देशों में कचरे से ईको एंजाइम तैयार होता है। अपने देश में ऐसी तकनीक पहली बार ईजाद हो रही है। देहरादून में ईको एंजाइम तैयार करने की जिम्मेदारी श्री रूरल डेवलपमेंट को दी गयी है। जो ट्रचिंग ग्राउण्ड के कचरे से ईको एंजाइम तैयार करेगी। यही नहीं वे देहरादून के स्कूलों और सब्जी मंडी से बात करेंगे जहाँ कचरे से एक तरफ खाद तैयार की जायेगी तो दूसरी तरफ ईको एंजाइम भी तैयार होगी। ऐसे करने से जहाँ एक तरफ शहर स्वच्छता की मिशाल बनेगा वहीं कचरे के निस्तारण में सहूलियत होगी।
ईको एंजाइम बनाने के लिये श्री रूरल डेवलपमेंट बाकायदा शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम आयोजित करेंगे ताकि छोटे-छोटे स्थानों पर यह तैयार हो सके और वातावरण में प्रदूषण कम हो सके। आर्ट ऑफ लिविंग के टीचर अनिल कपूर बताते हैं कि तीन हजार लीटर पानी में पाँच लीटर ईको एंजाइम का घोल मिलाया जाता है। कूड़े पर इसके छिड़काव करने से बदबू गायब हो जाती है। साथ कांच, लोहा, पॉलीथिन को छोड़कर शेष कूड़ा अलग हो जाता है। इस बचे हुए कूड़े को वे खाद के लिये तैयार करेंगे। इस तरह कूड़े के निस्तारण में अधिक से अधिक उपयोग की प्रक्रिया अख्तियार की जायेगी, ताकि कूड़ा भी साफ हो और कूड़े का इस्तेमाल भी हो सके। ऐसा करने से लोगों की सोच में भी स्वच्छता के प्रति बदलाव आयेंगे।
उल्लेखनीय हो कि जब से देहरादून में राजधानी का कामकाज आरम्भ हुआ तब से इस शहर में जनसंख्या से लेकर मोटर-वाहन, ट्रांसपोर्ट, व्यापार हर ओर से बढ़ोत्तरी हुई है। अकस्मात हुई इस बढ़ोत्तरी के कारण शहर का वातावरण भी बड़ी तेजी से प्रदूषित हो रहा है। इसी के साथ-साथ कूड़े कचरे की समस्या इस शहर में आम बात हो गयी है। देहरादून शहर में प्रतिदिन लगभग 10 हजार कुन्तल कूड़ा रोज उठान होता है और लगभग 30 से 50 एमएलडी सीवर शहर में रोज गिरता है। यह सीवर कोई रिहायसी क्षेत्रों से ही नहीं बल्कि अधिकांश सीवर व्यावसायिक प्रतिष्ठानों से गिरता है। इधर ग्रीन फॉर देहरादून से जुड़े कार्यकर्ता एवं मैड संस्था के अभिजय नेगी का कहना है कि कूड़े के निस्तारण को लेकर विधिवत अभियान चलाने की आवश्यकता है।
कुछ़ कूड़ा हमलोग ऐसे तैयार करते हैं कि जिसका निस्तारण सिर्फ कूड़ा फैलाने वाला ही कर सकता है। पॉलीथिन का उदाहरण ही काफी है यदि सभीलोग पॉलीथिन का इस्तेमाल करना बन्द कर देंगे तो कूड़ा स्वतः ही आधा हो जायेगा। कहा कि पर्यावरण प्रदूषण के लिये सबसे ज्यादा खतरनाक पॉलीथिन यानि प्लास्टिक ही है। हालाँकि कूड़े के निस्तारण के लिये देहरादून नगर निगम पहले से ही मुस्तैद रहा है। चूँकि यदि कूड़े से ईको एंजाइम बनना आरम्भ होगा तो आने वाले समय में यह उत्पाद कुछ लोगों के लिये रोजगार का साधन बनेगा। ऐसा इस कार्य से जुड़े जानकारों का अडिग विश्वास है।
इधर शहरी विकास विभाग राज्य के शहरों को स्वच्छ रखने के लिये एक कदम आगे बढ़ा है। देहरादून और हरिद्वार जिले के शहरों में नगर निकायों के कर्मचारियों को घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों से कूड़ा नहीं देने वालों पर जुर्माना लगाया जायेगा। अपर निदेशक स्थानीय निकाय हरक सिंह रावत ने कहा कि नई व्यवस्था के तहत घरों और व्यापारिक प्रतिष्ठानों से जैविक और अजैविक कूड़ा अलग-अलग देने पर अलग-अलग यूजर चार्जेज लिया जायेगा। साथ ही घरों से बाहर आकर सड़क पर कूड़ा देने वालों और घरों के भीतर से कूड़ा उठवाने वालों के लिये भी यूजर चार्जेज की दर अलग-अलग होगी। वर्तमान में शहर में चार सौ किलोमीटर से ज्यादा सीवर लाइन पड़ी है। एडीबी विंग एक व जल निगम पाँच सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बना रहा है।
जिसमें 68 एमएलडी कारगी व 20 एमएलडी मोथरोवाला का प्लांट शुरू हो चुका है और बाकी का निर्माण अंतिम चरण में है। आज नहीं तो कल इनकी जिम्मेदारी भी जल संस्थान को मिलनी है। लेकिन, अब तक संस्थान ने इसके लिये कोई तैयारी नहीं की। वर्तमान स्थिति पर ध्यान दें तो शहर की सीवरेज व्यवस्था मात्र एक कनिष्ठ अभियंता व एक संगणक के भरोसे है। कर्मचारियों की संख्या भी महज 28 तक सिमटी हुई है। जबकि, पूर्व से पड़ी सीवर लाइनें बूढ़ी हो चुकी है।
यह बिडम्बना ही है कि स्वच्छता सर्वे 2017 में देहरादून की स्थिती बेहद खराब रही है। देशभर के 433 शहरों में हुए सर्वे में देहरादून 316वें पायदान पर रहा है। अब नगर निगम देहरादून का पूरा फोकस शहर की स्वच्छता पर आ गया है। रात में कूड़ा उठान से लेकर साफ-सफाई की व्यवस्था के लिये प्लान तैयार किया जा रहा है। पहली सितम्बर से दुकानों के बाहर डस्टबिन की अनिवार्यता और एक अक्टूबर से व्यावसायिक प्रतिष्ठानों और सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों को खुद ही अपना जैविक कूड़ा निस्तारण करने के अलावा एक अक्टूबर से रात में झाड़ू लगाने की कार्य योजना तैयार की गयी है।
कैसे बनता है ईको एंजाइम
तीन सौ मिली ग्राम ग्रीन वेस्ट (फल व सब्जी के छिलके) में 100 ग्राम गुड़ व एक लीटर पानी मिलाकर उसे एक माह के लिये बोतल में रखें और इस दौरान बोतल का ढक्कन थोड़ा ढीला रखें। इस तरह तीन माह में ईको एंजाइम तैयार हो जायेगा। इसे खाद के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
कैसे करेंगे इस्तेमाल
ईको एंजाइम का प्रयोग घर में टॉयलेट, किचन, फर्श की सफाई में कर सकते हैं। इससे मच्छर, मक्खी भी नहीं आयेंगे। इतना ही नहीं सीवर या टैंक चोक होने पर ईको एंजाइम को प्रयोग किया जा सकता है। ऐसा माना जा रहा है कि जितने कूड़े से ईको एंजाइम तैयार होगा उस कूड़े की वजह से जो असर ओजोन परत पर पड़ने वाली थी वह कम हो जायेगी।