आस्था के ‘बेल पत्र’ बुलबुलों में खो जाते हैं

Submitted by Hindi on Sun, 03/16/2014 - 09:00
Source
हिन्दुस्तान, 31 मार्च 2011

उद्गम सूखा, सहायक नदियां सूखी पर जगह-जगह बढ़ रहा पानी


डॉ. वेंकटेश ने अब तक के गोमती अध्ययन में पाया कि झुकना नदी को छोड़कर जितने सहायक नदी नाले गोमती में मिले हैं वह सूखे हैं। इसके बावजूद नदी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रही है उसमें पानी बढ़ता जा रहा है। यह सौ से ढाई सौ एमएलडी तक बढ़ रहा है। वजह यह कि रिवर बेड और रिवर साइड में बड़ी संख्या में आर्टीजन वेल हैं जहां से नदी को बराबर पानी मिल रहा है .. गोमती गंगा यात्रा ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रही है गोमा मैया अध्ययन दल को चकित चमत्कृत करती जा रही है। यह दल कभी आस्था से सिर झुकाने लगता है तो कभी भूगर्भ विज्ञान की दृष्टि से व्याख्या करता है। ऐसा ही नैमिषारण्य चक्रतीर्थ से करीब सात किमी पहले पड़ने वाले रुद्रावर्त महादेव मंदिर घाट पर देखने को मिला। यह स्थान लखनऊ, सीतापुर और हरदोई जिले का सीमावर्ती है। यहां नदी में पानी भी है और प्रवाह भी लेकिन जो बात चमत्कृत करती है वह है इस पानी का स्रोत।

रुद्रावर्त में नदी के बीच ऐसे कई स्थान हैं जहां ध्यान से देखने पर पानी के बुलबुले उठते दिखते हैं। इन बुलबुलों में यदि मन में आस्था के साथ बेलपत्र डालें तो वह बुलबुलों में समाकर अदृश्य हो जाते हैं। अध्ययन दल के युवा सदस्यों अनुराग, संदीप, हर्ष, सतीश, अमित, शमशाद, सनी, विनायक आदि ने भी ऐसा करके देखा। ये सभी बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर यूनिवर्सिटी और जहांगीरबाद मीडिया इंस्टीट्यूट के छात्र हैं। स्थानीय मान्यता है कि नदी में शिवलिंग है और जो श्रद्धा से बेलपत्र व दूध से अभिषेक करता है वह सीधे शिव को समर्पित हो जाता है। कुछ गुत्थियां अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे अंबेडकर विवि के डॉ. वेंकटेश दत्ता के लिए भी अभी अनसुलझी हैं लेकिन वह मानते हैं कि नदी में कई प्राकृतिक भूगर्भ जल स्रोत (आर्टीजन वेल या नेचुरल वेल) एक साथ फूटते हैं। डॉ. वेंकटेश ने अब तक के गोमती अध्ययन में पाया कि झुकना नदी को छोड़कर जितने सहायक नदी नाले गोमती में मिले हैं वह सूखे हैं। इसके बावजूद नदी ज्यों-ज्यों आगे बढ़ रही है उसमें पानी बढ़ता जा रहा है। यह सौ से ढाई सौ एमएलडी तक बढ़ रहा है। वजह यह कि रिवर बेड और रिवर साइड में बड़ी संख्या में आर्टीजन वेल हैं जहां से नदी को बराबर पानी मिल रहा है इसी वजह से पानी की गुणवत्ता भी हर जगह अलग-अलग पर अमूमन अच्छी है। प्राकृतिक स्रोत फूटने के कारण पूरे नदी स्ट्रेच में हार्डनेस ज्यादा है। डॉ. वेंकटेश कहते हैं यह अद्भुत है। अब तक जितनी नदियों के बारे में पढ़ा और जाना है उनमें ऐसी विशिष्टता नहीं मिली। पूरे नदी स्ट्रेच में ऐसा होना बहुत ही रेयर (विरल संयोग) है। ऐसी नदी को तो धरोहर की तरह संरक्षित करने के युद्ध स्तर पर प्रयास होने चाहिए। अध्ययन को भी और ज्यादा गहराई से करने की जरूरत है।

दिशा भी खूब बदलती हैं मनमौजी माता:


रुद्रावर्त के ही निकट मड़ियानाथ में गोमती अचानक दिशा बदलती दिखती हैं। डॉ. वेंकटेश कहते हैं कि गोमती दक्षिण-दक्षिण पूर्व में बह रही हैं लेकिन मड़ियानाथ में वह अचानक उत्तर का रुख कर लेती हैं। चाहे इसे नदी का मनमौजी स्वभाव कहें या कुदरत का करिश्मा।

हाय रे हमारी अज्ञानता और बेबसी!:


मड़ियानाथ में भी नदी का जल निर्मल ही है, लेकिन यहां नदी तल में गंदगी लाशों के ढेर हैं। गरीब ग्रामीण यहां जलाने की व्यवस्था और क्षमता न होने के कारण शव बोरे में भरकर सीधे नदी में डाल देते हैं कुछ बहकर आगे चले जाते हैं और कुछ वहीं नदी में बैठ जाते हैं। यह स्थिति लखनऊ तक जहां-जहां नदी के किनारे आबाद बस्तियां दिखती हैं वहां-वहां ऐसी ही है।