भूजल गटक रहे 31 हजार प्रतिष्ठान

Submitted by RuralWater on Sat, 03/31/2018 - 13:35
Source
दैनिक जागरण, 31 मार्च, 2018

 

दून में 150 से अधिक बड़ी आवासीय परियोजनाएँ, 200 से अधिक ऑटोमोबाइल के वर्कशॉप हैं, जो भारी मात्रा में भूजल का दोहन करते हैं। जबकि भूजल रीचार्ज की बात करें तो ढूँढे भी ऐसे उदाहरण नहीं मिल पाते। वह तो भला हो मानसून का, जिससे भूजल का 1.26 बिलियन क्यूबिक मीटर रीचार्ज हो जाता है। जबकि अन्य स्रोतों से महज 0.24 बीसीएम ही जल रीचार्ज हो पाता है। दूसरी तरफ भूजल पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है, ऐसे में एक समय वह भी आएगा, जब मानसून से होने वाला रीचार्ज भी नाकाफी साबित होने लगेगा।

आखिर धरती कब तक मानसून के भरोसे आँचल भरती रहेगी। क्या हमारी और हमारी सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं है कि न सिर्फ भूजल पर दबाव कम किया जाये और उसे रीचार्ज करने के भी समुचित प्रयास किये जाएँ। घरेलू भूजल दोहन को फिलहाल छोड़ भी दें तो प्रदेश में 31 हजार से अधिक ऐसे प्रतिष्ठान हैं, जो रात-दिन भूजल का दोहन कर रहे हैं। राजधानी दून में ही 150 से अधिक बड़ी आवासीय परियोजनाएँ, 200 से अधिक ऑटोमोबाइल के वर्कशॉप हैं, जो भारी मात्रा में भूजल का दोहन करते हैं। जबकि भूजल रीचार्ज की बात करें तो ढूँढे भी ऐसे उदाहरण नहीं मिल पाते।

वह तो भला हो मानसून का, जिससे भूजल का 1.26 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) रीचार्ज हो जाता है। जबकि अन्य स्रोतों से महज 0.24 बीसीएम ही जल रीचार्ज हो पाता है। दूसरी तरफ भूजल पर निर्भरता लगातार बढ़ रही है, ऐसे में एक समय वह भी आएगा, जब मानसून से होने वाला रीचार्ज भी नाकाफी साबित होने लगेगा। उस समय के हालात क्या होंगे, यह हमारी मशीनरी जरा भी उस दृष्टि से सोचे तो भूजल रीचार्ज की दिशा में सार्थक प्रयास सम्भव हैं।

जलनीति का पता नहीं


केन्द्र सरकार वर्ष 2005 में जलनीति लेकर आई थी, जबकि इसके अनुसार राज्य की नीति पर अब तक भी तस्वीर स्पष्ट नहीं हो पाई है। हालांकि नीति पर काम चल रहा है, मगर रफ्तार बेहद सुस्त हैं। दूसरी तरफ भूजल दोहन पर नियंत्रण रखने वाले केन्द्रीय भूजल बोर्ड के साथ भी राज्य के अधिकारी तालमेल बैठाकर काम नहीं करते। तमाम व्यावसायिक प्रतिष्ठान बिना एनओसी भूजल दोहन कर रहे हैं और हमारा सिस्टम हाथ पर हाथ धरे बैठा है।

 

 

 

अभी हालात बेहतर, पर कब तक?

क्षेत्र

उपलब्धता

दोहन

फीसद

देहरादून

36457.91

4505.56

12.36

विकासनगर

6474.28

1947.88

30.09

डोईवाला

14698.89

1079.40

7.34

सहसपुर

15284.74

1478.28

09.67

नोट : भूजल उपलब्धता व दोहन हेक्टोमीटर में)

 

दबाव कम करने के लिये यह काम जरूरी


1. राज्य के 5000 पारम्परिक नौलों व अन्य स्रोतों का पुनर्जीवीकरण।
2. ग्रेविटी आधारित परियोजनाओं पर फोकस।
3. जल प्रवाह में 50 से 90 व इससे अधिक फीसद कमी वाले स्रोतों को रीचार्ज करना। जबकि सालों पहले इनका चिन्हीकरण हो चुका है।

सिंचाई के लिये भी बढ़ रही निर्भरता


राज्य में इस समय पानी के सबसे आसान स्रोत भूजल दोहन की तरफ तेजी से निर्भरता बढ़ती जा रही है। सिंचाई भी एक ऐसा ही सेक्टर है, जबकि सरकार चाहे तो सिंचाई के लिये सतह पर मिलने वाले पानी के स्रोतों का प्रयोग कर सकती है। क्योंकि यदि समय पर ऐसा नहीं किया गया तो यहाँ भी पंजाब जैसे हालात पैदा हो सकते हैं। वहाँ सिंचाई के लिये भूजल के अत्यधिक दोहन से जलस्तर बेहद नीचे चला गया है। केन्द्रीय भूजल बोर्ड की एक रिपोर्ट पर गौर करें तो पता चलता है कि वर्ष 2025 तक सिंचाई के लिये भूजल की उपलब्धता 1.01 बीसीएम की जगह 0.98 बीसीएम ही रह जाएगी।

भूजल पर बढ़ता दबाव


1. 2.07 भूजल की वार्षिक उपलब्धता
2. 1.01 सिंचाई में प्रयुक्त
3. 0.03 घरेलू व व्यावसायिक उपयोग4. 1.04 कुल दोहन5. 0.98 घरेलू व व्यावसायिक माँग नतीजा वर्ष 2025 में बढ़ती माँग के बीच हम उपलब्धता के करीब आ जाएँगे और तब हालात विकट होने लगेंगे।

सरकारी भवनों में भी अब कवायद


देर से ही सही, मगर सरकार ने भूजल पर दबाव कम करने के लिये सरकारी भवनों में रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की योजना बनाई है। राजधानी दून में ही ऐसे 137 सरकारी भवनों का चिन्हीकरण किया गया है। हालांकि इस पर काम कब शुरू हो पाएगा, यह कह पाना अभी मुश्किल है।