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वसंत कुमार पुरातत्व विभाग भोपाल की मंजूषा पत्रिका
पुराभिलेखों के अनुसार दिल्ली में लगभग 629 जल संग्रहण क्षेत्र थे जहां तमाम बावड़ियां हुआ करती लेकिन शहरीकरण के कारण उनमें से अधिकांशतः आज अपना अस्तित्व खो चुकी हैं। ऐसी ही कुछ संरक्षित बावड़ियों और उसके इतिहास से रूबरू करा रहे हैं रामकुमार विद्यार्थी..
जब कुतुब-उद्दीन ऐबक के नेतृत्व में मुहम्मद गौरी की मुस्लिम फौज ने 1192 ई. में राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान को तराईन के मैदान में परास्त किया और भारत में अपना साम्राज्य किया तब वे उन मुश्किलों से वाकिफ हो चुके थे जिनका सामना उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए रास्ते एवं रेगिस्तान में किया था। वे जानते थे कि उनके एवं उनकी फौज के लिए पानी एक मुख्य जरूरत है एवं दिल्ली में जिसके साधन बहुत कम हैं क्योंकि तत्कालीन दिल्ली सूखी और पथरीली पहाड़ी क्षेत्र में बसी थी। उस समय दिल्ली में सीढ़ीदार बावड़ियां हुआ करती थी जो भारतीय जीवन के सौंदर्य बोध का भी उदाहरण रही हैं।
सीढ़ीदार बावड़ियों के प्रमाण हड़प्पा सभ्यता के शहरों से मिलते हैं लेकिन अभिलेखीय प्रमाणों में इनका इतिहास लगभग 5वीं शताब्दी तक जाता है, हालांकि अधिकांश सीढ़ीदार कुएं 8वीं से 18 वीं शताब्दी ई. के मध्य बने। यह वर्षा के जल संग्रहण, भूमिगत जल संवर्धन के साथ ही जल संग्रहण के लिये आवश्यक तो हैं ही परन्तु ये पश्चिमी भारत में सर्वाधिक रूप से बनाई गई परन्तु देश के अन्य क्षेत्रों में एवं उपमहाद्वीप पाकिस्तान में भी उपलब्ध हैं। पहले के हिन्दू सामराज्य के दौरान जल संग्रहण के लिये निर्मित लाल कोट जल संग्रह क्षेत्र उस समय की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं था। अन्य जल संग्रहण क्षेत्र जो कि पृथ्वीराज के वंशज सूरजपाल द्वारा दिल्ली के दक्षिण क्षेत्र में लगभग 1061 ई. में निर्मित सूरज कुण्ड था। यह पत्थरों के बांध द्वारा अर्ध वृत्ताकार विशाल सीढ़ियों से घिरा हुआ कुण्ड है । इसकी चिनाई का काम, उस समय की अभियांत्रिकी दक्षता, साफ पानी के आगमन, संग्रहण एवं आधिक्य के निस्तारण की सुगठित व्यवस्था को प्रदर्शित करता है।
पुराभिलेखों के अनुसार दिल्ली शहर में लगभग 629 जल संग्रहण के क्षेत्र थे लेकिन विकास एवं शहरीकरण के कारण उनमें से अधिकांशतः या तो अपना अस्तित्व खो चुके हैं या सूख चुके हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन इनमें से 15 जलसंग्रहण क्षेत्र हैं जिनमें अधिकांश बावड़ियां हैं एवं इनमें से 12 बावड़ियों का पिछले कुछ वर्षों में संरक्षण किया गया और उनके मूल स्वरूप को यथावत बनाये रखने का पूर्ण प्रयास किया गया। अधिकांश बावड़ियों की दीवारें गिर गई थी, छज्जे क्षतिग्रस्त हो गये थे एवं बावड़ियां मलवे से भर चुकी थी और इनमें पानी का स्रोत भी नहीं था। इन बावड़ियों को इनकी नींव तक (कुछ में सतह से 80-100 फीट गहराई तक) सावधानी पूर्वक पुरातात्विक उत्खनन द्वारा मलबा निकालकर साफ किया गया। संरक्षण कार्य में पूर्ण रूप से दक्ष कारीगरो एवं मिस्त्रियों को ही लगाया गया। सौभाग्य से भारत में पत्थर के कारीगरों की एक जीवित परम्परा कायम है जिसका पूर्ण फायदा प्राचीन स्मारकों के संरक्षण में मिलता है। संरक्षण कार्य प्राचीन पद्धति एवं आधुनिक तकनीक का सम्मिश्रण है। इसी प्रकार इस कार्य में प्राचीन कारीगरों के साथ ही थ्री डी स्केनर एवं जी.पी.आर. जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर जमीन के अंदर दबे हुये स्थापत्य एवं मलबे का अध्ययन किया गया और उसी के अनुसार संरक्षण कार्य की योजना बनाई गई।
यह कनॉट प्लेस के पास स्थित 15 वीं शताब्दी में निर्मित बावड़ी है। सतह पर इसकी नाप 192 ग 45 फीट एवं तल पर 129 फीट 3 इंच ग 24 फीट 6 इंच है। इसका निर्माण अनगढ़े पत्थरों की चिनाई एवं बाह्य सतह पर गढ़े हुए पत्थरो द्वारा किया गया। इस वावड़ी का निर्माण तीन भागों में किया गया प्रथम आयताकार भाग (स्नानागार स्वरूप) द्वितीय भाग मेहराबदार आलों के दो पंक्तियों युक्त मोटी दीवारों से घिरी हुई सीढि़यों की श्रृंखला एवं तृतीय भाग 25 फीट 6 इंच व्यास वाला वृत्ताकार गहरा कुआं है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल लगभग 435 वर्ग मीटर है।
यह महरौली क्षेत्र में आदम खान के मकबरे के दक्षिण में स्थित चार मंजिला बावड़ी है। इसका नाम उस समय इसका उपयोग करने वाले राज मिस्त्रियों के नाम पर पड़ा। यहां उपलब्ध एक अभिलेख के आधार पर यह बावड़ी 1512 ई. में निर्मित हुई। यह आयताकार बावड़ी है जिसमें दक्षिण की तरफ सीढ़ियां है सबसे निचली दृश्य मंजिल की दीवारें छोटे मेहराबदार ऑलों द्वारा सुसज्जित हैं। इस बावड़ी का क्षेत्र 858.36 वर्ग मीटर है।
यह आदम खान के मकबरे से लगभग 100 मीटर दक्षिण में स्थित है। इसके पानी में गंधक की खुशबू के कारण इसका नाम गंधक की बावड़ी पड़ गया। यह माना जाता है कि इस बावड़ी का निर्माण सुल्तान इल्तुतमिश (1211-36 ई.) के शासन काल में हुआ था। यह पांच मंजिला है और प्रत्येक मंजिल तल की ओर जाते हुए कम होती जाती है तथा इसके दक्षिण सिरे में एक वृत्ताकार कुआं है। प्रत्येक मंजिल में पूर्व एवं पश्चिम दिशा में गलियारों की व्यवस्था है।
यह बावड़ी अनगढ़े पत्थरों से निर्मित है। इसके दक्षिण में एक वृत्ताकार कुआं है जिसके दोनो ओर गुम्बद से आच्छादित कमरे हैं एवं जल तक पहुंचने के लिये सकरी सीढ़ियों की भी व्यवस्था है। पूर्व एवं पश्चिम की मोटी दीवारें मेहराबदार आलों से सुसज्जित हैं। इस बावड़ी का निर्माण काल लोदी काल (1451-1526 ई.) में हुआ माना जाता है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 350 वर्ग मीटर है।
सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के मकबरे के प्रांगण के उत्तरी दरवाजे के पास स्थित इस बावड़ी का निर्माण सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के द्वारा किया गया माना जाता है। कहा जाता है कि इस बावड़ी के निर्माण के दौरान संत निजामुद्दीन एवं तत्कालीन सुल्तान गियासउद्दीन तुगलक शाह के मध्य मतभेद उत्पन्न हो गये थे। बावड़ी की चिनाई तराशे हुए पत्थरों से की गई है एवं पानी तक पहुंचने के लिये सीढ़ियों की उन्नत व्यवस्था है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 657.80 वर्ग मीटर है।
पुराने किले के अंदर कला-ए-कुहना मस्जिद के दक्षिण पश्चिम की ओर यह एक विशाल बावड़ी है। चूंकि किला एक ऊंचे टीले के उपर बना है अतः भूमिगत जल स्तर बहुत नीचे होने के कारण इस बावड़ी का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि पानी ढ़का और सुरक्षित रहे एवं उसका वाष्पन कम से कम हो ताकि किले की अंदर की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। बावड़ी की छत क्रमशः छोटी होती हुई मेहराबों से बनी है। जल सतह तक पहुंचने के लिये 89 सीढ़ियां 8 अंतरालों के साथ बनाई गई है। सीढ़ियों की गहराई सतह से लगभग 22.25 मीटर है। बावड़ी के उत्तरी किनारे पर एक वृत्ताकार कुआं है। इस बावड़ी का क्षेत्रफल लगभग 675 वर्ग मीटर है।
इस बावड़ी का निर्माण अनगढ़े पत्थरों की चिनाई से एवं बाह्य सतह अच्छे तरीके से तराशे हुये पत्थरों से आच्छादित है। इसके मुख्य भागों में एक अष्टकोणीय खुले कक्ष के अलावा एक गहरा आयताकार कुण्ड है जिसका आकार लगभग 6.10 ग 6.10 मीटर है। बावड़ी में उत्तर एवं पश्चिमी तरफ से सीढ़ियां हैं जो कि मोटी दीवारों एवं मेहराबदार कमरों से सुसज्जित हैं। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 557 वर्ग मीटर है।
महरौली क्षेत्र के दक्षिणी ओर स्थित इस खुले तालाब का निर्माण 1230 ई. में सुल्तान शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने कराया था। ऐसा कहा जाता है कि यह सैकड़ों एकड़ में फैला हुआ था जिसके किनारे लाल बलुए पत्थर से बने थे। अलाउद्दीन खिलजी एवं फिरोजशाह तुगलक ने इसकी मरम्मत भी करवाई थी। इस तालाब को पवित्र माना जाता है एवं इसके आसपास कई मुस्लिम संतों की कब्रे हैं। वर्तमान में इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 2000 वर्ग मीटर है।
उत्तरी दिल्ली में अरावली की पहाड़ियों के रिज पर स्थित यह अनगढ़े पत्थरों से निर्मित एक विशाल बावड़ी है। मूलतः इसके चारों ओर कमरे बने हुए थे। बावड़ी एवं नालियों के अवशेषों से यह प्रतीत होता है कि इसका निर्माण फिरोजशाह के जहांनुमा पैलेस या कुश्क ए शिखर को जल प्रदाय के लिये किया गया था। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 1250 वर्ग मीटर है।
तुगलकाबाद किले में स्थित यह एक विशाल बावड़ी है जिसका गहराई तक उत्खनन किया गया है। इसको आकार देने के लिये चारों तरफ से चिनाई से बनाई गई दीवारें एवं सीढ़ियां हैं। बावड़ी के उत्तरी ओर की दीवार के ऊपर पानी खींचने के लिये बनाये गये चबूतरे के प्रमाण आज भी उपलब्ध है। इस बावड़ी का निर्माण सम्भवतः किले के निर्माण के लिये पत्थरों के खनन से बने गढ्ढे को आकार देकर किया गया। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 414 वर्ग मीटर है। इसी किले में एक अन्य बावड़ी है जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 840 वर्ग मीटर है।
हूमायूं के मकबरे के दक्षिण पश्चिम में लगभग 325 मीटर की दूरी पर स्थित इस बावड़ी का निर्माण 1560-61 ई. में हूमायूं की पत्नी बेगा बेग या हाजी बेगम द्वारा किया गया। ऐसा कहा जाता है कि जब वह मक्का की यात्रा से वापस लौटी तो उनके साथ लगभग 300 अरबी उपदेशक साथ में आये थे जिनको इस क्षेत्र में बसाया गया था इसलिये इसका नाम अरब की सराय पड़ गया एवं विभिन्न उपयोग हेतु पानी आवश्यकता को पूरा करने के लिये इस बावड़ी का निर्माण किया गया। अनगढे़ एवं गढ़े पत्थरों से इस गोलाकार बावड़ी का निर्माण किया गया एवं पानी तक पहुंचने के लिये सीढ़ियों की व्यवस्था की गई है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल लगभग 54.64 वर्ग मीटर है।
कोटला फिरोजशाह परिसर में अशोक स्तम्भ के पिरामिडाकार स्थापत्य के उत्तर पश्चिम में यह गोलाकार बावड़ी स्थित है। इसके चारों ओर मेहराबदार कमरों की व्यवस्था थी जिनके अवशेष देखे जा सकते हैं। इस गोलाकार बावड़ी में जल स्तर तक पहुंचने के लिये सीढ़ियां नहीं है और न ही यह चारों ओर से ढकी हुई है, इस बावड़ी से घिरनी द्वारा खींच कर पानी निकाला जाता है। यहां पर मिट्टी के पाईप एवं नालियों के अवशेषों से जल प्रबंधन व्यवस्था का पता चलता है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 876.13 वर्ग मीटर है।
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जब कुतुब-उद्दीन ऐबक के नेतृत्व में मुहम्मद गौरी की मुस्लिम फौज ने 1192 ई. में राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान को तराईन के मैदान में परास्त किया और भारत में अपना साम्राज्य किया तब वे उन मुश्किलों से वाकिफ हो चुके थे जिनका सामना उन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए रास्ते एवं रेगिस्तान में किया था। वे जानते थे कि उनके एवं उनकी फौज के लिए पानी एक मुख्य जरूरत है एवं दिल्ली में जिसके साधन बहुत कम हैं क्योंकि तत्कालीन दिल्ली सूखी और पथरीली पहाड़ी क्षेत्र में बसी थी। उस समय दिल्ली में सीढ़ीदार बावड़ियां हुआ करती थी जो भारतीय जीवन के सौंदर्य बोध का भी उदाहरण रही हैं।
सीढ़ीदार बावड़ियों के प्रमाण हड़प्पा सभ्यता के शहरों से मिलते हैं लेकिन अभिलेखीय प्रमाणों में इनका इतिहास लगभग 5वीं शताब्दी तक जाता है, हालांकि अधिकांश सीढ़ीदार कुएं 8वीं से 18 वीं शताब्दी ई. के मध्य बने। यह वर्षा के जल संग्रहण, भूमिगत जल संवर्धन के साथ ही जल संग्रहण के लिये आवश्यक तो हैं ही परन्तु ये पश्चिमी भारत में सर्वाधिक रूप से बनाई गई परन्तु देश के अन्य क्षेत्रों में एवं उपमहाद्वीप पाकिस्तान में भी उपलब्ध हैं। पहले के हिन्दू सामराज्य के दौरान जल संग्रहण के लिये निर्मित लाल कोट जल संग्रह क्षेत्र उस समय की ज़रूरतों को पूरा करने के लिये पर्याप्त नहीं था। अन्य जल संग्रहण क्षेत्र जो कि पृथ्वीराज के वंशज सूरजपाल द्वारा दिल्ली के दक्षिण क्षेत्र में लगभग 1061 ई. में निर्मित सूरज कुण्ड था। यह पत्थरों के बांध द्वारा अर्ध वृत्ताकार विशाल सीढ़ियों से घिरा हुआ कुण्ड है । इसकी चिनाई का काम, उस समय की अभियांत्रिकी दक्षता, साफ पानी के आगमन, संग्रहण एवं आधिक्य के निस्तारण की सुगठित व्यवस्था को प्रदर्शित करता है।
पुराभिलेखों के अनुसार दिल्ली शहर में लगभग 629 जल संग्रहण के क्षेत्र थे लेकिन विकास एवं शहरीकरण के कारण उनमें से अधिकांशतः या तो अपना अस्तित्व खो चुके हैं या सूख चुके हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अधीन इनमें से 15 जलसंग्रहण क्षेत्र हैं जिनमें अधिकांश बावड़ियां हैं एवं इनमें से 12 बावड़ियों का पिछले कुछ वर्षों में संरक्षण किया गया और उनके मूल स्वरूप को यथावत बनाये रखने का पूर्ण प्रयास किया गया। अधिकांश बावड़ियों की दीवारें गिर गई थी, छज्जे क्षतिग्रस्त हो गये थे एवं बावड़ियां मलवे से भर चुकी थी और इनमें पानी का स्रोत भी नहीं था। इन बावड़ियों को इनकी नींव तक (कुछ में सतह से 80-100 फीट गहराई तक) सावधानी पूर्वक पुरातात्विक उत्खनन द्वारा मलबा निकालकर साफ किया गया। संरक्षण कार्य में पूर्ण रूप से दक्ष कारीगरो एवं मिस्त्रियों को ही लगाया गया। सौभाग्य से भारत में पत्थर के कारीगरों की एक जीवित परम्परा कायम है जिसका पूर्ण फायदा प्राचीन स्मारकों के संरक्षण में मिलता है। संरक्षण कार्य प्राचीन पद्धति एवं आधुनिक तकनीक का सम्मिश्रण है। इसी प्रकार इस कार्य में प्राचीन कारीगरों के साथ ही थ्री डी स्केनर एवं जी.पी.आर. जैसी अत्याधुनिक तकनीकों का प्रयोग कर जमीन के अंदर दबे हुये स्थापत्य एवं मलबे का अध्ययन किया गया और उसी के अनुसार संरक्षण कार्य की योजना बनाई गई।
उग्रसेन की बावड़ी
यह कनॉट प्लेस के पास स्थित 15 वीं शताब्दी में निर्मित बावड़ी है। सतह पर इसकी नाप 192 ग 45 फीट एवं तल पर 129 फीट 3 इंच ग 24 फीट 6 इंच है। इसका निर्माण अनगढ़े पत्थरों की चिनाई एवं बाह्य सतह पर गढ़े हुए पत्थरो द्वारा किया गया। इस वावड़ी का निर्माण तीन भागों में किया गया प्रथम आयताकार भाग (स्नानागार स्वरूप) द्वितीय भाग मेहराबदार आलों के दो पंक्तियों युक्त मोटी दीवारों से घिरी हुई सीढि़यों की श्रृंखला एवं तृतीय भाग 25 फीट 6 इंच व्यास वाला वृत्ताकार गहरा कुआं है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल लगभग 435 वर्ग मीटर है।
राजाओं की बैन (बावड़ी)
यह महरौली क्षेत्र में आदम खान के मकबरे के दक्षिण में स्थित चार मंजिला बावड़ी है। इसका नाम उस समय इसका उपयोग करने वाले राज मिस्त्रियों के नाम पर पड़ा। यहां उपलब्ध एक अभिलेख के आधार पर यह बावड़ी 1512 ई. में निर्मित हुई। यह आयताकार बावड़ी है जिसमें दक्षिण की तरफ सीढ़ियां है सबसे निचली दृश्य मंजिल की दीवारें छोटे मेहराबदार ऑलों द्वारा सुसज्जित हैं। इस बावड़ी का क्षेत्र 858.36 वर्ग मीटर है।
गंधक की बावड़ी
यह आदम खान के मकबरे से लगभग 100 मीटर दक्षिण में स्थित है। इसके पानी में गंधक की खुशबू के कारण इसका नाम गंधक की बावड़ी पड़ गया। यह माना जाता है कि इस बावड़ी का निर्माण सुल्तान इल्तुतमिश (1211-36 ई.) के शासन काल में हुआ था। यह पांच मंजिला है और प्रत्येक मंजिल तल की ओर जाते हुए कम होती जाती है तथा इसके दक्षिण सिरे में एक वृत्ताकार कुआं है। प्रत्येक मंजिल में पूर्व एवं पश्चिम दिशा में गलियारों की व्यवस्था है।
मुनिरका की बावड़ी
यह बावड़ी अनगढ़े पत्थरों से निर्मित है। इसके दक्षिण में एक वृत्ताकार कुआं है जिसके दोनो ओर गुम्बद से आच्छादित कमरे हैं एवं जल तक पहुंचने के लिये सकरी सीढ़ियों की भी व्यवस्था है। पूर्व एवं पश्चिम की मोटी दीवारें मेहराबदार आलों से सुसज्जित हैं। इस बावड़ी का निर्माण काल लोदी काल (1451-1526 ई.) में हुआ माना जाता है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 350 वर्ग मीटर है।
ग्यासपुर (निजामुद्दीन) की बावड़ी
सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के मकबरे के प्रांगण के उत्तरी दरवाजे के पास स्थित इस बावड़ी का निर्माण सूफी संत निजामुद्दीन औलिया के द्वारा किया गया माना जाता है। कहा जाता है कि इस बावड़ी के निर्माण के दौरान संत निजामुद्दीन एवं तत्कालीन सुल्तान गियासउद्दीन तुगलक शाह के मध्य मतभेद उत्पन्न हो गये थे। बावड़ी की चिनाई तराशे हुए पत्थरों से की गई है एवं पानी तक पहुंचने के लिये सीढ़ियों की उन्नत व्यवस्था है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 657.80 वर्ग मीटर है।
पुराने किले में स्थित बावड़ी
पुराने किले के अंदर कला-ए-कुहना मस्जिद के दक्षिण पश्चिम की ओर यह एक विशाल बावड़ी है। चूंकि किला एक ऊंचे टीले के उपर बना है अतः भूमिगत जल स्तर बहुत नीचे होने के कारण इस बावड़ी का निर्माण इस प्रकार से किया गया है कि पानी ढ़का और सुरक्षित रहे एवं उसका वाष्पन कम से कम हो ताकि किले की अंदर की ज़रूरतों को पूरा किया जा सके। बावड़ी की छत क्रमशः छोटी होती हुई मेहराबों से बनी है। जल सतह तक पहुंचने के लिये 89 सीढ़ियां 8 अंतरालों के साथ बनाई गई है। सीढ़ियों की गहराई सतह से लगभग 22.25 मीटर है। बावड़ी के उत्तरी किनारे पर एक वृत्ताकार कुआं है। इस बावड़ी का क्षेत्रफल लगभग 675 वर्ग मीटर है।
लाल किले में स्थित बावड़ी
इस बावड़ी का निर्माण अनगढ़े पत्थरों की चिनाई से एवं बाह्य सतह अच्छे तरीके से तराशे हुये पत्थरों से आच्छादित है। इसके मुख्य भागों में एक अष्टकोणीय खुले कक्ष के अलावा एक गहरा आयताकार कुण्ड है जिसका आकार लगभग 6.10 ग 6.10 मीटर है। बावड़ी में उत्तर एवं पश्चिमी तरफ से सीढ़ियां हैं जो कि मोटी दीवारों एवं मेहराबदार कमरों से सुसज्जित हैं। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 557 वर्ग मीटर है।
हौज़-ए-शम्सी
महरौली क्षेत्र के दक्षिणी ओर स्थित इस खुले तालाब का निर्माण 1230 ई. में सुल्तान शमसुद्दीन इल्तुतमिश ने कराया था। ऐसा कहा जाता है कि यह सैकड़ों एकड़ में फैला हुआ था जिसके किनारे लाल बलुए पत्थर से बने थे। अलाउद्दीन खिलजी एवं फिरोजशाह तुगलक ने इसकी मरम्मत भी करवाई थी। इस तालाब को पवित्र माना जाता है एवं इसके आसपास कई मुस्लिम संतों की कब्रे हैं। वर्तमान में इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 2000 वर्ग मीटर है।
रिज क्षेत्र में स्थित बावड़ी
उत्तरी दिल्ली में अरावली की पहाड़ियों के रिज पर स्थित यह अनगढ़े पत्थरों से निर्मित एक विशाल बावड़ी है। मूलतः इसके चारों ओर कमरे बने हुए थे। बावड़ी एवं नालियों के अवशेषों से यह प्रतीत होता है कि इसका निर्माण फिरोजशाह के जहांनुमा पैलेस या कुश्क ए शिखर को जल प्रदाय के लिये किया गया था। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 1250 वर्ग मीटर है।
तुगलकाबाद किले में स्थित बावड़ी
तुगलकाबाद किले में स्थित यह एक विशाल बावड़ी है जिसका गहराई तक उत्खनन किया गया है। इसको आकार देने के लिये चारों तरफ से चिनाई से बनाई गई दीवारें एवं सीढ़ियां हैं। बावड़ी के उत्तरी ओर की दीवार के ऊपर पानी खींचने के लिये बनाये गये चबूतरे के प्रमाण आज भी उपलब्ध है। इस बावड़ी का निर्माण सम्भवतः किले के निर्माण के लिये पत्थरों के खनन से बने गढ्ढे को आकार देकर किया गया। इसका कुल क्षेत्रफल लगभग 414 वर्ग मीटर है। इसी किले में एक अन्य बावड़ी है जिसका कुल क्षेत्रफल लगभग 840 वर्ग मीटर है।
अरब की सराय में स्थित बावड़ी
हूमायूं के मकबरे के दक्षिण पश्चिम में लगभग 325 मीटर की दूरी पर स्थित इस बावड़ी का निर्माण 1560-61 ई. में हूमायूं की पत्नी बेगा बेग या हाजी बेगम द्वारा किया गया। ऐसा कहा जाता है कि जब वह मक्का की यात्रा से वापस लौटी तो उनके साथ लगभग 300 अरबी उपदेशक साथ में आये थे जिनको इस क्षेत्र में बसाया गया था इसलिये इसका नाम अरब की सराय पड़ गया एवं विभिन्न उपयोग हेतु पानी आवश्यकता को पूरा करने के लिये इस बावड़ी का निर्माण किया गया। अनगढे़ एवं गढ़े पत्थरों से इस गोलाकार बावड़ी का निर्माण किया गया एवं पानी तक पहुंचने के लिये सीढ़ियों की व्यवस्था की गई है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल लगभग 54.64 वर्ग मीटर है।
फिरोजशाह कोटला स्थित बावड़ी
कोटला फिरोजशाह परिसर में अशोक स्तम्भ के पिरामिडाकार स्थापत्य के उत्तर पश्चिम में यह गोलाकार बावड़ी स्थित है। इसके चारों ओर मेहराबदार कमरों की व्यवस्था थी जिनके अवशेष देखे जा सकते हैं। इस गोलाकार बावड़ी में जल स्तर तक पहुंचने के लिये सीढ़ियां नहीं है और न ही यह चारों ओर से ढकी हुई है, इस बावड़ी से घिरनी द्वारा खींच कर पानी निकाला जाता है। यहां पर मिट्टी के पाईप एवं नालियों के अवशेषों से जल प्रबंधन व्यवस्था का पता चलता है। इस बावड़ी का कुल क्षेत्रफल 876.13 वर्ग मीटर है।
संपर्क
मो. 09009399861, ई-मेल ramkumarvidyarthi@gmail.com