प्लास्टिक से परहेज करें

Submitted by RuralWater on Sun, 04/22/2018 - 17:49
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दैनिक जागरण, 22 अप्रैल, 2018


जिस प्लास्टिक को हम बड़ी शान से अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाए हुए हैं, वही अब हमारी नसों में पैबस्त होकर हमें खोखला, बहुत खोखला करता जा रहा है। रसायन विज्ञान की यह खोज मानवता के लिये धीमा जहर बन चुकी है। रिसाइकिल की पर्याप्त व्यवस्था न होने से यहाँ-वहाँ प्लास्टिक के ढेर जमा हैं। प्राकृतिक रूप से यह सड़नशील नहीं है। सैकड़ों-हजारों वर्षों में इसकी धुर्री-धुर्री भूजल में मिल रही है। जिस पानी को हम पीते हैं, उसमें प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मिलने लगे हैं, कई जगह समुद्र के पानी से बने नमक में भी ये प्लास्टिक मिला है। यही प्लास्टिक आगे जाकर हमारी पीढ़ियों को रुग्ण बनाएगा। अब आपको सोचना है कि प्लास्टिक से परहेज करके अपनी पीढ़ियों को बचाना है या उन्हें उनकी किस्मत पर छोड़ देना है। दुनिया भर में प्लास्टिक के बढ़ते खतरे के प्रति आगाह करने के लिये इसे बार 22 अप्रैल को मनाए जा रहे पृथ्वी दिवस की थीम भी यही है, प्लास्टिक प्रदूषण को खत्म करो।
प्लास्टिक बैगप्लास्टिक बैगप्लास्टिक खत्म करने की पहल

हमारी ही लापरवाही का नतीजा है कि समुद्र में प्लास्टिक कचरा बढ़ रहा है आशंका है कि अगर यही स्थिति रही तो 2050 तक समुद्र में मछलियों से अधिक प्लास्टिक कचरा नजर आएगा। हालांकि इससे निपटने के प्रयास भी जारी हैं। इसी क्रम में नीदरलैंड ने समुद्र साफ करने की पहल कर दी है।

बोतलबन्द पानी में प्लास्टिक

फ्रेडोनिया स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूयॉर्क के वैज्ञानिकों ने नौ देशों में 19 स्थानों की 259 बोतलों पर अध्ययन किया। इसमें सामने आया कि जिस पानी को लोग मिनरल वाटर समझकर पीते हैं, उसमें प्रति लीटर औसतन 325 प्लास्टिक के सूक्ष्म कण मौजूद हैं। किसी-किसी बोतल में प्लास्टिक के सूक्ष्म कणों की सान्द्रता दस हजार तक भी दिखी। 259 में से केवल 17 बोतलें प्लास्टिक मुक्त मिली।

प्लास्टिक चट करेगा एंजाइम

ब्रिटेन और अमेरिका शोधकर्ताओं ने ऐसा एंजाइम तैयार किया है जो प्लास्टिक को गलाकर खत्म कर सकता है। पीईटी-एज नाम के इस एंजाइम ने खाद्य व पेय पदार्थों को पैक करने में इस्तेमाल होने वाली पॉलीइथाइलीन टेरेपथेलेट (polyethylene terephthalate - PET) नामक प्लास्टिक में रासायनिक बदलाव करके उसे उसके मूल घटक में परिवर्तित कर दिया। इस खोज के बाद पीईटी बोतलों को रिसाइकिल करके उससे नई बोतलें और गुणवत्तापरक उत्पाद बनाए जा सकेंगे। इससे प्लास्टिक उत्पादन में कमी आएगी।

समुद्र से छानेगा कचरा

सौ मीटर लम्बा रबर का यह अवरोधक समुद्री सतह पर रहेगा। इसमें नीचे की ओर एक लम्बी जाली लगी है। यह समुद्र में तिकोने आकार में है। उतराते हुए यह समुद्री सतह पर मौजूद प्लास्टिक कचरे को अपने घेरे में एकत्र करेगा।

 

समुद्र में कचरा फैलाने वाले देश

चीन

88

इंडोनेशिया

32

फिलीपींस

19

वियतनाम

18

श्रीलंका

16

मिस्र

10

थाइलैंड

10

मलेशिया

09

नाइजीरिया

09

बांग्लादेश

08

अमेरिका

03

आँकड़े लाख मीट्रिक टन में

 

विदेश में पहल

फ्रांस : इस ने 2016 में प्लास्टिक पर बैन लगाने का कानून पारित किया। इसके तहत प्लास्टिक की प्लेटें, कप और सभी तरह के बर्तनों को 2020 तक पूरी तरह प्रतिबन्धित कर दिया जाएगा। फ्रांस पहला देश है जिसने प्लास्टिक से बने रोजमर्रा की जरूरत के सभी उत्पादों को पूरी तरह बैन किया है। इस कानून के तहत प्लास्टिक उत्पादों के विकल्प के तौर पर जैविक पदार्थों से बने उत्पादों को इस्तेमाल किया जाएगा।

रवांडा : अन्य विकासशील देशों की तरह यहाँ भी प्लास्टिक की थैलियों ने जल निकासी के रास्ते अवरुद्ध कर दिये थे जिससे यहाँ के इकोसिस्टम को नुकसान पहुँचने लगा था। इस विकट स्थिति से निपटने के लिये यहाँ की सरकार ने देश से प्राकृतिक रूप से सड़नशील न होने वाले सभी उत्पादों को बैन कर दिया। यह अफ्रीकी देश 2008 से प्लास्टिक मुक्त है।

स्वीडन : यहाँ प्लास्टिक बैन नहीं किया गया है बल्कि प्लास्टिक को अधिक-से-अधिक रिसाइकिल किया जाता है। यहाँ किसी भी तरह का कचरा रिसाइकिल करके बिजली बनाई जाती है। इसके लिये यह पड़ोसी देशों से कचरा खरीदता है।

आयरलैंड : देश ने 2002 में प्लास्टिक बैग टैक्स लागू किया जिसके तहत लोगों को प्लास्टिक बैग इस्तेमाल करने पर भारी-भरकम टैक्स चुकाना पड़ता था। इस कानून के लागू होने के कुछ दिन बाद ही वहाँ प्लास्टिक बैग के इस्तेमाल में 94 फीसदी कमी आ गई।

उपभोक्तावाद की त्रासदी

बोतल में बन्द होता पानी

1. 10 लाख प्रति मिनट खरीदी जाने वाली पानी की बोतलें या 20 हजार प्रति सेकेंड बिकने वाली बोतलें
2. 50 प्रतिशत बोतलें जिन्हें रिसाइकिल करने के लिये एकत्र किया जाता है।
3. 480 अरब 2016 में बिकी कुल पानी की बोतलें
4. 110 अरब 2016 में बिकी कुल बोतलों में कोकाकोला द्वारा निर्मित
5. 7 प्रतिशत वे बोतलें जिनसे नई बोतलें बनाई जाती हैं

नलों के पानी में मौजूद प्लास्टिक

दुनिया भर के लोग नलों से आ रहे पानी के साथ प्लास्टिक के सूक्ष्म कण (प्लास्टिक फाइबर) पी रहे हैं। पाँच महाद्वीपों के 12 से ज्यादा देशों के पानी के नमूनों में से 83 प्रतिशत में प्लास्टिक के कण मिले हैं।

जो बन रहे नजीर

आप अपने ही आस-पास नजर दौड़ाएँगे तो पाएँगे कि हमारे ही गली-मोहल्लों और कस्बों में ऐसे योद्धा हैं जो प्लास्टिक के खिलाफ जंग लड़ रहे हैं। पेश हैं ऐसी ही कुछ नजीरें-

प्लास्टिक से बना रहे सड़क

झारखण्ड - झारखण्ड के जमशेदपुर में कूड़े से बीने गए प्लास्टिक से सड़क बनाई जा रही है। टाटा स्टील के लिये नागरिक सुविधा मुहैया कराने वाली कम्पनी जुस्को (जमशेदपुर यूटिलिटीज एंड सर्विसेज कम्पनी लिमिटेड) ने बर्मामाइंस में एक प्रोसेसिंग प्लांट बनाया है, जहाँ कोलतार में 10 फीसद प्लास्टिक मिलाया जाता है। इस अलकतरा से बनी सड़क की मजबूती बढ़ जाती है। प्लास्टिक का मिश्रण अलकतरा को आपस में बाँधे रखता है, जिससे सड़क जल्दी नहीं टूटती।

बोतलों से बना टॉयलेट
जमशेदपुर टेल्को के गरुड़बासा गाँव के मानव विकास स्कूल में प्लास्टिक की बेकार बोतलों से बनाया गया शौचालय इतना मशहूर हुआ कि मुख्यमंत्री रघुवर दास भी इसे देखने पहुँचे। इस शौचालय को टेल्को के हिलटॉप की छात्रा मौंद्रिता चटर्जी ने बनाया है। इस इको-फ्रेंडली शौचालय की दीवारें बनाने में 11000 प्लास्टिक की बोतलें लगाई गई हैं। ये बोतलें 50 रुपए प्रति किलो की दर से खरीदी गई हैं। इससे प्रेरणा लेकर पश्चिम बंगाल वर्धमान जिले में अशोक भौमिक ने भी प्लास्टिक की बोतलों से शौचालय बना डाला।

कपड़े के थैले बाँटकर लड़ रही जंग

छत्तीसगढ़रायपुर की शुभांगी आप्टे अपने हाथों से कपड़े के थैले बनाकर स्कूलों, सामाजिक संस्थाओं के आयोजनों, महिला समितियों और अन्य जगहों पर निःशुल्क बाँटकर प्लास्टिक की थैलियों का इस्तेमाल न करने का सन्देश दे रही हैं। 63 वर्षीय शुभांगी ने जब अपनी मुहिम शुरू की तब बहुत से लोगों ने उन पर तंज कसे, लेकिन आज उनकी मुहिम रंग लाने लगी है। उनके पास-पड़ोस में रहने वालों और शहर की विविध समितियों की सैकड़ों महिलाओं ने कपड़े के थैलों का ही इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है। कई महिलाओं ने उनसे प्रेरणा लेकर स्वयं थैला बनाना शुरू कर किया। अब तक वह 30 हजार से अधिक कपड़े के थैले लोगों को निःशुल्क दे चुकी हैं। शहर की कई संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया है।

प्रोफेसरों ने तैयार की गलने वाली पॉलिथीन

उत्तर प्रदेश - जल, जंगल, जमीन में जहर घोल रहे पॉलिथीन के खतरनाक रसायन का तोड़ बरेली में ढूँढा गया है। रुहेलखण्ड विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रमेंद्र कुमार और डॉ. भीमराव अम्बेडकर यूनिवर्सिटी लखनऊ के डॉ. ज्योति पांडेय ने कुदरती सिंथेटिक पॉलीमर से नष्ट होने लायक (बायो डिग्रेडेबल) पॉलिथीन तैयार की है। पर्यावरण को इससे कोई नुकसान नहीं है। बेहद आसानी से यह बनती है और जल्दी गल जाती है। इस बायो-डिग्रेडेबल पॉलिथीन को मिट्टी में दबाने पर महीने भर में यह पूरी तरह नष्ट हो गई।

पूरे परिसर को बनाया प्लास्टिक मुक्त

उत्तर प्रदेश की मऊ जनपद के कुशमौर में स्थापित आईसीएआर के राष्ट्रीय कृषि उपयोगी सूक्ष्मजीवी ब्यूरो (एनबीएआईएम) व राष्ट्रीय बीज विज्ञान संस्थान परिसर में कोई प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करता। इसका श्रेय जाता है एनबीएआईएम के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. आलोक श्रीवास्तव को। दो साल पहले डॉ. आलोक ने ब्यूरो परिसर में प्लास्टिक वेस्टेज मैनेजमेंट की शुरुआत की। परिसर के परिवार में कपड़े के झोलों का वितरण कराया। परिसर में जगह-जगह वेस्ट प्लास्टिक को एकत्र करने के लिये बॉक्स रखवाए। कैम्पस की आवासीय कॉलोनियों के लोग अपने गीले-सूखे कचरे को अलग रखते हैं। प्लास्टिक को इकट्ठा करके कैम्पस में लगे प्लास्टिक वेस्टेज ड्रम में डालते हैं। इस प्लास्टिक को रिसाइक्लिंग के लिये भेजा जाता है।

प्लास्टिक बैग रिसाइकिल कर बचा रहे पर्यावरण

पंजाब - जालंधर के कमल अग्रवाल ने पढ़ाई खत्म करने के बाद डायनमो बैटरी का बिजनेस शुरू किया। बैटरी की प्लेट बनाने के लिये वे बाजार से प्लास्टिक दाना खरीद कर लाते थे। जब उन्होंने देखा कि प्लास्टिक कचरा खाने से गाएँ अपनी जान गवाँ रही हैं तो उन्होंने प्लास्टिक दाना बाजार से खरीदने के बजाय प्लास्टिक कचरे को गलाकर प्लास्टिक दाना बनाने की सोची। उन्होंने प्लास्टिक दाना बनाने की यूनिट लगाई। दुकानदारों, फैक्टरियों व चिकित्सकों से आग्रह किया कि वे इस्तेमाल किये गए प्लास्टिक बैग कूड़े में फेंकने की बजाय उन्हें बेंच दें। इस योजना में उन गो भक्तों को भी अपने साथ जोड़ा जो गो शालाओं में प्लास्टिक के लिफाफों में घास लेकर जाते थे। पिछले दो वर्षों से चल रही इस मुहिम का परिणाम है कि अब उनके पास हर महीने 100 किलो इस्तेमाल किये हुए प्लास्टिक कैरी बैग आते हैं जो पहले कूड़े में फेंक दिये जाते थे। अब उनकी मुहिम में इलाके के 200 परिवार जुड़ गए हैं। हॉस्पिटल में प्रयोग होने वाली प्लास्टिक सीरिंज भी अब उनके पास आने लगी हैं जिन्हें गलाकर दाना बनता है।

कुल्हड़ व दोना-पत्तल से दे रहे प्लास्टिक को चुनौती

हरियाणा - प्लास्टिक प्रदूषण को कम करने के लिये फरीदाबाद की एक संस्था धरती माँ ट्रस्ट प्लास्टिक और थर्माकोल से बनी प्लेट व गिलास के विकल्प के तौर पर मिट्टी के कुल्हड़ और ढाक के पत्तों से बने दोने और पत्तल तैयार कर रही है। इस संस्था के संस्थापक बीएस बिष्ट पतझड़ के दिनों में शहर के विभिन्न इलाकों से ढाक के गिरे हुए पत्ते एकत्र करते हैं। बाद में इनसे पत्तल तथा दोने बनाते हैं। साथ ही मिट्टी के कुल्हड़ और पत्तल को बढ़ावा देने पर जोर देते हैं।

जागरूक कर रहे ग्रीन वॉरियर्स

नई दिल्ली - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2 अक्टूबर 2014 को स्वच्छ भारत अभियान का आगाज किया, तो अगले दिन 3 अक्टूबर को पंजाबी फिल्मों में पटकथा लेखक व दिल्ली निवासी राहुल देवेश्वर ने अपने कुछ दोस्तों के साथ बद्रीनाथ के नजदीक माणा ने ऋषिकेश तक प्लास्टिक के खिलाफ पैदल यात्रा की शुरुआत की। 45 दिनों में 450 किमी की यात्रा के दौरान वह ग्राम पंचायत, जिला प्रशासन समेत अन्य वर्गों से मिले। इस दौरान उन्हें फैजाबाद और अयोध्या से बुलावा आया। जनवरी 2015 से सितम्बर 2017 के बीच उनके अभियान से अकेले फैजाबाद से रोजाना 2.5 टन प्लास्टिक व अन्य वेस्ट सामान खुले में फेंकने की जगह इकट्ठा होने लगा।

अब विकल्पों का प्रयोग

प्लास्टिक को 20वीं सदी की बड़ी खोज का दर्जा दिया जा सकता है, पर साथ में यह उतना ही विनाशकारी भी बन चुका है। आज हर पत्थर के नीचे इस देश में भगवान हो न हों, पर प्लास्टिक जरूर है। दो बड़े कारणों ने आज प्लास्टिक को इस स्तर पर पहुँचा दिया है। पहला है सरकार की दरियादिली व दूसरा घर-बाहर की हर आवश्यकता में प्लास्टिक का दखल।

हालात यह हैं कि आज हर वर्ष 15 हजार टन प्लास्टिक हमारे बीच में है और हर रोज उपयोग में लाया जाता है। इस तरह का प्लास्टिक सिर्फ ऐसे कचरे के रूप में तब्दील हो जाता है, जिसका कोई ठिकाना नहीं है। इस 15 हजार टन में मात्र छह हजार टन ही एकत्रित किया जाता है। अब जब प्रति व्यक्ति दुनिया में 45 किलो प्लास्टिक प्रति वर्ष उपयोग में लाएगा तो तय मानिए कि खेती-बाड़ी से ज्यादा प्लास्टिक ही नजर आएगा। अब नदियाँ हों या समुद्र सबको प्लास्टिक ने पाटना शुरू कर दिया है।

करीब पाँच लाख करोड़ प्लास्टिक पदार्थ समुद्र में तैरते हैं। और यही नहीं जीव-जन्तुओं की करीब 267 विभिन्न प्रजातियाँ जिसमें गाय से लेकर मछली व अन्य प्राणी शामिल हैं, प्लास्टिक निगल रही हैं। यह इनके लिये एक बड़ा खतरा बन चुका है। प्लास्टिक के एक बड़े विकल्प की तैयारी हमारा बड़ा कदम होना चाहिए।

इस बात को हम अस्वीकार नहीं कर सकते हैं कि उन तमाम उपयोगों में जहाँ हम आज प्लास्टिक को तवज्जो दे रहे हैं वो तब पहले भी किसी-न-किसी रूप में हमारे बीच में थे, जिन्हें हमने प्लास्टिक को सरल मानते हुए छोड़ दिया। प्लास्टिक के विकल्पों को खोजने का कदम दूसरे ग्राम आधारित रोजगारों को भी जन्म देगा। सरकारों को भी चाहिए कि प्लास्टिक के उन तमाम उत्पादों व नियंत्रणों पर रोक लगा दे, जहाँ प्लास्टिक प्रायः और निरन्तर प्रयोग में लाया जाता है और खास उत्पादों तक सीमित कर दे...अनिल जोशी, संस्थापक, हिमालयन एनवायरनमेंटल स्टडीज एंड कंजर्वेशन ऑर्गेनाइजेशन

 

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