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पंचायतनामा, 10-16 मार्च 2014
स्वच्छ पेयजल व स्वच्छता मानव का मूल अधिकार है तो दूसरी तरफ मानवीय गरिमा का प्रतीक है। यदि भारतीय संविधान की बात करें तो पेयजल और स्वच्छता के विषय को राज्य का विषय माना गया है। संविधान में यह भी लिखा है कि संघीय व्यवस्था के मद्देनजर राज्यों की जिम्मेवारी है कि पेयजल और स्वच्छता पर नीति निर्मित कर पेयजल व स्वच्छता कार्यक्रमों को उचित दिशा-निर्देश लोगों को प्रदान करें। राज्य में पेयजल व स्वच्छता सुविधाओं का स्थायित्व, समुदाय की भागीदारी, सशक्त अनुश्रवण एवं मूल्यांकन प्रणाली में आवंटित धनों का समुचित व समयबद्ध तरीके से उपयोग न होना चिंता का विषय है।
भू-गर्भ जल के दोहन से पेयजल स्रोत का स्थायित्व व गुणवत्ता प्राभावित हुआ है। फ्लोराइड, आर्सेनिक एवं अन्य रासायनिक कन्टामेंट के कारण राज्य का एक बहुत बड़ा भाग प्रभावित है। प्रदेश की एक बड़ी आबादी आज भी खुले में शौच करती हैं, जिसके कारण गंदगी फैलती है व पेयजल के स्रोत प्रभावित होती हैं। इसके वजह से डायरिया, कॉलरा जैसी बीमारियों से लोग प्रावित हो रहे हैं।भू-गर्भ जल के दोहन से पेयजल स्रोत का स्थायित्व व गुणवत्ता प्राभावित हुआ है। फ्लोराइड, आर्सेनिक एवं अन्य रासायनिक कन्टामेंट के कारण राज्य का एक बहुत बड़ा भाग प्रभावित है। प्रदेश की एक बड़ी आबादी आज भी खुले में शौच करती हैं, जिसके कारण गंदगी फैलती है व पेयजल के स्रोत प्रभावित होती हैं। इसके वजह से डायरिया, कॉलरा जैसी बीमारियों से लोग प्रावित हो रहे हैं। इन समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए स्वच्छ पेयजल व स्वच्छता नीति का निर्धारण अति आवशयक है। इसी को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
1. हर व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में उपयुक्त गुणवत्ता का जल पीने व घरेलू आवश्यकता के लिए स्थायी तौर पर उपलब्ध कराना।
2. हर घर, सभी विद्यालयों में आंगनबाड़ी सहित मानव मल के सुरक्षित निपटारे के लिए शौचालय की व्यवस्था करना।
1. पेयजल व स्वच्छता की समेकित नीति का निर्माण करना।
2. लोगों को स्थायी पेयजल व स्वच्छता का लाभ के लिए लोकोन्मुखी निर्देशिका एवं नीतिगत प्रारूप प्रदान करना।
3. सभी टोलों में ‘सामनता एवं समरसता’ के सिद्धांतों पर उचित मात्रा में सही तरीके से गुणवत्ता का पेयजल व स्च्छता सुविधा उपलब्ध कराना।
4. पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र में फाइनेन्शियल फ्रेमवर्क निर्मित करना जिससे पेयजल व स्वच्छता सेवाएं कॉस्ट इफेक्टिव तरीके से प्रदान हो।
5. पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र में समुदाय, गरीब वंचित, महिलाएं, बच्चे व गैर सरकारी संस्थाओं का भूमिका निर्धारण करना।
6. प्रासंगिक संस्थागत व्यवस्था प्रस्तुत करना, जिससे पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र में कार्य कर रहे संस्थाओं के कार्यक्रम प्रभावी व सस्टेनेबल हो सके और पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र के समस्याओं का स्थायी समाधान किया जा सके।
राज्य सरकार की ओर से बहुत हद तक सभी टोलों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई तरह के कार्य किए गए। इसमें सफलता भी मिली है, लेकिन सफलता उतनी नहीं मिली जितनी सरकारी योजनाओं को मिलती है।
राज्य में कुल 34909 आबादी पेयजल गुणवत्ता से अब भी प्रभावित है। 5957 आबादी आर्सेनिक से तो 26442 आबादी लौह से प्रभावित है। इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा कार्य किया जा रहा है। यदि स्वच्छता की बात करें तो 8643 स्कूलों में से लगभग 4977 स्कूलों में पेयजल व स्वच्छता की व्यवस्था की जा चुकी है। वहीं 2367 स्कूलों में पेयजल की व्यवस्था, 640 में शौचालय की व्यवस्था की जा रही है। 659 स्कूलों में पेयजल व स्वच्छता की व्यवस्था की जानी है। इसके लिए भी योजनाएं बनायी जा चुकी है। शीघ्र ही कार्य को शुरू किया जाएगा।
जल संसाधन का पहला क्लेम पेयजल का होगा और उपलब्ध जल इस तरह इस्तेमाल किए जाएंगे कि पेयजल व स्वच्छता के लिए सदा सर्वदा पर्याप्त मात्रा में उपयुक्त गुणवत्ता का जल सभी को उपलब्ध हो।
1. सभी पेयजल व स्वच्छता परिसंपत्तियों की मालकियत पंचायतों की होगी।
2. पंचायतों को फण्ड्स, फंक्शनरीज उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि वह अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर सके।
3. पेयजल व स्वच्छता परियोजनाएं मांग आधारित व समुदाय आधारित होगी।
4. प्लानिंग से रख-रखाव तक हर चक्र में समुदाय की विशेष भागीदारी व निर्णयों में हिस्सेदारी सुनिश्चत की जाएगी।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सुविधा अदायगी का स्तर न्यूनतम 70 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मानक पर की जाएगी। पेयजल के सारे कार्यक्रमों का नियोजन आबादी के डिजाइन जनसंख्या के आधार पर होगा।
6. स्कूलों में पेयजल व स्वच्छता की सुविधा नामांकित छात्र-छात्राओं की संख्या के आधार पर होगा। पेयजल के लिए पम्प, मेरी-गो-राउंड पंप आदि कि आधुनिक व्यवस्था का उपयोग। शौचालय का निर्माण बच्चों की आवश्यकता व व्यवहार के आधार पर।
7. हर ग्राम के पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण संवर्धन निर्मित पेयजल स्कीमों के स्थायित्व के लिए जल संरक्षण व संवर्धन को बढ़ावा देना।
8. बाढ़ व सूखाड़ क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक विकल्प प्रदान करना। इन क्षेत्रों में पेयजल स्रोतों का निर्माण इस प्रकार से किया जाना ताकि बाढ़ के समय में भी सुरक्षित रहे और लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करा सकें। सूखाड़ के क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन पर विशेष ध्यान रखना ताकि पेयजल के स्थायित्व सुरक्षित रहे। वहीं बाढ़ के क्षेत्र में स्वच्छता परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए फ्लडप्रुफ तकनीक विकल्प जैसे इकोसैन आदि का उपयोग। सूखाड़ क्षेत्रों में कम जल का उपयोग लेने वाले शौचालय मॉडलों का निर्माण।
पेयजल आपूर्ति व स्वच्छता क्षेत्र में नित्य नए प्रणाली विकसित हो रहे हैं। इन नयी प्रणाली को लागू करने के शोध व विकास कार्य के लिए एक सेल गठन होने की आवश्यकता है। विभाग इस कार्य के लिए प्रांजल नाम से एक प्रशिक्षण सहशोध केंद्र का स्थापना की जा रही है।
भू-गर्भ जल के दोहन से पेयजल स्रोत का स्थायित्व व गुणवत्ता प्राभावित हुआ है। फ्लोराइड, आर्सेनिक एवं अन्य रासायनिक कन्टामेंट के कारण राज्य का एक बहुत बड़ा भाग प्रभावित है। प्रदेश की एक बड़ी आबादी आज भी खुले में शौच करती हैं, जिसके कारण गंदगी फैलती है व पेयजल के स्रोत प्रभावित होती हैं। इसके वजह से डायरिया, कॉलरा जैसी बीमारियों से लोग प्रावित हो रहे हैं।भू-गर्भ जल के दोहन से पेयजल स्रोत का स्थायित्व व गुणवत्ता प्राभावित हुआ है। फ्लोराइड, आर्सेनिक एवं अन्य रासायनिक कन्टामेंट के कारण राज्य का एक बहुत बड़ा भाग प्रभावित है। प्रदेश की एक बड़ी आबादी आज भी खुले में शौच करती हैं, जिसके कारण गंदगी फैलती है व पेयजल के स्रोत प्रभावित होती हैं। इसके वजह से डायरिया, कॉलरा जैसी बीमारियों से लोग प्रावित हो रहे हैं। इन समस्याओं के स्थायी समाधान के लिए स्वच्छ पेयजल व स्वच्छता नीति का निर्धारण अति आवशयक है। इसी को देखते हुए राज्य सरकार की ओर से कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
पानी-शौचालय पर जोर
1. हर व्यक्ति को पर्याप्त मात्रा में उपयुक्त गुणवत्ता का जल पीने व घरेलू आवश्यकता के लिए स्थायी तौर पर उपलब्ध कराना।
2. हर घर, सभी विद्यालयों में आंगनबाड़ी सहित मानव मल के सुरक्षित निपटारे के लिए शौचालय की व्यवस्था करना।
पेयजल एवं स्वच्छता प्रारूप के उद्देश्य
1. पेयजल व स्वच्छता की समेकित नीति का निर्माण करना।
2. लोगों को स्थायी पेयजल व स्वच्छता का लाभ के लिए लोकोन्मुखी निर्देशिका एवं नीतिगत प्रारूप प्रदान करना।
3. सभी टोलों में ‘सामनता एवं समरसता’ के सिद्धांतों पर उचित मात्रा में सही तरीके से गुणवत्ता का पेयजल व स्च्छता सुविधा उपलब्ध कराना।
4. पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र में फाइनेन्शियल फ्रेमवर्क निर्मित करना जिससे पेयजल व स्वच्छता सेवाएं कॉस्ट इफेक्टिव तरीके से प्रदान हो।
5. पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र में समुदाय, गरीब वंचित, महिलाएं, बच्चे व गैर सरकारी संस्थाओं का भूमिका निर्धारण करना।
6. प्रासंगिक संस्थागत व्यवस्था प्रस्तुत करना, जिससे पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र में कार्य कर रहे संस्थाओं के कार्यक्रम प्रभावी व सस्टेनेबल हो सके और पेयजल व स्वच्छता क्षेत्र के समस्याओं का स्थायी समाधान किया जा सके।
राज्य में जल व स्वच्छता की स्थिति
राज्य सरकार की ओर से बहुत हद तक सभी टोलों में पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए कई तरह के कार्य किए गए। इसमें सफलता भी मिली है, लेकिन सफलता उतनी नहीं मिली जितनी सरकारी योजनाओं को मिलती है।
राज्य में कुल 34909 आबादी पेयजल गुणवत्ता से अब भी प्रभावित है। 5957 आबादी आर्सेनिक से तो 26442 आबादी लौह से प्रभावित है। इसे दूर करने के लिए सरकार द्वारा कार्य किया जा रहा है। यदि स्वच्छता की बात करें तो 8643 स्कूलों में से लगभग 4977 स्कूलों में पेयजल व स्वच्छता की व्यवस्था की जा चुकी है। वहीं 2367 स्कूलों में पेयजल की व्यवस्था, 640 में शौचालय की व्यवस्था की जा रही है। 659 स्कूलों में पेयजल व स्वच्छता की व्यवस्था की जानी है। इसके लिए भी योजनाएं बनायी जा चुकी है। शीघ्र ही कार्य को शुरू किया जाएगा।
पेयजल व स्वच्छता नीति के सिद्धांत
जल संसाधन का पहला क्लेम पेयजल का होगा और उपलब्ध जल इस तरह इस्तेमाल किए जाएंगे कि पेयजल व स्वच्छता के लिए सदा सर्वदा पर्याप्त मात्रा में उपयुक्त गुणवत्ता का जल सभी को उपलब्ध हो।
1. सभी पेयजल व स्वच्छता परिसंपत्तियों की मालकियत पंचायतों की होगी।
2. पंचायतों को फण्ड्स, फंक्शनरीज उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि वह अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन कर सके।
3. पेयजल व स्वच्छता परियोजनाएं मांग आधारित व समुदाय आधारित होगी।
4. प्लानिंग से रख-रखाव तक हर चक्र में समुदाय की विशेष भागीदारी व निर्णयों में हिस्सेदारी सुनिश्चत की जाएगी।
5. ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल सुविधा अदायगी का स्तर न्यूनतम 70 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के मानक पर की जाएगी। पेयजल के सारे कार्यक्रमों का नियोजन आबादी के डिजाइन जनसंख्या के आधार पर होगा।
6. स्कूलों में पेयजल व स्वच्छता की सुविधा नामांकित छात्र-छात्राओं की संख्या के आधार पर होगा। पेयजल के लिए पम्प, मेरी-गो-राउंड पंप आदि कि आधुनिक व्यवस्था का उपयोग। शौचालय का निर्माण बच्चों की आवश्यकता व व्यवहार के आधार पर।
7. हर ग्राम के पारंपरिक जल स्रोतों का संरक्षण संवर्धन निर्मित पेयजल स्कीमों के स्थायित्व के लिए जल संरक्षण व संवर्धन को बढ़ावा देना।
8. बाढ़ व सूखाड़ क्षेत्रों के लिए प्रासंगिक विकल्प प्रदान करना। इन क्षेत्रों में पेयजल स्रोतों का निर्माण इस प्रकार से किया जाना ताकि बाढ़ के समय में भी सुरक्षित रहे और लोगों को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध करा सकें। सूखाड़ के क्षेत्रों में वर्षा जल संचयन पर विशेष ध्यान रखना ताकि पेयजल के स्थायित्व सुरक्षित रहे। वहीं बाढ़ के क्षेत्र में स्वच्छता परिसंपत्तियों के निर्माण के लिए फ्लडप्रुफ तकनीक विकल्प जैसे इकोसैन आदि का उपयोग। सूखाड़ क्षेत्रों में कम जल का उपयोग लेने वाले शौचालय मॉडलों का निर्माण।
पेयजल आपूर्ति व स्वच्छता क्षेत्र में नित्य नए प्रणाली विकसित हो रहे हैं। इन नयी प्रणाली को लागू करने के शोध व विकास कार्य के लिए एक सेल गठन होने की आवश्यकता है। विभाग इस कार्य के लिए प्रांजल नाम से एक प्रशिक्षण सहशोध केंद्र का स्थापना की जा रही है।