बुंदेलखंड में साल दर साल पेयजल संकट बढ़ता जा रहा है। इसकी ताजा बानगी अप्रैल-मई 2019 में बांदा में देखने को मिली। शहर की ज्यादातर पेयजल योजनाएं धड़ाम हो जाने से शहर के लोग प्यास से बिलख उठे। पानी के लिए आन्दोलन होने लगे, प्रदर्शन हुए और शासन प्रशासन को कटघरे में खड़ा किया गया, फिर भी समस्या नहीं सुधरी। जल संकट क्यों बढ़ रहा है ? इस दिशा में सोचने और शुरू की गई पेयजल योजनाओं को सुचारु बनाने के लिए खास कदम नहीं उठाए गये। यही वजह है कि बुंदेलखंड के चित्रकूट मंडल की ज्यादातर पेयजल योजनाएं दम तोड़ रही हैं। इनमें सबसे बड़ी पेयजल परियोजना चिल्ला की है। यह परियोजना कई वर्षों से अधर में लटकी है।
यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने भी बुन्देलखण्ड पैकेज के साथ 200 करोड़ रूपये पानी की समस्या से निपटने के लिए दिए थे। प्रधानमंत्री ने यह घोषणा राजकीय इण्टर कालेज के मैदान में एक चुनावी सभा में की थी। इसके बाद सरकार बदलने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तमाम परियोजनाएं घोषित कर दी, लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा वाली योजनाओं का भी हश्र आम योजना की तरह हुआ।
40 किमी दूर चिल्ला में स्थित यमुना नदी से पानी लाने की कसरत वर्षों से जारी है। कई साल पहले लगभग दो सौ करोड़ की लागत से चिल्ला पेयजल परियोजना की कार्ययोजना बनाई गई थी। जिसकी अब लागत 2 अरब 91 करोड़ 87 लाख तक पहुंच गई है। इस परियोजना को केन्द्र में कांग्रेस सरकार ने 2013 में हरी झंडी दी थी। यदि यह परियोजना चालू हो जाए तो अगले 30 वर्षों तक बांदा नगर की पेयजल समस्या दूर हो सकती है। प्रोजेक्ट का मुख्य स्वरूप वर्ष 2019 से लेकर 2049 तक 54 एमएलडी (मिलियन लीटर पर डे) पानी की आपूर्ति करना है। यदि योजना शुरू हुई तो दो साल बाद 31.6 एमएलडी पानी मिलेगा। फिर 30 साल बाद इसकी क्षमता 54 एमएलडी होगी, लेकिन यह कहा नहीं जा सकता कि ये योजना कब तक शुरू होगी। इसी तरह चित्रकूट धाम मण्डल मुख्यालय बांदा में अवस्थी पार्क स्थित जल संस्थान कार्यालय परिसर में वर्ष 2013 बूस्टिंग पम्प एंव सीडब्लूआर (क्लिपर फंट रिजर्व) बनाने का काम शुरू हुआ था। यह परियोजना मार्च 2015 में पूरी हो जानी थी, लेकिन यह अब तक चालू नहीं हो पाई। इसी तरह महोबा नगर पेयजल योजना के लिए एक करोड़ रूपये स्वीकृत होकर जारी कर दिये गये थे, इसका काम अगस्त 2016 में शुरू हुआ और मार्च 2017 में पूरा हो जाना चाहिये था, लेकिन कच्छप गति से से चलने के कारण आज तक काम पूरा नहीं हो पाया है।
हमीरपुर जिले में राठ पेयजल योजना 2016 में स्वीकृत होकर काम शुरू हुआ। 10 करोड़ रूपये की धनराशि अवमुक्त हो गई। जल निगम ने यह धनराशि खर्च भी कर दी, लेकिन योजना अभी भी अधर में लटकी है। वहीं पाठा क्षेत्र में पेयजल समस्या का समाधान कराने के लिए लगभग दस साल पुरानी 251 करोड़ रूपये की परियोजना शुरू हो रही है। वहीं पिछले डेढ़ दशक के अन्दर जल निगम ने बुन्देलखण्ड के सैकड़ों गांवों में एकल या ग्राम समूह की पेयजल योजनाएं चालू की थी। इनमें नौ योजनाएं पूरी तरह दम तोड़ चुकी हैं। ग्रामीण पाइप लाइन योजनाओं में दर्जन चित्रकूट की हैं। इनमें 15 करोड़ 60 लाख रूपये लागत आई थी। बांदा जनपद में 22 योजनाएं आंशिक आपूर्ति कर रही हैं, इनमें 12 करोड़ 70 लाख रूपये खर्च हुए थे। हमीरपुर में 4 करोड़ 93 लाख लागत वाली पांच पेयजल योजनाएं नाममात्र का पानी दे रही हैं। महोबा में ढाई करोड़ की लागत की छह योजनाएं पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी हैं और हमीरपुर में भी 74 लाख की तीन ग्रामीण पेयजल योजनाएं बन्द हो चुकी हैं।
पानी की सबसे ज्यादा समस्या बुन्देलखण्ड जनपद बांदा के शहरी क्षेत्र में है। केन नदी के तट पर स्थित दो इंटेक बेलो तथा 22 नलकूपों व 40 कुओं, 940 हैण्डपम्पों के जरिए जलापूर्ति की जाती है। इनमें गर्मी में 75 फीसदी हैण्डपम्पों ने पानी देना बन्द कर दिया है। केन नदी में पानी कम हो जाने और सब्जी लगाने वाले किसानों द्वारा पानी की धार को अपने खेतों की तरफ मोड़ लिया जाता है। वहीं बालू माफियाओं द्वारा जगह-जगह जल धारा रोक लेने से इंटेक बेलो तक पानी नहीं पहुंच रहा है, जिससे शहर में पेयजल समस्या ने उग्र रूप धारण करना शुरू किया। जिसका समाधान इस माह के अन्त तक नहीं हो पाया। वर्तमान जनसंख्या के मुताबिक 26300 एमएलडी पानी की प्रतिदिन आपूर्ति होनी चाहिए, लेकिन नदी में पानी की उपलब्धता न होने से पर्याप्त जलापूर्ति नहीं हो पाने से समस्या बढ़ रही है।
बुन्देलखण्ड में पेयजल समस्या नई नहीं है। यह समस्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है। अभी हाल में चुनाव के दौरान बांदा आये प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बताया कि पेयजल समस्या से निपटने के लिए जलशक्ति मंत्रालय बनाया जाएगा और पेयजल समस्या से निदान के लिए बुन्देलखण्ड को 900 करोड़ रूपये दिए जाएंगे। हालाकि चुनाव जीतने के बाद फिर से प्रधानमंत्री बनने पर केंद्र सरकार द्वारा जलशक्ति मंत्रालय का गठन भी कर दिया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली मन की बात में जल संकट से निपटने के लिए बड़े स्तर पर जल भागीदारी की अपील करते हुए कहा कि स्वच्छता की तरह जल संकट से निपटने के लिए इसे आंदोलन का रूप देना होगा। इससे पूर्व यूपीए सरकार में प्रधानमंत्री रहे डॉ. मनमोहन सिंह ने भी बुन्देलखण्ड पैकेज के साथ 200 करोड़ रूपये पानी की समस्या से निपटने के लिए दिए थे। प्रधानमंत्री ने यह घोषणा राजकीय इण्टर कालेज के मैदान में एक चुनावी सभा में की थी। इसके बाद सरकार बदलने पर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तमाम परियोजनाएं घोषित कर दी, लेकिन मुख्यमंत्री की घोषणा वाली योजनाओं का भी हश्र आम योजना की तरह हुआ। एक भी समस्या का समाधान नहीं हुआ, जिससे बुन्देलखण्ड पानी की समस्या से जूझ रहा है। यहां वर्षों से व्याप्त पेयजल योजना के लिए केन्द्र व राज्य सरकारों को मिलकर ठोस रणनीति तैयार करनी होगी, ताकि इस समस्या से हमेशा के लिए निजात मिल सकें।
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