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हिंदुस्तान, 01 अप्रैल 2011
शहर के नाले मैली कर रहे गोमती, हजारों ट्रक कूड़े से दब गए गोमा मैया के स्रोत
नदी में घुलनशील ऑक्सीजन सबसे कम लखनऊ में ही है। यही वजह है कि मछलियां व अन्य जलीय जीव यहां न के बराबर जिंदगी पा रहे हैं। लखनऊ में गोमती में जो प्रदूषण है उसमें 20 फीसदी हिस्सा सीतापुर और बाकी अस्सी फीसदी यहां के नालों की वजह से है। आम सोच है कि गोमती को इसमें मिलने वाली सहायक नदियां मैला कर रही हैं पर ऐसा नहीं है। लखनऊ हो या सुल्तानपुर दोनों जगह शहर की गंदगी गोमती में जहर घोल रही है।
गोमती गंगा यात्रा में शामिल अध्ययन दल का मानना है कि यदि लखनऊ में शामिल सभी एसटीपी परियोजनाएं शुरू हो जाएं तो भी हालात में बहुत अधिक सुधार की उम्मीद नहीं है। सुधार के लिए लखनऊ में कूड़े से ढके गोमती के भूगर्भ जल स्रोत को खोलने के लिए हजारों ट्रक गंदगी को निकालना होगा। साथ ही इसके प्रवाह को बनाए रखना होगा।
अध्ययन दल ने पाया कि लखनऊ से पहले सिधौली (सीतापुर) में सरायन नदी गोमती में मिलती है। सरायन में इससे पहले गोन मिलती है। इसी तरह गोमती में लखनऊ के बाद करीब 20 किमी दूर पर राजा कोठी (सलेमपुर) में लोनी मिलती है।
लोनी नगराम रोड पर शारदा सहायक इंदिरा कैनाल से पानी लेकर गोमती में पहुंचाती है। ये दोनों नदियां एक तरह से लखनऊ में मैला हुआ गोमती का आंचल साफ करती हैं। लखनऊ में एक तो बैराज बनाकर पानी को ठहराव दे दिया गया है।
दूसरे नालों का बिना ट्रीटमेंट किया पानी नदी में छोड़ा जा रहा है। इससे अब तक हजारों ट्रक कूड़ा नदी तल में समा चुका है। इससे नदी के प्राकृतिक जल स्रोत कूड़े में दब गए हैं और ठहरा हुआ पानी नालों को समेटकर और भी गंदा हो रहा है। लखनऊ में 22 नाले गोमती में गंदगी घोल रहे हैं। यही हाल सुल्तानपुर में है। यहां पांच नाले सीधे गोमती में कचरा उड़ेल रहे हैं।
अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे पर्यावरण विज्ञानी डॉ. वेंकटेश दत्ता कहते हैं कि यदि एसटीपी परियोजनाओं को पूरा करने के साथ नदी की सफाई की जाए तो स्थिति सुधर सकती है। माधो टांडा (पीलीभीत) से सुल्तानपुर तक आठ जिलों में पूरी नदी में सबसे ज्यादा प्रदूषण लखनऊ और सुल्तानपुर में ही है।
इसकी बड़ी वजह नाले हैं। नदी में घुलनशील ऑक्सीजन सबसे कम लखनऊ में ही है। यही वजह है कि मछलियां व अन्य जलीय जीव यहां न के बराबर जिंदगी पा रहे हैं। लखनऊ में गोमती में जो प्रदूषण है उसमें 20 फीसदी हिस्सा सीतापुर और बाकी अस्सी फीसदी यहां के नालों की वजह से है।
नदी में घुलनशील ऑक्सीजन सबसे कम लखनऊ में ही है। यही वजह है कि मछलियां व अन्य जलीय जीव यहां न के बराबर जिंदगी पा रहे हैं। लखनऊ में गोमती में जो प्रदूषण है उसमें 20 फीसदी हिस्सा सीतापुर और बाकी अस्सी फीसदी यहां के नालों की वजह से है। आम सोच है कि गोमती को इसमें मिलने वाली सहायक नदियां मैला कर रही हैं पर ऐसा नहीं है। लखनऊ हो या सुल्तानपुर दोनों जगह शहर की गंदगी गोमती में जहर घोल रही है।
गोमती गंगा यात्रा में शामिल अध्ययन दल का मानना है कि यदि लखनऊ में शामिल सभी एसटीपी परियोजनाएं शुरू हो जाएं तो भी हालात में बहुत अधिक सुधार की उम्मीद नहीं है। सुधार के लिए लखनऊ में कूड़े से ढके गोमती के भूगर्भ जल स्रोत को खोलने के लिए हजारों ट्रक गंदगी को निकालना होगा। साथ ही इसके प्रवाह को बनाए रखना होगा।
अध्ययन दल ने पाया कि लखनऊ से पहले सिधौली (सीतापुर) में सरायन नदी गोमती में मिलती है। सरायन में इससे पहले गोन मिलती है। इसी तरह गोमती में लखनऊ के बाद करीब 20 किमी दूर पर राजा कोठी (सलेमपुर) में लोनी मिलती है।
लोनी नगराम रोड पर शारदा सहायक इंदिरा कैनाल से पानी लेकर गोमती में पहुंचाती है। ये दोनों नदियां एक तरह से लखनऊ में मैला हुआ गोमती का आंचल साफ करती हैं। लखनऊ में एक तो बैराज बनाकर पानी को ठहराव दे दिया गया है।
दूसरे नालों का बिना ट्रीटमेंट किया पानी नदी में छोड़ा जा रहा है। इससे अब तक हजारों ट्रक कूड़ा नदी तल में समा चुका है। इससे नदी के प्राकृतिक जल स्रोत कूड़े में दब गए हैं और ठहरा हुआ पानी नालों को समेटकर और भी गंदा हो रहा है। लखनऊ में 22 नाले गोमती में गंदगी घोल रहे हैं। यही हाल सुल्तानपुर में है। यहां पांच नाले सीधे गोमती में कचरा उड़ेल रहे हैं।
अध्ययन दल का नेतृत्व कर रहे पर्यावरण विज्ञानी डॉ. वेंकटेश दत्ता कहते हैं कि यदि एसटीपी परियोजनाओं को पूरा करने के साथ नदी की सफाई की जाए तो स्थिति सुधर सकती है। माधो टांडा (पीलीभीत) से सुल्तानपुर तक आठ जिलों में पूरी नदी में सबसे ज्यादा प्रदूषण लखनऊ और सुल्तानपुर में ही है।
इसकी बड़ी वजह नाले हैं। नदी में घुलनशील ऑक्सीजन सबसे कम लखनऊ में ही है। यही वजह है कि मछलियां व अन्य जलीय जीव यहां न के बराबर जिंदगी पा रहे हैं। लखनऊ में गोमती में जो प्रदूषण है उसमें 20 फीसदी हिस्सा सीतापुर और बाकी अस्सी फीसदी यहां के नालों की वजह से है।