वायु प्रदूषण पर नियंत्रण का सीधा बोझ व्यापारियों पर पड़ता है। उन्हें प्रदूषण पर नियंत्रण यंत्र लगाने पड़ते हैं अथवा महंगे साफ ईंधन का उपयोग करना पड़ता है। अब हम वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लाभ और हानि का आकलन कर सकते हैं। बिल एवं मिलींडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा दादरी बिजली संयंत्र का अध्ययन किया गया। पाया गया कि प्रदूषण नियंत्रण यंत्र लगाने में जो खर्च आएगा, तुलना में वायु प्रदूषण नियंत्रण का लाभ 6 गुणा होगा।
विश्व के 20 सबसे वायु प्रदूषित शहरों में से 14 भारत में हैं। इनमें कानपुर विश्व का सर्वाधिक प्रदूषित शहर है। हमारी इस दुरूह परिस्थिति के पीछे कारण यह है कि वायु प्रदूषण से भारी हानि आम जनता को होती है, जबकि वायु प्रदूषण फैलाने से न्यून लाभ चुनिन्दा व्यवसायियों को होता है। अतः व्यवसायी अपने न्यून लाभ के लिए वायु प्रदूषण का विस्तार करते हैं और भारी खामियाजा आम जनता भुगतती है। व्यवसायियों पर नकेल कसने में सरकार फेल है। यह कैसे मान लिया जाए कि वायु प्रदूषण से आम जनता को भारी हानि होती है, जबकि व्यवसायियों को न्यून लाभ होता है? वायु प्रदूषण से आम जनता के स्वास्थ्य की हानि होती है। वायु प्रदूषण से जनता को हुई हानि की गणित करने के लिए हमें देखना होगा कि आम आदमी के स्वास्थ्य में हुए लाभ का मूल्य क्या है ? जैसे यदि वायु प्रदूषण नियंत्रण के लिए यदि व्यवसायी को 10 रुपए खर्च करना पड़ता है और यदि उस वायु प्रदूषण नियंत्रण से आम आदमी को केवल 5 रुपए का लाभ होता है तो वायु प्रदूषण सम्भवतः सही हो सकता है, लेकिन यदि आम आदमी को लाभ 20 रुपए का होता है तो वायु प्रदूषण रोका ही जाना चाहिए, चूंकि समग्र देश के लिए यह लाभप्रद होगा। लेकिन आम आदमी को जो प्रदूषण नियंत्रण से लाभ होता है उसकी गणना कैसे की जाए ?
अर्थशास्त्रियों ने इस गणित के लिए एक व्यवस्था बनाई है। उन्होंने लोगों से पूछा कि यदि उन्हें एक वर्ष अतिरिक्त जीवित रहने का अवसर मिले तो वह उसके लिए कितना मूल्य अदा करना स्वीकार करेंगे। इस प्रकार का सर्वे हजारों लोगों से किया गया। उसके बाद देखा गया कि वायु प्रदूषण से आम आदमी के जीवन में कितने वर्ष की गिरावट आती है। जैसे शुद्ध वायु में आम आदमी का जीवन 65 वर्ष हो और प्रदूषित वायु में उसका जीवन 57 वर्ष हो तो हम कह सकते हैं कि उसके जीवन काल में 8 वर्ष की गिरावट वायु प्रदूषण के कारण आई है। अथवा उसके जीवन काल में 8 वर्ष की वृद्धि वायु प्रदूषण के नियंत्रण से होगी। इस आधार पर अर्थशास्त्रियों ने वायु प्रदूषण के नियंत्रण से होने वाले लाभ की गणित इस प्रकार की है। मान लीजिए वायु प्रदूषण नियंत्रण से आम आदमी के जीवन में वर्ष की वृद्धि होती है। इसके बाद मान लीजिए कि जीवन काल में एक वर्ष की वृद्धि का आम आदमी मूल्य मानता है और मान लीजिए अपनी जनसंख्या है। तब देश को वायु प्रदूषण नियंत्रण से लाभ ‘गुणे’ ‘गुणे’ होगा। ऐसा करके अर्थशास्त्रियों ने गणित की कि वायु प्रदूषण के नियंत्रण से देश को कितना लाभ होगा।
वायु प्रदूषण पर नियंत्रण का सीधा बोझ व्यवसायियों पर पड़ता है। उन्हें प्रदूषण नियंत्रण यंत्र लगाने पड़ते हैं। अथवा महंगे साफ ईंधन का उपयोग करना पड़ता है। अब हम वायु प्रदूषण के नियंत्रण के लाभ और हानि का आकलन कर सकते हैं। बिल एवं मिलींडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा दादरी बिजली संयंत्र का अध्ययन किया गया। पाया गया कि प्रदूषण नियंत्रण यंत्र लगाने में जो खर्च आएगा उसकी तुलना में वायु प्रदूषण नियंत्रण का लाभ 6 गुना होगा। इसी प्रकार शंघाई में एक बिजली संयंत्र के अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण पर खर्च की तुलना में आम आदमी को लाभ 5-6 गुना होगा। विकसित देशों की संस्था ओईसीडी द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि वायु प्रदूषण नियंत्रण की समग्र नीति को लागू करने के खर्च की तुलना में लाभ 20 गुना होगा। इन तथा अन्य तमाम अध्ययनों से यह बात स्पष्ट निकलती है कि वायु प्रदूषण नियंत्रण के खर्च की तुलना में उसका लाभ बहुत अधिक है।
समस्या यह है कि वायु प्रदूषण नियंत्रण का खर्च व्यवसायियों को वहन करना पड़ता है जबकि उसका लाभ आम आदमी को मिलता है। व्यवसायियों के स्वार्थ को हासिल करने के लिए सरकारें उन्हें वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाने को बाध्य नही करती हैं, लेकिन वास्तव में व्यवसायी द्वारा यहाँ किया गया खर्च भी अंततः आम आदमी पर ही पड़ता है। यदि व्यवसायी वायु प्रदूषण नियंत्रण उपकरण लगाता है और उसके कारण उसकी उत्पादन लागत बढ़ती है, तो वह बोझ भी अंततः आम आदमी पर ही पड़ता है। जैसे यदि ईट के भट्टे पर वायु प्रदूषण नियंत्रण के उपकरण लगाए गए तो ईंट का दाम 8 रुपए से बढ़कर 10 रुपए हो जाएगा। आम आदमी को वह ईट 8 रुपए के स्थान पर 10 रुपए की खरीदनी पड़ेगी। इस प्रकार वायु प्रदूषण के लाभ और हानि दोनों ही आम आदमी पर पड़ते हैं। वायु प्रदूषण का लाभ आम आदमी को जीवन काल में वृद्धि के रूप में सीधे मिलता है जबकि वायु प्रदूषण की हानि आम आदमी पर ही महंगे माल के रूप में आकर पड़ती है। अतः जनता को यह तय करना है कि वह महंगी ईट खरीदेंगे अथवा लम्बा जीवन चाहेंगे। यदि लम्बा जीवन चाहिए तो महंगी ईट खरीदनी ही पड़ेगा। आम आदमी को यदि प्रश्न सीधे पूछा जाए कि आप सस्ती ईंट खरीद अल्प जीवन जीना चाहेंगे या महंगी ईंट खरीदकर लम्बा जीवन चाहेंगे तो मेरा अनुमान है कि हर व्यक्ति यही कहेगा कि हम महंगी ईंट खरीद कर लम्बा जीवन चाहते हैं।
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