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विस्फोट.कॉम, जुलाई 2010
राजस्थान की पहचान वैसे तो रेगिस्तान से है। लेकिन अरावली की श्रृखलाएं भी उसके बहुत बडे हिस्से में फैली हुई हैं। अभी तक अरावली की इन श्रृखलाओं को हरा-भरा करने के नाम पर देश और विदेशी मदद के पैसे को अकेला वन विभाग हड़प करता रहा। अब इन श्रृखलाओं से पत्थर और लकडी का दोहन सरकार के दर्जनों विभाग और उनकी आड़ में खुद सरकारें कर रही हैं। राजस्थान के भरतपुर जिले में अवैध खनन के गोरखधंधे की पड़ताल करती एक रिपोर्ट।
नमक का दरोगा मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्व ऐतिहासिक कहानी है। स्वतंत्रता आंदोलन के उस दौर में जब देश में नमक जैसी ईश्वरप्रदत्त वस्तु के व्यापार पर प्रतिबंध था। लेखक ने मुंशी बंशीधर जैसे चरित्र का सृजन किया जो रात के अंधेरे में अपनी ड्यूटी का निर्वहन बड़ी ही ईमानदारी के साथ करता है। वहीं दूसरा चरित्र पण्डित अलोपीदीन का है जो लक्ष्मी के बलबूते अपना राज्य चलाते थे, उनकी मान्यता थी कि धरती तो क्या स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज है। एक दिन अलोपीदीन की लक्ष्मी और बंशीधर के धर्म के बीच जंग होती है, धर्म जीत जाता है। कहानी का नायक बंशीधर घर से नौकरी करने के लिए जाता है तो पिता समझाते है बेटा वेतन तो पूर्णिमा का चाँद होता है ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है। वेतन मनुष्य देता है ऊपरी आय ईश्वर देता है। कहानी के नायक मुंशी बंशीधर की समझ में पिता की ये शिक्षा नहीं आती है और वो रात के अंधेरे में ड्यूटी करते हुये लक्ष्मी से बैर मोल ले लेता है।
राजस्थान के भरतपुर जिले के अवैध खनन क्षेत्रों में भी कई विभागों के आला अधिकारी रात को ड्यूटी कर रहे हैं पर अब वो प्रेमचंद के नायक की तरह लक्ष्मी से बैर मोल नहीं ले रहे हैं। उनकी रात की ड्यूटी ही वो काम है जिसमें वो प्रकृति के साथ खुले आम खिलवाड़ कर रहे हैं। पहाड़ों का अस्तित्व संकट में डाल रहे हैं। हरे पौधों को खून के आँसू रोने को मजबूर कर रहे हैं। एक ओर प्रदेश में भले ही ‘हरित राजस्थान’ जैसा अभियान चल रहा हो मगर यहाँ तो सैकड़ों पेड़ अवैध खनन के साथ रोजाना काटे जा रहे हैं। वन संरक्षित क्षेत्र वीरान नजर आ रहे हैं। प्रकृति रो रही है, पहाड़ों से पत्थर के रास्ते पैसा नीचे से ऊपर तक मानों बह रहा है। बहती नदी में सब नहा रहे हैं। प्रकृति के आँसुओं से उन्हें क्या पड़ी, उन्हें तो पैसे की बरसात के स्नान में आनन्द आ रहा है। देखते ही देखते बीते दस सालों में कई पहाड़ों का अस्तित्व मिट सा गया है तो कुछ सैकडों फीट गहरे गड्ढों में तब्दील हो गये।
2 जून, बुधवार। प्रदेश के एक प्रमुख दैनिक समाचार पत्र में भरतपुर जिले के रुदावल कस्बे से एक खबर छपी। जिसका मजमून कुछ इस तरह से है।‘‘ रूदावल थाना क्षेत्र में से अवैध खनन कर निकाले जाने वाले इमारती पत्थर, लकड़ी से भरे वाहनों से रात को कार्यवाही के नाम पर अवैध वसूली की जा रही है। कार्यवाही का शिकार हुये लोगों का शक है कि रात को आने वाली इस जीप में उपखंड क्षेत्र के एक दो सरकारी कर्मचारी हैं जो मोटी वसूली करते है। खबर में आगे लिखा है, मजेदार बात ये है कि क्षेत्र में स्थित सफेद पत्थर की खानों से निकलने वाले बेशकीमती अवैध पत्थर को 15 किलोमीटर दूर बयाना स्थित रीको क्षेत्र तक पहुँचाने में कई विभागों की निर्धारित वसूली के बाद भी ये अंजान लोग रात को वसूली करने में जुटे हुये है।
इस पूरी खबर में अंजान लोगों की इस वसूली से भी अधिक दो बातें महत्वपूर्ण है। जिनसे जानबूझ कर अंजान बनने की कोशिश की गई है। एक - ‘‘ अवैध खनन कर निकाले जाने वाला बेशकीमती इमारती पत्थर। दो - अवैध पत्थर को 15 किलोमीटर दूर बयाना स्थित रीको क्षेत्र तक पहुँचाने में कई विभागों की निर्धारित वसूली के बाद भी ’’। इसका सीधा सा मतलब है कि क्षेत्र में पत्थर का अवैध खनन हो रहा है और उसके होने के पीछे की सच्चाई ये है कि सरकार के जिन विभागों के मजबूत कंधों पर उसे रोकने की जिम्मेदारी है। वन क्षेत्र का संरक्षित कर उसे और अधिक हरा-भरा बनाकर पर्यावरण को सुखद करने का काम है वो ही उसे कराने की कीमत वसूल रहे हैं। इन दो बातों को तो अखबार ने सीधे-सीधे ही कह दिया है।
3 जून, दिन गुरुवार। संभाग मुख्यालय पर हाल ही में नियुक्त कमिश्नर मधुकर गुप्ता जिले भर के आला अधिकारियों की एक बैठक कर अवैध खनन को लेकर सख्त निर्देश देते हैं। बकौल गुप्ता अधिकारी खनिज संपदा के महत्व को समझें और अपने दायित्व का निष्ठापूर्वक निर्वहन करें। साथ में लापरवाही पाये जाने पर सख्त कार्यवाही करने की हिदायत भी दे देते हैं। जिसके अनुसार पर्यावरण संरक्षण की दृष्टि से उच्च न्यायालय द्वारा जारी आदेशों की पालना सुनिश्चित करने की बात भी की गई। संभाग कमिश्नर ने बैठक में गाँव के पटवारी, वन विभाग के रेंजर, थाना अधिकारी सहित आला अधिकारियों की जिम्मेदारी नियत कर दी गई। वैसे ऐसे निर्देश और मीटिंग यहाँ आम प्रक्रिया का ही एक हिस्सा है। इस पूरे गोरखधंधे से जुड़े लोगों की मानें तो आने वाला हर अधिकारी प्रकिया का हिस्सा बनने से पहले उसकी गहराई को इसलिए समझ लेना जरूरी समझता है कि उसमें उसका हिस्सा क्या है और वो कहीं उसके स्तर से कम तो नहीं है।
5 जून, मंगलवार। पुलिस, प्रशासन और वन विभाग से सामूहिक रूप से छापे की एक बडी कार्यवाही को अंजाम दिया। अवैध खनन क्षेत्र के मजबूत मोबाईल नेटवर्क के बावजूद या कहें इस दबाव में कि ऊपर से आदेश है कुछ तो जब्त करना ही पड़ेगा, आधा दर्जन मशीनों को जब्त कर लिया। जिसमें तीन मशीन, एक जेनरेटर, एक कम्प्रेशर और एक ट्रैक्टर-ट्राली को जब्त कर लिया। इस घटना के बीच एक बड़ा वाकया और घटित हुआ। उपखंड अधिकारी रूपवास को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने जब्त सामान में आग लगाने के मौके पर आदेश दे दिये। इतने में एक पीपा कैरोसीन भी मौके पर मंगा लिया गया। ग्रामीणों के आक्रोशित होकर विरोध करने और साथ उपस्थित अधिकारियों की समझाईश पर उन्हें ऐसा करने से रोका जाना संभव हुआ। यहाँ एक बडा सवाल ये पैदा होता है कि उपखंड अधिकारी को इतना गुस्सा क्यों आया? लोगों की मानें तो रात में अवैध वसूली की बात सामने आने के बाद से उपखंड अधिकारी का मूड कुछ उखड़ा हुआ है।
भरतपुर जिले में 7 विधानसभा क्षेत्र हैं। जिनमें से 4 में तो पत्थर के अवैध खनन का कारोबार अपने चरम पर चल रहा है। यही कारण है इन जगहों पर आने के लिए प्रदेश भर के बाबू से लेकर आला अफसरान तक होड़ मची रहती है। जिन्हें इन क्षेत्रों में आने और रुकने का अवसर मिल जाता है वो खुद को धन्य भाग्य महसूस करते हैं। जिसमें भी सबसे अधिक चर्चाओं में बयाना-रूपवास, वैर क्षेत्र बना हुआ है। जिन क्षेत्रों में पत्थर की लूट मची हुई है उनमें वाणासुर की ऐतिहासिक नगरी बयाना, कृष्ण के कामवन के लिए प्रसिद्ध कांमा, इतिहास में विद्वानों के कारण प्रसिद्ध रही लघु काशी वैर, जलमहलों की नगरी डीग और रूपवसंत नगरी रूपवास है। इन सभी में सर्वाधिक चर्चित क्षेत्र रीको बयाना के चलते रूपवास -बयाना ही है। जहाँ से बेशकीमती सैण्डस्टोन, पिंक स्टोन और सफेद पत्थर निकाला जाता है। इस व्यवसाय से जुड़े लोगों की मानें तो विगत 20 बर्षो में देश में कहीं भी कोई बड़ी सरकारी इमारत, भवन, मन्दिर, होटल, पार्क और अन्य किसी भी प्रकार को कोई निर्माण कार्य रहा हो जिसमें सफेद, सैण्डस्टोन और पिंक स्टोन के नाम से मशहूर पत्थर यदि लगा है तो वो यहीं से गया है। ऐसे निर्माण कार्यो में राजस्थान प्रदेश की अपनी विधानसभा, मायावती के पार्क, मूर्तियां, निवास, दिल्ली का अक्षरधाम मन्दिर और हजारों इसी प्रकार के निर्माण कार्य हैं जिनमें ये पत्थर लग कर उनकी शोभा में चार चाँद लगा रहा है। ये काम आज भी उसी स्तर पर जारी है।
रूपवास तहसील में बंशी पहाड़पुर के पास एक गाँव है सिर्रोद। जहाँ खनिज विभाग की कुछ लीज है। इसके अलावा महलपुर चूरा और बसई मोड़ पर एक दो लीज जारी है। इन वैध क्षेत्रों में लाल पत्थर निकलता है जिसे निकाला ही नहीं जाता है। इस क्षेत्र के सफेद, सैण्डस्टोन और पिंक स्टोन की माँग है जो पूरा क्षेत्र वन विभाग के अधीन है। बंध वारैठा जीव अभ्यारण्य भी इसी अवैध खनन के क्षेत्र में आता है। रूदावल से पहाड़पुर के बीच रेलवे का 22 नंबर फाटक है। वैसे ये फाटक पहाड़पुर गाँव जाने का रास्ता है। लेकिन अब ये रास्ता पूरी तरह से बंद रहता है। गेट मैन से जब हमने कारण जानने की कोशिश की तो उसने बताया कि इधर पत्थर की खाने हैं और ये केवल उन्हीं साधनों के लिए खोला जाता है, जिनमें पत्थर जाता है। पास ही अपने पशुओं को चरा रहे एक युवक का कहना था ‘ उनके लिए गेट मुफ्त में खुल जाता है हर एक साधन को निकालने का चढ़ावा चढ़ाया जाता है। गेट संख्या 22 के अन्दर जहाँ तक भी नजर जाती है पत्थर के पहाड़ नजर आते हैं। इस प्रतिबंधित क्षेत्र में सफेद पत्थर की 180 के करीब खाने हैं। जिनमें से पत्थर को निकाला जाता है। इस बावत जब वन विभाग की अपनी ऑफिस में तख्त पर लेटे फोरेस्टर सूर्यपाल सिंह से हमने सच्चाई जानने की कोशिश की तो उनका कहना था कि ‘‘गेट संख्या 22 के अन्दर का क्षेत्र वन रक्षित है उसमें खनन हो रहा है हम कर भी क्या सकते हैं हमारे पास संसाधन ही नही हैं’’ उनसे जब लेन-देन के बारे में पूछा तो उन्होने खुद को पाक साफ बताते हुये इतना तो स्वीकार कर ही लिया कि बिना आग के धुआँ दिखाई नहीं देता है’’। रैंजर ईश्वर सिंह मीणा का कहना था कि‘‘ अवैध खनन करने वाले लोग इस काम को सामूहिक रूप से अंजाम देते हैं कई बार स्थिति हमारे लिए भी जानलेवा हो जाती है। हमारे लिए भी सुरक्षा का खतरा बना रहता है फिर भी हम लोग कार्यवाही करने का प्रयास करते हैं। स्थानीय पुलिस का सहयोग हमें कम ही मिल पाता है। गार्डों की मिलीभगत से रेलवे का फाटक 22 बंद रखा जाता है जिससे जब भी कोई कार्यवाही हो तो उसकी सूचना खननकर्ताओं को मिल जाये’’।