कभी उमरिया जिले के आकाशकोट का पहाड़ी इलाका अपने उजाड़ और बूँद-बूँद पानी के लिए मोहताज़ होने के लिए पहचाना जाता रहा है। लेकिन इस साल यहाँ सरकार और समाज ने मिलकर एक ऐसी इबारत रची है, जिसने इस पहाड़ी इलाके की रंगत ही बदल दी है। बारिश ने यहाँ हरियाली की चादर ओढ़ा दी है तो पहाड़ियों की गोद में तालाबों में पानी ठाठे मार रहा है। जी हाँ, अब यह इलाका भी पानीदार बन चुका है। यहाँ के 25 गाँवों के हजारों लोगों की मेहनत सार्थक हो गई है। गर्मियों में जहाँ उनका पसीना गिरा था, आज वहीं पानी के सोते फूट पड़े हैं।
उमरिया जिले में ऐसे 50 और भी तालाबों को चिन्हित किया गया है, जहाँ इस साल काम करते हुए उन्हें अगली बारिश से पहले तैयार किया जाएगा। पुजहा तालाब की पाल पर एक समरोह में समाज और सरकारी अफसरों ने श्रमदान करने वाले ग्रामीणों का सम्मान किया। अफसरों ने ग्रामीणों का और ग्रामीणों ने अफसरों का। यहाँ पंचायत ने एक बोर्ड भी लगाया है, जिसमें श्रमदान करने वाले लोगों का नाम लिखा गया है। पानी बचाने के लिए यह सहभागिता ज़रूरी है।
मध्यप्रदेश के उमरिया जिले के करकैली विकासखंड में आकाशकोट 30 वर्ग किमी में फैले थोड़ी-थोड़ी दूरी पर बसे 25 गाँवों का समूह है। यह आदिवासी बहुल इलाका विकास की दौड़ में काफी पीछे तो है, बुनियादी सुविधाओं के लिहाज से भी उपेक्षित ही रहा है। यहाँ के 16 हजार लोग हर साल फरवरी के बाद से ही पीने के पानी को तरस जाते। एक घड़े पानी के लिए उन्हें जंगल का रुख करना पड़ता। कभी मिलता, कभी नहीं भी मिलता। हर तरफ पानी की हाहाकार मच जाती। यह संकट इस साल का नहीं था, बीते कई सालों से ये लोग इस संकट का सामना करते आ रहे थे। साल दर साल यह और भी गहराता गया। बारिश का पानी पहाड़ी ढलान होने से बह जाता। पानी धरती में ठहरता नहीं तो मिलता कहाँ से ? कुछ पुराने नालों से लगे हुए तालाब ज़रूर थे पर वे तो गाद से भर चुके थे। उनमें बरसात के बाद से ही पानी खत्म होने लगता। लोगों ने सरकारी अफसरों तक बात पहुंचाई तो उन्होंने बोरिंग मशीनों के ज़रिए गाँवों के आसपास पानी की तलाश की लेकिन धरती में तो पानी था ही नहीं। कभी-कभार टैंकरों से पानी आता भी तो कब तक चलता। लोग परेशान थे। इस बार ये लोग लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले ही लामबंद हो चुके थे। यहाँ के ग्रामीणों ने साफ़ कर दिया था कि इस बार पानी नहीं तो वोट भी नहीं। सत्ता से लेनदेन का मन बनाकर लोगों ने रैली की, सभाएँ की और प्रदर्शन हुए लेकिन चुनाव नज़दीक आते-आते नेताओं और अफसरों ने इन्हें जैसे-तैसे मना ही लिया। अब वोट पड़ने के बाद कौन सुनने वाला था।
हुआ यूँ कि इलाके में काम कर रही दो स्वयंसेवी संस्थाओं के-के कार्यकर्ताओं ने आकाशकोट के जल संकट की बात जिले के अफसरों की बैठक में आंकड़ों के प्रमाण पुरावे के साथ पूरी शिद्दत से रखी। उनकी इस बात का जिले के नवागत कलेक्टर पर बड़ा असर हुआ और उन्होंने इन गाँवों के संकट की दिशा में सोचना शुरू किया। उनका साफ़ मानना था कि बिना समाज की भागीदारी के कोई भी कम सफल, सार्थक नहीं हो सकता। इसलिए पानी के काम में स्थानीय समुदाय की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए. समुदाय इसके लिए राजी हो गया। अब दो स्तरों पर काम शुरू हुआ। आकाशकोट इलाके की जल संरचनाओं की पहचान कर उनके गहरीकरण, रिसन सुधार, आगोंर क्षेत्र के विस्तार, मजबूती और सौन्दर्यीकरण पहला काम सामने था तो दूसरा पहाड़ियों से रिसकर जाने वाले बारिश के पानी को रोकने के लिए छोटी-छोटी नयी जल संरचनाओं का निर्माण।
सबसे पहले बिरहुलिया और करौंदी गाँवों के बीच पड़ने वाले पुजहा तालाब पर काम शुरू हुआ। पहाड़ियों का पानी एक नाले से होते हुए तीन तालाबों में समाता है। सबसे ऊपर और नीचे वाले तालाब में तो फिर भी पानी रह जाता है लेकिन पुजहा तालाब तो बारिश के बाद ही सूख जाता है। इसके दक्षिणी कोने पर झिरिया कुंड है, जो कई लोगों के निस्तार के काम आता है। ग्रामीणों ने बताया कि तालाब के ठीक बीच में दस से पन्द्रह फुट चौड़ी नमी वाली पट्टी को यदि तीन से पांच फुट गहरा खोदा जाए तो तालाब में पानी लम्बे समय तक ठहर सकता है। इस तालाब में पहले भी श्रमदान हो चुका था, इसका फायदा यह हुआ था कि नाले का पानी इसमें आने लगा था लेकिन फिर भी गहरा नहीं होने से पानी टिकता नहीं था। गाद बहुत ज़्यादा थी।
ग्रामीणों के साथ सरकार के अधिकारीयों ने भी इसमें मदद की। कुछ मशीनें भी उतारी गई. सरकार और समाज के हाथ पानी के लिए एक साथ उठे तो नज़ारा बदलते देर नहीं लगी। इन लोगों के लिए इस बार की बारिश सबसे ख़ास है। बारिश के इस पानी ने इनके चेहरे पर चमक ला दी है। वे बड़े खुश हैं। जिन तालाबों और कुओं में ग्रामीणों ने श्रमदान किया था, वे अब अच्छी बारिश के बाद लबालब भर चुके हैं। अब इसकी वजह से यहाँ का जल स्तर भी सुधरेगा और उम्मीद है कि अप्रैल-मई के महीने तक इनमें पानी भरा रहेगा। इस गर्मी के मौसम में तीखी धूप और ऊँचे तापमान में उन्होंने जो मेहनत की है अब वह साकार हो रही है। अब तो तालाबों के रिसन से धरती में भी पानी बढेगा और जब बारिश हुई तो सब खुश थे।
यह काम बड़ा था लेकिन जब सैकड़ों हाथ एक साथ जुटते हैं तो हर मुश्किल आसान हो जाती है। महज तीन दिन की मेहनत से तालाब में पानी की नमी नज़र आने लगी। तालाब निर्माण के लिए अपनी ज़मीन दान देने वाले बुजुर्ग फूलसिंह बताते हैं-"यह हमारे विश्वास की जीत है। ' सामाजिक कार्यकर्ता वीरेंद्र गौतम कहते हैं-" कुछ काम अकेले मुमकिन नहीं होते। हमने पसीना बहाया और प्रशासन ने भी मदद की तो परिणाम अच्छा आया। " जिले में पहली पदस्थापना वाले युवा कलेक्टर स्वरोचिश सोमवंशी बताते हैं-"धरती कभी बाँझ नहीं होती और मेहनत करने वालों को कभी निराश नहीं करती है।" जिला पंचायत सीइओ दिनेश मौर्य कहते हैं "पहाड़ी के ऊपर ये पानी के सोते गवाह हैं कि अब आकाशकोट पानीदार हो चुका है।" सच ही है पानी के काम में लोक का ज्ञान, परम्परा और लोक प्रबन्धन हो तो कोई भी इलाका आसानी से पानीदार बन सकता है। हमें नई तकनीकों के साथ परम्पराओं से भी सीखना होगा। यह मुहीम यहाँ रुकेगी नहीं। अभी तो उमरिया जिले में ऐसे 50 और भी तालाबों को चिन्हित किया गया है, जहाँ इस साल काम करते हुए उन्हें अगली बारिश से पहले तैयार किया जाएगा। पुजहा तालाब की पाल पर एक समरोह में समाज और सरकारी अफसरों ने श्रमदान करने वाले ग्रामीणों का सम्मान किया। अफसरों ने ग्रामीणों का और ग्रामीणों ने अफसरों का। यहाँ पंचायत ने एक बोर्ड भी लगाया है, जिसमें श्रमदान करने वाले लोगों का नाम लिखा गया है। पानी बचाने के लिए यह सहभागिता ज़रूरी है।
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