Source
सर्वोदय प्रेस सर्विस, जुलाई 2013
लिखित आश्वासन के बावजूद काम न रोकने पर जब प्रो. अग्रवाल की व्यवस्था से निराशा होने लगी तो उन्होंने गंगा की पवित्रता व प्रवाह के मुद्दे पर चौथी बार मकर संक्रांति 14 जनवरी 2012 को प्रयाग में अनशन प्रारंभ किया जो 8 फरवरी तक चला। इसके बाद 9 मार्च से बनारस में अनशन पर बैठे, चर्चा आश्वासन के बाद पुलिस बल लगाकर 17 मार्च 2012 को दिल्ली एम्स में जबरदस्ती आहार देकर अनशन तुड़वा दिया गया। इसी समय आश्वासन दिया गया कि गंगा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा। उत्तराखंड में 16 जून को आई आपदा के संबंध में डॉ.अग्रवाल का कहना है कि हरिद्वार के ऊपर का पूरा क्षेत्र काफी संवेदनशील है। वहां पहाड़ों पर जिस प्रकार से केन्द्र व राज्य सरकारें भागीरथी, अलकनंदा इत्यादि नदियों का प्रवाह रोककर जलविद्युत परियोजनाओं का निर्माण कर रहीं हैं, बांध बना रही हैं वह पर्यावरण की दृष्टि से ठीक नहीं है। फिर बांधों के पानी को मानव निर्मित टनल से ले जाना, टनल का निर्माण एवं उसमें विस्फोटक का प्रयोग किया जाना भी कतई उचित नहीं है। प्रो. अग्रवाल ने इस घटना के होने की संभावना पर केंद्र एवं राज्य दोनों सरकारों को समय-समय पर कई सुझाव व ज्ञापन दिए और सशक्त तर्कों व तत्थों के साथ इन पर रोक की मांग की थी। लम्बे पत्राचार से थक-हारकर उन्होंने 14 अप्रैल 2008 को प्रधानमंत्री एवं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को अंतिम बार पत्र दिया कि उत्तरकाशी से ऊपर भागीरथी नदी पर नैसर्गिक रूवरूप बरकरार न रखने पर वे 13 जून 2008 से उत्तरकाशी में आमरण अनशन पर बैठेंगे।
उत्तरकाशी में अनशन पर बैठने के बाद 17 जून 2008 को उन्होंने पुनः प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को मुद्दे की याद दिलाने वाला पत्र दिया। तीसरे दिन उत्तरांचल राज्य सरकार थोड़ा चेती और उसके उर्जा सचिव शत्रुघ्न सिंह ने 19 जून 2008 को अनशन स्थल के पते पर एक अर्द्धशासकीय पत्र भेजा कि गोमुख से उत्तरकाशी के बीच भागीरथी नदी पर तीन परियोजनाएं प्रस्तावित/निर्माणाधीन हैं जिनमें दो भैरवघाटी, 381 मेगावाट तथा पाला सनेही 480 मेगावाट राज्य सरकार के तहत है, जिन्हें तत्काल प्रभाव से रोका जा रहा है। तीसरी परियोजना केन्द्र सरकार की लाहोरी नागवाला (600 मेगावाट) एन.टी.पी.सी. बना रही है। इस पत्र में आश्वासन दिया गया था कि गंगा नदी की पवित्रता व शुचिता बनाए रखने के लिए राज्य सरकार कृत संकल्प है।
इस आश्वासन पर भी जब प्रो. जी.डी.अग्रवाल अनशन से नहीं उठे और गंगा रक्षा मंच के महासचिव महामंडलेश्वर स्वामी हंसदास जी ने 25 जून 2008 को तथा आई.आई.टी. कानपुर के छात्रों ने 27 जून को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। तब 30 जून 2008 को भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के जल संसाधन निदेशक ने स्वामी हंसदास जी को एक पत्र दिया कि वे केन्द्रीय उर्जा मंत्री के निर्देश पर एन.टी.पी.सी. के चेयरमैन को पत्र दे रहे हैं कि वे एक उच्च शक्ति सम्पन्न (हाईपावर) कमेटी का गठन करें जिसमें आपके सुझाए हुए सदस्य भी हो जो भागीरथी के बहाव व तकनीकी समस्या पर जांच करके 3 माह में रिपोर्ट दें। आग्रह किया कि प्रो. अग्रवाल अनशन त्याग दें। तदनुसार इस आश्वासन पर उन्होंने 30 जून को अनशन त्याग दिया। जब विधिवत आश्वासन एवं हाईपावर कमेटी के गठन के निर्माण का मामला खटाई में पड़ा और बांधों व स्थल के निर्माण कार्य आश्वासन के बावजूद नहीं रोके गए तो दुःखी मन से पर्यावरण प्रेमी डॉ. जी.डी.अग्रवाल ने पुनः 4 जनवरी 2009 से दिल्ली में अनशन प्रारंभ किया ताकि सरकार चेते।
मीडिया के दबाव व बदनामी के डर से सरकार थोड़ा हिली और केन्द्र सरकार के विद्युत ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक ने 5 जनवरी 2009 को पत्र दिया कि उर्जामंत्री सुशील कुमार शिन्दे की अध्यक्षता में हुई बैठक में निर्णय हुआ कि लोहारी नागपाला बैराज से न्यूनतम 16 क्यूबिक मी. प्रति सेकेण्ड या गंगा नदी प्राधिकरण जो तय करे, जल छोड़ा जाएगा तथा भारत सरकार ने विश्वास दिलाया कि अब भागीरथी में कोई नई जल विद्युत परियोजना नहीं बनेगी। इसके जवाब में अनशन पर बैठे प्रो. जी.डी.अग्रवाल ने भागीरथी बचाओ संकल्प के बैनर तले से ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिन्दे को 6 जनवरी को पत्र से याद दिलाया कि मेरी मांग केवल गंगोत्री से भागीरथी के नैसर्गिक प्रवाह को बरकरार रखने की है, अतः लाहोरी नागपाला प्रोजेक्ट जैसे सभी कार्यों को रोका जाए।
इसके साथ ही प्रो. अग्रवाल के अनशन के समर्थन में अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा जारी अपील के बाद भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक ने सूचित किया कि निर्णय लिया गया है कि भागीरथी पर बन रहे लाहोरी नागपाल परियोजना को रोका जाता है। इसके बाद प्रो. अग्रवाल ने अपना अनशन तोड़ दिया। शुरू में तो ऐसा लगा कि लाहोरी नागपाला बांध का काम रोक दिया गया है किंतु ध्यान से देखा गया तो काम बंद नहीं हुआ था। तब डॉ. अग्रवाल ने हरिद्वार के शिवानन्द आश्रम के मातृसदन में 20 जुलाई 2010 से अनशन प्रारंभ किया जो सरकार के लिखित आश्वासन पर 24 अगस्त 2010 को टूटा।
लिखित आश्वासन के बावजूद काम न रोकने पर जब प्रो. अग्रवाल की व्यवस्था से निराशा होने लगी तो उन्होंने गंगा की पवित्रता व प्रवाह के मुद्दे पर चौथी बार मकर संक्रांति 14 जनवरी 2012 को प्रयाग में अनशन प्रारंभ किया जो 8 फरवरी तक चला। इसके बाद 9 मार्च से बनारस में अनशन पर बैठे, चर्चा आश्वासन के बाद पुलिस बल लगाकर 17 मार्च 2012 को दिल्ली एम्स में जबरदस्ती आहार देकर अनशन तुड़वा दिया गया। इसी समय आश्वासन दिया गया कि गंगा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।
आश्वासन व समझौते के बाद 17 अप्रैल 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गंगा प्राधिकरण की बैठक हुई, जिसमें प्रो. अग्रवाल आमंत्रित नहीं थे किंतु उनका पक्ष रखने के लिए 4 सदस्य थे, जिसमें उनके एजेंडे पर चर्चा की गई। प्रो. अग्रवाल ने बताया कि इस बैठक में मैदानी जांच के बाद निर्णय लेने के लिए केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, नारायण सामी एवं राजेन्द्र सिंह सहित कई लोगों की एक समिति बनाई गई। बाद में 15 जून को योजना आयोग के सदस्य डॉ. बी.के. द्विवेदी की अध्यक्षता में एक अन्तर मंत्रीमंडलीय समूह का केन्द्र सरकार ने गठन किया। जिसे जांच के बाद तीन माह में प्रखंड में बांध के परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेना था जो नहीं लिया गया। बाद में इसका कार्यकाल 31 अक्टूबर 2012 तक बढ़ाया गया, जिसे पुनः 31 जनवरी 2013 तक समय दे दिया गया तथा गंगा नदी की सभी समस्याओं को इसकी सीमा में लाया गया। इस समिति में राजेन्द्र सिंह, सुनीता नारायण सहित तीन गैर शासकीय सदस्य थे।
प्रो. जी.डी. अग्रवाल ने अपने पांचवे अनशन के दौरान इस लेखक को बताया कि अंतर मंत्रीमंडलीय समूह की एक बैठक 28 जनवरी 2013 को हुई, जिसमें भागीरथी व अलकनन्दा पर बने बांधों को निरस्त करने के विषय पर चर्चा के साथ-साथ 31 मार्च 2013 का समय और मांगा था। 26 जनवरी 2013 पौष पूर्णिमा से अमरकंटक के पास के जिला मुख्यालय शहडोल में अपने शिष्य गिरधर माथनकर के निवास पर उपवास पर बैठे डॉ. अग्रवाल ने निराशा भरे स्वर में बताया कि बार-बार समितियां और समय सीमा बढ़ाने से उन्हें लगने लगा है कि शासन में बैठे लोगों की रुचि गंगा को बचाने में नहीं है, बल्कि इलाहाबाद के कुंभ को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने में ज्यादा है। बाद में डॉ. अग्रवाल ने अमरकंटक में अनशन जारी रखा किंतु प्रशासन ने उनकी मांगों को मानने का उपक्रम करते हुए भी नहीं माना और अन्ततः उन्हें 21 मार्च 2013 को बनारस में अनशन समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी। उत्तरकाशी में धारीदेवी के मंदिर व मूर्ति को बांध से डूबने से बचाने का प्रयास में हल निकालने के लिए जब प्रयास खत्म होने लगे तब छठी बार प्रो. अग्रवाल अलकनन्दा व भागीरथी नदी के समस्त बांध निरस्त कर गंगा के प्रवाह को अविरल रखा जाये, की मांग पर मातृसदन हरिद्वार में विगत 16 जून को अनशन पर बैठे थे। गौरतलब है कि व्यवस्था में बैठे लोग यदि प्रारंभ में ही डॉ. अग्रवाल की बात मान लेते तो उत्तराखंड की यह दर्दनाक घटना जो पूर्णतः मानवीकृत है संभवतः न होती।
उत्तरकाशी में अनशन पर बैठने के बाद 17 जून 2008 को उन्होंने पुनः प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री को मुद्दे की याद दिलाने वाला पत्र दिया। तीसरे दिन उत्तरांचल राज्य सरकार थोड़ा चेती और उसके उर्जा सचिव शत्रुघ्न सिंह ने 19 जून 2008 को अनशन स्थल के पते पर एक अर्द्धशासकीय पत्र भेजा कि गोमुख से उत्तरकाशी के बीच भागीरथी नदी पर तीन परियोजनाएं प्रस्तावित/निर्माणाधीन हैं जिनमें दो भैरवघाटी, 381 मेगावाट तथा पाला सनेही 480 मेगावाट राज्य सरकार के तहत है, जिन्हें तत्काल प्रभाव से रोका जा रहा है। तीसरी परियोजना केन्द्र सरकार की लाहोरी नागवाला (600 मेगावाट) एन.टी.पी.सी. बना रही है। इस पत्र में आश्वासन दिया गया था कि गंगा नदी की पवित्रता व शुचिता बनाए रखने के लिए राज्य सरकार कृत संकल्प है।
इस आश्वासन पर भी जब प्रो. जी.डी.अग्रवाल अनशन से नहीं उठे और गंगा रक्षा मंच के महासचिव महामंडलेश्वर स्वामी हंसदास जी ने 25 जून 2008 को तथा आई.आई.टी. कानपुर के छात्रों ने 27 जून को प्रधानमंत्री को पत्र लिखा। तब 30 जून 2008 को भारत सरकार के विद्युत मंत्रालय के जल संसाधन निदेशक ने स्वामी हंसदास जी को एक पत्र दिया कि वे केन्द्रीय उर्जा मंत्री के निर्देश पर एन.टी.पी.सी. के चेयरमैन को पत्र दे रहे हैं कि वे एक उच्च शक्ति सम्पन्न (हाईपावर) कमेटी का गठन करें जिसमें आपके सुझाए हुए सदस्य भी हो जो भागीरथी के बहाव व तकनीकी समस्या पर जांच करके 3 माह में रिपोर्ट दें। आग्रह किया कि प्रो. अग्रवाल अनशन त्याग दें। तदनुसार इस आश्वासन पर उन्होंने 30 जून को अनशन त्याग दिया। जब विधिवत आश्वासन एवं हाईपावर कमेटी के गठन के निर्माण का मामला खटाई में पड़ा और बांधों व स्थल के निर्माण कार्य आश्वासन के बावजूद नहीं रोके गए तो दुःखी मन से पर्यावरण प्रेमी डॉ. जी.डी.अग्रवाल ने पुनः 4 जनवरी 2009 से दिल्ली में अनशन प्रारंभ किया ताकि सरकार चेते।
मीडिया के दबाव व बदनामी के डर से सरकार थोड़ा हिली और केन्द्र सरकार के विद्युत ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक ने 5 जनवरी 2009 को पत्र दिया कि उर्जामंत्री सुशील कुमार शिन्दे की अध्यक्षता में हुई बैठक में निर्णय हुआ कि लोहारी नागपाला बैराज से न्यूनतम 16 क्यूबिक मी. प्रति सेकेण्ड या गंगा नदी प्राधिकरण जो तय करे, जल छोड़ा जाएगा तथा भारत सरकार ने विश्वास दिलाया कि अब भागीरथी में कोई नई जल विद्युत परियोजना नहीं बनेगी। इसके जवाब में अनशन पर बैठे प्रो. जी.डी.अग्रवाल ने भागीरथी बचाओ संकल्प के बैनर तले से ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिन्दे को 6 जनवरी को पत्र से याद दिलाया कि मेरी मांग केवल गंगोत्री से भागीरथी के नैसर्गिक प्रवाह को बरकरार रखने की है, अतः लाहोरी नागपाला प्रोजेक्ट जैसे सभी कार्यों को रोका जाए।
इसके साथ ही प्रो. अग्रवाल के अनशन के समर्थन में अनेक महत्वपूर्ण व्यक्तियों द्वारा जारी अपील के बाद भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय के निदेशक ने सूचित किया कि निर्णय लिया गया है कि भागीरथी पर बन रहे लाहोरी नागपाल परियोजना को रोका जाता है। इसके बाद प्रो. अग्रवाल ने अपना अनशन तोड़ दिया। शुरू में तो ऐसा लगा कि लाहोरी नागपाला बांध का काम रोक दिया गया है किंतु ध्यान से देखा गया तो काम बंद नहीं हुआ था। तब डॉ. अग्रवाल ने हरिद्वार के शिवानन्द आश्रम के मातृसदन में 20 जुलाई 2010 से अनशन प्रारंभ किया जो सरकार के लिखित आश्वासन पर 24 अगस्त 2010 को टूटा।
लिखित आश्वासन के बावजूद काम न रोकने पर जब प्रो. अग्रवाल की व्यवस्था से निराशा होने लगी तो उन्होंने गंगा की पवित्रता व प्रवाह के मुद्दे पर चौथी बार मकर संक्रांति 14 जनवरी 2012 को प्रयाग में अनशन प्रारंभ किया जो 8 फरवरी तक चला। इसके बाद 9 मार्च से बनारस में अनशन पर बैठे, चर्चा आश्वासन के बाद पुलिस बल लगाकर 17 मार्च 2012 को दिल्ली एम्स में जबरदस्ती आहार देकर अनशन तुड़वा दिया गया। इसी समय आश्वासन दिया गया कि गंगा प्राधिकरण का गठन किया जाएगा।
आश्वासन व समझौते के बाद 17 अप्रैल 2012 को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में गंगा प्राधिकरण की बैठक हुई, जिसमें प्रो. अग्रवाल आमंत्रित नहीं थे किंतु उनका पक्ष रखने के लिए 4 सदस्य थे, जिसमें उनके एजेंडे पर चर्चा की गई। प्रो. अग्रवाल ने बताया कि इस बैठक में मैदानी जांच के बाद निर्णय लेने के लिए केन्द्रीय मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल, नारायण सामी एवं राजेन्द्र सिंह सहित कई लोगों की एक समिति बनाई गई। बाद में 15 जून को योजना आयोग के सदस्य डॉ. बी.के. द्विवेदी की अध्यक्षता में एक अन्तर मंत्रीमंडलीय समूह का केन्द्र सरकार ने गठन किया। जिसे जांच के बाद तीन माह में प्रखंड में बांध के परिप्रेक्ष्य में निर्णय लेना था जो नहीं लिया गया। बाद में इसका कार्यकाल 31 अक्टूबर 2012 तक बढ़ाया गया, जिसे पुनः 31 जनवरी 2013 तक समय दे दिया गया तथा गंगा नदी की सभी समस्याओं को इसकी सीमा में लाया गया। इस समिति में राजेन्द्र सिंह, सुनीता नारायण सहित तीन गैर शासकीय सदस्य थे।
प्रो. जी.डी. अग्रवाल ने अपने पांचवे अनशन के दौरान इस लेखक को बताया कि अंतर मंत्रीमंडलीय समूह की एक बैठक 28 जनवरी 2013 को हुई, जिसमें भागीरथी व अलकनन्दा पर बने बांधों को निरस्त करने के विषय पर चर्चा के साथ-साथ 31 मार्च 2013 का समय और मांगा था। 26 जनवरी 2013 पौष पूर्णिमा से अमरकंटक के पास के जिला मुख्यालय शहडोल में अपने शिष्य गिरधर माथनकर के निवास पर उपवास पर बैठे डॉ. अग्रवाल ने निराशा भरे स्वर में बताया कि बार-बार समितियां और समय सीमा बढ़ाने से उन्हें लगने लगा है कि शासन में बैठे लोगों की रुचि गंगा को बचाने में नहीं है, बल्कि इलाहाबाद के कुंभ को शान्तिपूर्ण ढंग से निपटाने में ज्यादा है। बाद में डॉ. अग्रवाल ने अमरकंटक में अनशन जारी रखा किंतु प्रशासन ने उनकी मांगों को मानने का उपक्रम करते हुए भी नहीं माना और अन्ततः उन्हें 21 मार्च 2013 को बनारस में अनशन समाप्ति की घोषणा करनी पड़ी। उत्तरकाशी में धारीदेवी के मंदिर व मूर्ति को बांध से डूबने से बचाने का प्रयास में हल निकालने के लिए जब प्रयास खत्म होने लगे तब छठी बार प्रो. अग्रवाल अलकनन्दा व भागीरथी नदी के समस्त बांध निरस्त कर गंगा के प्रवाह को अविरल रखा जाये, की मांग पर मातृसदन हरिद्वार में विगत 16 जून को अनशन पर बैठे थे। गौरतलब है कि व्यवस्था में बैठे लोग यदि प्रारंभ में ही डॉ. अग्रवाल की बात मान लेते तो उत्तराखंड की यह दर्दनाक घटना जो पूर्णतः मानवीकृत है संभवतः न होती।