पानी को दुख है

Submitted by Hindi on Sat, 06/04/2011 - 08:54
पानी को दुख हैः
कि दिनोंदिन घट रही है उसकी शीतलता
कि कीचड़-कचरा से फूल रही है उसकी साँस
कि नदियों में भी बहती है पानी से अधिक दुर्गंध

पृथ्वी की नाडि़यों में कितनी पुलक से
दौड़ता था वह। लेकिन अब तो मशीनें
खीचें ले रही हैं उसे दिनरात!

पानी को दुख हैः
कि उसका पानीपन सूख रहा है
कि उसकी तरलता पर नहीं रही अब उसकी पकड़
कि उसका चेहरा नहीं रह गया अब निर्मल-स्वच्छ

सूखी झील-दुबली नदियाँ
उसे उदास करती हैं। पानी की प्यास
केवल इतनी है कि प्यासे कण्ठों को
आसानी से हो वह सुलभ

पानी को दुख है:
कि बहने-ठहरने की सिकुड़ती जा रही है
उसकी जगह और बंजर के खिलाफ़
उसकी लड़ाई नहीं रही धारदार अब!