लेखक
यह आँखों को धोखा नहीं हुआ है
मैं वहाँ चल रहा हूँ जहाँ झील-तल में
लहराता था पोरसा भर पानी
कीचड़ भी अब सूख चुका
तल के चेहरे पर दरारों का जाला
फैला हुआ है
पपडि़यों में पानी का दरद है
टिटहरी की बोली और उदास करती है
बगुलों की बन आयी है
जीम रहे हैं मछरी
(बिना बकुल ध्यान के)
मरी मछरियों की गंध से
हवा की साँस फूल रही है
2009 का साल
बड़ी झील सूख कर काँटा हो गयी है!
करकती है शहर की आँख में
जो रात-दिन!!
मैं वहाँ चल रहा हूँ जहाँ झील-तल में
लहराता था पोरसा भर पानी
कीचड़ भी अब सूख चुका
तल के चेहरे पर दरारों का जाला
फैला हुआ है
पपडि़यों में पानी का दरद है
टिटहरी की बोली और उदास करती है
बगुलों की बन आयी है
जीम रहे हैं मछरी
(बिना बकुल ध्यान के)
मरी मछरियों की गंध से
हवा की साँस फूल रही है
2009 का साल
बड़ी झील सूख कर काँटा हो गयी है!
करकती है शहर की आँख में
जो रात-दिन!!