इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्य श्रीमती पुंडीर ने बच्चों को पेड़ लगाने, जल की बर्बादी को रोकने के लिए प्रोत्साहित किया जिससे बच्चे पर्यावरण मित्र बन सके। बच्चों ने पेड़-पौधों को रक्षा सूत्र भी बांधे। तथा होली के बारे में बताते हुए कहा कि रंगों का त्योहार होली, प्रत्येक वर्ष फाल्गुन मास की पूर्णमासी को मनाई जाती है। होली के आने से मनुष्य, जीव-जंतु और प्रकृति भी उल्लास से भर उठती है। भारत के हर त्योहार ही तरह ही होली का संबंध भी कृषि से है। होलिका दहन इस त्यौहार की मुख्य परंपरा है। इसकी शुरूआत बंसतपंचमी या शिवरात्रि के दिन से ही हो जाती है। आज होलिका दहन का स्वरूप काफी बदल चुका है। इसमें अब पहले से अधिक लकड़ियों का प्रयोग हो रहा है, जिसमें कुछ लोग सूखे पेड़ों के स्थान पर हरे-भरे पेड़ों की शाखाओं को काट कर इसमें लगा देते हैं। कहीं-कहीं पर इसे और अधिक ऊँचा करने के लिए टायर, पॉलीथीन से बने पदार्थों आदि का प्रयोग हो रहा है, जिसके जलने से हानिकारक गैसों को उत्सर्जन होता है। यह होलिका दहन का पारंपरिक स्वरूप नहीं है।
भारत उदय एजुकेशन सोसाइटी से गरिमा ने सभी बच्चों को ईको होली के विषय में भी बताया तथा बच्चों को रासायनिक रंगों को प्रयोग न कर प्राकृतिक तरीके से तैयार हर्बल कलर का प्रयोग करने की सलाह दी। बच्चों को हर्बल कलर तैयार करके भी सिखाया। होलिका दहन के अगले दिन रंगों से होली का पर्व मनाया जाता है। पूर्व में होली प्राकृतिक तरीके से तैयार किए गए रंगों से या फूलों से मनाई जाती थी, परन्तु समय के साथ-साथ इसके खेलने के तरीकों में काफी बदलाव आया है। आजकल रंगों के इस त्योहार में रासायनिक रंगों का प्रवेश हो चुका है, जोकि मानव व पर्यावरण के लिए काफी घातक है। रासायनिक रंगों का मानव पर पड़ने वाले प्रभावों का विवरण नीचे दिया गया हैः
रंग | किससेबनाहै? | स्वास्थ्य पर प्रभाव |
काला | लेड ऑक्साइड | इस रसायन का सीधा प्रभाव किडनी या गुर्दे पर पड़ता है, जिसमें किडनी फेल होने की संभावना भी रहती है। |
हरा | कॉपर सल्फेट | नेत्र विकार, आंखों में सूजन या कभी-कभी अंधापन |
रजत या सिल्वर | एल्यूमिनियम ब्रोमाइड | इस रसायन से कैंसर जैसा भयानक रोग हो सकता है। |
नीला | प्रूसीयन ब्लू | इससे चर्म रोग (कॉन्ट्रैक्ट डर्मिटाइटिस-अर्थात किसी एलर्जी से संबंधित रसायन के संपर्क में ने से त्वचा संबंधी रोग) होने की संभावना काफी बढ़ जाती है। |
लाल | मरकरी सल्फाइट | यह अत्यंत विषैला रसायन है जिससे त्वचा संबंधी कैंसर भी हो सकता है। |
होली में प्रयोग होने वाले गुलाल में सीमेंट, सिलिका, अम्ल, क्षार, सीसे के टुकड़े इत्यादि मिले होते हैं, जिसके संपर्क में आने से विभिन्न प्रकार के त्वचा संबंधी रोग हो जाते हैं, जैसेः त्वचा पर खरोंच, निशान, खुजली। इससे कभी-कभी आंखों की रोशनी जाने का भी खतरा रहता है। इन रसायनों के कारण श्वांस संबंधी रोग व कैंसर की संभावना भी बढ़ जाती है। यदि श्वांस के द्वारा सीमेंट एवं सिलिका फेफड़े में चली जाती है तो इससे फेफड़े से संबंधित कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।
इन्हीं सरोकारों को ध्यान में रखते हुए पर्यावरण शिक्षण केन्द्र ने स्कूली बच्चों को जागरूक करने के उद्देश्य से इको होली अभियान का आरंभ किया। इसके अंतर्गत बच्चों को होली के पारंपरिक महत्व को समझाने के साथ-साथ रासायनिक रंगों के प्रभावों को बताया जा रहा है। इस अभियान की शुरूआत भारतीय बालिका विद्यालय से हुई जहां ईको क्लब के बच्चों ने स्कूल के सभी बच्चों व उनके अभिभावकों तक ईको होली का संदेश देने हेतु एक पोस्टर प्रदर्शनी तैयार की। इसके अतिरिक्त इस अभियान में बच्चों को प्राकृतिक रंगों की महत्ता को समझाने व प्राकृतिक रंगों को बनाने की प्रक्रिया से भी अवगत कराया जा रहा है। इस अभियान में त्योहार के दौरान जल का कैसे कम से कम उपयोग हो और त्योहार को कितनी सावधानीपूर्वक मनाया जाए, इस बारे में भी जागरूक किया जा रहा है।
प्राकृतिक रंग बनाने के कुछ तरीके
रंग | आवश्यक वस्तुएं | प्रक्रिया |
पीला | 2 चम्मच हल्दी, 4 चम्मच बेसन | हल्दी व बेसन को मिलाकर पीले गुलाल की तरह प्रयोग करें। |
नारंगी | गुलाब जल, चंदन पाउडर और हल्दी | इन सभी वस्तुओं को आपस में मिलाकर पेस्ट बनाएं |
लाल | चंदन पाउडर, आटा, | सूखा रंग |
| चुटकी भर कत्था, 2 चम्मच हल्दी व जल | गीला रंग |
काला | आंवला एवं जल | लोहे के बर्तन में जल लेकर आंवले को रात भर के लिए भिगो कर रखें। |
विद्यालय के प्रबंधक सुशीला राणा ने बच्चों को शपथ दिलाई गई कि जल को व्यर्थ नहीं बहने देगें तथा पानी को प्रदूषित नही करेंगे। कार्यक्रम में अरविन्द कुमार, आरती, साईंस्ता आदि ने भी सहयोग दिया।