भारत एक कृषि प्रधान देश है, तकनीकी के इस दौर में भी 60 फीसदी आबादी खेती पर ही निर्भर है और खेती की रीढ़ होती है पानी। इस समय भारत जिस बड़ी समस्या से जूझ रहा है वो भी पानी है। दुर्भाग्य की बात ये है कि जिस देश को जल समृद्ध देश कहा जाता रहा है वही देश आज जल संकट की इस भयावह स्थिति में है। नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बताया, 2021 तक भारत के 21 बड़े शहरों से भूजल पूरी तरह से खत्म हो चुका है। इस स्थिति की सबसे बड़ी वजह है अपनी संस्कृति को खोना, तालाब संस्कृति को खोना।
आज देश में तालाब न के बराबर है 1947 में देश में तालाबों की संख्या चौबीस लाख थी। आज तालाबों की संख्या घटकर पांच लाख रह गई है, जिसमें से 20 फीसदी तालाब तो बेकार पड़े है। उनमें या तो पानी नहीं या फिर उनको लोगों ने अपने कूड़े का ढेर बना लिया है। जो राज्य इस समय सूखे की मार झेल रहे हैं, वो कभी तालाबों से सराबोर रहा करते थे। बाद में विकास के नाम पर आधुनिकता का बीज बो दिया गया और लोग अपनी तालाब संस्कृति को भूलने लगे।
हमारी संस्कृति में जितना महत्व कुआं, नदियों और पोखरों का है, उतना ही महत्व तालाब का है। तालाब सिर्फ ग्रामीण संस्कृति के ही नहीं, कस्बों और शहरों की पहचान हुआ करते थे। तालाब के आसपास ही सभी महत्वपूर्ण काम हुआ करते थे शादी-ब्याह, मेला, यज्ञ और सुबह-शाम की बैठकी भी तो यहीं हुआ करती थी। तालाब हमारी जल परंपरा थी, तब तक देश में पानी की कोई किल्लत नहीं होती थी। तालाब सामाजिक जीवन से तो जुड़ा हुआ ही था लोगों के आर्थिक जीवन पर भी असर डालता था। तालाब से ही किसान खेतों में सिंचाई करते थे, अपने ईंट-खपरैल के भट्टे बनाने में भी तालाब के पानी का उपयोग करते थे। जिन्हें वे बाद में बेच देते थे, खेती के अलावा ये उनकी अलग आमदनी का जरिया था।
आज देश में तालाब न के बराबर है 1947 में देश में तालाबों की संख्या चौबीस लाख थी, तब देश की जनसंख्या 36 करोड़ थी। आज तालाबों की संख्या घटकर पांच लाख रह गई है, जिसमें से 20 फीसदी तालाब तो बेकार पड़े है। उनमें या तो पानी नहीं या फिर उनको लोगों ने अपने कूड़े का ढेर बना लिया है। जो राज्य इस समय सूखे की मार झेल रहे हैं, वो कभी तालाबों से सराबोर रहा करते थे। बाद में विकास के नाम पर आधुनिकता का बीज बो दिया गया और लोग अपनी तालाब संस्कृति को भूलने लगे। आजादी के बाद तालाबों के संरक्षण और सुरक्षा की परंपरा धीरे-धीरे परंपरा खत्म होती गई। आज उसी का ये आलम है कि हर जगह पानी के लिए त्राहि-त्राहि कर रहे हैं।
मुझे अच्छी तरह से याद है मेरे गांव (जो बुंदेलखंड के झांसी में है) में तीन बड़े तालाब थे। जहां हमेशा लोगों और गाय-भैंसों का जमावड़ा बना ही रहता था। हम बच्चे लोग सुबह-शाम वहां खेला करते थे, महिलाएं मंदिर आया करतीं थीं और गाय-भैंसे गर्मियों के दिनों में तालाब के पानी से ठंडक पाया करती थीं। आज मेरे गांव के तालाब में एक बूंद पानी नहीं है। जिस तालाब में पानी हुआ करता था, वहां बच्चे अब क्रिकेट खेला करते थे। अब वहां न महिलाएं आती हैं और न ही गाय-भैंसे। हैंडपंप-ट्यूबवेल आये तो लोगों ने तालाब की ओर जाना बंद कर दिया और मेरा गांव तालाब से दूर गया।
छत्तीसगढ़ के तालाब
मैं यहां तालाब के सामाजिक स्वरूप के लिए छत्तीसगढ़ का जिक्र जरूर करना चाहूंगा। छत्तीगढ़ जिसे धान का कटोरा कहा जाता है वो कभी बड़े-बड़े तालाबों का क्षेत्र हुआ करता था। छत्तीसगढ़ की लोककथाओं और लोकगीतों में तालाबों के महत्व को सुना जा सकता है। अहमिन रानी और नौ लाख ओड़िया की गाथा में तालाब खुदता है और तालाब स्नान का जिक्र होता है। सरगुजा अंचल कथा में जिक्र है कि पछिमाहा देव ने सात सौ तालाब खुदवाये थे। राजा बालंद के बारे में तो कहा जाता है कि वो कर के रूप में लोहा वसूलता और फिर तालाब खुदवाता। बड़ी संख्या में तालाब का जिक्र होने का मतलब यही है कि छत्तीसगढ़ भी तालाबों का प्रदेश था। छत्तीसगढ़ में एक लाख से ज्यादा तालाब थे जिनकी संख्या अब चार सौ भी नहीं है। छत्तीसगढ़ में तालाबों से जुड़ीं कई विशिष्ट मान्यताएं हैं। भीमादेव बस्तर में पाण्डव नहीं बल्कि पानी, कृषि के देवता हैं।
बस्तर में विवाह के कई रीति-रिवाज पानी और तालाब से जुड़े हैं। कांकेर में विवाह के अवसर पर वर-वधू तालाब के सात चक्कर लगाते हैं। दूल्हा अपनी नव विवाहिता को पीठ पर लाद कर स्नान कराने जलाशय भी ले जाता है और पीठ पर लाद कर ही लौटता है। ये जानने वाली बात है कि आमतौर पर समाज से दूरी बनाए रखने वाले नायक, सबरिया, लोनिया, मटकुड़ा, मटकुली, बेलदार और रामनामियों की भूमिका तालाब बनाने में बहुत महत्वपूर्ण होती है। वर्ष 1900 में छत्तीसगढ़ में भीषण अकाल पड़ा था, तब रायपुर जिले के लगभग एक हजार तालाबों की मरम्मत की गई थी। जिन्हें एग्रीकल्चर एंट हार्टिकल्चर सोसायटी ऑफ इंडिया के सचिव रहे जे. लेंकेस्टर की पहल पर खुदवाए गए थे। उनके नाम पर स्मारक भी बना हुआ है।
बुंदेलखंड और तालाब
तालाब आज न के बराबर हैं, बुंदेलखंड जहां पहले खूब संरचनाएं हुआ करती थीं, जहां हर गांव में तालाब हुआ करता था वहां से भी तालाब गायब हो चुके हैं। सूखा तो बुंदेलखंड की जागीर रहा है, यहां लड़ाई मीठे और खारे पानी की नहीं होती है सिर्फ पानी की होती है। उत्तर प्रदेश कृषि विभाग की 2017 की रिपोर्ट बताती है कि बुंदेलखंड में चार दशक में लगभग 4,000 तालाब गायब हो चुके हैं। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव तालाब योजना लाये और दावा भी किया कि उनकी सरकार ने 2000 तालाबों का निर्माण करा दिया है। इस समय योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उन्होंने भी तालाब बनाने का जिम्मा लिया है लेकिन अभी तक जमीनी स्तर पर कोई बड़ी सफलता मिली नहीं है। 2017 में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस दिशा में काम किया था लेकिन बनना तो दूर उसके उलट कई जल संरचनाओं का नामोनिशान ही मिटा दिया गया।
अब एक बार फिर से बुंदेलखंड की उन जल संरचनाओं को पुनर्जीवित करने के लिए काम किया जा रहा है और उसके लिए एक बड़ी पहल की है विश्व बैंक ने। विश्व बैंक के अधीन आने वाले ‘2030 वाटर रिसोर्स ग्रुप’ ने इस काम को पूरा करने के लिए राज्य सरकार और सामाजिक संगठनों के साथ तालाबों को पुनर्जीवित करने की पहल तेज कर दी है। ये ग्रुप बुंदेलखंड के अधिकारियों और तालाब पर काम करने वाले लोगों से बात कर रहा है। बुंदेलखंड के तालाबों को सर्वेक्षण किया जाएगा, जिससे पता चल सकेगा कि तालाबों की क्या स्थिति है? उसके बाद ही तालाबों को पुनर्जीवित करने वाली योजना को अमल में लाया जायेगा।
इस समय देश जल संकट से जूझ रहा है। अब एक बार फिर से हमें अपनी वही तालाब संस्कृति की ओर लौटना होगा। तालाब, जल सरंक्षण का सबसे कारगर तरीका है। कई लोग तो जल संकट की स्थिति को समझ भी रहे हैं और उस पर काम भी कर रहे हैं। मध्य प्रदेश का देवास इसका अच्छा उदाहरण है वहां लोगों ने अपनी मेहनत से कई बड़े तालाब बनाये। मध्य प्रदेश में तो पानी की किल्लत रहती है लेकिन देवास के लोगों को पानी की समस्या से जूझना नहीं पड़ता है। पानी के अत्यधिक दोहन के कारण पानी की समस्या बढ़ी है, पहले हम दूषित पानी की बात करते थे। लेकिन अब तो पानी मिल जाए वही बढ़ी बात है, इस समय देश की 40 करोड़ आबादी पानी की समस्या का सामना कर रहा है। जब हमारी जनसंख्या ज्यादा है, हमारी पानी की खपत ज्यादा है तो फिर जल संरक्षण और संचयन भी तो जरूरी है।
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