पूर्व शर्तें: :
प्रारंभ में ग्रामीणों ने शौचालय निर्माण में जोश दिखाया किंतु जैसे जैसे वे इस कार्य में धन की कमी की कठिनाईयों से परिचित होते गए वैसे वैसे उन्होनें शौचालय रखने के विचार से मुंह मोड़ लिया।
परिवर्तन की प्रकिया: :
कनकटरेवड़ी, अटपड़ी तालुका का एक छोटा सा गांव हैं जिसमें लगभग 147 घर हैं। यहां लोगों की आमदनी बहुत कम है और ये कृषि का काम करते हैं। चूंकि इस गांव ने भी जलस्वराज परियोजना में भाग लिया है, इसलिए यहां के निवासियों में पर्यावरण की स्वच्छता के प्रति काफी जागरूकता आई है। बहुत से ग्रामीण शौचालय निर्माण करवाना चाहते थे। एसओ तथा ग्रामीणों द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण से पता चलता है कि यह गांव कठोर चट्टानी धरातल पर बसा हुआ है और यहां जल सोखने वाले गड्ढों वाले शौचालयों का निर्माण करना अत्यंत कठिन कार्य हे। गांव में लोगों की धारणा अपने लक्ष्य के इर्द गिर्द घूमने लगी और शौचालय निर्माण की चर्चा से यही लगा कि यह कार्य असंभव है। श्रीमती अंजुबाई सूर्यावंशी जो एक अधे़ड़ उम्र की शिक्षित महिला हैं और डबल्यूडीसी की सदस्या भी हैं, ने इस चर्चा को अस्वीकार्य पाया। जहां एक ओर ग्रामीण शौचालय निर्माण का परित्याग कर रहे थे वहीं दूसरी ओर अंजुबाई ने इस धारणा के दूसरे पहलू पर विचार करने के लिए उन्हें विवश किया। उनके जानदार शब्दों और गहन सूझबूझ ने अपना कार्य कर दिखाया। समिति के सदस्यों, महिलाओं और पुरूषों ने एक-एक कर उसके तर्क को मान लिया। ''सभी कठिनाईयों के बावजूद, जब हम भोजन के लिए संघर्ष करते हैं, तब हमें शौचालयों के लिए भी संघर्ष करना चाहिए।'' यही अंजुबाई का तर्क था।
भाव: :
शौचालय निर्माण की लागत को बर्दाश्त न करने के कारण ग्रामीणों ने इस कार्य से मुंह मोड़ना चाहा। गांव की एक प्रेरित महिला अंजुबाई ने अपना ठोस तर्क दिया और ग्रामीणों को शौचालय को विलासिता की वस्तु के रूप में नहीं बल्कि एक मूलभूत जरूरत के रूप में सोचने पर विवश किया। उन्होंने ग्रामीणों को शौचालय निर्माण के लिए ठीक उसी प्रकार संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया जैसे उन्हें भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
जलापूर्ति एवं स्वच्छता विभाग, महाराष्ट्र सरकार