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सोपान स्टेप, सितंबर 2013
किसानों को उम्मीद है कि अब सरकार की विकास एजेंसियां व जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान देकर यहां एक पक्का चेकडैम बनवाएंगे। क्योंकि यह डर अभी भी बरकरार है कि कच्चा होने की वजह से बांध कभी भी बह सकता है।यदि हौसला बुलंद हो तो क्या नहीं किया जा सकता। यही कहा जा सकता है किसान नंदकिशोर के संबंध में। गिरिडीह जिले के डुमरी प्रखंड में जहां एक ओर किसान मानसून की बेरुखी व सिंचाई सुविधाओं के अभाव में सुखाड़ की स्थिति झेलने को विवश हैं, वहीं इसी प्रखंड के पोरैया गांव के एक किसान के व्यक्तिगत प्रयास से गांव के लगभग दो सौ एकड़ खेतों में आज पानी पहुंच रहा है। इस इलाके के किसान सुखाड़ की स्थिति भूलकर अपने खेतों में धान की रोपनी कर रहे हैं। यहां के किसानों को खेती के लिए अब न तो मानसून से होने वाली बारिश का इंतजार है और न ही सरकार की तरफ से दी जाने वाली सिंचाई सुविधा का।
गौरतलब है कि प्रखंड के अन्य गांवों की तरह पोरैया गांव से लगे खेत भी बारिश के अभाव में सूखने लगे थे। यहां के किसान पानी के बिना हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहते थे। बहुत सारे किसानों ने पलायन का रास्ता अख्तियार कर लिया था और बहुतेरे पलायन की योजना बना रहे थे। लेकिन अब इन किसानों को अपने खेतों में हल बैल के साथ देखा जा सकता है। धान की रोपनी करती महिलाओं के गीत यहां के खेतों में गूंज रहे हैं। नंदकिशोर प्रसाद महतो ने नाला के पानी को खेतों में पहुंचाने की ऐसी व्यवस्था की जिसे करने के लिए सरकार को लाखों रुपए खर्च करने पड़ते। नंद किशोर महतो ने पारसनाथ पहाड़ से उतरकर गांव से गुजरने वाले बंदराचुंआ नाला पर अकेले ही अपने दम पर बांध बनाकर इसके पानी को नाले के जरिए सूखे पड़े खेतों तक पहुंचाने का सपना साकार कर दिखाया है।
इस बाबत पूछने पर नंद किशोर महतो कहते हैं कि उन्हें इसकी प्रेरणा अपने पिता पोरैया के भूतपूर्व मुखिया निर्मल महतो व गांव के ही एक बुजुर्ग बढन महतो से मिली। हालांकि नंदकिशोर ने इस तरकीब का जिक्र गांव के लोगों से कई बार किया। लेकिन असंभव से दिखने वाले इस कार्य पर किसी ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। अंत में उन्होंने अकेले ही इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया।
बिना किसी को बताए नंदकिशोर कुदाल और फावड़ा लेकर पहाड़ों के बीच से गुजरने वाले बंदरचुआं नाम के नाले पर पहुंच गया। इस नाले में लगभग साल भर पानी रहता है। आठ-दस दिनों की मेहनत के बाद नंदकिशोर नाले के मुहाने पर पत्थर और मिट्टी का एक छोटा बांध बनाने में सफल हो गया। लेकिन इतना ही काफी नहीं था। बांध के बन जाने के बद उसके पानी को खेतों तक पहुंचाने की समस्या अभी बरकरार थी। इसके लिए नंदकिशोर ने लगभग 100 फीट लंबा, तीन फीट गहरा व डेढ़ फीट का एक और नाला खोदना आरंभ किया। तब तक कुछ और किसान इस काम में उसका हाथ बंटाने के लिए आगे आ चुके थे। लोग आते गए, कारवां बनता गया की तर्ज पर। बहरहाल इस काम में 15 से 20 दिन और लग गए। लेकिन अंततरू उसे कामयाबी मिली। बेकार बहता बंदरचुआं नाले का पानी अब खेतों में पहुंचने लगा। आज इस पानी से लगभग दो सौ एकड़ खेतों को लाभ मिल रहा है। गांव के सरयू महतो, काली तुरी, संतोष महतो, फलजीत महतो, श्यामलाल महतो जैसे दर्जनों किसान हैं जो आज नंदकिशोर महतो का गुणगान करते नहीं थक रहे हैं। कई किसानों को अफसोस है कि उन्होंने उसका साथ नहीं दिया। किसानों को उम्मीद है कि अब सरकार की विकास एजेंसियां व जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान देकर यहां एक पक्का चेकडैम बनवाएंगे। क्योंकि यह डर अभी भी बरकरार है कि कच्चा होने की वजह से बांध कभी भी बह सकता है।
तसल्ली देने वाली अतिरिक्त बात यह है कि इलाके द्धडुमरीऋ के विधायक जगरनाथ महतो ने नंदकिशोर महतो की कोशिश की तारीफ की है। विधायक पहाड़ी पर जल्द ही पक्का चेकडैम बनवाने की दिशा में पहल की बात कहते हैं। इसी तरह के सहयोग की बात प्रखंड विकास पदाधिकारी भी कर रहे हैं।
गौरतलब है कि प्रखंड के अन्य गांवों की तरह पोरैया गांव से लगे खेत भी बारिश के अभाव में सूखने लगे थे। यहां के किसान पानी के बिना हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहते थे। बहुत सारे किसानों ने पलायन का रास्ता अख्तियार कर लिया था और बहुतेरे पलायन की योजना बना रहे थे। लेकिन अब इन किसानों को अपने खेतों में हल बैल के साथ देखा जा सकता है। धान की रोपनी करती महिलाओं के गीत यहां के खेतों में गूंज रहे हैं। नंदकिशोर प्रसाद महतो ने नाला के पानी को खेतों में पहुंचाने की ऐसी व्यवस्था की जिसे करने के लिए सरकार को लाखों रुपए खर्च करने पड़ते। नंद किशोर महतो ने पारसनाथ पहाड़ से उतरकर गांव से गुजरने वाले बंदराचुंआ नाला पर अकेले ही अपने दम पर बांध बनाकर इसके पानी को नाले के जरिए सूखे पड़े खेतों तक पहुंचाने का सपना साकार कर दिखाया है।
इस बाबत पूछने पर नंद किशोर महतो कहते हैं कि उन्हें इसकी प्रेरणा अपने पिता पोरैया के भूतपूर्व मुखिया निर्मल महतो व गांव के ही एक बुजुर्ग बढन महतो से मिली। हालांकि नंदकिशोर ने इस तरकीब का जिक्र गांव के लोगों से कई बार किया। लेकिन असंभव से दिखने वाले इस कार्य पर किसी ने गंभीरता से ध्यान नहीं दिया। अंत में उन्होंने अकेले ही इस कार्य को करने का बीड़ा उठाया।
बिना किसी को बताए नंदकिशोर कुदाल और फावड़ा लेकर पहाड़ों के बीच से गुजरने वाले बंदरचुआं नाम के नाले पर पहुंच गया। इस नाले में लगभग साल भर पानी रहता है। आठ-दस दिनों की मेहनत के बाद नंदकिशोर नाले के मुहाने पर पत्थर और मिट्टी का एक छोटा बांध बनाने में सफल हो गया। लेकिन इतना ही काफी नहीं था। बांध के बन जाने के बद उसके पानी को खेतों तक पहुंचाने की समस्या अभी बरकरार थी। इसके लिए नंदकिशोर ने लगभग 100 फीट लंबा, तीन फीट गहरा व डेढ़ फीट का एक और नाला खोदना आरंभ किया। तब तक कुछ और किसान इस काम में उसका हाथ बंटाने के लिए आगे आ चुके थे। लोग आते गए, कारवां बनता गया की तर्ज पर। बहरहाल इस काम में 15 से 20 दिन और लग गए। लेकिन अंततरू उसे कामयाबी मिली। बेकार बहता बंदरचुआं नाले का पानी अब खेतों में पहुंचने लगा। आज इस पानी से लगभग दो सौ एकड़ खेतों को लाभ मिल रहा है। गांव के सरयू महतो, काली तुरी, संतोष महतो, फलजीत महतो, श्यामलाल महतो जैसे दर्जनों किसान हैं जो आज नंदकिशोर महतो का गुणगान करते नहीं थक रहे हैं। कई किसानों को अफसोस है कि उन्होंने उसका साथ नहीं दिया। किसानों को उम्मीद है कि अब सरकार की विकास एजेंसियां व जनप्रतिनिधि इस ओर ध्यान देकर यहां एक पक्का चेकडैम बनवाएंगे। क्योंकि यह डर अभी भी बरकरार है कि कच्चा होने की वजह से बांध कभी भी बह सकता है।
तसल्ली देने वाली अतिरिक्त बात यह है कि इलाके द्धडुमरीऋ के विधायक जगरनाथ महतो ने नंदकिशोर महतो की कोशिश की तारीफ की है। विधायक पहाड़ी पर जल्द ही पक्का चेकडैम बनवाने की दिशा में पहल की बात कहते हैं। इसी तरह के सहयोग की बात प्रखंड विकास पदाधिकारी भी कर रहे हैं।