हम उस सभ्यता के वासी हैं जहाँ धरती को हम अपनी माँ कहते हैं, पर सवाल यह उठता है कि क्या हम अपनी धरती माँ की वाकई केयर करते हैं। हर साल पृथ्वी को स्वच्छ रखने की कसमें भी खाई जाती हैं। मगर हालात नहीं बदल रहे हैं। पृथ्वी पर हवा और पानी, सब प्रदूषित हो चुका है। ऐसा ही रहा तो वह दिन भी दूर नहीं जब यह धरती ही हमारे रहने लायक नहीं होगी। प्रदूषण के कारण न स्वच्छ पानी होगा और न ही ऑक्सीजन। आइये जानते हैं कि हर दिन कैसे हो रहा है ये ‘अनर्थ’...
हमारी धरती की कुंडली |
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उम्र |
4.54 अरब साल |
वजन |
5.97219 X 1024 किलोग्राम |
सूर्य से दूरी |
14,95,00,000 किलोमीटर |
जीवनकाल |
50 करोड़ साल से 2.3 अरब साल तक और |
बाशिंदे |
1.4 करोड़ प्रजातियाँ |
व्यास |
6371 किलोमीटर |
चिन्ता
अपनी धरती को बचाने की जगह हम उसे किसी-न-किसी रूप में प्रदूषित कर रहे हैं। जिसका परिणाम हमें ही भुगतना पड़ेगा।
1. 6 अरब किलोग्राम कूड़ा रोज समंदर में डाला जाता है।
2. 2 लाख करोड़ रुपए का नुकसान भारत हर साल प्रदूषण की वजह से उठा रहा है।
3. 8 सेकेंड में एक बच्चा गन्दा पानी पीने से मर जाता है।
4. 10 लाख टन तेल की शिपिंग के दौरान 1 टन तेल समंदर में बह जाता है।
5. 20 वर्षों में दुनिया में मौसमी बदलाव की प्रक्रिया हुई है सबसे तेज। पूरी दुनिया में दिख रहा है असर।
6. 186 साल के अब तक के धरती के तापमान के रिकॉर्ड्स को तोड़कर धरती का अब तक का सबसे गर्म साल साबित हुआ 2017।
7. 50 साल से जारी ग्लोबल वॉर्मिंग लेती जा रही है विकराल रूप।
8. 02 नम्बर की पोजीशन पर है इण्डिया दुनिया में सबसे खराब एयर क्वालिटी के लिहाज से दिल्ली सबसे खराब एयर क्वालिटी वाले शहरों में टॉप पर है।
हम अक्सर मौसम में हो रहे बदलाव पर चर्चा और चिन्ता तो करते हैं, लेकिन इसके कारण भी हम ही हैं। अपनी धरती के प्रति हमारी उदासीनता मौसम में बदलाव का बड़ा कारण है।
गायब हो रहे हरे जंगल
हम भले ही जंगल को डर के माहौल में देखते हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि यह जंगल ही हमारी जिन्दगी में मंगल लाते हैं। लेकिन हम इन्हें तबाह करते जा रहे हैं।
1. 01 प्रकार के जंगल (ट्रॉपिकल थॉर्न व श्रब्स कैटेगरी) में ही केवल इण्डिया में थोड़ा इजाफा हुआ है, वह भी इसलिये क्योंकि मौसमी बदलाव के कारण उत्तर क्षेत्र के इलाके होते जा रहे हैं मरुस्थलीय।
2. 29 परसेंट जमीन का हिस्सा ही बचा है जंगल युक्त। साथ ही ये परसेंटेज साल-दर-साल लगातार गिरता जा रहा है।
3. 01 नम्बर की पोजीशन पर है इण्डिया दुनिया में ईंधन के तौर पर लकड़ियों व लकड़ी के कोयले का इस्तेमाल करने में।
4. 20 परसेंट भूमिक्षेत्र तक ही सीमित रह गया है पारम्परिक जंगल इण्डिया में। ये 6.5 करोड़ हेक्टेयर भूमि के समतुल्य है।
5. 30 लाख लोगों की आजीविका का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से साधन है जंगल। इस संख्या में आने वाले दिनों में और बढ़ोत्तरी के हैं आसार
6. 42,000 करोड़ रुपए सालाना सरकार खर्च कर रही है देश में पेड़ों की संख्या बढ़ाने के लिये। इसमें 6,000 करोड़ की वार्षिक बढ़ोत्तरी भी की जा रही है।
7. 90,000 प्राणियों और 1300 पक्षियों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं इंडिया के जंगलों में। पूरी दुनिया में ट्रॉपिकल रेनफॉरेस्ट्स के बाद इण्डिया ही है सबसे समृद्ध। मगर डीफॉरेस्टेशन के इम्पैक्ट के कारण कई प्रजातियों के आलोपित होने का खतरा मँडरा रहा है।
सोचिएगा जरूर
बढ़ता प्रदूषण, घटता पानी का स्तर, गली-मोहल्ले में उड़ता पॉलिथीन का बवंडर, उजड़ते हरित जंगल। इसमें प्रकृति का नहीं बल्कि हमारा योगदान है। आखिर कब तक हम धरती पर अत्याचार करते रहेंगे। क्या हम अपनी आने वाली पीढ़ी को ऐसा भविष्य देना चाहते हैं, जहाँ साँस लेने को शुद्ध हवा ही न हो, पीने को स्वच्छ पानी न हो और-तो-और छाँव के लिये पेड़ या पौधों का पूरी तरह अकाल हो।