युद्ध और आतंक से गहराता वायु प्रदूषण

Submitted by Shivendra on Fri, 07/05/2019 - 12:04
Source
विज्ञान प्रगति

युद्ध और आतंक से गहराता वायु प्रदूषण।युद्ध और आतंक से गहराता वायु प्रदूषण।

अपनी ताकत दिखाते देशों का परिणाम युद्ध विभीषिका हो या फिर आतंकी गतिविधियों का आधार, ‘विस्फोट’ दोनों ही जहरीली गैसों की सौगात देकर हवा में प्रदूषणकारी तत्व घोल देते हैं, जो मानव सहित सभी जीव और वनस्पतियों के लिए घातक हैं। कई देशों के बीच बढ़ते संघर्ष को देखते हुए 21वीं सदी में परमाणु युद्ध की आशंका और बढ़ गई है। यदि मानवता के दुर्भाग्य से ऐसा हुआ तो धरती को तबाह होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी। परमाणु बमों की विध्वंशक क्षमता टीएनटी (ट्राइनाइट्रोटालूईन) में आंकी जा रही है। टीएनटी एक साधारण विस्फोटक हैं, जिसे सैनिक और निर्माण कार्यो में इस्तेमाल किया जाता है। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी ने जो सबसे बड़ा सामान्य बम (गैर परमाणु) गिराया था, उसकी विध्वंशक क्षमता लगभग 20 टीएनटी थी। हिरोशिमा पर गिराया गया परमाणु बम इससे कोई 600 गुना ज्यादा शक्तिशाली था। आज मामूली परमाणु बम भी इससे कई हजार गुना अधिक विध्वंशक हैं। परमाणु बमों में सबसे अधिक खतरनाक हाइड्रोजन बम है, जिसकी विनाशक क्षमता कोई दो करोड़ टन टीएनटी के बराबर आंकी गई है। सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि मात्र एक हाइड्रोजन बम धरती पर कितनी तबाही मचा सकता है।

कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और गंधक के यौगिकों की बढ़ती मात्रा वायुमंडल पर कहर ढा रही है। हालांकि है सब देखते हुए यह आकलन नहीं किया जा सकता कि कौन-सा प्रदूषणकारी तत्व कितना प्रभाव देगा। मगर यह तो तय है कि विस्फोट के कारण विभिन्न ज्वलनशील पदार्थों से हानिकारक गैसों की बड़ी मात्रा पैदा होगी। 

अपनी व्यापाक विध्वनशक क्षमता के कारण यह परमाणु बम विनाश और मौत के साथ ही दीर्घकालिक प्रभाव भी छोड़ते हैं। परमाणु विकिरणों के कारण पुनः उत्पन्न होने वाली गामा किरणें पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली विकलांगता और कैंसर उपजाती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि यदि परमाणु युद्ध हुआ तो जानमाल की भारी तबाही के साथ ही धरती न्यूक्लीयर यानी आणविक शीत का शिकार हो जाएगी। दरअसल परमाणु बमों में विस्फोटों से करोड़ों टन धूल और राख उड़कर वातावरण में मीलों ऊपर लंबे समय तक छा जाएगी। इससे महीनों तक सूरज की रोशनी धरती पर नहीं पहुंचेगी। जाहिर है कि इससे धरती का तापमान बहुत गिर जाएगा। नतीजन हमारे जल स्रोत बर्फ में तब्दील हो जाएंगे, फसलें नष्ट हो जाएंगी, तमाम जीव-जंतु और पेड़ पौधे चिर निद्रा में सो जाएंगे, वगैरह-वगैरह। सूरज से आने वाली घातक पराबैंगनी किरणों से धरती की रक्षा करने वाली ओजोन परत पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो जाएगी। यानी परमाणु विकिरण और आणविक शीत के कहर से यदि कोई जीवित बचा तो उसे पैराबैंगनी किरणें निगल लेंगे। कुल मिलाकर करोड़ों वर्षों में विकसित मानव सभ्यता और हरी-भरी धरती पूरी तरह तबाह हो जाएगी।

सीरिया में बम विस्फोट के बाद धुएं का गुबार।सीरिया में बम विस्फोट के बाद धुएं का गुबार।

वायुमंडल पर मंडराते खतरों का आतंक

कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन और गंधक के यौगिकों की बढ़ती मात्रा वायुमंडल पर कहर ढा रही है। हालांकि है सब देखते हुए यह आकलन नहीं किया जा सकता कि कौन-सा प्रदूषणकारी तत्व कितना प्रभाव देगा। मगर यह तो तय है कि विस्फोट के कारण विभिन्न ज्वलनशील पदार्थों से हानिकारक गैसों की बड़ी मात्रा पैदा होगी। यह एक चिंता की बात है कि एक सदी से भी ज्यादा समय से औद्योगिक देश वायुमंडल में अरबों टन कार्बन डाइऑक्साइड छोड़ चुके हैं। इनमें आए दिन के विस्फोट भी अपना योगदान दे रहे हैं, जो सीधे आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े हैं। विश्व बैंक की पर्यावरण और विकास संबंधी रिपोर्ट बताती है कि ग्रीन हाउस गैसों के भारी मात्रा में पैदा होने के लिए विकसित देश ज्यादा दोषी हैं। सर्वेक्षण आधारित आंकड़े बताते हैं कि विकसित देशों से 70 प्रतिशत तो विकासशील देशों से 30 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड पैदा होती है। विश्व बैंक की रिपोर्ट बताती है कि अकेला अमेरिका ही दुनिया के कुल कार्बन डाइऑक्साइड स्तर का 23 प्रतिशत पैदा करता है। विस्फोट की स्थिति में जहां एक और जहरीली गैसें निकलती हैं, वहीं आतंकवादी घटनाओं में प्रयुक्त विस्फोटक भी वायुमंडल पर चोट करते हैं। स्टॉकहोम विश्वविद्यालय में कार्यरत वैज्ञानिक क्रटजेन की आशंका तो यह भी है कि यह स्थितियां ओजोन की छतरी को भी छितराती है। इसी प्रकार एरिजोना विश्वविद्यालय के पर्यावरण भौतिक शास्त्री जेम्स मैकडोनाल्ड के अनुसार सुपरसोनिक विमानों द्वारा उत्सर्जित जलवायु जीवन पर सीधे असर करती है। इसी श्रंखला में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्री हेराल्ड जॉनस्टन अपनी शोध रिपोर्ट में बताते हैं कि सुपरसोनिक विमानों द्वारा जलवायु की अपेक्षा नाइट्रिक ऑक्साइड का निकास ओजोन को ज्यादा प्रभावित कर रहा है। इंग्लैंड के जेम्स लावलैक ने कुछ साल पहले बताया था कि कुछ गैसें जैसे फ्लोरोमीथेन पूरे वायुमंडल में पसरी हुई हैं, जो हर तरह से हानिकारक है।

 

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