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दैनिक जागरण, 14 अप्रैल, 2017
गंगा-यमुना समेत देश की तमाम नदियों को प्रदूषण के रोग से मुक्ति दिलाने के लिये न्यायपालिका के सक्रिय होने से इस महाअभियान में तेजी सी आ गई है। उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा गंगा नदी को जीवित व्यक्ति के समान दर्जा दिए जाने को हफ्ता भर भी नहीं बीता कि विशेषज्ञों की समिति ने सरकार को अपनी रिपोर्ट (मॉडल कानून) सौंप दी। रिपोर्ट में सरकार से नदियों के प्रवाह को बाधित करने और उसे मैला करने वालों पर सख्त कानूनी प्रावधान लागू किए जाने की बात कही गई है। मॉडल कानून में भारी जुर्माने के साथ सात साल तक के लिये जेल भेजे जाने की भी व्यवस्था का सुझाव दिया है।
अगर सरकार ने सेवानिवृत्त न्यायाधीश गिरधर मालवीय की अध्यक्षता वाली समिति के सुझावों को मान लिया और संसद ने मंजूरी के साथ उसे कानूनी जामा पहना दिया तो नदियों में कचरा, नष्ट न होने वाली प्लास्टिक, बैट्रियाँ फेंकने वाले, खतरनाक व जहरीले रसायनों युक्त पानी को नदी में बहाने वाले सात साल तक के लिये जेल की सलाखों के पीछे हो सकते हैं। समिति के इस आदर्श कानून को केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों, राज्यों की सरकारों और अन्य सम्बन्धित पक्षों को राय मशविरे के लिये भेजा जाएगा। नदी के प्रवाह को रोकने और उसे प्रदूषित करने के मामले में व्यक्ति और कम्पनियों पर लगने वाले जुर्माने और सजा की मियाद के बारे में उनके विचार जाने जाएँगे। मॉडल कानून में नदी के प्रवाह को बाधित करने या उसका रास्ता बदलने वाले व्यक्ति या कम्पनी पर 100 करोड़ जुर्माने और दो साल तक की जेल या दोनों का प्रावधान है।
खास बातें केंद्र सरकार राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालयों के साथ विचार विमर्श के बाद गंगा कानून का मसौदा पेश करेगी। केंद्र सरकार ने गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये 31 दिसम्बर 2020 की समय सीमा तय की है। |
विशेषज्ञ समिति ने रिपोर्ट में यह सुझाव भी दिया है कि गंगा के तटीय इलाकों की सभी खेतिहर जमीन को ऑर्गेनिक कृषि क्षेत्र घोषित कर दिया जाए। इतना ही नहीं इलाके में केमिकल युक्त पेस्टीसाइड, उर्वरक और अन्य गैर ऑर्गेनिक चीजों के इस्तेमाल पर पूर्णतया प्रतिबंध लगा दिया जाए। व्यवस्था का पालन न करने वालों को जुर्माने और जेल की सजा देकर दंडित किया जाए।
ज्ञात हो, सरकार ने पिछले साल यानी 2016 में जस्टिस गिरधर मालवीय की अध्यक्षता में इस समिति का गठन किया था। इस समिति को गंगा कानून का मसौदा तैयार करने को कहा गया था।
केंद्रीय जल संसाधन और गंगा पुनरुद्धार मामलों की मंत्री उमा भारती ने समिति द्वारा बुधवार को रिपोर्ट सौंपे जाने पर खुशी जाहिर करते हुए कहा, यह ऐतिहासिक दिन है, उम्मीद है समिति की रिपोर्ट में नदियों को प्रदूषण से मुक्ति दिलाने और उसके अविरल प्रवाह को बरकरार रखने के लिये मॉडल कानून में उपयुक्त प्रावधान किए होंगे। उमा ने कहा, विशेषज्ञ समिति की रिपोर्ट पर राज्यों की सरकारों और अन्य सम्बन्धित पक्षों के साथ सलाह मशविरा करके जल्द ही इस पर काम शुरू किया जाएगा। उन्होंने केंद्रीय जल संसाधन सचिव को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द इस मामले में दस्तावेज तैयार करने के लिये उच्च स्तरीय समिति का गठन करें, ताकि मंत्रालय प्रभावी विधेयक तैयार कर सके।
केंद्र की ओर से गठित समिति ने गंगा और उसकी सहायक नदियों को 31 दिसम्बर 2020 तक प्रदूषण मुक्त बनाने का लक्ष्य तय किया है। ध्यान रहे नरेंद्र मोदी सरकार ने गंगा के पुनर्जीवन का संकल्प लेते हुए 2015-20 तक समय तय किया है। इसके लिये सरकार ने अलग से मंत्रालय का गठन ही नहीं किया बल्कि 20 हजार करोड़ रुपये की व्यवस्था भी की है। जस्टिस गिरधर समिति की रिपोर्ट और सरकार के प्रस्तावित कदमों की मदद से प्रशासन नदियों को बर्बाद करने वालों तथा अतिक्रमणकारियों से सही तरीके से निपट सकेगी।
समिति के अहम सुझाव
1. कोई भी नदी, उसके तट या घाटों के साथ छेड़छाड़ नहीं करेगा। नदी के जल में या किनारे पर ठोस अपशिष्ट (सॉलिड वेस्ट) फेंककर प्रदूषण नहीं फैलाएगा। ना ही प्लास्टिक आदि जलाकर पर्यावरणीय क्षति पहुँचाएगा। ऐसा करने पर एक माह की जेल या 10 हजार रुपये तक का जुर्माना हो सकता है।
(छूट: धार्मिक परम्परा के तहत नदी के किनारे शवदाह क्रिया को सम्पन्न करना अपराध की श्रेणी में नहीं आएगा।)
2. नदी के किनारों पर व्यक्ति या संस्था द्वारा किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं किया जाएगा। ऐसा करने पर तीन माह की जेल या पाँच हजार जुर्माना अथवा दोनों हो सकते हैं। जुर्माने की रकम पाँच हजार की दर से रोजाना बढ़ सकती है।
(छूट: पारम्परिक उत्सवों व धार्मिक कार्यों के लिये प्रशासन की अनुमति से निश्चित समयावधि के लिये अस्थाई निर्माण करना गैरकानूनी नहीं होगा।
3. नदी के किनारे खेतिहर क्षेत्र में गैर ऑर्गैनिक खेती करना दंडनीय होगा। ऐसा करने वालों को एक माह की जेल या दो हजार रुपये जुर्माना या फिर दोनों ही सजा हो सकती है। प्रावधानों का उल्लंघन जारी रहने पर जुर्माने की सजा 10 हजार रुपये तक हो सकती है।
4. नदी में ठोस अपशिष्ट, प्लास्टिक, बेकार हो चुकी बैट्रियाँ और खतरनाक केमिकल फेंकना या बहाना घोर दंडनीय है। इसके तहत सात साल तक के लिये जेल हो सकती है। इतना ही नहीं जुर्माने की रकम स्थानीय निकायों द्वारा तय की जाएगी।
5. नदी के प्रवाह को बाधित करना, भण्डारण क्षमता बढ़ाने के लिये बाँधों की डिजाइन में परिवर्तन करना भी अपराध की श्रेणी में आएगा। इसके लिये दो साल तक की जेल या 100 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। दोनों सजाएँ साथ-साथ भी चल सकती हैं।
6. औद्योगिक कचरा और गैरशोधित सीवेज सीधे नदी में प्रवाहित करना भी दंडनीय होगा। इसके लिये व्यक्ति या कम्पनी के जिम्मेदारों को सात साल तक की सजा या 10 लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। दोनों सजाएँ साथ भी दी जा सकती हैं।
7. गंगा की निगरानी के लिये समग्र विकास परिषद गठित की जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता वाली परिषद में केंद्रीय मंत्री और राज्यों के मुख्यमंत्री सदस्य हों।
विभिन्न नदियों की सफाई परियोजनाओं के क्रियान्वयन के लिये गंगा पुनरोद्धार मंत्री की अध्यक्षता में राष्ट्रीय नदी गंगा प्रबंधन प्राधिकरण (नेशनल रिवर गंगा मैनेजमेंट कॉरपोरेशन) का गठन किया जाए।
8. बचाव, सुरक्षा और प्रवर्तन गतिविधियों के लिये गंगा वॉलंटियर फोर्स बनाई जाए।