केवलादेव की राष्ट्रीय पहचान पर संकट मडराया

Submitted by Hindi on Fri, 12/11/2009 - 12:38
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भरतपुर के केवलादेव पक्षी विहार के उथले पानी में भोजन की तलाश करते परिन्देभरतपुर के केवलादेव पक्षी विहार के उथले पानी में भोजन की तलाश करते परिन्देराजस्थान की यूँ तो अपनी पहचान है. मगर उस पहचान के साथ भरतपुर के केवलादेव पक्षी विहार के जुड जाने से से उसमें वृद्वि ही होती है . प्रदेश के पूर्वी हिस्से के जिले भरतपुर में पक्षियों का स्वर्ग कहा जाने वाला पक्षी विहार है. इसे फिलहाल विश्व प्राकृतिक धरोहर का दर्जा मिला हुआ है. मगर अब उस पर संकट बहुत नजदीक आ गया है. इस संकट का कारण बन रहा है पानी.

एक समय राजाओं की शिकार शाला रहा ये क्षेत्र धीरे धीरे पक्षियों स्वर्ग बन गया. माना जाता है कि सर्दियों के मौसम में करीब 20 हजार देशी विदेशी पक्षी यहाँ अपने घोंसले बनाते है. 1956 में घने को अभ्यारण्य का दर्जा मिला. धीरे धीरे इस स्थान का महत्व बढता गया. यही कारण रहा कि 1981 में इसे राष्ट्रीय पार्क का दर्जा दे दिया गया.

इसके बाद घने ने पीछे मुडकर नहीं देखा. भरतपुर की धरोहर को विश्व स्तर पर पहचान मिली. भरतपुर के उजडते उधोगों के बीच घना मानों यहाँ की लाईफ लाईन बन गया. विदेशी पर्यटकों ने घने की ओर आना आरम्भ कर दिया. यहाँ दर्जनों होटलों बन गई. सर्दियों में तो यहाँ रौनक रहने लगी.

घने को सबसे अधिक पहचान दिलाई सुदूर साइबेरिया से आने वाले सारसों ने. हजारों मील की दूरी अपने पखों से नापकर आने वाले इन सारसों के चलते घने की इस पक्षी विहार की पहचान अन्र्तराष्ट्रीय स्तर की हो गई। बर्ष 2003 की सर्दियों में साइबेरियन सारसों का एक अन्तिम जोडा यहाँ दिखाइ दिया. उसके बाद तो मानों इस पक्षी विहार को ग्रहण ही लग गया. रहा सहा काम पूरा कर दिया अकाल और सरकारों के पानी पहुँचाने के वायदों ने. आज पानी के कारण इस घने के अस्तित्व पर संकट खडा हो गया है.

प्राकृतिक विश्व धरोहरों का निर्धारण करने के लिए फरवरी 2011 में यूनेस्को वल्र्ड हेरीटेज कमेटी के 35 वें सेशन की बैठक होनी प्रस्तावित है. और उससे पहले यदि घने के लिए पर्याप्त पानी की व्यवस्था नहीं की गई तो राजस्थान की इस पहचान पर दिखाई दे रहा आसन्न संकट हकीकत बन जोगानबम्वर महीने में हुई व्लर्ड हैरीटेज कमेटी की सपेन में हुई बैठक में इस बात पर चिन्ता व्यक्त की गई है. कमेटी ने राज्य सरकार को स्पष्ट कर दिया है कि पानी की व्यवस्था यदि नहीं की गई तो घने के विश्व धरोहर तमगे को वापिस ले लिया जायेगा. कमेटी का मानना है कि घने को जितने पानी की आवश्यकता है उतना पानी उस नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में 2010 के मानसून तक पर्याप्त पानी की व्यवस्था करना सुनिश्चित किया जाना जरूरी है. और अगर ऐसा नहीं किया गया तो पक्षी विहार को ‘‘ डेजर्ट लिस्ट’’ में डाल दिया जायेगा. कमेटी ने फरवरी 2010 में घने का दौरा करना एक बार और निश्चित किया है.

घना पक्षी विहार के लिए पानी की व्यवस्था करने के लिए 60 करोड रूपये के ‘‘गोर्वधन प्रोजेक्ट को केन्द्रीय योजना आयोग ने मंजूरी दे दी है. राज्य सरकार की ओर से अभी ये प्रोजेक्ट टेंडर प्रक्रिया में ही उलझी हुई है. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने लोकसभा चुनावों के प्रचार अभियान भरतपुर के लोगों को ये भरोसा दिलाया था कि वो गोर्वधन प्रोजेक्ट को जल्दी ही शुरू कर घने के लिए पानी की व्यवस्था जल्दी ही करेगें.

राजस्थान निर्माण के समय से ही भरतपुर राज्य में पिछडा हुआ है. राजनीति के फलक पर यहाँ प्रदेश में कभी भी दमदार नेतृत्व दिखाई नहीं दिया है. बाबू राजबहादुर के बाद केन्द्र में नटवर सिंह के भरोसे ही भरतपुर रहा. आज वो भी बिना कुछ किये कराये राजनीति के हासिये पा जा पहुँचे है. प्रदेश के स्तर पर भरतपुर अभी तक राजपरिवारों की गुलामी से उबर नहीं पाया है. एक और बात इस जिले के साथ रही है कि यहाँ अधिकांश समय सरकार विरोधी विधायक बनते रहे है. वर्तमान विधानसभा में जबकि कांग्रेस की सरकार है भरतपुर के सात में से 6 विधायक भाजपा के है.

घना पक्षी विहार के विश्व प्राकृतिक धरोहर के खिताब को बचाये रखने के लिए राजनीति से उपर उठकर प्रयास करने की जरूरत है. घना पक्षी विहार केवल भरतपुर ही नहीं पूरे राजस्थान और कहें तो देश की थाती है जहाँ परिन्दें अनुकूलन में अपनी संतति को बढाने के लिए आते है.