ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे से दून भी अछूता नहीं है। यहाँ की नदियों में अब पानी की जगह सूखी धरती पर वाहनों की बाढ़ नजर आती है। देहरादून के तापमान में वृद्धि भी ग्लोबल स्टैंडर्ड से अधिक मापी गई है। स्टैंडर्ड 50 वर्ष में 1 डिग्री सेल्सियस का है, लेकिन दून में 40 वर्ष में ही तापमान में औसत 1 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे में औसत से अधिक तेजी से बढ़ रहे तापमान की वजह है घटते पेड़ और उनकी जगह उगते कंक्रीट के जंगल। देहरादून की बात करें तो वर्ष 1972 से 1977 तक 5 वर्षों में शहर में गर्मी के तीन महीनों का एवरेज मैक्सिमम तापमान 33.7 डिग्री सेल्सियस और मिनिमम तापमान 19.6 डिग्री सेल्सियस आँका गया था। ठीक 40 साल बाद 2012 से 2017 के बीच 5 वर्ष के तापमान का एवरेज मैक्सिमम 34.6 डिग्री सेल्सियस और मिनिमम तापमान 20.4 डिग्री सेल्सियस रहा। जो 40 वर्ष में लगभग 1 डिग्री बढ़ गया है।बढ़ते तापमान की यह है वजह
पर्यावरणविद चंडी प्रसाद भट्ट इसकी वजह खेती की जमीन पर कंक्रीट के जंगल उगाये जाने को जिम्मेदार मानते हैं। वे कहते हैं कि 40 साल पहले दून वनों का शहर था। चारों ओर जंगल हरे-भरे खेत फैले हुए थे, आज चारों ओर कंक्रीट के जंगल हैं। ऐसे में तापमान तो बढ़ना ही है।
ग्लेशियर जोन ज्यादा सेंसिटिव
एचएनबी गढ़वाल सेंट्रल यूनिवर्सिटी के भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग को लेकर दुनिया भर में की जा रही रिसर्च बताती है कि ग्लेशियर और समुद्र तटीय क्षेत्रों में मौसम चक्र तेजी से बदल रहा है। सभी हिमालयी राज्यों पर भी इसका असर अन्य क्षेत्रों की तुलना में तेजी से पड़ रहा है।
वर्ष |
1972-1977 |
2012-2017 |
||
माह |
मैक्सिमम |
मिनिमम |
मैक्सिमम |
मिनिमम |
अप्रैल |
32.1 |
16.4 |
33.4 |
17.1 |
मई |
35.0 |
20.1 |
36.2 |
21.3 |
जून |
34.1 |
22.4 |
34.8 |
23.3 |
एवरेज |
33.7 |
19.7 |
34.6 |
20.5 |
तापमान डिग्री सेल्सियस में |
स्वच्छ पानी की जगह बह रहे सीवर और जहरीले पदार्थ
दून की रिस्पना, सुसवा व बिंदाल नदियों में अब स्वच्छ पानी की जगह सीवर व गन्दगी बह रही है। स्पैक्स के सचिव डॉ. बृज मोहन शर्मा ने बताया कि वर्ष 2016 में मोथरोवाला, दुधली, नागल बुलंदवाला, नागल ज्वालापुर, झणोद व मारखमग्रांट ग्रामसभाओं ने राज्य मानवाधिकार आयोग में इसकी शिकायत दर्ज की थी।
खतरनाक तत्व |
मानक |
नदी में मात्रा |
तेल-ग्रीस |
0.1 |
11 से 18 |
टीडीएस |
500 |
740 से 1200 |
बीओडी |
02 |
126 से 144 |
डीओ |
06 |
अधिकतम 1.4 |
लेड |
0.1 |
0.54 |
नाइट्रेट |
20 |
388 से 453 |
टोटल कोलीफॉर्म |
50 |
1760 से 3800 |
फीकल कोलीफॉर्म |
शून्य |
516 से 1460 |
रिस्पना नदी के पानी की स्थिति (टोटल कोलीफॉर्म की मात्रा एमपीएन/100 एमएल में व अन्य की मात्रा एमजी/लीटर में) |
वायु प्रदूषण का स्तर भी 6 वर्ष में हुआ दोगुना
पिछले 6 सालों में दून में प्रदूषण दो गुना तक बढ़ गया है। विशेषज्ञ प्रदूषण की इस रफ्तार से चिन्तित हैं और बताया जा रहा है कि इसी स्पीड से अगर दून की हवा में जहर घुलता रहा तो 2022 तक दून की हवा साँस लेने लायक नहीं बचेगी।
पीएम-2.5 की स्थिति खतरनाक
10 इलाकों में पीएम-2.5 की कुल 45 रीडिंग ली गई। मात्र 6 रीडिंग ही मानक या उससे कम यानी 60 वर्ष से नीचे पाई गई। 85 प्रतिशत रीडिंग में पीएम-2.5 मानक से ज्यादा पाया गया। 22 रीडिंग में ये 60 से 120 के बीच, 8 में 120 से 180 के बीच, 6 में 180 से 240 के बीच, 1 में 240 से 300 के बीच और 2 रीडिंग में 300 से ज्यादा पाया गया।
पीएम-10 भी 400 के पार
हवा में 100 से ज्यादा पीएम-10 का होना हानिकारक है, लेकिन दून में 44 रीडिंग में से मात्र 11 में ही पीएम-10 मानक या उससे कम पाया गया। 2 रीडिंग में पीएम-10 का स्तर 400 से ज्यादा पाया गया।
क्या है पीएम-2.5 व पीएम-10
पीएम-10 और पीएम-2.5 हवा में मौजूद महीन कण हैं। पार्टिकुलेट मैटर को हवा में माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर में मापा जाता है। देश में पीएम-10 का मानक स्तर 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर और पीएम-2.5 का मानक स्तर 60 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तय किया गया है।
इन जगह से लिये प्रदूषण के आँकड़े
1. बल्लीवाला चौक
2. सहारनपुर चौक
3. दून हॉस्पिटल
4. रिस्पना पुल
5. आईएसबीटी
6. रायपुर
7. करनपुर
8. दिलाराम चौक
9. घंटाघर
10. बिंदाल पुल
हवा में लगातार बढ़ रही है खतरनाक पीएम-2.5 और पीएम-10 की मात्रा
10 वर्ष से गिरता जा रहा है दून का वाटर लेवल
भूजल का स्तर वर्ष में दो बार मापा जाता है। प्री मानसून और पोस्ट मानसून। दस वर्ष पहले पोस्ट मानसून की तुलना में भूजल के स्तर में प्री मानसून जाँच में अधिकतर 5 मीटर का वैरिएशन आता था। वर्ष 2016 में यह वैरिएशन तीन से चार गुना अधिक हो गया। इस वर्ष 15 से 20 मीटर तक भूजल स्तर मेें गिरावट दर्ज की गई। जो अलार्मिंग हैं। वर्ष 2017 में भी बारिश कम हुई और भूजल का दोहन बरकरार है। रेनवाटर हार्वेस्टिंग के इन्तजाम नहीं किये गए, ऐसे में इस वर्ष मई में यह गिरावट और खतरनाक स्तर तक पहुँचने की आशंका है।
तीन गुना गिरा वाटर लेवल |
|
15 मीटर |
वर्ष 2017 |
5 मीटर |
वर्ष 2008 |
हैण्डपम्प |
|
18000 |
प्रदेश में |
2900 |
देहरादून जिले में |
350 |
दून शहर में |
पिछले दिनों में सूख गए |
|
220 |
प्रदेश में |
45 |
देहरादून जिले में |
12 |
दून शहर में |
मौसमी बदलाव
1. 20 परसेंट धरती पर पड़ने वाली सूर्य की किरणों को सोखकर 80 परसेंट को रिफ्लेक्ट कर देते हैं ग्लेशियर। इस तरह वह धरती के नेचुरल सनस्क्रीन का काम करते हैं मगर उनके गलने से ये प्रोसेस उल्टा होता जा रहा है।
2. 03 पोजीन पर है कार्बनिक एमीशन के मामले में इण्डिया। चीन व अमेरिका हैं इस मामले में।
हमारी धरती के 70 परसेंट हिस्से में पानी है, लेकिन केवल 3 परसेंट पानी पीने योग्य है। इसके बाद भी हम पानी की कीमत नहीं समझ रहे और दोहन कर रहे हैं। इसके परिणाम भी जानें...
1. 1.1 अरब लोग मौजूदा वक्त में रोजाना जलसंकट से जूझ रहे हैं।
2. 4 प्रतिशत ही पीने योग्य पानी का हिस्सा है इण्डिया में।
3. 22 प्रमुख मेट्रो सिटीज जूझ रही हैं जल संकट से। इनमें से 11 में स्थिति विकराल हो रही स्थिति।
4. 16.3 करोड़ भारतीयों को स्वच्छ जलापूर्ति के लिये रोजाना जूझना पड़ता है। गंगा, जमुना और साबरमती देश की सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल हैं।
5. 44 सिगरेट पीने बराबर दूषित हवा में साँस लेता है आम इंसान स्मॉग के दौरान दिल्ली व एनसीआर के इलाकों में रोजाना।
6. 2037 तक पूरी दुनिया में गल रहे ग्लेशियर्स के कारण कई शहर समुद्र में पूरी तरह डूब जाएँगे।
7. 02 परसेंट ग्लोबल कार्बन एमीशन में हुआ है साल 2017 में इजाफा। पेरिस समिट में इसकी रोकथाम को लेकर सहमति बनने के बाद भी कुछ खास बदलाव नहीं आया अभी तक।
8. 03 किलोमीटर गंगोत्री-गोमुख ग्लेशियर पिघल चुका है पिछले दो शताब्दियों में। ऐसा ही अगर जारी रहा तो मौजूदा शताब्दी के खत्म होने से पहले ही पूरी तरह गल जाएगा गोमुख ग्लेशियर।