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हिंदू पुराणों में शिवपुत्री नर्मदा को गंगा से भी पवित्र नदी माना गया है . जनश्रुति है कि पवित्र नदी गंगा वर्ष में एक बार काली गाय के रूप में नर्मदा में स्नान करने आती है और पवित्र होकर श्वेतवर्णी गाय के रूप में फिर से स्वस्थान लौट जाती है. नर्मदा पुराण में कहा गया है कि नर्मदा के दर्शन मात्र से पापियों के पाप नाश हो जाते है. लेकिन आज कठोर सच यह है कि पवित्र नर्मदा नदी मानव जन्य प्रदूषण के कारण अपवित्र गंदी हो गई हैं और अब कहीं-कहीं तो नर्मदा जल स्नान के लायक भी नहीं बचा है. भारत सरकार ने मध्यप्रदेश की नर्मदा, क्षिप्रा, बेतवा और ताप्ती नदियों को प्रदूषण मुक्त करने के कार्यक्रम के लिए 15 करोड़ रू. की विशेष सहायता दी है , लेकिन काम इतनी धीमी गति से और बेतरतीब तरीक़े से हो रहा है कि इन नदियों में जल प्रदूषण की समस्या जस की तस बनी हुई है.
नर्मदा भारत की पांच बड़ी नदियों में गिनी जाती है, जो पश्चिम की ओर बहकर अरब सागर में गिरती है. मध्यप्रदेश के अमरकंटक पर्वत की मेकल पर्वत श्रेणी से निकली नर्मदा नदी 1312 किलोमीटर का लंबा स़फर तय करके गुजरात में भड़ौच के समीप अरब सागर की खंबात की खाड़ी में समुद्र से जा मिलती है. नर्मदा मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात राज्यों में बहती हैं लेकिन नदी का 87 प्रतिशत जल प्रवाह मध्यप्रदेश में होने से, इस नदी को मध्यप्रदेश की जीवन रेखा कहा जाता है. आधुनिक विकास प्रक्रिया में मनुष्य ने अपने थोड़े से लाभ के लिए जल , वायु और पृथ्वी के साथ अनुचित छेड़-छाड़ कर इन प्राकृतिक संसाधनों को जो क्षति पहुंचाई है, इसके दुष्प्रभाव मनुष्य ही नहीं बल्कि जड़ चेतन जीव वनस्पतियों को भोगना पड़ रहा है. नर्मदा तट पर बसे गांव, छोटे-बड़े शहरों, छोटे-बड़े औद्योगिक उपक्रमों और रासायनिक खाद और कीटनाशकों के प्रयोग से की जाने वाली खेती के कारण उदगम से सागर विलय तक नर्मदा प्रदूषित हो गई है और नर्मदा तट पर तथा नदी की अपवाह क्षेत्र में वनों की कमी के कारण आज नर्मदा में जल स्तर भी 20 वर्ष पहले की तुलना में घट गया है.
ऐसे में नर्मदा को प्रदूषण मुक्त करना समय की सबसे बड़ी ज़रूरत बन गई है, लेकिन मध्यप्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र की सरकारें औद्योगिक और कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए नर्मदा की पवित्रता बहाल करने में ज़्यादा रुचि नहीं ले रहे है.नर्मदा का उदगम स्थल अमरकंटक भी शहर के विस्तार और पर्यटकों के आवागमन के कारण नर्मदा जल प्रदूषण का शिकार हो गया है. इसके बाद, शहडोल , बालाघाट, मण्डला, शिवनी, डिण्डोरी, कटनी, जबल पुर, दामोह, सागर, नरसिंहपुर, छिंदवाड़ा, बैतूल , होशंगाबाद, हरदा, रायसेन, सीहोर, खण्डवा, इन्दौर, देवास, खरगोन, धार, झाबुआ और बड़वानी जिलों से गुजरती हुई नर्मदा महाराष्ट्र और गुजरात की ओर बहती है, लेकिन इन सभी जिलों में नर्मदा को प्रदूषित करने वाले मानव निर्मित सभी कारण मौजूद है. अमलाई पेपर मिल शहडोल, अनेक शहरों के मानव मल और दूषित जल का अपवाह, नर्मदा को प्रदूषित करता है. सरकार ने औद्योगीकरण के लि ए बिना सोचे समझे जो निति बनाई उससे भी नर्मदा जल में प्रदूषण बड़ा है, होशंगाबाद में भारत सरकार के सुरक्षा क़ागज़ कारखाने बड़वानी में शराब कारखानें, से उन पवित्र स्थानों पर नर्मदा जल गंभीर रूप से प्रदूषित हुआ है. गर्मी में अपने उदगम से लेकर, मण्डला, जबल पुर, बरमान घाट, होशंगाबाद, महेश्वर, ओंकारेश्वर, बड़वानी आदि स्थानों पर प्रदूषण विषेषज्ञों ने नर्मदा जल में घातक वेक्टेरिया और विषैले जीवाणु पाए जाने की ओर राज सरकार का ध्यान आकर्षित किया है.
मण्डला में ही नर्मदा जल में घातक प्रदूषण होने लगा है और जबल पुर आते-आते तो प्रदूषण की समस्या और भी गंभीर हो जाती है. गुजरात में औद्योगीकरण ने नर्मदा जल का प्रदूषण स्तर और भी बढ़ाया है. अंकलेश्वर में नर्मदा जल घातक स्तर तक प्रदूषित पाया जाता है. प्रदूषित नर्मदा को पवित्र बनाने और प्रदूषण मुक्त करने के लिए भारत सरकार ने राज्यों को सहायता उपलब्ध कराई है और राज्यों को यह महत्वपूर्ण कार्य उच्च प्राथमिकता से करने की हिदायत दी है, लेकिन मध्यप्रदेश में हिंदूवादी भाजपा सरकार बड़ी सुस्त गति से नर्मदा की पवित्रता बहाल करने के लिए काम कर रही है. नर्मदा के भावनात्मक दोहन और हिन्दु राजनीति के लिए इस्तेमाल पर भाजपा और राज्य सरकार उत्सव, जुलूस और आयोजनों पर तो भारी ख़र्च करती है और उनके आयोजनों से नदी में प्रदूषण फैल जाती है, लेकिन नर्मदा जल की पवित्रता बहाल करने और नर्मदा के किनारे के पर्यावरण को सुधारने के लिए भाजपा और राज्य सरकार के पास न तो कोई सोच है और न तो कोई इच्छा शक्ति है. हाल ही इस वर्ष मई माह में राज्य सरकार के नगरीय प्रशासन विभाग ने नर्मदा के उदगम स्थल अमरकंटक में नदी को प्रदूषण से मुक्त करने के लिए 50 ल ाख रू. की मंजूरी दी है.
सरकार का मानना है कि उदगम स्थल से ही पवित्रता बहाल करके नदी को प्रदूषण मुक्त कराया जा सकता है. जबल पुर, होशंगाबाद और दूसरे नगरों में स्थानीय नगरीय संस्थाओं को नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त करने और तटवर्ती औद्योगिक उपक्रमों को दूषित जल शोधित करने के निर्देश भी राज्य सरकार द्वारा दिए गए है, लेकिन अभी तक नदी को प्रदूषित करने वाले किसी भी उद्योग के ख़िला़फ सरकार ने कोई कड़ी क़ानूनी कार्यवाही नहीं की है. इससे राज्य सरकार की कमज़ोर इच्छा शक्ति का पता चलता है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सीहोर जिले में नर्मदा तट के निवासी है और स्वयं को नर्मदा पुत्र बताकर इस क्षेत्र की जनता का भावनात्मक दोहन करते रहते है, लेकिन औद्योगिक विकास के नाम पर मुख्यमंत्री बिना सोचे समझे नए उद्योग लगाने के लिए नर्मदा तट को प्राथमिकता दे रहे है. इससे नर्मदा तट के वनों को क्षति हो रही है और नर्मदा जल के प्रदूषण का नया ख़तरा पैदा हो रहा है.